आईसीआईसीआई बैंक का इतिहास | History of ICICI Bank in Hindi!
1. भारतीय औद्योगिक साख एवं विनियोग निगम बैंक का परिचय (Introduction to ICICI Bank):
सन् 1954 में विश्व बैंक तथा अमेरिकी सरकार के प्रतिनिधियों ने भारत का भ्रमण तथा अध्ययन करते समय यह सुझाव दिया था कि एक वित्त निगम निजी क्षेत्र में स्थापित किया जाना चाहिये । इसी सुझाव को मानते हुए 5 जनवरी 1955 को भारतीय औद्योगिक साख एवं विनियोग निगम की स्थापना भारत सरकार, अमेरिकी सरकार तथा इंग्लैंड एवं भारत के विनियोक्ताओं के सहयोग से की गई थी ।
निगम का प्रधान कार्यालय मुम्बई में स्थित है तथा इसके दो शाखा कार्यालय कोलकाता एवं चैन्नई में है । इस निगम का गठन भारतीय कम्पनी अधिनियम के अंतर्गत एक कम्पनी के रूप में किया गया है तथा इसकी स्थापना निजी क्षेत्र के विकास के लिये की गई है । 31 मार्च 2002 भारतीय औद्योगिक साख एवं विनियोग निगम का इसकी सहायक कम्पनी ICICI बैंक में विलय कर दिया गया है ।
उद्देश्य:
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निगम की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य निजी क्षेत्र में स्थापित औद्योगिक इकाइयों के विकास के लिये दीर्घकालीन वित्तीय सहायता प्रदान करना है ।
निगम की स्थापना के कुछ प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
(i) निजी क्षेत्र की औद्योगिक इकाइयों को प्रवर्तन, संस्थापन, विस्तार एवं आधुनिकीकरण हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करना ।
(ii) निजी क्षेत्र की औद्योगिक इकाइयों में घरेलू एवं विदेशी विनियोग को प्रोत्साहित करना ।
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(iii) औद्योगिक इकाइयों में संस्थागत विनियोग के स्थान पर व्यक्तिगत विनियोग बढ़ाना ।
(iv) समता अंश एवं पूर्वाधिकार अंश में अभिदान देना तथा नयी प्रतिभूतियों के अभिगोपन का कार्य करना ।
(v) भारतीय उद्योगों को प्रबंधकीय एवं तकनीकी क्षेत्र में सलाहकारी एजेन्सी के रूप में सेवा देना ।
संगठन:
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ICICI बैंक का संगठन संचालक मंडल द्वारा किया जीता है । वर्तमान में बैंक के 14 संचालक हैं । बैंक के एक संचालक की नियुक्ति केन्द्रीय वाणिज्य मंत्रालय द्वारा की जाती है ।
पूंजी:
31 मार्च 2002 को बैंक की चुकता पूंजी 2090 करोड़ रुपये थी जिसका 70% भारतीय, 20% इंग्लैण्ड तथा 10% अमेरिका का है । प्रारंभ में निगम की समस्त पूँजी को कम्पनियों, संस्थाओं तथा व्यक्तियों ने निजी रूप से धारण कर रखा था किन्तु वर्तमान में इसकी अधिकांश अंशपूंजी सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों, जैसे- बैंक, जीवन बीमा निगम, सामान्य बीमा निगम तथा उसकी समानुषंगी कम्पनियों ने धारण कर रखी है ।
निगम द्वारा निर्गमित कुछ पूंजी निगम के संचालकों के अतिरिक्त अमेरिका के कार्पोरेशन, कामनवेल्थ, डेवलपमेंट फाइनेंस कम्पनी और इग्लैंड के बैंकों व बीमा कम्पनियों के पास भी है । भारतीय जीवन बीमा निगम इस संस्था का सबसे बड़ा अंशधारी है ।
निगम को विभिन्न सूत्रों से वित्तीय साधन जुटाने का अधिकार है । प्राधिकृत (Authorized) सीमा तक यह अंशों एवं ऋणपत्रों के निर्गमन के द्वारा अंश पूँजी प्राप्त कर सकता है और इसके अतिरिक्त भारत सरकर से एवं देश व विदेश की वित्तीय संस्थाओं से भी इसे वित्तीय सहायता प्राप्त होती है । इसके व्यापक वित्तीय साधनों के कारण ही भारत के विशिष्ट निगमों में इस निगम का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान बनता जा रहा है ।
2. भारतीय औद्योगिक साख एवं विनियोग निगम बैंक द्वारा आर्थिक सहायता (Financial Assistance by ICICI Bank):
निगम देश के औद्योगिक विकास के लिए वित्तीय सहायता देने का महत्वपूर्ण कार्य करता है ।
इसके द्वारा प्रदान की गई सहायता के निम्न प्रकार हैं:
(i) ऋणपत्रों के आधार पर दीर्घकालीन एवं मध्यमकालीन ऋण प्रदान करना ।
(ii) निजी क्षेत्र की औद्योगिक इकाईयों के साधारण तथा पूर्वाधिकार अंशों में अभिदान करना ।
(iii) निजी क्षेत्र की औद्योगिक इकाइयों के अंशों तथा ऋणपत्रों के सार्वजनिक निर्गमन का अभिगोपन करना ।
(iv) बाण्डों तथा ऋणपत्रों को खरीदना ।
(v) रुपये में भुगतान होने वाले ऋणों की गारंटी देना ।
(vi) निजी क्षेत्र में स्थापित औद्योगिक इकाईयों द्वारा विदेशों में पूँजीगत माल के आयात के लिये विदेशी मुद्रा में ऋण प्रदान करना ।
(vii) उद्योगों को तकनीकी और प्रबंध संबंधी सलाह देना ।
उद्योगवार ऋण (Industry-Wise Loans):
विभिन्न उद्योगों को ऋण देने के बारे में निगम द्वारा एक निश्चित नीति का पालन किया जाता है । ऋण देने में यह ऐसे उद्योगों को प्राथमिकता देता है जिसके विकास से भारत की विदेशी मुद्रा की बचत हो सके ।
निगम द्वारा स्वीकृत कुल सहायता का 60 प्रतिशत भाग जिन पाँच उद्योगों को मिला है, वे हैं:
1. रासायन व रासायन उत्पाद
2. वस्त्र
3. मूल धातुएँ
4. बिजली एवं इलैक्ट्रॉनिक उपकरण तथा
5. सीमेंट अन्य उद्योगों में उर्वरक, कागज, रबड़, मशीन तथा सेवाएं आदि ।
3. भारतीय औद्योगिक साख एवं विनियोग निगम बैंक की भूमिका की समीक्षा (Appraisal of the Role of ICICI Bank):
इस निगम की स्थापना एक विशेष महत्व की प्रतीक है । अन्य वित्त निगमों की तुलना में औद्योगिक साख एवं विनियोग निगम (ICICI) की बातों में अनोखा है । यह निगम पूर्णतः निजी क्षेत्र (Private Sector) में है और इसमें सरकार का किसी प्रकार कोई हस्तक्षेप नहीं है, सिवाय इसके कि जब तक सरकार द्वारा दिया हुआ ऋण यह नहीं चुका देता तब तक भारत सरकार को इसके संचालक मण्डल में संचालक नियुक्त करने का अधिकार रहेगा ।
इस निगम को भारत एवं विदेशों की कई अनुभवी एवं इंग्लैण्ड की कई संस्थाओं ने योगदान दिया है । इसे विश्व बैंक एवं अमरीका की एजेंसी फॉर इण्टरनेशनल डेवलपमेंट (AID) का भी सहयोग प्राप्त है और इन सूत्रों से यह अमरीकी डॉलरों में अनेक ऋण प्राप्त करने में सफल रहा है । साथ ही जर्मनी के पुनर्संगठन ऋण निगम (Reorganization Loan Corporation) से भी इसे पश्चिमी जर्मनी की मुद्रा में मार्क के ऋण प्राप्त हो चुके है ।
इसकी प्रगति को देखते हुए यह स्पष्ट है कि यह निगम भारत का एक बडा विनियोक्ता बन गया है, विशेषतः निजी क्षेत्र में देशी एवं विदेशी विनियोगों को प्रोत्साहित करने में इसका योगदान महत्वपूर्ण है ।
वित्तीय सहायता के अतिरिक्त औद्योगिक विकास के कार्यों को आगे बढाने में इस निगम की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है । सन् 1987 में ICICI द्वारा वेन्चर पूँजी योजना (Venture Capital Scheme) लागू की गयी, जिसके अंतर्गत ऐसी परियोजनाओं को दीर्घकालीन वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है जो जोखमपूर्ण उच्च तकनीक पर आधारित होती है ।
इसी वर्ष में ICICI द्वारा अन्य वित्तीय निगमों एवं बैंकों के सहयोग से Credit Rating Information Services of India Ltd. (CRISIL) के प्रवर्तन में सक्रिय भाग लिया गया । निगम द्वारा तकनीकी ज्ञान के व्यावहारिक विकास एवं प्रसार के उद्देश्य से सन् 1987-88 में Technology Development & Information Company of India Ltd. (TDICI) का गठन किया गया इसके अतिरिक्त ICICI के द्वारा संयुक्त राज्य अमरीका के सहयोग से अनेक नयी दिशाओं में विकास और विस्तार के प्रयास किये गये हैं ।
इनमें प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं:
(i) कम्प्यूटर हार्डवेयर,
(ii) मेडीकल इक्विपमेण्ट,
(iii) खाद्य-पदार्थों का प्रक्रियण,
(iv) कीटनाशक,
(v) पर्यावरण सुरक्षा आदि पर काफी ध्यान दिया है ।