आईडीबीआई बैंक का इतिहास | History of IDBI Bank: Hindi | Banking!

आईडीबीआई बैंक का इतिहास  | History of IDBI Bank


भारतीय औद्योगिक विकास बैंक का परिचय (Introduction of Industrial Development Bank of India):

भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (IDBI) की स्थापना 1 जुलाई, 1964 को की गयी । 16 फरवरी, 1976 तक यह रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया की एक सहायक संस्था (Wholly-Owned Subsidiary) के रूप में कार्य करता रहा । उसके बाद इसे सरकार द्वारा एक स्थायत्तशासी निगम (Autonomous Corporation) का दर्जा प्रदान कर दिया गया ।

औद्योगिक विकास बैंक की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य राष्ट्र के औद्योगीकरण के स्तर को उन्नत बनाना तथा औद्योगिक विकास से संबंधित परियोजनाओं की स्थापना में सक्रिय भाग लेना है । इस मूलभूत उद्देश्य की पूर्ति के साथ-साथ औद्योगिक वित्त की पूर्ति करना भी इस प्रकार के बैंक के लिए अनिवार्य हो जाता है, क्योंकि वित्त-पूर्ति की समुचित व्यवस्था के बिना औद्योगिक विकास संभव नहीं होता । अतः ये दोनों उद्देश्य परस्पर अनुपूरक कहे जा सकते हैं ।

जिन दो उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सरकार द्वारा औद्योगिक विकास बैंक की स्थापना की गयी, वे इस प्रकार हैं:

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(a) एक केन्द्रीय संस्था के रूप में औद्योगिक वित्त से संबंधित विभिन्न वित्त संस्थाओं की नीतियों एवं उनके कार्यों में समन्वय स्थापित करना तथा सुसंगठित तरीके से औद्योगिक, वित्त का विकास करने में उन सबका नेतृत्व करना जिससे कि प्रत्येक संस्था अपने-अपने क्षेत्र में कार्य करती हुई भी समान उद्देश्य की पूर्ति में सहायक हो सके; और

(b) देश के औद्योगिक असंतुलन को दूर करने के उद्देश्य से कुछ विशेष उद्योगों के विकास को प्रोत्साहित करना, जैसे रासायनिक खाद, लौह मिश्रित धातुएँ, विशेष इस्पात, पेट्रो-रसायन, आदि । ये ऐसे उद्योग हैं जिनमें तत्काल अथवा पर्याप्त लाभ की संभावनाएँ कम है किंतु जिनका विकास किया जाना अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने की दृष्टि से अत्यंत आवश्यक है ।

16 जनवरी, 1976 से औद्योगिक विकास बैंक (IDBI) को रिजर्व बैंक के संगठन से पृथक् कर दिया गया (उस समय तक यह रिजर्व बैंक का एक सहायक संगठन था) । इसके लिए औद्योगिक विकास बैंक अधिनियम में संशोधन किया गया । अपने पुनर्संगठित रूप में विकास बैंक को एक शीर्ष संस्था (Apex Institution) की भाँति एक व्यापक भूमिका सौंपी गयी जिसमें इसको विकास बैंकिंग के क्षेत्र में कार्यरत विभिन्न संस्थाओं के कार्यों का समन्वय का महत्वपूर्ण कार्य भी सौंप दिया गया ।

अब इस विकास बैंक के संचालक मण्डल में 22 संचालक (अध्यक्ष को सम्मिलित करते हुए) हो सकते हैं । इस समय इसमें 19 संचालक है । अध्यक्ष का नामांकन केन्द्रीय सरकार एवं उपाध्यक्ष का नामांकन रिजर्व बैंक द्वारा किया जाता है । इसके संचालक मंडल में अन्य संबद्ध संस्थाओं के प्रतिनिधि भी होते है ।

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राज्यों के वित्तीय निगमों एवं भारत के यूनिट ट्रस्ट (UTI) की अंश-पूँजी में रिजर्व बैंक का जो हिस्सा था ये विकास बैंक (IDBI) में हस्तांतरित कर दिया गया । अब केन्द्रीय सरकार को इस बैंक को निर्देश (Directives) देने का अधिकार भी प्राप्त हो गया ।


भारतीय औद्योगिक विकास बैंक के वित्तीय साधन (Financial Resources of Industrial Development Bank of India):

भारतीय औद्योगिक विकास बैंक के वित्तीय स्रोत हैं:

(i) अंश पूँजी,

(ii) भारत सरकार तथा रिजर्व बैंक से ऋण,

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(iii) बाँडों तथा ऋणपत्रों का निर्गमन,

(iv) विदेशी मुद्रा में ऋण,

(v) जन निक्षेप तथा

(vi) अनुदान एवं सहायता ।

औद्योगिक विकास के उपरोक्त-सामान्य साधनों के अतिरिक्त कुछ अन्य स्रोत भी है जिनसे आवश्यकता पड़ने पर यह ऋण ले सकता है । इस श्रेणी में उल्लेखनीय है रिजर्व बैंक द्वारा स्थापित ”राष्ट्रीय औद्योगिक साख (दीर्घकालिक) कोष” तथा भारत सरकार द्वारा स्थापित ”विकास सहायता कोष” ।


भारतीय औद्योगिक विकास बैंक के कार्य (Functions of Industrial Development Bank of India):

बैंक का कार्यक्षेत्र व्यापक रखा गया है जिसमें उन सभी कार्यों को सम्मिलित किया गया है जो हमारे विद्यमान वित्त निगमों द्वारा सम्पन्न किये जाते हैं ।

इनकी कार्य-सूची में वित्त एवं विकास संबंधी सभी कार्य आ जाते है जो निम्नलिखित हैं:

(i) ऋण प्रदान करना (To Provide Loans):

बैंक सभी प्रकार की औद्योगिक संस्थाओं को दीर्घकालीन ऋण देता है । ऐसी संस्थाओं द्वारा जारी किये गये ऋणपत्रों में खरीदने का अधिकार भी इसे है ।

(ii) ऋणों की गारंटी देना (To Give Guarantee of Loans):

औद्योगिक संस्थाओं द्वारा पूँजी- बाजार में अथवा बैंकों से लिये जाने वाले ऋणों तथा निर्यात के स्थगित भुगतानों की गारण्टी देने का अधिकार इस बैंक को प्राप्त है । बैंकों तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं द्वारा किये गये अभिगोपन से उत्पन्न दायित्वों के लिए भी बैंक गारण्टी दे सकता है । इससे भारत में संघीय अभिगोपन अथवा संयुक्त अभिगोपन के लिए अनुकूल वातावरण उत्पन्न हो सकेगा ।

(iii) पुनर्वित्त की सुविधाएं देना (To Give Refinance Facilities):

औद्योगिक विकास बैंक निर्दिष्ट वित्तीय संस्थाओं द्वारा 3 से 25 वर्ष तक के दीर्घकालीन ऋणों के लिए तथा अनुसूचित बैंकों एवं सहकारी बैंक द्वारा औद्योगिक संस्थाओं को दिये गये 3 से 10 वर्ष तक के ऋणों के लिए पुनर्वित्त (Refinance) की सुविधाएं देता है । यह अवधि 10 वर्ष में अधिक भी हो सकती है ।

इसी प्रकार बैंकों एवं अन्य वित्तीय संस्थाओं द्वारा निर्यात के संबंध में दिये गये मध्यमकालीन ऋणों के लिए भी पुनर्वित्त की सुविधाएँ इस बैंक द्वारा दी जाती हैं ।

(iv) अंशों में प्रत्यक्ष अभिदान (Direct Subscription of Shares):

विकास बैंक को औद्योगिक संस्थाओं द्वारा जारी किये गये स्कन्ध एवं अंशों में प्रत्यक्ष अभिदान करने का भी अधिकार है । इस प्रकार के बैंक के लिए ऐसी व्यवस्था होना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि इसके बिना उद्योगों के प्रवर्तन एवं विकास में सक्रिय सहयोग देना बड़ा कठिन होता है ।

(v) अभिगोपन के कार्य (Underwriting Activities):

औद्योगिक विकास बैंक अन्य औद्योगिक संस्थाओं द्वारा पूँजी बाजार में जारी किये जाने वाले अंशों, ऋणपत्रों एवं बॉण्डों का अभिगोपन कर सकता है ।

(vi) विकास एवं गवेषणा के कार्य (Developmental Work):

अन्य बैंक कार्य इस बैंक द्वारा सम्पन्न किये जाते हैं, जैसे आधारभूत उद्योगों के विकास के उद्देश्य से नयी योजनाओं को मूर्त रूप देने में प्रशासनिक एवं शिल्प संबंधी सहायता देना; विपणन, विनियोग एवं तकनीकी अनुसंधान तथा सर्वेक्षण आदि । साथ ही नये उद्योगों के प्रवर्तन, प्रबंध, प्रशासन आदि में यह बैंक सहायता प्रदान करता है ।

औद्योगिक विकास बैंक सार्वजनिक एवं निजी दोनों ही क्षेत्रों में उद्योगों की सहायता प्रदान करता है । सभी प्रकार के उद्योगों को इससे सहायता मिल सकती है, जैसे रासायनिक खाद, पेट्रो-रसायन, लौह अयस्क, विशिष्ट इस्पात तथा अन्य उद्योग, होटल, यातायात आदि ।

ऋणों की सीमा एवं ऋणों की सुरक्षा के लिए दी गयी जमानत की प्रकृति तथा ऋण प्राप्त करने वाली संस्थान के संगठन, आदि के विषय में इस बैंक के लिए कोई प्रतिबंध अथवा परिसीमाएँ नहीं हैं जैसा कि अन्य कुछ वित्त निगमों के विषय में है ।


भारतीय औद्योगिक विकास बैंक  के कार्यों की प्रगति (Progress of the Working of the Industrial Development Bank of India):

औद्योगिक विकास बैंक 30 जून, 2014 को अपने पचास वर्ष पूरे कर चुका है । इस अवधि में बैंक द्वारा सम्पन्न कार्य अत्यंत सराहनीय रहा । कुल मिलाकर बैंक के द्वारा इन पचास वर्षों के कार्यकाल में 30 करोड़ रुपयों से अधिक की वित्तीय सहायता स्वीकृत की गयी ।

इसमें अधिक सहायता उद्योगों को प्रत्यक्ष ऋण, औद्योगिक ऋणों के पुनर्वित्त एवं बिलों पर कटौती के रूप में दी गयी है । निर्यात के लिए प्रत्यक्ष ऋण और निर्यात ऋणों के पुनर्वित्त (Refinance) की ओर इधर कुछ वर्षों से बैंक ध्यान देने लगा है और भविष्य में इनके लिए और अधिक सहायता स्वीकार करेगा ।

दीर्घकालीन वित्त के क्षेत्र में एक शीर्ष संस्था (Apex Institution) होने के नाते बैंक अन्य वित्तीय संस्थाओं के अंशों एवं ऋण-पत्रों की खरीद में भी अधिकाधिक पूँजी लगा रहा है ।

1. लघु उद्योगों को सहायता (Assistance to Small Industries):

लघु उद्योगों को IDBI द्वारा प्रत्यक्ष सहायता नहीं दी जाती है; अपितु अप्रत्यक्ष रूप में दी जाती है जिसके तीन रूप हैं:

(i) राज्यों के वित्तीय निगमों द्वारा लघु-क्षेत्र को दिये गये ऋणों के लिए पुनर्वित्त (Refinance) की सुविधा देकर,

(ii) मशीनों एवं स्थगित-भुगतान के बिलों की पुनर्भुनायी (Rediscounting) करके, तथा

(iii) उद्यमियों को बीज पूंजी सहायता (Seed Capital Assistance) प्रदान

करके । छठी योजना के पाँच वर्षों में इसके द्वारा लघु-क्षेत्र को मिलाकर 3,278 करोड़ रुपयों की सहायता दी गया । सातवीं योजना में मार्च, 1990 तक विकास बैंक द्वारा लघु उद्योगों को प्रदान की गयी कुल सहायता 10,135 करोड़ रुपये थी ।

यह सहायता विविध रूपों में थी जैसे पुनर्वित्त बिल-वित्त, बीज-पूँजी (Seed Capital) आदि के रूप में लघु उद्योग विकास निधि (Small Industries Development Fund) के माध्यम से दी गयी ।

2 अप्रैल, 1990 से लघु-क्षेत्र के वित्तीयन से संबंधित गतिविधियों विकास बैंक (SIDBI) द्वारा लघु उद्योग विकास बैंक (SIDBI) सौंप दी गयी । तदनुरूप लघु उद्योग विकास निधि (SIDF) तथा राष्ट्रीय इक्विटी निधि (National Equity Fund) अब सिडबी (SIDBI) को हस्तांतरित कर दिये गये ।

2. सहायता के विभिन्न स्वरूप (Different Forms of Help):

औद्योगिक विकास बैंक (IDBI) प्रत्यक्ष (Direct) एवं अप्रत्यक्ष (Indirect) दोनों प्रकार की सहायता प्रदान करता है । प्रत्यक्ष सहायता के अंतर्गत परियोजना ऋण (Project-Loans), अभिगोपन एवं प्रत्यक्ष अभिदान (Underwriting & Direct Subscription), उदार या सुलभ ऋण (Soft Loans), तकनीकी विकास निधि (Technical Development Fund) से ऋण तथा स्थगित भुगतानों एवं ऋणों की गारण्टियाँ (Guarantees for Deferred Payments and Loans) आदि सम्मिलित है ।

अप्रत्यक्ष सहायता के अन्तर्गत औद्योगिक ऋणों के लिए पुनर्वित्त (Refinance) की सुविधा, बिल-पुनर्भुनायी (Bill Re-Discounting), वित्तीय संस्थाओं के अंशों एवं ऋणपत्रों में अभिदान (Subscription) तथा बीज-पूँजी सहायता (Seed Capital Assistance) सम्मिलित होती है ।

3. उद्योग-वार सहायता (Industry-Wise Assistance):

IDBI द्वारा दी गयी सहायता में जिन पाँच उद्योगों में सबसे अधिक ऋण मिले है वे हैं-सूती-वस्त्र सड़क परिवहन विद्युत-उत्पादन उर्वरक एवं विविध-रसायन । इधर कुछ वर्षों से IDBI सड़क परिवहन विद्युत उत्पादन उर्वरक एवं मूल-रासायन उद्योगों को अधिक सहायता देने का प्रयास करता रहा है ।

4. राज्य-वार सहायता (State-Wise Assistance):

अब तक IDBI द्वारा प्रदान की गई सहायता में महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, उत्तर-प्रदेश और आन्ध्रप्रदेश राज्यों को सबसे अधिक भाग प्राप्त हुआ है । अब IDBI पिछड़े राज्यों को अधिक ऋण देने का प्रयास करता है ।

5. क्षेत्र-वार सहायता (Sector-Wise Assistance):

IDBI द्वारा अब तक प्रदान की गयी सहायता में निजी-क्षेत्र (Private-Sector) का भाग 75.5 प्रतिशत रहा है । अन्य क्षेत्रों में सार्वजनिक-क्षेत्र (Public Sector) का भाग 14.9%, संयुक्त-क्षेत्र (Joint-Sector) का भाग 6.8% तथा सहकारी-क्षेत्र (Co-Operative Sector) भाग 2.8% रहा है ।

6. पुनर्वित्त सहायता (Refinance Assistance):

अब IDBI भारत की पुनर्वित्त प्रदान करने वाली सबसे बडी संस्था है । (एक अन्य संस्था NABARD भी पुनर्वित्त की सुविधा प्रदान करती है) । अप्रैल, 1990 से सिडबी (SIDBI) भी अब पुनर्वित्त सहायता प्रदान करने लगा है ।

7. निर्यात ऋणों एवं स्थगित भुगतानों के लिए गारण्टियां (Guarantees for Export Loans and Deferred Payments):

विकास बैंक द्वारा ऐसी गारंटीयों की बकाया राशि 360 करोड़ रुपये थी । अब यह कार्य निर्यात-आयात बैंक (Exim Bank) द्वारा किया जा रहा है जिसे जनवरी 1982 में स्थापित किया गया ।

8. अन्य विविध कार्य (Other Miscellaneous Functions):

अन्य भारतीय वित्तीय निगमों (IFCI,ICICI,LIC,GIC,UTI) संयुक्त बैठकें समय-समय पर विकास बैंक द्वारा आयोजित की जाती है जिनमें राज्य-स्तरीय वित्तीय निगमों (SFC’s,SIDC’s) के प्रतिनिधि भी भाग लेते हैं । उनमें अंतर-संस्थागत (Inter-Institutional) मामलों पर विचार-विमर्श होता है ।

सहायता प्राप्त कम्पनियों की प्रगति की देख-रेख के लिए (For Monitoring the Progress) ऐसी कम्पनियों के संचालक-मण्डलों में कुछ संचालकों को नियुक्त करने का अधिकार IDBI को है । इस समय 940 कम्पनियों के संचालक-मंडलों में IDBI के नामांकित संचालक (Nominee Directors) कार्यरत है ।

विकास-बैंक के अन्य कार्यों में अनेक कार्य शामिल हैं जैसे- राज्यों के वित्तीय निगमों एवं तकनीकी संगठनों (Technical Consultancy Organizations) के अधिकारियों के प्रशिक्षण के कार्यक्रमों का आयोजन, समय-समय पर इनका निरीक्षण एवं प्रगति-रिपोर्ट की समीक्षा, वित्तीय-परामर्श अध्ययन, अनुसंधान सर्वेक्षण, आदि के कार्य तथा विकास एवं प्रबंध संबंधी महत्वपूर्ण विषयों पर विचारगोष्ठियों (Seminars) का आयोजन आदि ।

9. नरम उधार योजना (Soft Loan Scheme):

भारतीय औद्योगिक विकास बैंक ने 1976 में नरम उधार योजना चालू की ताकि कुछ चुने हुए उद्योगों (अर्थात् सीमेंट, सूती वस्त्र उद्योग, पटसन और चीनी और कुछ इंजीनियरिंग उद्योगों) को रियायती दर पर ऋण उपलब्ध कराया जा सके जिससे वे अपने प्लाण्ट एवं मशीनरी के आधुनिकीकरण, पुनर्स्थापन और नवीनीकरण की योजनाओं को लागू कर सकें ।

इस प्रकार कम लागत पर अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है । इस योजना के अधीन 75 प्रतिशत ब्याज दर ली जाती है और ऋण की अवधि 15 वर्ष रखी जाती है । यह योजना परिवर्तनीयता अनुच्छेद (Convertibility Clause) के कारण गैर-सरकारी क्षेत्र के लिए आकर्षक नहीं थी इसे हटा देने के पश्चात् वितरण की गति तेज कर दी गई ।

जनवरी, 1984 से नरम उधार योजना का संशोधन कर इसे आधुनिकीकरण के लिए नरम उधार योजना कहा गया ताकि इसके अधीन योग्य इकाइयों की सहायता की जा सके ।


भारतीय औद्योगिक विकास बैंक  का विकास में योगदान (Development Impacts of Industrial Development Bank of India):

भारत की औद्योगिक विकास बैंक के द्वारा पिछले पचास वर्षों (1964 से 2014 तक) में देश के औद्योगिक विकास के लिए जो वित्तीय सहायता प्रत्यक्ष अथवा परीक्ष रूप में दी गयी है वह अत्यंत उत्साहवर्धक रही है । इसने देश के पूँजी-बाजार को गति प्रदान की तथा दीर्घकालीन पूंजी के लिए विकास बैंक अब देश की सबसे बडी वित्तीय संस्था है ।

किन्तु देश के विकास में इसके योगदान का मूल्यांकन केवल इसकी वित्तीय सहायता के आधार पर ही नहीं लगाया जाना चाहिए । वस्तुतः इसका योगदान इससे कहीं अधिक है । इसके द्वारा प्रदत्त वित्तीय सहायता ने देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण एवं दूरगामी प्रभाव उत्पन्न किये है । इसके द्वारा सहायता प्राप्त परियोजनाओं में पाँच लाख व्यक्तियों को रोजगार मिला है ।

इन परियोजनाओं ने उत्पादन करके देश की राष्ट्रीय आय में वृद्धि की है, सरकार को करों के रूप में पर्याप्त राजस्व इन परियोजाओं से प्राप्त हुआ है । इनके उत्पादनों के निर्यात से हमारी विदेशी मुद्रा की आय बडी है अथवा आयात-प्रतिस्थापन होने से विदेशी मुद्रा की बचत हुई है ।

अपनी चहुंमुखी भूमिका के संदर्भ में अब यह बैंक दीर्घकालीन औद्योगिक वित्त के क्षेत्र में कार्यरत अन्य समस्त संस्थाओं के कार्यकलापों का समन्वय करके, उनकी रीतियों एवं नीतियों को एक-समान सूत्र में बाँध सकने में सक्षम हो गया है । अतः अब विकास बैंक औद्योगिक प्रवर्तन एवं विकास के क्षेत्र में भारत की एक शीर्ष संस्था (Apex Institution) के रूप में कार्य कर रहा है ।

IDBI के द्वारा सन् 1986 में लघु उद्योग विकास निधि (Small Industries Development Fund) की स्थापना की गयी; ताकि लघु औद्योगिक क्षेत्र को वित्तीय सहायता का अधिक प्रवाह हो सके और शीर्ष-स्तर पर इस प्रकार की संस्थागत साख का उचित समन्वय किया जा सके ।

इसके तत्वाधान में तीन प्रमुख कदम उठाये गये:

(i) भारत सरकार के सहयोग से (IDBI) द्वारा राष्ट्रीय इक्विटी कोष (National Equity Fund) की स्थापना,

(ii) एकल विन्डो सहायता योजना (Single Window Assistance Scheme) तथा

(iii) एशिया विकास बैंक (ADB) से 100 मिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा ऋण जिसे SFC’s के माध्यम से लघु औद्योगिक क्षेत्र की सहायता के लिए प्रयुक्त किया जाएगा ।

केन्द्रीय वित्त मंत्री द्वारा 1988-89 का बजट प्रस्तुत करते समय घोषित निर्णय के अनुसार IDBI भारत के लघु उद्योग विकास बैंक (The Small Industries Bank of India) गठन अपनी एक सहायक संस्था (Subsidiary Institution) के रूप में कर चुका है । यह बैंक लघु उद्योग विकास कोष (SIDF) तथा राष्ट्रीय इक्विटी कोष (NEF) दायित्व संभाल रहा है ।

वित्तीय संस्थाओं के साधनों को समर्थन देने के अभिप्राय से IDBI द्वारा राज्यों के वित्तीय निगमों (SFC’s) तथा राज्यों के औद्योगिक विकास निगमों (SIDC’s) के अंशों और ऋण-पत्रों में पर्याप्त धनराशि का विनियोजन किया है । इसके अतिरिक्त, जिन अन्य वित्तीय संस्थाओं में IDBI द्वारा पूँजी विनियोग किया गया है उनमें प्रमुख हैं- IFCI, NSIC, SSIDC’s Stock Holding Corporation of India, Discount & Finance House of India, Shipping Credit & Investment Co. of India Ltd. Technical Consultancy Organisation आदि ।

अनेक वित्तीय संस्थाओं के प्रबन्ध मण्डलों में IDBI प्रतिनिधित्व प्राप्त है । अतः दीर्घकालीन वित्त (Term-Lending) के क्षेत्र में एक शीर्ष संस्था (Apex Body) की भाँति IDBI अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहा है ।

भारतीय औद्योगिक विकास बैंक और नरसिंहम समिति:

नरसिंहम समिति (Narasimham Committee) मुख्य सिफारिश यह है कि बैंक और प्रत्यक्ष वित्त संस्थानों (Direct Financing Institutions) के बीच प्रतिस्पर्धा बढाकर कुशलता को उन्नत किया जा सकता है । इस दृष्टि से समिति विकास बैंक के कार्यभाग और कृत्यों में कुछ परिवर्तन लाना चाहती है ।

समिति का सुझाव है कि बैंक को अपना प्रत्यक्ष वित्त प्रबंध कार्य छोड़ देना चाहिए और अन्य संस्थानों जैसे राज्यीय वित्त निगम, लघु उद्योग विकास बैंक आदि की भाँति सर्वोच्च प्रोन्नति का कार्य करना चाहिए । भारत सरकार ने नरसिंहम समिति की सिफारिशों को स्वीकार नहीं किया है ।


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