अविकसित देशों में उत्पादन की तकनीकें | Read this article in Hindi to learn about the criteria for choosing the technique of production in underdeveloped countries.

यह निर्णय लेना एक विशिष्ट बात है कि क्या अल्पविकसित देशों को अपने औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया में श्रम-गहन तकनीकें अपनानी चाहिये या फिर पूँजीगहन तकनीकें । रेखा चित्र 9.4 इस स्थिति का स्पष्ट चित्रण करता है ।

रेखा चित्र 9.4 में अक्ष OX पर श्रम और अक्ष OY पर पूँजी का माप किया गया है । यह कल्पना की गई है कि वही उत्पादन फलन P1P2, किसी विकासशील देश में श्रम की निम्न सापेक्ष कीमत जो कीमत रेखा KL द्वारा दी गई है विकासशील देशों की तुलना में तकनीकों का अधिक श्रम गहन चुनाव प्रस्तुत करती है जहां श्रम की सापेक्ष कीमत रेखा K’L’ द्वारा दी गई है ।

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व्यवहार में, यह देखा गया है कि दोनों देशों में अपनाई गई तकनीकों में निम्नलिखित कारणों से अधिक अन्तर नहीं होता:

1. प्रत्येक देश की कारक निधि से अत्याधिक न्यायसंगत के चयन के लिये अनेक तकनीकें नहीं हैं । रेखा चित्र 9.4 में उत्पादन फलन निर्विघ्न नहीं और देश सापेक्ष कारक विधियों और सापेक्ष कारक कीमतों में अन्तरों के अनुसार बिन्दु A से बिन्दु B तक नहीं जा सकता ।

2. यदि यह कल्पना की जाती है कि अनेक वैकल्पिक प्रौद्योगिक सम्भावनायें विद्यमान हैं तो विकासशील देशों के पास कोई वैकल्पिक चयन नहीं होगा बल्कि उन्हें उन्नत देशों से प्रौद्योगिकी का आयात करना पड़ेगा जो सापेक्षतया अधिक पूँजी गहन है ।

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3. यद्यपि, अल्पविकसित देशों में श्रम की बहुलता होती है परन्तु यह आवश्यक नहीं कि श्रम सस्ता हो । इसके अतिरिक्त यह विकसित देशों की तुलना में अधिक अकुशल हो सकता है तथा इसकी उत्पादकता भी कम हो सकती है । ऐसी स्थिति में पूँजी प्रवणता वैसी ही होगी जैसी कि विकसित देशों में पायी जाती है ।

सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुये, निश्चित रूप में कहा जा सकता है कि पूँजी गहन तकनीकें अप्लविकसित देशों के लिये अधिक उपयुक्त हैं । परन्तु, उसी समय, इन देशों में सामाजिक एवं राजनैतिक वातावरण पूर्णतया भिन्न होता है । इसके अतिरिक्त अल्पविकसित देश कृषि क्षेत्र में श्रम की छुपी हुई बेरोजगारी का भी सामना करते हैं । यह देश घटिया उत्पादन फलन के कारण तुलनात्मक रूप में निर्धन होते हैं ।

दीर्घकालिक आर्थिक विकास की प्राप्ति के लिये इन देशों को प्रासंगिक वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी और भारी मात्रा में निवेश योग्य पूँजी की आवश्यकता होती है । निःसन्देह, पुनर्निवेश योग्य अतिरेक पूँजी गहन तकनीकों में बहुत अधिक होता है ।

यद्यपि ऐसी प्रौद्योगिकी लघु काल में बेरोजगारी की समस्या को तीव्र कर सकती है परन्तु दीर्घकाल में यह रोजगार उत्पन्न करेगी । इसलिये चुनी जाने वाली तकनीकें समाज के निर्णय के अनुसार वृद्धि के नमूने और सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक कारकों पर निर्भर करती है ।

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अल्पविकसित देशों के लिये एक उपयुक्त तकनीक (An Appropriate Technique for Underdeveloped Countries):

 

उपरोक्त परिचर्चा के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि अल्पविकसित देशों में दोनों प्रकार की तकनीकों का उचित प्रकार से प्रयोग किया जा सकता है । हम सुपरिचित हैं कि यह देश निर्धनता के कुचक्र में फंसे होते हैं । आर्थिक विकास की तीव्र दर उनकी तुरन्त आवश्यकता होता है ।

परन्तु प्रौद्योगिकी तथा उत्पादन की पुरानी हो चुकी विधियों द्वारा तीव्र आर्थिक वृद्धि प्राप्त करना सम्भव नहीं होता । परिणामस्वरूप, इन देशों के आयोजन में घटिया पूँजी-गहन विधियों को उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिये । परन्तु उसी समय बेरोजगारी और छुपी हुई बेरोजगारी उनकी मुख्य चिंता है ।

इन देशों में लाखों बेरोजगार अथवा अर्द्ध-रोजगार प्राप्त लोगों की मानवीय आधार पर भी उपेक्षा नहीं की जा सकती । उन्हें रोजगार के अवसर उपलब्ध करना आवश्यक है तथा इस लक्ष्य की पुर्ति हेतु श्रम-गहन तकनीकों का सहारा लेना आवश्यक है ।

इन सब पहलुओं को ध्यान में रखते हुये, इनमें से किसी भी एक तकनीक का अनुकरण सही नहीं होगा । ऐसे देशों के लिये बेहतर होगा कि उत्पादन की विधियों के ऐसे संयोग को अपनायें जो एक ओर तो आय की उच्च वृद्धि का दर सुनिश्चित करें तथा दूसरी ओर उपभोग और रोजगार के स्तर की वृद्धि का ।

अन्य शब्दों में दोनों तकनीकों का ध्यानपूर्वक संयोजन करना होगा ताकि दो परस्पर विरोधी उद्देश्यों में सामंजस्यता प्राप्त की जा सके । जे.एन फ्रूयकिन ने भी विदेशी प्रौद्योगिकी का बहुत ध्यानपूर्वक आयोजन के पश्चात पक्ष लिया ।

वकील और ब्रहानन्द (Vakil and Brahmanand) ने भी इस बात पर बल दिया कि- ”प्रत्येक देश को अपने बचाव का स्वयं प्रबन्ध करना होगा तथा विशेषतया देखना होगा कि उत्पादन का कौन सा ढंग इसके लिये अनुकूल हैं ।”

उन्होंने अल्पविकसित देशों के प्रयोग के लिये निम्नलिखित तकनीकों की सिफारिश की:

(i) प्रौद्योगिकी जो सरलतापूर्वक थोड़े समय में सीखी जा सके ।

(ii) प्रौद्योगिकी जिसमें निवेश की कम राशि की आवश्यकता हो ।

(iii) प्रौद्योगिकी जो निवेश के उत्पादन काल को कम करती है ।

(iv) प्रौद्योगिकी जिसे विशेषीकृत श्रम में कम निवेश की आवश्यकता होती है ।

(v) प्रौद्योगिकी जो श्रम के स्थान पर दुर्लभ साधनों की बचत में सहायक है ।

(vi) प्रौद्योगिकी जो उत्पादन बढ़ा सके तथा ऊर्जा, खनिज और बिजली आदि सामाजिक उपरिव्ययों की रचना कर सके ।

(vii) प्रौद्योगिकी के लिये आवश्यक है कि वह श्रम के स्थान पर कुछ दुर्लभ साधनों का प्रयोग करें ।

(viii) प्रौद्योगिकी को पूँजी की प्रति इकाई के पीछे अधिकतम उत्पादन देना चाहिये ऐसा पूँजी का उचित उपयोग करके ही होगा ।

(ix) यह जटिल प्रौद्योगिक परिवर्तनों से सम्बन्धित सुधारों के समावेशन के योग्य है ।

(x) यह अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादक गतिविधियों के प्रसार के अनुकूल है ।

तकनीक के चुनाव को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Influencing the Choice of Technique):

अल्पविकसित देशों में उचित प्रौद्योगिकी का चयन एक कठिन कार्य है । सभी अल्पविकसित देशों के लिये प्रौद्योगिकी के एक समान मानदण्ड का सुझाव देना सम्भव नहीं होगा ।

वे कारक निधियों, आय और पूँजी निर्माण के स्तर, जनसांख्यिक नमूने, संस्थागत प्रबन्ध और आर्थिक विकास की स्थिति में एक दूसरे से व्यापक रुप से भिन्न है । इसलिये, कुछ विचारों का निर्धारण आवश्यक है जिन्हें देश के लिये प्रौद्योगिकी का चयन करते समय ध्यान में रखना आवश्यक है ।

तकनीक के चयन को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित कारक बहुत महत्वपूर्ण हैं:

(i) विकास का उद्देश्य (Objective of Development):

विकास उद्देश्य तकनीक के चयन का एक अत्यावश्यक निर्धारक है ।

विकास के विभिन्न उद्देश्य हो सकते हैं, जैसे:

(a) रोजगार का अधिकतमीकरण,

(b) निवेश का अधिकतमीकरण,

(c) न्यूनतम लागत पर उत्पादन का अधिकतमीकरण,

(d) अन्य देशों पर निर्भरता से मुक्ति आदि ।

यह सभी कारक तकनीक के चयन को प्रभावित करते है । उदाहरणार्थ यदि विकास का उद्देश्य रोजगार की अधिकतमीकरण तथा अन्य देशों पर निर्भरता से मुक्ति है तो श्रम-गहन तकनीकें अपनाई जानी चाहिये ।

इसके विपरीत यदि सरकार बाहरी सहायता के पक्ष में है तथा न्यूनतम सम्भव लागत पर उत्पादन को अधिकतम बनाना चाहती है, तो पूँजी गहन तकनीकें अपनाई जानी चाहिये ।

(ii) कारक निधि (Factor Endowment):

देश में उपलब्ध कारक निधि देश के लिये उपयुक्त तकनीक निर्धारित करती है । यदि देश में श्रम की बहुलता और पूँजी की दुर्लभता है तो उत्पादन की श्रम गहन तकनीकें अपनायी जानी चाहिये ।

दूसरी ओर श्रम की दुर्लभता और पूँजी की बहुलता वाली अर्थव्यवस्थाओं को श्रम बचत तथा पूँजी गहन तकनीकों की आवश्यकता होगी । इस प्रकार देश में उपलब्ध कारक निधि तकनीक के चयन में बहुत महत्व रखती है ।

(iii) पहले से प्राप्त किया हुआ प्रौद्योगिकी का स्तर (Technological Level Already Attained):

प्रौद्योगिकी का प्रचलित स्तर वह आधार निश्चित करता है जिस पर आगे प्रौद्योगिक परिवर्तन घटित हो सकता है । वर्तमान प्रौद्योगिकी द्वारा नई प्रौद्योगिकी का समर्थन करना होता है तथा केवल इस प्रकार की प्रौद्योगिकी को वरीयता दी जानी चाहिये जिसका देश द्वारा पहले से प्राप्त प्रौद्योगिकी द्वारा समर्थन किया जा सकता है । प्रौद्योगिकी में आकस्मिक परिवर्तन अर्थव्यवस्था के हित में नहीं होता ।

(iv) उपलब्ध साधन (Resource Available):

देश में प्रौद्योगिक विकास मुख्यता ऐसे विकास के लिये उपलब्ध साधनों द्वारा निर्धारित किया जाता है । प्रौद्योगिक विकास के लिये सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है पूँजी, निपुणता, संगठन और प्राकृतिक साधन । इन सभी आगतों की उपलब्धता मुख्यता उस सीमा को निर्धारित करती है जिसमें संगठन के नये रूपों का प्रयोग आरम्भ किया जा सकता है ।

प्रौद्योगकीय परिवर्तन का अधिक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम देश के उत्पादक साधनों की व्यर्थता का कारण बनेगा । अत: प्रौद्योगिकी का आवश्यक आगतों की उपलब्धता के अनुसार होना आवश्यक है ।

(v) संस्थानिक ढांचा (Institutional Structure):

किसी देश में संस्थानिक ढांचा भी उस देश द्वारा अपनाई जाने वाली प्रौद्योगिकी की किस्म का निर्धारण करता है । आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक संस्थाएं लोगों की अभिवृत्तियों के साथ मिल कर किसी देश का प्रौद्योगिक स्तर निर्धारित करती हैं ।

किसी देश की सामाजिक व्यवस्था कठोर हो सकती जो किसी प्रौद्योगिक परिवर्तन की आज्ञा नहीं देती । इन परिस्थितियों के अन्तर्गत सामाजिक एवं संस्थानिक परिवर्तन प्रौद्योगिक परिवर्तनों से पहले आने चाहिये ।

(vi) संरचना की उपलब्धता (Availability of Infrastructure):

तकनीक का चुनाव करते समय वर्तमान संरचना का भी ध्यान रखना चाहिये जिसमें देश की यातायात, संचार, ऊर्जा और सम्बन्धित सुविधाएं सम्मिलित हैं । ऐसी तकनीकों को महत्व दिया जाना चाहिये जो देश की विद्यमान संरचना के अनुकूल हैं ।

लघुकाल में संरचना का विकास सम्भव नहीं है । इसलिये, वृद्धि के आरम्भिक सोपानों पर श्रम गहन तकनीकें अपनाई जानी चाहिये । जैसे-जैसे संरचनात्मक सुविधाएं विस्तृत होती जाती हैं, वैसे-वैसे उत्पादन की पूँजी गहन तकनीकों को अपनाया जा सकता है ।

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