मानव संसाधन विकास पर निबंध | Essay on Human Resource Development in Hindi!

Essay on Human Resource Development


Essay Contents:

  1. मानव संसाधन विकास की प्रस्तावना (Introduction to Human Resource Development)
  2. मानव संसाधन विकास का अर्थ (Meaning of Human Resource Development)
  3. मानव संसाधन विकास के सूचक (Indicators of Human Resources Development)
  4. मानव संसाधन विकास की प्रक्रिया एवं महत्व (Process and Importance of Human Resource Development)
  5. मानव पूँजी निर्माण में विनियोग द्वारा प्राप्त प्रतिफलों का मापन (Measuring the Returns of Investment in Human Capital Formation)
  6. मानव संसाधन मापन की समस्याएँ (Problems in Measurement of Human Resources)

Essay # 1.

मानव संसाधन विकास की प्रस्तावना (Introduction to Human Resource Development):

मानव संसाधन विश्लेषण आर्थिक विकास की प्रक्रिया में जनशक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है । यह उपलब्ध मानव संसाधनों के द्वारा वर्तमान एवं भविष्य की जनशक्ति आवश्यकताओं व संभावनाओं का परीक्षण करता है ।

ADVERTISEMENTS:

मानव संसाधन विश्लेषण के द्वारा जनशक्ति में किए विनियोग के लिए नीति निर्धारण की जाती है जिसके द्वारा विकासशील राष्ट्रों के सीमित संसाधनों का कुशलता के साथ उपयोग हो सके । इसके द्वारा मानवसंसाधन का बेहतर उपयोग करने के मार्ग में आने वाली बाधाओं का निर्दिष्टीकरण संभव होता है ।

मानव संसाधन विकास की मुख्य विधियों के द्वारा उन कुशलताओं व क्षमताओं के स्तरों के बारे में जाना जा सकता है जो उच्च प्रतिफल प्रदान करते हैं तथा आर्थिक विकास हेतु सहायक होते हैं । इस प्रकार प्रत्येक सीमित संसाधन के बेहतर प्रयोग की संभावना बढ़ती है ।


Essay # 2.

मानव संसाधन विकास का अर्थ (Meaning of Human Resource Development):

उत्पादन एवं उत्पादकता के स्तर में अभिनव सुधार हेतु मानव संसाधन विकास का विशिष्ट योगदान होता है । मानव पूँजी एक ऐसा घटक है जिससे उत्पादन की क्षमता बढ़ती हैं तथा विनियोग के नवीन अवसर प्राप्त होते हैं ।

ADVERTISEMENTS:

विकासशील देशों में मानव संसाधन विकास निम्नांकित कारणों से महत्वपूर्ण है:

1. इसके द्वारा विज्ञान तकनीक एवं नवीनतम यंत्र उपकरणों का बढ़ता हुआ प्रयोग संभव हैं जिन्हें संचालित करने के लिए कुशलता एवं तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है ।

2. वर्तमान समय में तकनीक एवं प्रबन्ध का ज्ञान तेजी से बढ़ रहा है । विकासशील देश नवीनतम तकनीकों को अपना रहे है इसके लिए आर्थिक कुशलता व प्रशिक्षण प्राप्त करना पहली शर्त हैं ।

3. विकास के साथ-साथ दृष्टिकोण परिवर्तन होता है । मानव संसाधन विकास के द्वारा दृष्टिकोण आधुनिक बनते हैं ।

ADVERTISEMENTS:

वह अर्थशास्त्री जिन्होंने मानवपूँजी विनियोग को देश के आर्थिक विकास हेतु आधारभूत महत्व बताया उनमें बेकर, थियोडोर शूल्ज तथा मेयर्स मुख्य हैं । प्रो. शूल्ज दिसंबर 1960 में अमेरिकन आर्थिक एसोसिएशन के अध्यक्षीय भाषण में यह स्पष्ट किया कि मानव पूँजी विनियोग आर्थिक विकास की गति को त्वरित करने के लिए अत्यंत उपयोग का है ।

यदि मानवीय संसाधनों पर अल्प विनियोग किया जाये तो श्रम की कुशलताएँ न्यून होंगी, उपक्रमशीलता का अभाव होगा तथा सामाजिक संस्थाएँ एक न्यून स्तर पर ही कार्य कर पाएँगी ।

कम विकसित देशों में यह देखा जाता है कि भौतिक पूँजी की अवशोषण क्षमता अल्प होती है, क्योंकि तकनीकी रूप से कुशल व्यक्तियों, प्रशिक्षण श्रम एवं प्रशासनिक कुशलताओं का अभाव होता है । इन दुर्बलताओं को दूर करने के लिए जनशक्ति नियोजन किया जाना आवश्यक माना जाता है ।

जनशक्ति नियोजन उस प्रक्रिया को सूचित करता है जो आर्थिक एवं अन्य लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए मान शक्ति के उपयोग एवं वितरण के उद्देश्यों, नीतियों व कार्यक्रमों को ध्यान में रखती है । संगठनों एवं संस्थाओं का विकास भी सम्मिलित है जो मानव शक्ति कार्यक्रमों को संचालित करें ।

मानवशक्ति नियोजन वस्तुत: आर्थिक नियोजन से भिन्न है । आर्थिक नियोजन में पदार्थ व आर्थिक संसाधनों के उपयोग में अनुकूलतम विकास को ध्यान में रखा जाता है जबकि जनशक्ति नियोजन में व्यक्तियों की योग्यता, कुशलता, ज्ञान एवं प्रेरणाओं के विकास को ध्यान में रखा जाता है ।

प्रो. हारबिंसन के अनुसार जनशक्ति नीति को श्रम शक्ति के वास्तविक या संभावित सदस्यों के विकास अनुरक्षण एवं उपभोग को ध्यान में रखता है । इसमें वह समस्त श्रम शक्ति निहित है जो पूरी तरह से उत्पादक कार्यों में रोजगार प्राप्त कर रही है या कार्य के अवसर जुटा नहीं पायी है ।

आर्थिक रूप से जनशक्ति नियोजन में प्रबंधकीय, वैज्ञानिक अभियंत्रण व अन्य तकनीकी कुशलताओं का विकास एवं समर्थ उपयोग सम्मिलित है जिससे संगठनों का सृजन,विस्तार एवं विकास संभव हो सके । उत्पादक सेवाओं, उपक्रम व आर्थिक संस्थाओं की क्रियाशीलता में वृद्धि हो ।

इसमें प्रत्येक मुख्य क्रिया के लिए चाही जाने वाली मानवीय कुशलता का र्निदष्टीकरण एवं इन आवश्यकताओं के स्वरूप एवं समय को ध्यान में रखा जाता है । यह विद्यमान संस्थाओं का गहन प्रयोग करती है तथा नयी संस्थाओं की स्थापना करती है जिससे जनशक्ति की वांछित मात्रा सही समय पर उपलब्ध हो सके । यह विभिन्न प्रशिक्षण संस्थाओं के तालमेल पर ध्यान देती हैं ।


Essay # 3.

मानव संसाधन विकास के सूचक (Indicators of Human Resources Development):

मानव संसाधन विकास के सूचकों को हार्बिंसन एवं मेयर्स ने निम्न दो वर्गों में बांटा:

1. वह सूचक जो एक देश की मानव पूंजी के स्टॉक को मापन करते हैं ।

2. वह सूचक जो स्टॉक में होने वाली सकल या शुद्ध वृद्धि की सूचना देते हैं । इनमें एक निश्चित समय अवधि में होने वाले मानव पूँजी निर्माण की दर सम्मिलित है ।

एक देश में मानव पूँजी के स्टॉक का मापन करने के लिए निम्न दो सूचकों उपयुक्त माना जिन्हें अन्तर्राष्ट्रीय तुलना के लिए भी स्वीकार किया जा सकता है:

1. शैक्षिक उपलब्धियों का स्तर (Level of Educational Attainment):

इससे अभिप्राय है जनसंख्या में उन व्यक्तियों की संख्या जिन्होंने शिक्षा के निम्न तीन स्तरों को पूर्ण किया है:

(i) प्राथमिक शिक्षा,

(ii) द्वितीय या माध्यमिक शिक्षा एवं

(iii) तृतीयक या उच्च शिक्षा । इनमें से द्वितीयक या तृतीयक इस कारण महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उच्च स्तरीय मानवशक्ति के स्टॉक को सूचित करते हैं ।

2. जनसंख्या अथवा श्रमशक्ति के सापेक्ष उन व्यक्तियों की संख्या जो उच्च स्तर के व्यवसायी में संलग्न है (The Number of Persons, in Relation to the Population or Labour Force, Who are in High Level Occupation):

इनमें वैज्ञानिक, अभियन्ता, अध्यापक, डाक्टर, विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के तकनीशियन, नर्स, चिकित्सा सहायक तथा फोरमैन स्तर के प्रशिक्षित व्यक्ति सम्मिलित हैं ।

विभिन्न देशों में मानवपूँजी के स्टॉक के तुलनात्मक आंकड़े इन दोनों रूपों में उपलब्ध नहीं हैं इसलिए हारबिंसन एवं मेयर्स ने द्वितीय श्रेष्ट उपाय के रूप में निम्न घटकों का उल्लेख किया:

i. प्रति दस हजार जनसंख्या में शिक्षकों (प्रथम व द्वितीय स्तर) की संख्या ।

ii. प्रति दस हजार जनसंख्या में अभियंताओं एवं वैज्ञानिकों की संख्या ।

iii. प्रति दस हजार जनसंख्या में चिकित्सा अधिकारियों तथा दंत चिकित्सकों की संख्या ।

iv. 5 से 14 आयु वर्ग की अनुमानित जनसंख्या में प्राथमिक स्तर की शिक्षा प्राप्त कर रहे बच्चों का प्रतिशत ।

v. प्रथम व द्वितीय स्तरों को एक साथ लेते हुए मानव समायोजित नामांकन अनुपात ।

vi. 15 से 19 की आयु की अनुमानित जनसंख्या के अनुपात के रूप में द्वितीय स्तर में नामांकित विद्यार्थियों का प्रतिशत ।

vii. 20 से 24 वर्ष के आयु वर्ग में तृतीय स्तर या उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे विद्यार्थियों का प्रतिशत ।

उपर्युक्त में पहले तीन द्वारा मानव संसाधन के स्टॉक का आंशिक मापन तथा अंतिम चार के द्वारा स्टॉक में होने वाली वृद्धि का मापन होता है ।


Essay # 4.

मानव संसाधन विकास की प्रक्रिया एवं महत्व (Process and Importance of Human Resource Development):

मानव पूंजी को प्रभावित करने वाली विभिन्न प्रत्याशाओं को प्रो. शुल्ज ने निम्न पाँच भागों में बांटा:

i. ऐसी समस्त सेवाएँ एवं सुविधाएँ जिससे व्यक्तियों का स्वास्थ्य स्तर कार्य की शक्ति व क्षमता एवं जीवन प्रत्याशा में वृद्धि होती है ।

ii. सभी प्रकार के प्रशिक्षण ।

iii. प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च स्तर पर शिक्षा का औपचारिक संगठन ।

iv. प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम जिसमें कृषि जनसंख्या हेतु विस्तार कार्यक्रम भी सम्मिलित किए गए है ।

v. नौकरी के अवसरों में होने वाले परिवर्तन तथा इन्हें समायोजित करने में व्यक्तियों व परिवारों की गतिशीलता ।

उपर्युक्त समस्त क्रियाएं मानव की क्षमता को सुधारने में धनात्मक योगदान देती है । मानव पूँजी वस्तुत: श्रम शक्ति में निहित उत्पादक विशिष्टता है अर्थात यह श्रम शक्ति की शिक्षा, कुशलता, स्वास्थ्य एवं पोषण के स्तर की सूचना देती है ।

श्रम शक्ति जितने अधिक शिक्षित कुशल स्वास्थ्य एवं पोषण युक्त होगी उत्पादकता में वृद्धि से संबंधित योगदान भी उतना ही अधिक व गुणात्मक दृष्टि से सम्पन्न होगा ।

मानव पूंजी में विनियोग से अभिप्राय यह है कि श्रम शक्ति की उत्पादक क्षमताओं को अधिक कुशल बनाते हुए शिक्षा के उच्च स्तरों से समन्वित व पोषण प्रदान किया जाये । ऐसा करने में लागत वहन करनी पड़ती है । मानव पूँजी में विनियोग की लागत प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष या अवसर लागतों को समाहित करता है ।

प्रत्यक्ष लागतों से अभिप्राय है स्कूलों के खुलने, शिक्षकों की, अस्पताल के निर्माण एवं डाक्टरों की नियुक्ति, तकनीशियनों का प्रशिक्षण दूसरी ओर अप्रत्यक्ष या अवसर लागतों से अभिप्राय उस से संबंधित है जो स्कूल या प्रशिक्षण केन्द्र में जाने के फलस्वरूप त्याग कर दिया गया है ।

मानव शक्ति नियोजन के द्वारा देश के आर्थिक विकास हेतु प्रभावी योजनाएँ निर्मित की जा सकती है । उच्च शिक्षा एवं प्रशिक्षण की सुविधाओं में होने वाली मात्रात्मक व गुणात्मक वृद्धि मानवीय क्षमताओं कुशलता एवं सृजनात्मक स्तर को उच्च प्रतिमान तक ले जाती है ।

श्रम शक्ति की मांग में होने वाली वृद्धि व इसके समर्थ आवंटन तथा उत्पादन की आवश्यकताओं को पूर्ण करने में मानव संसाधनों के योगदान को समुचित महत्व देकर मानवशक्ति उपयोग को सम्भव बनाया जा सकता है ।

मानव शक्ति के उपयोग के निर्धारण में गिंजबर्ग एवं स्मिथ ने निम्न घटकों की उपस्थिति को महत्वपूर्ण को बताया:

i. प्रशिक्षित जनशक्ति,

ii. मजदूरी की संरचना एवं नौकरियों के अवसर जो जनशक्ति के आवंटनों को प्रभावित करते हैं,

iii. संस्थागत प्रबंध,

iv. ऐसे प्रबंध जो निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र में प्रशिक्षण, प्रोन्नति व रोजगार देने से संबंधित हों ।

प्रो. वी. के. आर. वी. राव के अनुसार मानव संसाधन उपयोग के अधीन अर्द्धरोजगार एवं बेरोजगार मानवशक्ति को भी ध्यान में रखना आवश्यक है जो छिपी हुई बचत क्षमता सूचित करता है ।

i. शिक्षा एवं प्रशिक्षण की भूमिका (Road of Education and Training):

एक देश में श्रम शक्ति की गतिशीलता व उत्पादकता में सुधार हेतु शिक्षा एवं प्रशिक्षण आवश्यक है । शिक्षा दृष्टिकोण को व्यापक बनाती है, रोजगार के बेहतर अवसरों को प्राप्त करने के लिए कुशलता उत्पन्न करती है ।

लेस्टर अपनी पुस्तक (Manpower Planning in a Free Society) में लिखते हैं कि मानव शक्ति नियोजन के लिए शिक्षा एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम कई उद्देश्यों को पूर्ण करते हैं:

 

(1) विभिन्न व्यवसायों के लिए सामान्य व विशिष्ट प्रशिक्षण कार्यक्रम,

(2) सफेदपोश नौकरियों लिए अल्पकालीन प्रशिक्षण, जैसे- आशुलिपि, प्रयोगशाला सहायक, तकनीशियन, हैल्पर इत्यादि ।

(3) बदलती हुई रोजगार आवश्यकताओं के अनुकूल प्रशिक्षण कार्यक्रम,

(4) काव्यवसाय प्रशिक्षण सुविधा वृद्धि के साथ ही उच्च स्तरों की जानकारी देने वाले र्यक्रम,

(5) नौकरी में रहते हुए प्रशिक्षण की विशेष सुविधा ।

ii. प्रशिक्षण कार्यक्रमों की समय अवधि (Duration of Training Programmes):

आकस्मिक समस्याओं को सुलझानें के लिए बोकेशनल एवं तकनीकी स्कूली पाठ्यक्रम को प्राथमिकता दी जाती है लेकिन दीर्घ अवधि नियोजन के लिए आधारभूत शिक्षा का न्यूनतम स्तर प्रदान करना आवश्यक माना जाता है । यह ध्यान रखना भी आवश्यक है कि प्रशिक्षण कार्यक्रम समय एवं परिस्थितियों के अनुरूप संशोधित होते रहें । यह भी आवश्यक नहीं कि प्रशिक्षण कार्यक्रम पूर्णकालिक हों ।

ऐसे देश जहाँ संसाधन सीमित हों वहां अल्पकालीन कोर्स, सेंडविच कोर्स, रिप्रेशर कोर्स, ओरिएन्टेशन कोर्स व सेवा के अधीन प्रशिक्षण अधिक महत्वपूर्ण समझे जाते हैं । प्रशिक्षण कार्यक्रमों को इस प्रकार चलाया जाना चाहिए कि यह आधारभूत ज्ञान के लिए एक सुदृढ़ आधार बनाएँ तथा संकीर्ण विशिष्टीकरण को प्रोत्साहन दें ।

ब्लांग के अनुसार शिक्षा एवं प्रशिक्षण द्वारा समाज को निम्न लाभ प्राप्त होते हैं:

(1) शिक्षा प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के साथ ही उनके सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों को (Spillover) लाभ प्राप्त होते है । पढ़े-लिखें परिवारों में कार्य कर प्रति दृष्टिकोण धनात्मक रूप से बदलता है ।

(2) शिक्षा के द्वारा एक विकास करती अर्थव्यवस्था को प्रशिक्षित जनशक्ति प्राप्त होती है ।

(3) शिक्षा संभावित क्षमताओं एवं सृजन की प्रक्रिया को बढ़ाती है ।

(4) ऐसा वातावरण निर्मित होता है जो विज्ञान व तकनीक के क्षेत्र में खोज व नवप्रवर्तन को प्रोत्साहन दे ।

(5) शिक्षा सामाजिक अनुशासन को बढ़ावा देती है व कल्याण की भावना से प्रेरित हो स्वैच्छिक रूप से कार्यरत रहने का दृष्टिकोण उपजता है ।

(6) शिक्षा राजनीतिक स्थायित्व को बनाए रखने में प्रेरक भूमिका प्रस्तुत करती है । शिक्षित जनमानस एक सुदृढ़ एवं स्थायी नेतृत्व के द्वारा प्राप्त होने वाले लाभों के प्रति जागरूक बनाती है ।

(7) शिक्षा के प्रचार प्रसार से कार्य व आराम दोनों पक्षों को समान रूप से महत्व दिया जाता है ।

iii. श्रमशक्ति की गतिशीलता (Mobilisation of Labour Force):

मानवशक्ति का समर्थ उपयोग तब संभव है जब विभिन्न व्यवसायों, उद्योग क्षेत्रों एवं अवसरों के मध्य प्रशिक्षित एवं अप्रशिक्षित श्रम शक्ति समर्थ रूप से गतिशील रहे । मानवशक्ति नियोजन व नीति हेतु गतिशीलता में होने वाला विस्तार मुख्य उद्देश्य बन जाता है ।

लेस्टर के अनुसार श्रमगतिशीलता एक बहुआयामी विचार है इसके विविध पक्ष समय, स्थान, व्यक्तिगत कुशलता तथा प्रेरणा से संबंधित है । श्रमिक के द्वारा की गयी एक गति नियोक्ता पेशे उद्योग व भौगोलिक स्थान के परिवर्तन को सूचित करती है यह गतिशीलता तब स्वैच्छिक होती है जब एक श्रमिक अपने पेशों को इस आशा पर छोड़ता है उसे भविष्य में बेहतर अवसर प्राप्त होंगे ।

एक नियोजित अर्थव्यवस्था में मानवशक्ति उपयोग के कार्यक्रम में श्रमशक्ति की गतिशीलता योजनाबद्ध होती है । राज्य या नियोजन अधिकारियों के द्वारा गतिशीलता के दिशा निर्देश नियत किए जाते हैं । अभिप्राय यह है कि देश भर में रोजगार के अवसरों के बारे में अधिक व बेहतर सूचनाएं उपलब्ध करना ।

 


Essay # 5.

मानव पूँजी निर्माण में विनियोग द्वारा प्राप्त प्रतिफलों का मापन (Measuring the Returns of Investment in Human Capital Formation):

हार्बिन्सन एवं मेयर्स के अनुसार शिक्षा में किए कुछ विनियोगों की प्रवृत्ति इस दृष्टि से आर्थिक होती है कि यह आर्थिक वृद्धि को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं जबकि दूसरी ओर मानव संसाधन के विकास एवं शिक्षा पर किये जाने वाले व्यय आधारभूत रूप से सामाजिक विनियोग का रूप लेते है इसलिए इनका मापन अवशिष्ट रूप से हो सकता है ।

आर्थिक विकास में शिक्षा के योगदान मापन के मुख्य विश्लेषण निम्न है:

1. शिक्षा एवं आय पर किए गए व्यय के मध्य संबंध (Relationship between Expenditure on Education and Income):

इस व्याख्या को शूल्ज ने अमेरिका में 1900 से 1958 की समय अवधि के प्रसंग में प्रस्तुत किया । उनके अनुसार इस अवधि में उपभोक्ता आय एवं सकल भौतिक पूँजी निर्माण (डालर में मापनीय) के सापेक्ष शिक्षा पर 3.5 गुना अधिक संसाधन आबंटित किया गया ।

अभिप्राय यह है कि अवधि में वास्तविक आय में होने वाली प्रतिशत वृद्धि, शिक्षा पर व्यय की गई संसाधनों की 3.5 गुनी वृद्धि से ही संबंधित थी अर्थात् शिक्षा के लिए माँग की आयलोच 3.5 प्रतिशत थी ।

तात्पर्य यह कि यदि शिक्षा को विनियोग माना जाये तो यह भौतिक पूँजी में किए विनियोग के सापेक्ष 3.5 गुना अधिक आकर्षक होता है । शूल्ज के अतिरिक्त मैकलप (1962) तथा पंचमुखी (1965) के अध्ययन महत्वपूर्ण है ।

2. अवशिष्ट विधि (Residual Approach):

शिक्षा के द्वारा होने वाले सकल राष्ट्रीय उत्पाद के अनुपात को मापने का प्रयास प्रो. सोलाव, डैनिसन एवं कोरिआ के द्वारा किया गया । इस व्याख्या में सकल राष्ट्रीय उत्पाद में श्रम एवं पूंजी जैसी भौतिक आदाओं के योगदान का निर्धारण करने के उपरांत अवशिष्ट को अन्य घटकों का योगदान माना जाता है जिनमें शिक्षा सर्वाधिक महत्व की है ।

सोलोव ने कुछ सरल मान्यतायों को ध्यान में रखते हुए यह अनुमान लगया कि 1909 से 1949 के मध्य अमेरिका में प्रति मानव घंटा उत्पादन में होने वाली वृद्धि के 87.5 प्रतिशत का अवशिष्ट मापा गया ।

सोलोव ने एक रेखीय समरूप उत्पादन फलन तथा निष्क्रिय तकनीकी प्रगति की मान्यता ली जो पूँजी एवं श्रम के मध्य, प्रतिस्थापन की दर को प्रभावित नहीं करती ।

डेनिसन के अनुसार 1919 से 1957 की अवधि में अमेरिका में शिक्षा पर किया विनियोग कुल शुद्ध राष्ट्रीय आय की वृद्धि का 23 प्रतिशत एवं प्रति व्यक्ति रोजगार प्राप्त वास्तविक राष्ट्रीय आय की वृद्धि का 42 प्रतिशत रहा ।

3. प्रतिफल की दर विश्लेषण (The Rate of Return Approach):

शिक्षा पर किए गए व्यय के द्वारा प्रतिफल की दर को मापने का प्रयास कई अर्थशास्त्रियों द्वारा किया गया । यह विधि एक व्यक्ति को भविष्य में मिलने वाली प्राप्तियों के प्रवाह का मापन करती है, जो शिक्षा के द्वारा उत्पन्न मानी गई । इनके वर्तमान मूल्य की गणना कुछ उचित बट्टा दरों के आधार पर की गयी । बेकर ने अमेरिका में शिक्षा की लागत से उत्पन्न आय के अंतरालों का मापन किया ।

उन्होंने स्पष्ट किया कि शिक्षा पर प्रतिफल की दरें, शहरी श्वेत जनसंख्या के लिए 1940 में 12.5 प्रतिशत व 1950 में 10 प्रतिशत थी । रेनशां के अनुसार 1900 से 1950 की समय अवधि में शिक्षा से प्राप्त औसत प्रतिशत 5 से 10 प्रतिशत के मध्य रहा ।

4. स्कूल नामांकन अनुपातों एवं सकल राष्ट्रीय उत्पादों का अन्र्तदेशीय सह संबंध (Inter Country Correlations of School Enrollment Rations and Gross National Product):

Ingvar Svennilson, Friedrich Edding & Lionel Elvin ने 22 देशों में 5 से 14, 15 से 19 तथा 20 से 24 के तान आयु वर्गों में नामांकन अनुपातों की तुलना इन देशों की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद से की तथा यह निष्कर्ष प्रदान किया कि एक देश जिसकी प्रति प्रति-व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद न्यून है वह 15 से 19 के मध्य के आयु वर्ग को पूर्ण समय की शिक्षा प्रदान करने में समर्थ नहीं होता । अत: ऐसे युवक लाभपूर्ण रोजगार प्राप्त करनें में असफल रहता हैं ।


Essay # 6.

मानव संसाधन मापन की समस्याएँ (Problems in Measurement of Human Resources):

 

भविष्य में चाही जाने वाली मानव संसाधन की आवश्यकताएँ वस्तुतः कई कारकों पर निर्भर करती है जैसे जनसंख्या वृद्धि की दर, नवप्रवर्तन की दर, भौतिक पूँजी विनियोग का परिमाण एवं अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ । इन कारकों का पूर्वानुमान कठिन है । इस कारण भविष्य हेतु मानव संसाधन आवश्यकताओं का स्पष्ट निरूपण नहीं हो पाता ।

बालोघ एवं स्ट्रीटन के अनुसार मानव पूँजी पर होने वाले व्यय को मापना व्यवहारिक नहीं है, क्योंकि:

(1) इनके प्रत्यक्ष उत्पादन को सरलता से मापा नहीं जा सकता,

(2) इनके प्रभाव एक लंबे समय अंतराल के उपरांत प्राप्त होने की प्रवृत्ति रखते हों,

(3) आदा एवं प्रदा के मध्य कोई निश्चित संबंध स्थापित कर पाना संभव नहीं, क्योंकि सफलता एवं उपलब्धि गुणात्मक घटक है ।

मानव पूंजी निर्माण की गुणात्मक प्रवृत्ति के कारण उत्पन्न मापन की समस्याओं से इसका महत्व कम नहीं हो जाता । वस्तुतः मानव पूँजी संसाधन विकास से संबंधित रणनीति को स्पष्ट रूप से वर्णित प्राथमिकताओं से संयोजित किया जाना चाहिए ।

विकासशील देश एक सुस्पष्ट प्राथमिकता पर आधारित नहीं रहते जिससे कुशल व प्रशिक्षित जनशक्ति की आवश्यकता व इसकी उपलब्धता के मध्य असंतुलन विद्यमान रहता है ।