भारत में लौह और इस्पात उद्योग पर निबंध | Essay on Iron and Steel Industry in India in Hindi.

लोहा एवं इस्पात उद्योग किसी भी देश के आधारभूत उद्योग हैं । भारत में लौह-इस्पात उद्योग के विकास की दिशा में प्रथम प्रयास 1830 ई. में किया गया था । इसका कारखाना तमिलनाडु के पोर्टोनोवो में इस्पात का कारखाना लगाया गया था । 2013-14 में भारत इस्पात उत्पादन में चीन, जापान व संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद विश्व में चौथा स्थान है ।

भारत सन् 2002 से विश्व भर में स्पंज आयरन का भी सबसे बड़ा उत्पादनकर्ता रहा है । लौह-इस्पात उद्योग के लिए कई प्रकार के खनिज पदार्थों की जरूरत होती है । लौह-अयस्क एवं कोकिंग कोयला इसके आधारभूत खनिज हैं, जबकि अन्य खनिजों में मैंगनीज, चूना-पत्थर, डोलोमाइट तथा क्रोमियम प्रमुख हैं ।

सामान्यतः लौह-अयस्क क्षेत्र में, कोयला क्षेत्र में अथवा इन दोनों खनिजों के परिवहन मार्गों पर इन उद्योगों का विकास हुआ है जो कि वेबर के त्रिभुजाकार सिद्धांत पर आधारित है । द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद लौह इस्पात उद्योग के स्थानीकरण की एक चौथी प्रवृत्ति भी विकसित हुई है, यह है- बंदरगाह या तटवर्ती स्थानीकरण ।

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लौह अयस्क के क्षेत्र में प्रमुख कारखानें भद्रावती, भिलाई व सलेम हैं; कोयला क्षेत्र में कुल्टी-बर्नपुर, दुर्गापुर व बोकारो; दोनों संसाधनों के मध्य क्षेत्र में जमशेदपुर व राउरकेला कारखानें स्थापित हैं । बंदरगाह आधारित एकमात्र कारखाना विशाखापत्तनम में स्थित है ।

चूँकि यहाँ के बंदरगाह से लौह-अयस्क व मैंगनीज का निर्यात होता था अतः ये दोनों कच्चे माल स्वतः ही बंदरगाह पर आते थे । देश के आंतरिक भागों में कोकिंग कोयले की कमी होने के कारण आस्ट्रेलिया से कोयले का आयात कर यहाँ लौह इस्पात उद्योग विकसित किया गया ।

वर्तमान में लौह-इस्पात का उत्पादन करने वाले 7 कारखानों के अतिरिक्त आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम इस्पात संयंत्र से उत्पादन प्रारंभ है । यह संयंत्र देश का पहला ऐसा समन्वित इस्पात कारखाना है, जिसने ISO प्रमाण-पत्र प्राप्त किया है ।

साथ ही कर्नाटक के बेल्लारी जिले में हास्पेट के समीप विजयनगर इस्पात परियोजना तथा तमिलनाडु के सलेम जिले में सलेम इस्पात परियोजना निर्माणाधीन है ।

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इस समय देश में टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (टिस्को) तथा इंडियन आयरन एण्ड स्टील कंपनी (इस्को) क्षेत्र में कार्यरत हैं । टिस्को की गणना देश के सबसे बड़े इस्पात कारखाने के रूप में की जाती है ।

भद्रावती स्थित विश्वेश्वरैय्या आयरन एण्ड स्टील कंपनी लिमिटेड का नियंत्रण कर्नाटक सरकार तथा स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) के नियंत्रण में है जबकि शेष कारखाने सार्वजनिक क्षेत्र में कार्यरत है ।

1992 ई. में लौह इस्पात उद्योग को नियंत्रण मुक्त कर इसमें निजी क्षेत्र को निवेश की पूर्ण छूट दे दी गई है । जुलाई 2011 में नई दिल्ली में 5वें भारतीय इस्पात शिखर सम्मेलन में 2020 तक इस्पात उत्पादन 150 मिलियन टन से आगे पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया है ।

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