बाढ़ पर निबंध | Essay on Flood in Hindi!

बाढ़ पर निबंध | Essay on Flood


Essay # 1.

बाढ़ का अर्थ (Meaning of Flood):

आमतौर पर नदियों में बाढ़ की स्थिति तभी उत्पन्न होती है जब नदी का पानी किनारों के ऊपर से बहकर आस-पास के बड़े हिस्सों में फैल जाता है । बाढ़ का यही जल जितने हिस्सों में फैलता है उसे बाढ़ के मैदान की संज्ञा दी जाती है ।

जब प्रवाह मार्ग न मिलने पर वर्षा जल रुक कर विशद् क्षेत्र पर फैल जाता है तो उसे जल जमाव अथवा जलप्लावन कहते हैं । बाढ़ एक भयंकर प्राकृतिक प्रकोप है । इसका अनुमान इस तथ्य से लग जाता है कि संसार के करीब 3.5% भाग पर बाढ़ का मैदान विशद् है । लेकिन उस पर विश्व की करीब 16.5% जनसंख्या निवास करती है ।

ADVERTISEMENTS:

भारत में गंगा, कोसी, महानदी, ब्रह्मपुत्र, कृष्णा, नर्मदा, गोदावरी, संयुक्त राज्य में मिसीसीपी और मिसौरी, चीन में ह्वांगहो, यांगटि-सी-क्यांग, बर्मा में इरावदी, पाकिस्तान में सिन्ध, नाइजीरिया में नाइजर, इटली में पो आदि भयंकर बाढ़ वाली नदियां हैं जिनसे अपार जान-माल की क्षति होती है ।


Essay # 2.

बाढ़ को निमंत्रण देने वाले प्रमुख कारक (Factors that Cause Floods):

नदियों में बाढ़ आने के प्रमुख कारकों का वर्गीकरण दो प्रकार से किया जा सकता है ।

जो निम्न हैं:

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(1) मानवजनित कारक (Anthropogenic Agent):

1 अत्यधिक पशुचारण ।

2. उद्योगों व घरेलू अपशिष्टों को नदियों में छोड़ना ।

3. निम्न भूमि क्षेत्रों को भरकर व पक्का बनाकर अनियोजित नगरों का निर्माण ।

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4. अनुचित स्थानों पर मानव द्वारा निर्माण कार्य जैसे बांध, पुल, रेल व सड़क मार्ग, जलाशय आदि का निर्माण ।

5. वन नाश-मनुष्य द्वारा वन के नाश के कारण नदियों के जलग्रहण क्षेत्रों की भू-सतह नग्न हो जाती है । जिससे वर्षा जल का भूमि में अन्त:स्पन्दन कम हो जाता है और धरातलीय वाही जल अधिक हो जाता है जो बिना किसी अवरोध के नदी में आकर जल मात्रा को बढ़कर बाढ़ की दशा उत्पन्न कर देता है ।

(2) प्रकृति जनित कारक (Natural Born Factor):

बाढ़ को निमंत्रण देने वाले प्रकृति जनित कारक निम्न हैं:

1. भूमिस्खलन अथवा ज्वालामुखी लावा से नदी मार्ग का अवरुद्ध होना ।

2. नदी मार्ग का अधिक घुमावदार होना ।

3. लम्बी अवधि तक घनघोर वर्षा का होना ।

4. अर्द्ध क्षेत्रों व शुष्क में वर्षा का अनिश्चित होना ।

5. नदी की सतह पर अवसादों के निक्षेप से नदी के पैंदे का उथला होना ।

6. विशद् जल धारण क्षेत्र का होना और जल निकास मार्ग का संकुचित होना ।

7. बर्फ का अधिक मात्रा में पिघलना ।

8. नदी जल धारा की प्रवणता में अचानक बदलाव का होना ।


Essay # 3.

भारत में बाढ़ का स्वरूप (Nature of Flood in India):

बाढ़ एक अत्यन्त महत्वपूर्ण प्राकृतिक प्रकोप है । केन्द्रीय जल आयोग एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में बाढ़ प्रभावित क्षेत्र 25 लाख हेक्टेयर है । प्रतिवर्ष 31 लाख हेक्टेयर फसल क्षेत्र प्रभावित होता है और 2.1 अरब रुपये के आस-पास की क्षति होती है ।

प्रतिवर्ष भारत में बाढ़ से होने वाली क्षति में लगातार बढ़ोत्तरी होती जा रही है । जैसे 1950-65 की अवधि में हुई क्षति की अपेक्षा 1966-67 में दो गुनी, 1975-71 में तीन गुनी तथा 1976-78 में पांच गुनी क्षति हुई ।

इसी तरह 1985 में 9.7 लाख हेक्टेयर भूमि और 181 लाख जनसंख्या बाढ़ से प्रभावित हुई तथा 340 जानें गई । इसकी तुलना में 1986 में 152 लाख हेक्टेयर क्षेत्र और 504 लाख जनसंख्या बाढ़ से प्रभावित हुई तथा 1577 जानें गई एवं 1351 करोड़ रुपये की क्षति हुई । भारत में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में भी बढ़ोत्तरी हो रही है । जैसे 1971 में 20 मिलियन हेक्टेयर भूमि बाढ़ प्रभावित थी जो 1981 में बढ़कर 40 हेक्टेयर हो गई ।

बाढ़ के वक्त कभी-कभी उपजाऊ मिट्टी क्षेत्र पर बालू का निक्षेप हो जाने पर वह व्यर्थ हो जाती है तथा कृषि उत्पादन की क्षति होती है । सबसे अधिक बाढ़ें, भारत में बिहार, उत्तर प्रदेश तथा आंध्र प्रदेश में आती हैं जहां देश की कुल क्षति का 62% क्षति होती है ।


Essay # 4.

बाढ़ से होने वाले लाभ (Benefits of Flood):

बाढ़ के आने से कुछ फायदे हैं तो कुछ लाभ भी हैं जो निम्न हैं:

1. नदियों में बाढ़ के वक्त मछलियों की प्राप्ति अधिक होती है ।

2. बाढ़ के जल को जलाशयों में इकट्ठा करके सिंचाई के लिए जल प्राप्त किया जा सकता है ।

3. बाढ़ के वक्त नए कॉप मिट्टी विशद् क्षेत्र पर फैल जाती है जिससे कृषि उत्पादन काफी अधिक होता है ।

4. बाढ़ क्षेत्र के गड्ढ़े बाढ़ के वक्त अवसादीकरण के कारण भर जाते हैं तथा समतल हो जाते हैं जहां कृषि का विस्तार संभव हो जाता है ।

5. बाढ़ के वक्त बड़े-बड़े जलयानों व नौकाओं का चलना संभव हो जाता है ।

6. लकड़ी के लट्ठों और अन्य सामानों का परिवहन बाढ़ के वक्त सरल हो जाता है ।


Essay # 5.

बाढ़ से होने वाली क्षति (Damage Caused due to Flood):

बाढ़ से होने वाली क्षति पर निम्न प्रकार प्रकाश डाला जा रहा है:

1. अनेकों मकान ध्वस्त हो जाते हैं ।

2. काफी लोग बेमौत मारे जाते हैं ।

3. सड़कें, रेल मार्ग ब पुलिया बह जाती हैं जिससे आवागमन बाधित होता है ।

4. वृहत् क्षेत्र बाढ़ के वक्त जलाप्लावित हो जाता है जिससे खड़ी लहलहाती फसल डूबकर नष्ट हो जाती है ।

5. स्कूल-कॉलेज और अन्य सरकारी सेवाएं बाढ़ के वक्त बन्द हो जाती हैं ।

6. अनेकों पशु बाढ़ में बह जाते हैं ।

7. बाढ़ के पश्चात् पशुओं के लिए चारे व मनुष्य के लिए खाद्यान्न का अभाव हो जाता है ।

8. अनेकों जहरीले सर्प, बिच्छू, कीड़े इत्यादि बाढ़ के वक्त घरों में प्रवेश कर जाते हैं, जिनके डंसने से कई लोग मर जाते हैं ।

9. बाढ़ के पश्चात् अनेकों बीमारियां व महामारियां उत्पन्न होती हैं जिनसे अनेकों लोग मौत के शिकार हो जाते हैं ।

अत: बाढ़ से अपार धन-जन की हानि होती है ।


Essay # 6.

बाढ़ प्रकोप से बचाव के प्रयास (Efforts to Prevent Flood Outbreak):

बाढ़ एक प्राकृतिक प्रकोप है जिससे रक्षा का उपाय करना अत्यंत मुश्किल कार्य है । बाढ़ का मूल कारण घनघोर वर्षा का होना है । इसे रोकना असंभव है ।

फिर भी निम्नलिखित उपायों द्वारा बाढ़ की तीव्रता, आवृत्ति, विभीषिका, विस्तार, क्षति आदि को कम किया जा सकता है:

(क) प्रशासन द्वारा उठाये जाने वाले कदम (Steps to be Taken by the Administration):

बाढ़ से बचाव हेतु जो कदम उठाये जाने चाहिये वे निम्न प्रकार हैं:

1. बाढ़ राहत कार्यों में सेना की सहायता ली जानी चाहिए ।

2. पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था की जानी चाहिये ।

3. फसलों व उद्योगों का बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बीमा किया जाना चाहिए ताकि क्षतिपूर्ति हो सके ।

4. बाढ़ राहत कार्यों में स्वयंसेवी संगठनों का भी सहयोग लिया जाना चाहिए ।

5. बाढ़ प्रभावित लोगों तक राहत सामग्री जैसे दियासलाई, भोजन, नमक, ईंधन, मिट्टी का तेल एवं दवा आदि सामग्रियां जल्दी पहुंचाने की व्यवस्था होनी चाहिए ।

6. बाढ़ पीड़ितों को तत्काल ही सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाने के लिए नौकाओं और अन्य परिवहन के साधनों की व्यवस्था होनी चाहिए ।

7. बाढ़ की भविष्यवाणी सरकार द्वारा की जानी चाहिए तथा लोगों को पूर्व चेतावनी दी जानी चाहिए । भारत में केंद्रीय बाढ़ नियंत्रण बोर्ड और प्रांतीय बाढ़ नियंत्रण बोर्ड इस दिशा में प्रशंसनीय कार्य कर रहा है ।

(ख) जैविक उपाय (Biological Measures):

इस उपाय अंतर्गत नदियों के जलग्रहण क्षेत्रों और उद्गम क्षेत्रों में सघन वन लगाये जाने चाहिए ।

सघन वन हमारे लिये निम्न प्रकार लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं:

1. वर्षा का पानी नदी में विलम्ब से पहुंचता है ।

2. बाढ़ की तीव्रता में कमी आ जाती है ।

3. वर्षा का कुछ जल रिसकर भूमिगत हो जाता है ।

4. मिट्टी का अपरदन नहीं होता है जिससे नदी में अवसादों का जमा होना तथा उससे नदी का पेटा उथला होना रुक जाता है ।

(ग) अभियांत्रिक उपाय (Engineering Solutions):

बाढ़ से सुरक्षा हेतु जैविक उपायों के साथ-साथ अभियांत्रिक उपाय भी उठाये जाने चाहिये ।

जो निम्न हैं:

1. नदी की तली के अवसादों को हटाकर उसे गहरा करना चाहिए ।

2. बाढ़ दिक बदलाव प्रणाली को विकसित करना चाहिए तथा बाढ़ के जल को निम्न भूमियों अथवा गर्तों में मोड़ने की व्यवस्था की जानी चाहिए ।

3. नाइयों के किनारे पके कृत्रिम तटबध, बांध, ठोकर आदि का निर्माण करना चाहिए ।

4. नदी पर बाढ़ नियंत्रण, भण्डारण, जलाशयों का निर्माण इत्यादि करना चाहिए । भारत की बहुद्देशीय दामोदर नदी घाटी परियोजना व संयुक्त राज्य की टिनेसी नदी घाटी परियोजना इसका प्रमुख उदाहरण हैं ।

5. विसर्पित नदियों के विसर्पों को काटकर सीधा कर देना चाहिए । इससे बाढ़ के वक्त नदी जल का तेजी से विसर्जन होने लगता है । मिसीसीपी व मिसौरी नदियों के कुछ विसर्पित मार्गों को काटकर सीधा किया गया है जिससे इन नदियों का सीधा प्रवाह हो जाने से जल का तीव्र गति से विसर्जन हो जाता है ।


Essay # 7.

भारत में विभिन्न काल-क्रम में आने वाले बाढ़ उदाहरण (Flood Examples in Different Periods in India):

सन् 1979 में भारत में भयंकर सूखा पड़ा था । दक्षिणी भारत को छोड़ शेष भारत के 97 जनपद इस सूखे की चपेट में आए थे जिसमें एक करोड़ टन खरीफ की फसल नष्ट हुई और 38 मिलियन हेक्टेयर कृषित भूमि, 20 करोड़ लोग तथा 12 करोड़ से अधिक पशु सूखे के शिकार हुए ।

157 करोड़ रुपये खर्च सूखा पीड़ितों को राहत पहुंचाने में किये गये । इसी तरह सन् 1988 में महाराष्ट्र के 20 जनपदों में सूखा पड़ा जिससे भोजन, चारा व पीने के पानी का अभाव हो गया और सूखा राहत कार्य में सरकार को रुपये 51 करोड़ से अधिक खर्च करना पड़ा । भारत में सन् 1985 तथा 1987 में भी भयंकर सूखा पड़ा था ।

सन् 1985 के सूखे में 35 करोड़ रुपये की फसल की हानि हुई । सन् 1987 के सूखे में 17 राज्यों व 3 केंद्र शासित राज्यों के 273 जनपद प्रभावित हुए थे जिसमें 166 मिलियन जनसंख्या और 81 मिलियन पशु प्रभावित हुए ।

सन् 1968 से 1975 के बीच उत्तरी अफ्रीका के सहेल प्रदेश में भयंकर सूखा पड़ा था जिसमें जान-माल की काफी क्षति हुई थी । इथीयोपिया आज भी सूखा प्रकोप से उबर नहीं पाया है तथा 50 हजार से अधिक लोग क्षुधा पीड़ा से मर चुके हैं । वहां सूखे की स्थिति आज भी बनी हुई है ।

सन् 1895 से 1902, 1911 से 1916 और 1919-1920 के बीच ऑस्ट्रेलिया में भयंकर सूखा पड़ा था जिसके कारण पशुओं की संख्या और कृषि भूमि कम हो गई । सन् 1975-76 में ब्रिटेन में सूखा पड़ा था जिसमें जल का काफी अभाव हो गया एवं सूखे से निपटने के लिए सूखा मंत्रालय की स्थापना की गई ।


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