अविकसित देशों में विकास मुद्दे | Read this article in Hindi to learn about the development issues faced by underdeveloped countries.

अल्पविकसित समुदाय के सामने तीन समस्याएँ उपस्थित होती हैं:

(1) कृषि क्षेत्र से गैर कृषि क्षेत्र में स्थानान्तरित 8.75 व्यक्तियों के लिए ऐसे पूँजी उपकरणों की व्यवस्था करना कि वह एक उन्नत तकनीक के प्रणेता बनें, इस रूपान्तरण को औद्योगीकरण कहा जा सकता है, जबकि इस बात को ध्यान में रखा जाये कि इस रूपान्तरण में वाणिज्य वित्त, व्यक्तिगत सेवाओं आदि से सम्बद्ध क्षेत्रों में स्थानान्तरण भी सम्मिलित है ।

(2) कृषि में लगे व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि किए बिना कृषि उत्पादन में इतनी वृद्धि करना जिसके परिणामस्वरूप गैर कृषि क्षेत्र में बढ़ी हुई जनसंख्या के लिये एवं उपभोग में प्रयुक्त होने वाली उस वृद्धि के लिए खाद्य उपलब्ध हो सके जो विकास सम्बन्धी कार्यक्रम का एक अंग होता है ।

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(3) गैर कृषि क्षेत्र में जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि के प्रचलित स्तरों के अनुसार भरण-पोषण की व्यवस्था करना ।

उपर्युक्त तीनों समस्याओं पर क्रमशः निम्न प्रकार विचार किया जाता है:

1. औद्योगीकरण की लागत एवं प्रभत्व (Cost and Results of Industrialization):

औद्योगीकरण की लागत एवं परिणाम किसी देश विशेष की विशिष्ट परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं । इनमें देश में उपलब्ध तकनीक का रूप एवं इसका स्तर अत्यन्त महत्व का है । तकनीक का स्तर अंशतः इस बात पर निर्भर करता है कि कौन-सी तकनीक उपलब्ध है ।

तकनीकी शोध पूँजी सम्पन्न देशों में केन्द्रित होती है एवं पूँजी वस्तुओं का अधिक मात्रा में आयात किया जाता है अत: तकनीक का स्तर उस स्तर की तुलना में अधिक उन्नत होगा जो स्वभावतः अल्पविकसित समुदाय की परिस्थितियों के अनुरूप हो ।

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यह ध्यान रखना आवश्यक है कि जनसंख्या की अधिकता के कारण औद्योगीकरण जहाँ अधिक आवश्यक होता है, वहां यह अधिक सस्ता भी होता है, जबकि अल्पविकसित देशों में उचित प्रकार की श्रम प्रधान तकनीक उपलब्ध हो । अत: यह कहना सीमित रूप से सत्य है कि जनसंख्या अतिरेक से आर्थिक विकास में बाधा आती है ।

सिंगर ने परिकल्पना की कि प्रति स्थानान्तरित श्रमिक 4,000 डालर अथवा प्रति स्थानान्तरित व्यक्ति 1,600 डालर लागत आएगी । इस लागत में प्रचलित कीमत के आधार पर एक उचित अनुपात में बड़े पैमाने की सिंचाई, शक्ति व रेलों जैसे पूँजी प्रधान उपक्रमों की व्यवस्था सम्भव नहीं हो सकेगी ।

यदि सापेक्षिक रूप से छोटे पैमाने एवं हल्के उद्योगों के अनुकूल साधारण स्तर की तकनीक का प्रयोग हो तो इन उपक्रमों के साथ-साथ वाणिज्यिक तथा व्यक्तिगत सेवाओं की भी व्यवस्था हो सकेगी ।

इन सबसे अल्पविकसित समुदाय में 8.75 व्यक्तियों के स्थानान्तरण के लिए 14,000 डालर वार्षिक लागत आएगी जो 1,00,000 डालर राष्ट्रीय आय की 14 प्रतिशत है । अब प्रश्न यह है कि औद्योगीकरण में 14,000 डालर के विनियोग से कितनी आय की आशा की जा सकती है ।

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सिंगर ने अल्प विकसित देशों में सीमान्त उत्पादकता को अधिक मानने की प्रवृत्ति को उपयुक्त नहीं पाया । उनके अनुसार अल्पविकसित देश में इस बात की बहुत कम सम्भावना होती है कि किसी उत्पादक उपकरण के लगाए जाने पर उसके साथ-साथ सीमान्त उत्पादकता वैसे ही स्थिर रहे ।

शक्ति परिवहन जैसी आधारभूत सेवाओं पर पहले से ही काफी अधिक दबाव होता है एवं विनियोग में इन आधारभूत सेवाओं में वृद्धि की व्यवस्था के बिना या अन्य उद्योगों में से इन सेवाओं को निकाले बिना और इसके फलस्वरूप वास्तविक सामाजिक सीमान्त उत्पादकता को कम किये बिना, इस बोझ को बढ़ाना सम्भव नहीं होता ।

अत: यद्यपि अल्पविकसित देशों में सीमान्त उत्पादकता अधिक मानी जा सकती है तथापि पूँजी की बहुत कमी के कारण वस्तुत: यह एक असंगत कल्पना है । अत: उत्पादक पूँजी उपकरण धन (+) ऐसे उपकरण जो उनके पुर्जों अथवा अनुपूरक पदार्थों के उत्पादन हेतु आवश्यक होते हैं धन (+) नए विनियोग के लिए आवश्यक आधारभूत सेवाओं की व्यवस्था के सम्पूर्ण पैकेज की सीमान्त उत्पादकता की संकल्पना ही संगत है ।

अल्पविकसित देशों में किए गए विनियोगों के अनुभव से स्पष्ट है कि इस सम्पूर्ण पैकेज के सन्दर्भ में उत्पादकता सम्भवत: बहुत कम होगी । इसके विपरीत जैसे-जैसे विनियोग बढ़ता जाता है तथा संचयी होता जाता है वैसे-वैसे श्रृंखला एवं पैमाने की मितव्ययिता के उपलब्ध होने के कारण विनियोग की उत्पादकता पुन: बढ़ने लगती है ।

मॉडल में ऐसे निर्धन समुदाय की कल्पना की गयी है जो समस्त क्षेत्रों में विनियोग करने का कार्यक्रम आरम्भ करता है अत: अत्यन्त न्यून उत्पादकता या एक उच्च पूँजी/आय अनुपात की संकल्पना ध्यान में रखी जाती है ।

यह संकल्पना की जाती है कि उत्पादकता 17 प्रतिशत है जो 6:1 के पूँजी/आय अनुपात के समान है । इस संकल्पना के आधार पर 14,000 डालर के विनियोग से 2,333 डालर की वार्षिक शुद्ध आय या आरम्भिक राष्ट्रीय आय की 2-3 प्रतिशत आय प्राप्त होगी ।

2. कृषि विनियोग लक्ष्य (Agricultural Investment Target):

कृषि विनियोग सम्बन्धी लक्ष्य संरचना सम्बन्धी परिवर्तन की दर द्वारा ज्ञात किए जा सकते है । चूँकि कुल जनसंख्या में 1¼ प्रतिशत वार्षिक दर से वृद्धि होती है, लेकिन कृषि जनसंख्या स्थिर रहती है अत: खाद्यान्न की पूर्ति बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि कृषि उत्पादन में 1¼ प्रतिशत वार्षिक दर से वृद्धि हो ।

सिंगर के अनुसार 1¼ प्रतिशत वृद्धि कम-से-कम आवश्यक वृद्धि है । वस्तुत: कृषि उत्पादन में इससे अधिक वृद्धि करनी होगी । सर्वप्रथम तो 1¼ प्रतिशत अधिक खाद्य उत्पादन करना पर्याप्त नहीं होगा, साथ ही यह भी आवश्यक है कि इसे गैर कृषि क्षेत्र में पहुँचाया जाये ।

वास्तव में यदि अकृषि क्षेत्र में खाद्य पूर्ति की व्यवस्था यथावत् रखनी हो तो खाद्यान्न के स्थानान्तरण में 4 प्रतिशत की वृद्धि करने के लिए उत्पादकता में 1¼ प्रतिशत से अधिक की वृद्धि आवश्यक होगी ।

इसका कारण यह है कि कृषक सामान्य रूप से खाद्य उत्पादन में होने वाली कुल वृद्धि का स्थानान्तरण नहीं करेंगे । इसका कुछ भाग वह स्वयं उपभोग करना चाहेंगे । चूँकि मॉडल में समुदाय का वर्तमान कृषि उत्पादन 40,000 डालर है, इसलिए 1,200 डालर की वृद्धि अवश्य प्राप्त करनी होगी ।

सामान्य विकास रूपरेखा के सन्दर्भ में कृषि से सम्बन्धित यह लक्ष्य संगति रखता है । अब प्रश्न यह है कि कृषि उत्पादन में 1,200 डालर वार्षिक वृद्धि प्राप्त करने की लागत क्या होगी ?

सिंगर के अनुसार उन देशों की तुलना में जहाँ बहुत अधिक मात्रा में भूमि उपलब्ध होती है, अधिक जनसंख्या वाले देशों में कृषि उत्पादन में वृद्धि करने की अधिक लागत आएगी ।

प्राय: सभी अल्पविकसित देशों में बढ़िया बीजों, सिंचाई के स्थानीय तरीकों, फसलों के बेहतर चक्र एवं श्रेष्ठ उपकरणों के द्वारा सापेक्षिक रूप से सस्ते उपायों द्वारा कृषि उत्पादन को बढ़ाने के अवसर विद्यमान हैं ।

यह मानते हुए कि ऐसे अवसर विद्यमान हैं एवं उनका विधिवत् उपयोग किया जाता है सिंगर ने यह अनुमान लगाया कि कृषि विनियोग से 25 प्रतिशत आय (या 4:1 का पूँजी/आय अनुपात) सम्भव होता है ।

इस अनुमान के द्वारा यह कहा जा सकता है कि 4,800 डालर मूल्य के पूँजी निवेश द्वारा कृषि क्षेत्र में आवश्यक 1200 डालर की वार्षिक वृद्धि प्राप्त करना सम्भव है ।

सिंगर के अनुसार यह निष्कर्ष आशावादी पूर्व धारणाओं पर आधारित है तथा कुछ देशों में हर समय एवं अधिकांश देशों में कुछ अवस्थाओं में इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सम्भवत: अधिक लागत आती है ।

3. गैर कृषि क्षेत्र में जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि को उपलब्ध करने की लागत (Cost of Providing for the Natural Increase of Population in the Non-Agricultural Sector):

सिंगर ने गैर कृषि क्षेत्र में जनसंख्या में होने वाली प्राकृतिक वृद्धि के लिए प्रदान की जाने वाली लागत पर विचार किया । उन्होंने माना कि जनसंख्या में होने वाली प्राकृतिक वृद्धि के लिये विचाराधीन वर्ग को उपलब्ध तकनीक की तुलना में अधिक उन्नत तकनीक की व्यवस्था करने का प्रयास नहीं किया जाता ।

इससे अभिप्राय है कि गैर कृषि क्षेत्रों में प्राकृतिक वृद्धि का निरूपण करने वाले 3.75 व्यक्तियों के लिए इतने पूँजीगत उपकरणों की व्यवस्था करनी होगी जिसकी सहायता से वह प्रति व्यक्ति 200 डालर वार्षिक उत्पादन कर सकें । गैर कृषि क्षेत्र में पूँजी/आय अनुपात 4:1 है ।

इससे अभिप्राय 25 प्रतिशत वार्षिक की शुद्ध उपज है । यहाँ अधिक उन्नत तकनीक की दशा की तुलना में निम्न पूँजी-आय अनुपात की मान्यता ली गई है, क्योंकि अर्द्धविकसित देशों में निजी सेवाओं व वाणिज्यिक क्रियाओं का एक उच्च अनुपात तथा उपक्रम का काफी अल्प पैमाना विद्यमान रहता है ।

इसके साथ ही विकसित देशों की तुलना में अर्द्धरोजगार या छद्म बेकारी भी दिखायी देती है । दूसरी ओर अधिक विकसित देशों की तुलना में उपज भी कुछ कम (या पूँजी आय अनुपात कुछ अधिक) होता है ।

इसका कारण सार्वजनिक सेवाओं पर पड़ने वाला दबाव, बाह्य मितव्ययिताओं की कमी, प्रबन्धकीय अकुशलता, कच्चे संसाधनों का कम प्रवाह तथा कुशल श्रमपूर्ति की बाधाएँ मुख्य हैं । श्रम की अधिकता व पूँजी की कमी के साथ तकनीक का अभाव पूँजी आय अनुपात को उच्च बना देता है ।

सिंगर के अनुसार यदि 25 प्रतिशत उपज सम्बन्धी संकल्पना सत्य हो तब गैर कृषि क्षेत्र में 3.75 व्यक्तियों को स्थापित करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति पर 800 डालर का विनियोग करना पड़ेगा । अत: कुल विनियोग 3,000 डालर का होगा और वार्षिक शुद्ध आय में 750 डालर की वृद्धि होगी ।