अविकसित देशों पर निबंध | Here is an essay on ‘Underdeveloped Countries’ for class 9, 10, 11 and 12. Find paragraphs, long and short essays on ‘Underdeveloped Countries’ especially written for school an college students in Hindi language.

Essay # 1. अल्पविकसित देशों का अर्थ (Meaning of Underdeveloped Countries):

पॉल होफमैन (Paul Haffman) निम्नलिखित शब्दों में किसी अल्पविकसित देश का स्पष्ट चित्र प्रस्तुत करते हैं:

“कोई भी व्यक्ति किसी अल्प विकसित देश को देख कर पहचान लेता है । यह निर्धनता के लक्षण वाला देश है, जहां शहरों में भिखारी और ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामीण लोग कठिनता से जीविका चलाते हैं । यह ऐसा देश है जो अपने ही कारखानों में प्राय: बिजली और प्रकाश की अपर्याप्त पूर्ति करता है । जहां प्राय: अपर्याप्त सड़कें और रेल-मार्ग होते हैं, अपर्याप्त सरकारी सेवाएं और निर्बल संचार व्यवस्था होती है । यहां बहुत कम अस्पताल तथा उच्च शिक्षा की संस्थाएं होती हैं । इसके अधिकांश लोग पढ़ना लिखना नहीं जानते । सामान्य रूप में लोगों में विद्यमान निर्धनता के बावजूद, इसमें धन-दौलत के कुछ वियुक्त द्वीप हैं, जहां कुछ लोग विलासतापूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं । यहां की बैंक व्यवस्था बहुत दुर्बल है, छोटे-छोटे ऋण साहूकारों से प्राप्त करने पड़ते हैं जो लूट-खसोट करने वालों से कुछ ही कम हैं । किसी अल्पविकसित देश के विशेष लक्षणों में उस देश का अन्य देशों को निर्यात सम्मिलित है जो प्राय: पूर्णतया कच्चे माल, कच्ची धातुओं अथवा फलों अथवा कुछ मूल उत्पादों का होता है जिसमें कुछ थोड़ा अधिमिश्रण विलासतापूर्ण हस्तकौशल की वस्तुओं का होता है । निर्यात के लिये इस कच्चे माल की खुदाई या खेती प्राय: विदेशी कम्पनियों के हाथ में होती है ।”

इन कठिनाइयों के बावजूद, अल्पविकसित देशों को परिभाषित करना एक पूर्वापेक्षा है क्योंकि इसके बिना शब्द आर्थिक विकास को भली भान्ति नहीं समझा जा सकता ।

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अल्प विकास क्या है? (What is Underdevelopment?):

“अल्पविकसित देश वह है जिसमें प्रति व्यक्ति वास्तविक आय संयुक्त-राज्य अमेरिका के संयुक्त प्रान्तों, कैनेडा, आस्ट्रेलिया और पश्चिमी यूरोप की प्रति व्यक्ति आय की तुलना में कम हो ।” -यू एन. ओ. विशेषज्ञ समूह

“शब्द अल्पविकसित देश से अभिप्राय प्राय: शिथिल रूप में उन देशों अथवा क्षेत्रों से होता है जहां वास्तविक आय और जनसंख्या की प्रति व्यक्ति पूंजी उत्तरी अमेरीका, पश्चिमी यूरोप और आस्ट्रेलिया के मानकों से कम हो ।” -बायोर और यामे

“अल्पविकसित व्यवस्थाएं ऐसी हैं जिसमें प्रारम्भिक व्यवसाय जैसे कृषि का आधिपत्य होता है । आर्थिक विकास, अर्थव्यवस्था में तृतीयक व्यवसाय के अनुपात में प्रगतिशील विस्तार में सम्मिलित है ।” -कॉलिन क्लार्क

ADVERTISEMENTS:

“एक अल्पविकसित देश वह देश है जिसके पास और अधिक श्रम, पूंजी के प्रयोग के अच्छे सम्भावित लक्षण हैं अथवा और अधिक प्राकृतिक साधन उपलब्ध हैं अथवा वे सब इसकी वर्तमान जनसंख्या को एक उच्च जीवन स्तर पर सहायता कर सकते हैं अथवा इसकी प्रति व्यक्ति आय का स्तर एक बड़ी जनसंख्या की सहायता के लिये पहले ही ऊंचा है ।” -जैकब वाइनर

“अल्पविकसित अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जहां जीवन का निम्न स्तर, निरपेक्ष निर्धनता, निम्न प्रति व्यक्ति आय, उपभोग का निम्न स्तर, निर्बल स्वास्थ्य सेवाएं, उच्च मृत्यु दर, उच्च जन्म दर तथा विदेशों पर निर्भरता विद्यमान है ।” -एम. पी. टोडारी

देशों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है- निम्न आय, मध्यम आय तथा उच्च आय वाले देश । निम्न आय वाली अर्थव्यवस्थायें वे अर्थव्यवस्थायें हैं जहाँ प्रति व्यक्ति- जी.एन.पी. सन् 2005 में 875 $ अथवा उससे कम हो, मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं में प्रति व्यक्ति जी.एन.पी. 876 $ से 10725 $ के मध्य हो तथा अन्त में उच्च आय वाली अर्थव्यवस्थायें वे हैं जहां प्रति व्यक्ति जी.एन.पी. 10726 डालर या अधिक हो । -विश्व विकास प्रतिवेदन 2007

Essay # 2. अल्पविकसित देशों के मौलिक लक्षण (Fundamental Characteristics/ Features of Underdeveloped Countries):

एक प्रतिनिधि अल्पविकसित देश खोजने के लिये विभिन्न अवरोधों के कारण, अल्पविकसित देशों के सामान्य आर्थिक लक्षणों के सम्बन्ध में बात करना उचित होगा । सभी लक्षण एक ही सीमा में सभी ऐसे देशों में नहीं पाये जाते । इसलिये अल्पविकसित देश के लक्षणों को जानने के लिये, किसी व्यक्ति को ऐसे देश का सामान्य ढांचा ध्यान में रखना पड़ेगा ।

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अल्पविकसित देश के सामान्य लक्षण इस प्रकार हो सकते हैं- जैसे सामान्य निर्धनता, निम्न आय, अल्पविकसित प्राकृतिक साधन, प्राथमिक उत्पादन वाली अर्थव्यवस्थाएं, जनसांख्यिकी कारक, पूंजी का अभाव, द्वैतवादी अर्थव्यवस्था, प्रौद्योगिक पिछड़ापन, विदेशी पूंजी पर अधिक आर्थिक निर्भरता, उद्यमीय योग्यता का अभाव तथा पिछड़े हुये मानवीय संसाधन आदि ।

आईये, अल्पविकसित देशों के प्रमुख लक्षणों का विस्तार में परीक्षण करें:

1. सामान्य निर्धनता एवं निम्न आय (General Poverty and Low Income):

अल्पविकसित देशों में अधिकांश लोगों की आय का स्तर, उनके उत्पादन के अति निम्न स्तर के कारण नीचा होता है । विश्व के लोगों का 2/3 भाग जो देशों में रहता है, विश्व की कुल उत्पादित आय का कठिनता से 1/3 भाग प्राप्त करता है । उन्हें निर्धनता के नीचे दबे हुये कहा जा सकता है ।

ए. एन. केरनक्रास के अनुसार- “अल्पविकसित देश विश्व अर्थव्यवस्था की मलिन बस्तियां हैं ।” इसलिये निर्धनता, विकसित देशों की तुलना में अति निम्न प्रति व्यक्ति आय द्वारा प्रतिबिम्बित होती हैं । यह तथ्य तालिका 5.1 से स्पष्ट है जो कुल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) दर्शाती है ।

सन् 2003 में विश्व विकास प्रतिवेदन के अनुमानों के अनुसार, ये ऐसे देश थे जिनका प्रति व्यक्ति कुल राष्ट्रीय उत्पाद 600 डालर से कम था । इसमें से 9 एशिया और अफ्रीका के देशों का प्रति व्यक्ति कुल राष्ट्रीय उत्पाद, चालू मूल्यों पर 300 डालर से कम था ।

दूसरी ओर, पश्चिम की औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं का प्रति व्यक्ति कुल राष्ट्रीय उत्पाद लगभग 18000 डालर अनुमानित किया गया था । यहां तक कि उच्च आय वाले तेल निर्यात करने वाले संयुक्त अरब अमीरात में यह राशि 17400 डालर थी । स्विट्‌जरलैण्ड और जापान का प्रति व्यक्ति कुल राष्ट्रीय उत्पाद, सन् 2003 में क्रमश: 40630 और 39640 डालर रिकार्ड किया गया ।

अत: इन देशों में साधारण लोगों की आय का निम्न स्तर उनके भाग्य की स्थिति को दर्शाने के लिये पर्याप्त है । परन्तु समग्र रूप में, समृद्ध एवं निर्धनों के बीच आय की असमानता अत्याधिक है ।

2. अल्पविकसित प्राकृतिक साधन (Underdeveloped Natural Resources):

एक अल्पविकसित देश के प्राकृतिक साधन, अप्रयुक्त अथवा अल्प प्रयुक्त होते हैं । वास्तव में इन देशों में भूमि, जल, खनिज पदार्थ, वन, ऊर्जा संसाधन आदि का अभाव नहीं है परन्तु उनका उचित विदोहन नहीं हो पाता । अन्य शब्दों में उनके पास पर्याप्त से संसाधन हैं । परन्तु विभिन्न बाधाओं और समस्याओं के कारण उनका ठीक प्रयोग नहीं हो पाता ।

इस सम्बन्ध में कुरीहारा ने सत्य ही कहा है- ”भरपूर प्राकृतिक साधनों वाली कोई अर्थव्यवस्था उनके विकास के लिये आवश्यक प्रौद्योगिकी अथवा पूंजी के बिना लगभग उतनी ही निर्धन होती है जितनी कि इन साधनों के बिना कोई अर्थ व्यवस्था हो सकती है ।”

यहां, यह याद रखना आवश्यक है कि कभी-कभी देश साधनों में निर्धन हो सकता है, परन्तु भविष्य में अज्ञात साधनों की खोज अथवा साधनों के नये प्रयोगों की खोज से यह समृद्ध बन सकता है ।

अत: अल्पविकसित देशों को प्राकृतिक साधनों में पूर्णतया दुर्बल कहने के स्थान पर यह कहना अधिक प्रासंगिक होगा कि यह देश उत्पादन विधियों के उचित परिवर्तनों, सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था द्वारा प्राकृतिक साधनों के अभाव को पूरा करने में सफल नहीं हुये हैं ।

पी. टी. बाउर (P.T. Bauer) और बी. एस. यामे (B.S. Yamey) के अनुसार- ”यह कहना कि सामान्यत: अल्पविकसित देश, प्राकृतिक साधनों के सन्दर्भ में अभागे और सम्पन्नता में कृपण होते हैं अत्याधिक सरलीकरण होगा; विशेषतया खनिजों और उपजाऊ भूमि के सम्बन्ध में आधुनिक मानकों के अनुसार सभी विकसित देश अल्पविकसित थे तथा वे तुलनात्मक रूप में कम समय तथा हाल ही में विकसित हुये हैं ।”

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अल्पविकसित देशों में भूमि, खनिज पदार्थों, वन और ऊर्जा सम्बन्धी साधनों का अभाव नहीं हैं । उदाहरणार्थ, भारत के पास अब भी 90 मिलियन एकड़ कृषि योग्य भूमि व्यर्थ पड़ी है जिसे सिचाई सुविधाएं देकर कृषि के लिये प्रयोग किया जा सकता है ।

इसकी कुल जल-विद्युत सम्भावनाओं का अनुमान 41 मिलियन KW लगाया है, परन्तु इसके केवल 10 प्रतिशत भाग का प्रयोग होता है । अफ्रीका के पास विश्व की 44 प्रतिशत जल-ऊर्जा सम्भावनाएं उपलब्ध हैं परन्तु वे इसके केवल 0.1 प्रतिशत का प्रयोग करते हैं ।

अल्पविकसित देश खनिज साधनों में भी समृद्ध हैं । एशिया और अफ्रीका के पास तांबे, टिन और स्वर्ण के पर्याप्त भण्डार हैं । एशिया पैट्रोल, लोहा, टिन, जिंक और ताबे में बहुत समृद्ध है । इसी प्रकार, अफ्रीका और दक्षिणी अमरीका की वन सम्पत्ति का अनुमान अभी तक भी लगाया नहीं जा सका ।

3. पूंजी का अभाव (Capital Deficiency):

पूंजी का अभाव एक अन्य लक्षण है जो व्यापक रूप में इन सब देशों पर लागू होता है । यह अल्प विकास का कारण और प्रभाव दोनों ही है । अल्पविकसित देश प्राय: पूंजी के दीर्घ-कालिक अभाव से पीड़ित होते हैं जो किसी अर्थव्यवस्था में निम्न प्रति व्यक्ति आय के लिये उत्तरदायी है ।

अन्य शब्दों में अल्पविकसित देशों में पूंजी की उपलब्धता उन्नत देशों की तुलना में बहुत नीची होती है जिससे बचतों की दर नीची होती है तथा फलस्वरूप पूंजी निर्माण का दर भी नीची होती है ।

एक अनुमान के अनुसार विकसित देशों में पूंजी निर्माण का दर राष्ट्रीय आय का 20 से 25 प्रतिशत तक होता है, जबकि अल्पविकसित देशों में यह दर उनकी राष्ट्रीय आय का 5 प्रतिशत होती है ।

इसलिये पूंजी की उपलब्धता उनकी साधन सम्भाव्यताओं के सन्दर्भ में प्रौद्योगिकी के वर्तमान मानकों के अनुसार अपर्याप्त होती है, जो अर्थव्यवस्था को उत्पादकता के निम्न स्तरों पर संचलन के लिये विवश करती है ।

इस प्रकार, आर्थिक विकास की मौलिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये न केवल वर्तमान पूंजी भण्डार कम हैं बल्कि इन देशों में पूंजी निर्माण की वर्तमान दर भी बहुत कम है । वास्तव में, अल्पविकसित देशों को ”पूंजी निर्धन” अथवा “कम बचत” और “निम्न निवेश” वाली अर्थव्यवस्थाएं भी कहा जा सकता है ।

अल्प विकसित देश में पूंजी अभाव की समस्या तब अधिक तीक्षण दिखाई देती है जबकि इसे जनसंख्या की वृद्धि दर से जोड़ा जाता है । ऐसे देशों में, यह नहीं कि बचतों का दर निम्न है बल्कि तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण निवेश की दर नगण्य सी बन जाती है ।

4. कृषि पर अधिक निर्भरता (Excessive Dependence on Agriculture):

अधिकांश अल्पविकसित देश मुख्यता कृषि-प्रधान होते हैं तथा विशेषतया कच्चे माल अथवा प्राथमिक वस्तुओं के उत्पादक होते हैं । इन देशों में, उत्पादन और रोजगार भारी रूप में कृषि अथवा खनिज क्षेत्रों पर केन्द्रित होता है, जबकि उत्पादन और रोजगार में निर्माण का भाग बहुत कम होता है ।

अन्य शब्दों में जनसंख्या का 70 से 80 प्रतिशत भाग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में कृषि व्यवसायों में व्यस्त होता है, इसका कारण यह है कि पर्याप्त पूंजी के अभाव में द्वितीयक अथवा तृतीयक क्षेत्र उचित रूप में विकसित नहीं होते ।

5. जनसांख्यिक लक्षण (Demographic Features):

अल्पविकसित देश प्राय: जनसंख्या के आधिक्य की समस्या से पीड़ित होते हैं । अन्य शब्दों में, ऐसे देशों के जनसांख्यिक प्रतिमान विश्व के विकसित देशों से बहुत भिन्न होते हैं ।

इस प्रकार की विविधता जनसंख्या के आकार और घनत्व, आयु संरचना तथा जनसंख्या वृद्धि की दर में देखी जाती है । वास्तव में, जनसंख्या से सम्बन्धित मॉलथ्स का नियम अनेक अल्पविकसित देशों में लागू होता है ।

तथापि, इन देशों के मुख्य जनसांख्यिक लक्षणों का वर्णन नीचे किया गया है:

(क) जनसंख्या का आधिक्य (Over-Population):

अधिकांश अल्पविकसित देश उच्च जनसंख्या वृद्धि सम्भाव्यता स्थिति में होते हैं जहां उच्च जन्म दर तथा तीव्रता से घटता हुआ मृत्यु दर होता है । पिछड़े देशों में जन्म दर लगभग 35 प्रति हजार प्रति वर्ष होती है, परन्तु कुछ स्थानों पर जन्म दर और भी ऊंची होती है जैसे इथोपिया में 51, पाकिस्तान में 42, बंगला देश में 35, नेपाल में 40, ईराक में 42 और गायना में 46 प्रति हजार है ।

इसकी तुलना में विकसित देशों में यह 10 से 14 प्रति हजार के बीच है । अल्पविकसित देशों में मृत्यु दर भी ऊंची होती है परन्तु हाल ही में चिकित्सकीय सुविधाओं के विस्तार तथा रोगों के नियन्त्रण के कारण इसमें तीव्र गिरावट की प्रवृत्ति दिखाई दी है ।

(ख) जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy):

अल्पविकसित देशों में जीवन की औसत प्रत्याशा उन्नत देशों से कहीं कम होती है । यह मुख्यता निम्न प्रति व्यक्ति आय, जीवन के निम्न स्तर, अपर्याप्त पोषण और समाज के निर्धन वर्गों को पर्याप्त चिकित्सक सहायता प्राप्त न होने के कारण होता है । निम्न और मध्यम आय वाले देशों में औसत प्रत्याशित आयु 69 है जबकि उप सहारा अफ्रीकन देशों में यह 47 है ।

पूर्व एशिया और पैसेफिक, दक्षिणी एशिया और यूरोप और मध्य एशिया में यह क्रमश: 69, 62 और 69 है फलत: अधिकांश बच्चों को सहायता की आवश्यकता होती है तथा उनकी सहायता के लिये कम वयस्क होते हैं । अल्पविकसित देशों में उन बच्चों के पालन-पोषण और शिक्षा पर साधनों का बहुत अपव्यय होता है जिनकी छोटी आयु में ही मृत्यु हो जाती है ।

(ग) विकास अनुपात (Development Ratio):

अल्पविकसित देशों का एक अन्य विशेष जनसांख्यिक लक्षण यह है कि कुल जनसंख्या का एक बड़ा अनुपात अल्प आयु वर्ग में होता है । 15 वर्ष से कम आयु की जनसंख्या की प्रतिशतता, एशिया, लैटिन अमरीका और अफ्रीका में 40 प्रतिशत है जबकि विकसित देशों में इसकी प्रतिशतता कुल जनसंख्या का 20 से 25 प्रतिशत के बीच होती है ।

इसका अर्थ है कि आर्थिक रूप में सक्रिय जनसंख्या की प्रतिशतता निर्धन देशों में उन्नत देशों की तुलना में बहुत कम होती है । इसके अतिरिक्त, जनसंख्या के इस नीचे से भारी आयु संरचना ढांचे में निर्भरों की संख्या अधिक होती है तथा वयस्क श्रम शक्ति का अभाव होता है । कुछ आनुभाविक अध्ययन आर्थिक अधोगति तथा भारी निर्धरता भार के बीच दृढ़ सह-सम्बन्ध दर्शाते हैं जिससे आर्थिक विकास की गति बहुत धीमी हुई है ।

6. विदेशी व्यापार की प्रवृत्ति (Foreign Trade Orientation):

ध्यानपूर्वक जांच पर देखा गया है कि अल्पविकसित देश विदेशी व्यापार प्रवृतिक होते हैं । यह उनकी कुछ प्राथमिक वस्तुओं के उत्पादन पर निर्भरता द्वारा दर्शाया गया है जिनका लगभग पूर्ण रूप में निर्यात किया जाता है तथा उपभोक्ता वस्तु एवं मशीनरी का आयात होता है ।

कुछ देशों के प्रकरण में कुल उत्पादन से आयतों का अनुपात काफी ऊंचा होता है । कुछ प्रकरणों में, एक या दो वस्तुओं का निर्यात ही विदेशी विनिमय की कमाई का एक मात्र स्रोत होता है ।

7. अल्प रोजगार और छुपी हुई बेरोजगारी का अस्तित्व (Existence of under Employment and Disguised Unemployment):

अल्प रोजगार और छुपी हुई बेरोजगारी प्राय: अल्पविकसित अर्थव्यवस्था के सामान्य लक्षण होते हैं । नवारेते और नवारेते (Navarrete and Navarrete) के अनुसार, बेरोजगार का ऐसी स्थिति के रूप में वर्णन किया जा सकता है जिसमें कारक श्रम की एक विशेष मात्रा अन्य प्रयोगों के लिये वापिस लेने से उस क्षेत्र का उत्पादन विशेष रूप में कम नहीं होगा जहां से इसे वापिस लिया गया है ।

कहने का भाव है कि कारक श्रम की इन इकाईयों की सीमान्त उत्पादकता उनके मौलिक रोजगार में शून्य या उसके बहुत समीप अथवा नकारात्मक है और इसे कृषि से वापिस ले लेने पर कृषि उत्पादन को वास्तव में बढ़ाया जा सकता है ।

छुपी हुई बेरोजगारी कृषि क्षेत्र तक सीमित है । यह भूमि पर जनसंख्या के अत्याधिक दबाव का परिणाम है और अधिकांश लोगों के पास वैकल्पिक रोजगार अवसरों का अभाव होता है ।

किसान के सम्पूर्ण परिवार को किसी- न-किसी कार्य में व्यस्त देखा जाता है जिससे धारित भूमि का आकार बहुत छोटा हो जाता है । श्रम शक्ति के एक भाग को कृषि उत्पादन कम किये बिना कृषि से दूर किया जा सकता है ।

8. द्वैतवादी अर्थव्यवस्था (Dualistic Economy):

अल्पविकसित देशों का एक अन्य विशेष लक्षण यह है कि यहां अधिकांश अर्थव्यवस्थाएं द्वैतवादी हैं । द्वैतवादी इस प्रकार है कि वे- (i) बाजार एवं (ii) जीविका द्वारा निर्मित हैं ।

बाजार क्षेत्र शहरों में जब की जीविका क्षेत्र ग्रामीण इलाकों में पाया जाता है । बाजार क्षेत्र को अल्पविकसित देशों में भी जीवन की सभी आधुनिक सुविधाएं प्राप्त होती हैं ।

उदाहरण के रूप में परिवहन, संचार, बैंक सेवाएं और अन्य अति आधुनिक सेवाएं व्यवस्थित बाजार क्षेत्र में उपलब्ध होती हैं परन्तु दूसरी ओर जीविका क्षेत्र पूर्णतया पुरातन तथा पिछड़ा हुआ होता है, उनका मुख्य व्यवसाय कृषि होता है । आधुनिक सुविधाएं उनके लिये एक सपना मात्र है और उनकी पहुँच से बाहर हैं ।

9. उद्यम एवं पहलकदमी की अनुपस्थिति (Absence of Enterprise and Initiative):

गतिशील उद्यम-प्रवृत्ति तथा पहलकदमी की अनुपस्थिति अल्पविकसित देशों का एक अन्य सामान्य लक्षण है । भूमि, श्रम और पूंजी उत्पादन के महत्वपूर्ण कारक है और चौथे कारक- उद्यमी के बिना वह अपनी अनुकूलतम क्षमता के अनुसार उत्पादन में योगदान नहीं कर पाते ।

उद्यमी प्रवृत्ति का सामाजिक व्यवस्था द्वारा निषेध किया जाता है जो रचनात्मक सुविधाओं के लिये अवसरों से इन्कार करता है । वास्तव में, रीति-रिवाजों की शक्तियां, पदवी की कठोरता, नये विचारों और बौद्धिक जिज्ञासा के अभ्यास के प्रति अविश्वास मिल कर प्रयोग एवं नव प्रवर्तन के लिये प्रतिकूल वातावरण तैयार करते हैं ।

इसलिये अल्पविकसित देश सदैव उद्यमीय प्रवृत्ति के नेतृत्व की खोज में रहते हैं । परन्तु घरेलू बाजार का सीमित आकार, विकास के नये क्षितिजों की दुर्बल जानकारी और त्रुटिपूर्ण नियम एक बड़ी सीमा तक न्यायसंगत उद्यमीय प्रवृत्ति की वृद्धि को प्रतिबन्धित करते हैं ।

10. प्रौद्योगिक पिछड़ापन (Technological Backwardness):

प्रौद्योगिक द्वैतवाद विकासशील देशों का एक अन्य महत्वपूर्ण लक्षण है । इसका अर्थ है कि अल्प विकसित देश संसार के उन्नत देशों की तुलना में आर्थिक निष्पादन के स्तर और स्वरूप में पिछड़े हुये हैं । ऐसे देश अन्य आर्थिक रूप में बेहतर देशों को उपलब्ध उत्पादन की सर्वोत्तम तकनीकों का प्रयोग नहीं कर रहे ।

इस पिछड़ी हुयी और पुरानी हो चुकी प्रौद्योगिकी के परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति श्रम उत्पादकता नीची और उत्पादन लागत ऊंची होती है । यह स्थिति निर्धन देशों की कृषि एवं उद्योग की उत्पादक प्रक्रियाओं में पायी जाती है ।

कुछ अर्थशास्त्री इस बात से सहमत हैं कि बहुत से अल्प विकसित देशों में सस्ती एवं बहुल श्रम शक्ति उपलब्ध है, दूसरी ओर वहां आधुनिक वैज्ञानिक मानकों के विपरीत घटिया गुणवत्ता वाली तकनीकों का प्रयोग होता है । यद्यपि, विकसित देश सामूहिक उत्पादन की मितव्ययताओं का लाभ उठाते हैं जबकि पिछड़े देश ऐसे लाभों से वंचित रहते हैं ।

11. कारकों का असन्तुलन (Factor Disequilibrium):

कारक असन्तुलन का अस्तित्व अल्पविकसित अर्थव्यवस्था का एक अन्य लक्षण है । इसका अर्थ है कि अल्पविकसित देशों में उत्पादन के कारक सन्तुलन स्तर प्राप्त करने में असफल रहते हैं ।

डॉ. अक्कन (Dr. Ackan) की दृष्टि में, आदर्श स्थितियों के अधीन अर्थव्यवस्था उत्पादन सम्भावना वक्र अथवा उत्पादन सीमा की ओर निर्दिष्ट होगी परन्तु एक स्थिर अर्थव्यवस्था में विभिन्न बाजार अपूर्णतायें उत्पादन सीमाओं की ओर सुधार को प्रतिबन्धित करती हैं ।

अन्य शब्दों में अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओं में उच्च स्तरीय कारक स्थिरता होती है । श्रम इस सीमा तक गतिहीन होता है कि बहुत से श्रमिक शून्य उत्पादकता पर काम जारी रखते हैं । कुछ सामाजिक संस्थाएं- भाषा धर्म और रीति-रिवाज के अन्तर श्रम की गतिशीलता को मुख्य बाधाएं हैं ।

सामाजिक प्रवृत्तियां और संस्थाएं बचतों की आदतों और निवेश के मार्गों में हस्तक्षेप करती हैं जिससे बचतों की गतिशीलता में बाधा पड़ती है लोग स्वर्ण, आभूषणों और नकदी के रूप में धन जमा करना पसन्द करते हैं । अत: निर्धन देशों में कारक संयोगों में असन्तुलन, निर्धनता के कारण और प्रभाव दोनों रूपों में कार्य करता है ।

12. संरचना का अभाव (Lack of Infrastructure):

एक अल्पविकसित देश की पहचान इस बात से होती है कि वहां विकसित देशों की तुलना में संरचना का भी अभाव होता है । इसका अर्थ है कि संचार और यातायात के साधन पूर्णतया विकसित नहीं होते । अर्थव्यवस्था की बढ़ती हुयी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये बिजली उत्पादन अपर्याप्त होता है ।

तकनीकी एवं व्यवसायिक सुविधाएं भी दुर्बल होती हैं । अत: इन सामाजिक सुविधाओं का अभाव विकास के मार्ग में मुख्य बाधा है जिससे सामान्य लोगों के मन में निराशा और पीड़ा उत्पन्न होती है ।

13. निर्बल आर्थिक व्यवस्था (Poor Economic Organization):

किसी अल्पविकसित देश के विकास में आर्थिक व्यवस्था एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है । परन्तु इन देशों में ऐसे आर्थिक संगठन का अभाव होता है । परोक्ष कर और सीमा शुल्क आय के उच्च अनुपात के लिये उत्तरदायी होते हैं तथा अधिकांश कर प्रतिगामी प्रकृति के होते हैं ।

बैंक एवं अन्य साख संस्थाएं विशेषतया ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं होती । जहां तक कि औद्योगिक बैंक एवं अन्य वित्तीय संस्थाएं भी अल्पविकसित देशों में कभी-कभार ही पायी जाती हैं । बिल बाजार और मुद्रा बाजार पूर्णतया अव्यवस्थित होते हैं ।

मुद्रा बाजार के भिन्न भागों में सम्बद्धता का अभाव होता है तथा मुद्रा दरें एक जैसी नहीं होती । वास्तव में, अल्पविकसित देशों का अदक्ष एवं अकुशल प्रशासनिक व्यवस्था से सीधा सम्बन्ध होता है ।

14. आर्थिक पिछड़ापन (Economic Backwardness):

अल्पविकसित देश आर्थिक रूप में पिछड़े हुये होते हैं । “इन देशों में श्रम की दक्षता नीची होती है, कारक गतिशील नहीं होते, व्यवसाय एवं व्यापार सीमित सभ्यता होती है, आर्थिक अज्ञान होता है और ऐसे मूल्य एवं सामाजिक संरचना होती है जिससे आर्थिक परिवर्तन के प्रोत्साहन न्यूनतम होते हैं ।” -मायर और बाल्डविन इसलिये, निम्न श्रम दक्षता, सामान्य निर्धनता के परिणामस्वरूप होती है जो पोषण के निम्न मानकों, अस्वस्थता, निरक्षरता और प्रशिक्षण के अभाव एवं व्यावसायिक अगतिशीलता में प्रतिबिम्बित होती हैं ।

श्रम की पूर्ति, मजदूरी के दरों से प्रशासित न होकर सांस्कृतिक एवं मनोवैज्ञानिक कारकों से प्रभावित होती है । श्रम की व्यावसायिक गतिहीनता भी संयुक्त परिवार प्रणाली एवं जाति प्रथा के कारण है । इससे लोग आलसी बन कर घरों में पड़े रहते हैं । वे कठिन परिश्रम में विश्वास करने के स्थान पर भाग्य में विश्वास रखते हैं । धर्म के प्रभाव में वे गतिविधि पूर्ण जीवन के स्थान पर सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं ।

हार्वे लीबेनस्टेन दिये गये अल्प विकास के लक्षण (Harvey Leibenstein’s Characteristics of Underdevelopment):

हार्वे लीबेनस्टेन ने अपनी पुस्तक ‘आर्थिक पिछड़ापन और आर्थिक वृद्धि’ ‘Economic Backwardness and Economic Growth’ में अल्प विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लक्षणों को वर्गीकृत किया है ।

इन्हें निम्नलिखित अनुसार संक्षिप्त किया गया है:

(क) आर्थिक:

(a) सामान्य:

(i) जनसंख्या का एक बड़ा भाग प्राय: 80 से 90 प्रतिशत के बीच कृषि में व्यस्त होता है ।

(ii) “कृषि में निरपेक्ष जनाधिक्य” अर्थात् कृषि में श्रमिकों की संख्या कम कर देने पर भी कुल उत्पादन उतना ही रहेगा ।

(iii) ”छुपे हुये बेरोजगार” का पर्याप्त प्रमाण तथा कृषि के बाहर रोजगार अवसरों का अभाव ।

(iv) प्रति व्यक्ति बहुत कम पूंजी ।

(v) प्रति व्यक्ति बहुत कम आय तथा परिणामस्वरूप लगभग “निर्वाह स्तर” की विद्यमानता ।

(vi) लोगों के बड़े समूह की व्यवहारिक रूप में शून्य बचतें ।

(vii) जो कुछ बचते हैं वे प्राय: भू-स्वामी वर्ग से हैं जो उद्योग अथवा वाणिज्य के निवेश में सहायक नहीं हैं ।

(viii) प्राथमिक उद्योग अर्थात् कृषि, वन तथा खादान प्राय: अवशेष रोजगार श्रेणियां हैं ।

(ix) कृषि उत्पादन में अधिकतर अनाज और प्राथमिक कच्चा माल सम्मिलित होता है तथा प्रोटीन खाद्य पदार्थों का उत्पादन तुलनात्मक रूप में कम होता है ।

(x) व्यय का बड़ा भाग खाद्य पदार्थों तथा अन्य आवश्यकताओं पर होता है ।

(xi) खाद्य पदार्थों तथा अन्य कच्चे माल का निर्यात ।

(xii) प्रति व्यक्ति व्यापार की कम मात्रा ।

(xiii) दुर्बल साख सुविधाएं तथा दुर्बल विपणन सुविधाएं ।

(xiv) घटिया निवास सुविधाएं ।

(ख) कृषि के मौलिक लक्षण (Basic Characteristics in Agriculture):

(i) यद्यपि भूमि पर कम पूंजीकरण होता है, परन्तु साथ ही जो कुछ पूंजी लगाई जाती है उसका मितव्ययी उपयोग नहीं होता क्योंकि धारित भूमि के आकार छोटे होते हैं ।

(ii) कृषि से सम्बन्धित तकनीकों का स्तर बहुत नीचा होता है, उपकरण एवं साज सामान सीमित और पुरातन स्वरूप के होते हैं ।

(iii) यहां तक कि, भारत के कुछ भागों में यहां बड़े-बड़े जमींदार हैं, फिर भी आधुनिक कृषि उत्पादन की बिक्री की व्यवस्था सीमित ही होती है क्योंकि परिवहन सुविधाओं का अभाव होता है तथा स्थानीय बाजार में प्रभावी मांग की अनुपस्थिति होती है । विशेष बात यह है कि अनेक पिछड़े हुये देशों में आधुनिक किस्म की कृषि केवल विदेशी बाजारों में बिक्री तक सीमित होती है ।

(iv) छोटे भूमि धारक और किसान लघुकालिक संकट का सामना करने की क्षमता भी नहीं रखते फलत: मृदा से उच्चतम सम्भव उत्पादन प्राप्त करने के प्रयत्न किये जाते हैं जिसके परिणाम हितकर नहीं होते ।

(v) सम्पत्ति एवं आय की तुलना में व्यापक उच्च ऋणाग्रस्तता होती है ।

(vi) घरेलू बाजार के लिये उत्पादन की विधियां प्रायः प्राचीन और अदक्ष होती हैं जो किसान के पास विक्रय के लिये कुछ नहीं छोड़ती । यह प्रायः प्रत्येक परिस्थिति में सत्य होता है चाहे किसान के पास भूमि हो या न, उसके पास पट्ट के अधिकार हों अथवा वह हिस्सेदारी पर कार्य करता हो ।

(vii) भूमि के बहुत छोटे आकारों तथा छोटे एवं बिखरे हुये टुकड़ों के कारण भूमि की भूख सम्बन्धी विचार बहुत व्यापक है । क्योंकि धरती पर बढ़ती हुई जनसंख्या के दबाव से जोत क्षेत्र का निरन्तर उप-विभाजन होता रहता है ।

(ग) जनसांख्यिक (Demographic):

(i) उच्च जनन क्षमता दर, प्रायः 40 प्रति हजार से ऊपर ।

(ii) उच्च मृत्यु दर तथा जन्म दर निम्न जीवन प्रत्याशा ।

(iii) अपर्याप्त पोषण तथा खुराक से सम्बन्धित त्रुटियां ।

(iv) अल्प विकसित स्वास्थ्य विज्ञान, सार्वजनिक स्वास्थ्य और सफाई ।

(v) ग्रामीण तिरस्कार ।

(घ) सांस्कृतिक एवं राजनीतिक (Cultural and Political):

(i) पिछड़ी हुई शिक्षा तथा प्रायः अधिकांश लोगों में उच्च मात्रा में निरक्षरता ।

(ii) सामान्य दुर्बलता तथा मध्य वर्ग की अनुपस्थिति ।

(iii) बाल श्रम की अत्याधिक उपस्थिति ।

(iv) स्त्रियों की पदवी और स्थिति की हीनता ।

(v) जनसामान्य के लिये परम्परा के अनुसार निर्धारित व्यवहार ।

(ङ) प्रौद्योगिक और विविध (Technological and Miscellaneous):

(i) प्रति एकड़ कम उत्पादन ।

(ii) कोई प्रशिक्षण सेवाएं नहीं अथवा मिस्रियों, इजीनियरों के लिये अपर्याप्त प्रशिक्षण सुविधाएं ।

(iii) अपर्याप्त और घटिया संचार एवं परिवहन सेवाएं-विशेषतया ग्रामीण क्षेत्रों में ।

(iv) अपरिष्कृत प्रौद्योगिकी ।