बायोपेस्टाइड्स: मतलब, लक्षण, तैयारी और समस्याएं | Biopesticides: Meaning, Characteristics, Preparation and Problems.

Contents:

  1. बायोपेस्टीसाइड एवं महत्व (Meaning of Biopesticides)
  2. बायोपेस्टीसाइड एवं लक्षण (Characteristics of Biopesticides)
  3. जैविक नियन्त्रण के अनिवार्य तथ्य (Essentials of Biological Control of Pest)
  4. बायोपेस्टीसाइड के प्रकार (Types of Biopesticides)
  5. बायोपेस्टीसाइडस बनाना (Preparation of Biopesticides)
  6. जैविक नियन्त्रण की समस्याएँ (Problems of Biological Control of Pest)
  7. परजीवियों द्वारा जैविक नियन्त्रण की समस्याएँ (Problems of Biological Control by the Parasites)

1. बायोपेस्टीसाइड का अर्थ (Meaning of

Biopesticides):

सूक्ष्मजीवों (Micro-Organisms) का Pest Control हेतु जैविक नियंत्रण कहलाता है तथा उपयोग में लिये जाने वाले जैविक एजेन्ट कहलाते हैं । सामान्यतया Pest Control Bacteria, Fungi, Virus, Protozoa आदि का उपयोग करके किया जाता है । इनमें से कुछ का उपयोग व्यापारिक स्तर पर भी किया जाता है ।

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Micro-Organism का उपयोग कीट नियंत्रण, खरपतवार नियंत्रण तथा रोग नियंत्रण में किया जाता है । Microorganism का Insect Control में उपयोग Bioinsecticide कहलाता है जबकि सभी Pest Control का उपयोग बायोपेस्टीसाइड (Biopesticide) कहलाता है ।

इसके अन्तर्गत वाइरस (Virus), जीवाणु (Bacteria), कवक (Fungi), Protozoa आदि का उपयोग Plants तथा Animal पर आक्रमण करने वाले कीटों के Control में किया जाता है । यद्यपि अधिकांश प्रकार के Microorganism दूसरे Organism पर आक्रमण (Attack) करते हैं लेकिन व्यापारिक स्तर पर केवल कुछ ही Microorganisms का उपयोग किया जाता है ।

Biopesticide के Production तथा प्रयोग की विधि भारत में भी विकसित कर ली गई है तथा बेसिलस (Bacillus) थूरिजिएसिस आधारित Insecticide का उपयोग व्यापारिक स्तर पर किया जाता है । ये Pesticides नाशीजीव के शरीर में संक्रमण (Infection) करके या उसकी वृद्धि में परिवर्तन में बाधा उपस्थित करके या काई Toxin उत्पन्न करके उसकी सामान्य जीवन क्रिया को रोक देते है ।

इस पर नाशीजीव की मृत्यु हो जाती है । या वह इतना Weak हो जाता है कि Reproduction, Digestion या Development की क्रियाओं को पूर्ण करने में असमर्थ रहता है । Microorganism Pesticides को Animal के शरीर में प्रवेश करने तथा इनके द्वारा की जाने वाली क्रियाओं को देखा जाए तो यह अलग-अलग होती है । इन Microorganism को Insecticides के स्थान पर उपयोग करने से इन्हें Biopesticides कहा गया है ।


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2. बायोपेस्टीसाइड एवं लक्षण (

Characteristics of Biopesticides):

बायोपेस्टीसाइड के निम्न लक्षण होते है:

(1) इनसे पर्यावरण प्रदूषण (Environmental Pollution) नहीं होता है ।

(2) ये कम मूल्य वाले होते है ।

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(3) अत्यधिक विशिष्ट होने के कारण Host की पहचान आवश्यक है ।

(4) इनसे लक्ष्य के अलावा अन्य प्रजातियों को कोई हानि नहीं पहुँचती है ।

(5) कीटों में Biopesticides के प्रति प्रतिरोधिता विकसित नहीं होती है ।

(6) खाद्य चारे तथा रेशों में कोई हानिकारक अवशेष नहीं रहते हैं ।

(7) इनका प्रभाव जैविक (Biotic) व अजैविक (Abiotic) Factors के द्वारा प्रभावित होता है ।

(8) अत्यधिक विशिष्टता के कारण दो या अधिक Biopesticides की आवश्यकता होती है ।

(9) ये अपना प्रभाव या अवशेष नहीं छोड़ते है ।

(10) ये अन्य प्रणालियों को हानि नहीं पहुँचाते केवल उन्हीं को हानि पहुँचाते हैं जिनके लिए इनका उपयोग किया जाता है ।


3. जैविक नियन्त्रण के अनिवार्य तथ्य

(Essentials of Biological Control of Pest):

(1) एक उचित प्राकृतिक शत्रु का चुनाव जिसका स्वभाव आदि नाशक कीट की ही भाँति हो तथा उन्हीं प्राकृतिक अवस्थाओं में अपने को स्थापित कर सकने की क्षमता भी हो ।

(2) परजीवी की नई अनुवंशिक किस्मों का विकस जो प्राकृतिक किस्म से अधिक उन्नत और प्रभावशाली हों ।

(3) प्रयोग में लाई जाने वाली जैविक ऐजेन्सीज में अपनी अधिक प्रजनन क्षमता, मादाओं की अधिक संख्या, अल्प जीवनकाल तथा शीघ्र परिपक्व होने की क्षमता के कारण संख्या में परपोषक से अधिक होने की क्षमता होनी चाहिए ।

(4) जैविक नियन्त्रण के लिए यह आवश्यक है कि परजीवी वास्तविक परपोषक को ठीक से पहचान कर उस तक पहुँच सके ।

इन Microorganism की वृद्धि तथा Culture प्रयोगशाला में किया जाता है तथा आवश्यकता पड़ने पर इन्हें वायुमंडल में छोड़ देते हैं । इस विधि का उपयोग उस समय किया जाता है जब Pest को अस्थाई रूप से नियंत्रित करना हो ।


4. बायोपेस्टीसाइड के प्रकार (

Types of Biopesticides):

सूक्ष्मजीवों को इनके द्वारा की जाने वाली क्रिया के आधार पर इन्हें निम्न श्रेणियों में बाँटा गया है:

(a) आमाशयी सूक्ष्मजीवी पेस्टीसाइड (Stomach Microbial Pesticides):

इस समूह के जीवाणु (Bacteria) Insects के शरीर तथा Tissues में प्रवेश करके उनमें Toxin पदार्थों का उत्पादन कर देते हैं जिससे Pest की मृत्यु हो जाती है ।

(b) सम्पर्क सूक्ष्मजीवी पेस्टीसाइड (Contact Microbial Pesticides):

इस समूह के सूक्ष्मजीव कीटों कई त्वचा (Skin) के सम्पर्क में आने पर उसकी देह (Body) में प्रवेश कर जाते है । इस नियंत्रण (Control) में भौतिक करक (Physical Factors) भी सहायक होते है । अत: Pest Control के लिए सूक्ष्मजीव (Microorganism) Insects तथा वातावरण (Environment) का सामंजस्य (Adjustment) भी सहायक होता है ।

(c) श्वसन सूक्ष्मजीव पेस्टीसाइडस (Respiratory Microbial Pesticides):

इस समूह के अन्तर्गत वो Microorganisms आते हैं जो Pest के Respiratory Tract पर प्रभाव डालते हैं जिससे Respiratory System Fail हो जाता है या जन्तु बेहोश हो जाता है या इस प्रकार का Toxin जो उनके Respiratory Tract को अवरूद्ध (Block) कर देता है ।

(d) तन्त्रिका सूक्ष्मजीवी पेस्टीसाइडस (Nerve Microbial Pesticides):

इस समूह के अन्तर्गत वो Microorganism आते हैं जो इस प्रकार का Toxin छोड़ते हैं जिससे बेहोश हो जाते हैं ।


5. बायोपेस्टीसाइडस बनाना (

Preparation of Biopesticides):

बेसिलस थूरिजिएसिस बीजाणु (Spores) का निर्माण करने वाली जीवाणु (Bacteria) है जो Spore युक्त Vegetative Cells में Crystal Protein का निर्माण करती है । Crystal Protein एक Prototoxin है जो Insects की मध्य आहरनाल (Alimentary Canal) में Toxin में परिवर्तित हो जाते है ।

Toxins के खण्ड मध्य आहारनाल Mid Alimentary Canal की Epithelial Cells में स्थित विशिष्ट ग्राही के साथ बंधित हो जाते हैं व अन्त में कीट की मृत्यु ले जाती है ।

विभिन्न प्रकार के Bacteria द्वार विभिन्न प्रकार के Crystal Protein का निर्माण किया जाता है । प्रत्येक प्रोटीन कीट विशेषज्ञ (Protein Insects Specialist) विशिष्ट होता है जबकि रासायनिक Insecticides व्यापक प्रकार के कीटों का नियंत्रण करते हैं ।

ये जाति बेसिलस थूरिजिएसिंस फरमेंटर (Fermenter) में अन्य Bacteria के साथ उत्पन्न होते है । इसके व्यापारिक संघटक में बीजाणु (Spore), Crystal Protein तथा अक्रिय वाहक (Non Carrier) पाए जाते हैं ।

यह संघटक पानी में विलेय पाउडर के रूप पायसीकृत पदार्थ के रूप में कणों (Particles) के रूप में, धुल (Dust) के कणों के रूप में पाये जाते है । आवश्यकता पड़ने पर इसे रासायनिक Insecticides के साथ भी Mixed किया जा सकता है जो इनके प्रति प्रतिरोधक क्षमता रखते हों ।

क्रिस्टल प्रोटीन की क्रियाशीलता उपयोग करने के 24-40 घंटे पश्चात समाप्त हो जाती है । लेकिन बीजाणु (Spores) लम्बे समय तक बने रहते है व लाभदायक कीटों को भी नष्ट कर देते है ।

इस समस्या से बचने के लिए जीवाणुओं (Bacteria) के ऐसे उत्परिवर्तित प्रतिरूप बनाये गये हैं जो Crystal Protein का निर्माण करते हैं लेकिन (Spores) का निर्माण नहीं करते है । ये उत्परिवर्तित प्रतिरूप भारतीय वैज्ञानिकों के द्वारा निर्मित किए गये हैं ।

अमेरिका में न्यूक्लियर पोलीहेड्रोसिस वाइरस (NPV) को Insects के Control हेतु उपयोग में लिया जाता है । भारत में NPV का उपयोग हेलिकोवेरपा (Helicovarpa) आर्मिजेरा (Armyjara) के नियंत्रण हेतु किया जाता है ।

इसी प्रकार ग्रेनूलोसिस वाइरस (GV) का उपयोग स्पोडोप्टेरालिट्रस के नियंत्रण हेतु किया जा रहा है । व्यापारिक स्तर पर इन वाइरस का उत्पादन लक्ष्यित कीटों के लार्वा में किया जाता है । इसी प्रकार हिर्सूटेला थोम्पसोनाई, वार्टेसिलियम जैसे कवकों (Fungi) का उपयोग भी कीटों के Control में किया जाता है ।

सूक्ष्मजैविक (Biopesticides) कीटनाशी निम्न प्रकार के होते हैं:

(1) बैक्टीरिया (Bacteria),

(2) कवक (Fungi),

(3) वाइरस (Viruses),

(4) रिकेट्सीया (Rickettsias),

(5) परजीवी प्रोटोजोआ (Parasitic Protozoa),

(6) परभक्षी बरूथी (Predaceous Mites),

(7) पादप परजीवी सूत्र कृमियों का जैव नियंत्रण (Bicontrol of Plant Parasitic Nematodes),

(8) परभक्षी प्रोटोजोअन (Predacious Protozoan),

(9) परभक्षी टर्बिलेरियन (Predaceous Turbellarians) ।


6. जैविक नियन्त्रण की समस्याएँ (

Problems of Biological Control of Pest):

पादप रोग प्रबंध के लिए (Pathogens) का जैव नियन्त्रण (Bio-Control) एक करने योग्य साध्य है तथा यह कवकनाशी एवं Nematicides द्वारा उत्पन्न पर्यावरण प्रदूषण और रासायनिक Control के अधिक उच्च मूल्य का एक उचित स्तर भी हो सकता है ।

किन्तु इसी अवधि के दौरान Plant Diseased के खेत में जैव नियंत्रण के लिए व्यावहारिक प्रयोगों की विधियों का कुछ उदाहरण ही दिए गये थे । इससे प्राकृतिक रूप से उचित मत्स्य पालन उपायों द्वारा Soil अवस्थाओं का परिवर्तन करके मूल रोगों के क्षेत्र या खेत नियन्त्रण के अनेक उदाहरण मिले हैं जिनमें आवासी Soil सूक्ष्म वनस्पति जात एवं प्राणिजात (Micro Flora and Fauna) द्वारा प्राकृतिक Biocontrol को बढ़ा दिया जाता है ।

प्राकृतिक मृदा का कुछ विशिष्ट चयनित विरोधियों से निवेशन करने पर भी अधिक प्रोत्साहक परिणाम प्राप्त नही हुये है । इन विरोधियों द्वारा काँच घर या प्रयोगशाला के अन्तर्गत रोगों के Biocontrol के अच्छे परिणाम दिए जैसे स्ट्रेप्टोमाइसीज की अनेक जातियों को विभिन्न प्रकार की Soils एवं स्थानों से पृथक किया है ।

उनकी कमी के अनेक विशिष्ट चयनित Plant Pathogens Fungi के विरूद्ध विरोधी क्रिया के लिये की गयी है । Streptomyces Diastaticus जाति ने टमाटर के Pythium की Species तथा चने के मूल एवं ग्रीवा विगलन (स्कलेरोटियम रॉलफसाई) का शत प्रतिशत जैव नियन्त्रण उस समय किया है जब इस विरोधी को Pathogens से संरोपति Autoclave की गयी Soil के पात्रों में मिलाया गया था ।

इस विरोधी का प्रयोग इन Pathogens के ग्रसन वाली, प्राकृतिक मृदा में किया गया तो रोग आपतन में किसी भी प्रकार की कमी नहीं हुयी थी । मृदाजीवी रोगजनक के जैव नियन्त्रण के लिए इस प्रकार के अनेक Experiment Results प्राप्त हो चुके है । मृदा जैव रूप से आवासी सूक्ष्मजीवी आबादी द्वारा पूर्ण होती है ।

Biocontrol Agent Mass एक Pathogen की सभी प्रजातियों अथवा Strains के विरूद्ध प्रभावी नहीं होता है । स्कलेरोटियम रॉल्फसाई के बड़े Sclerotia या Strains छोटे Sclerocium वाले Strains की अपेक्षा ग्लायोक्लेडियम वाइरेन्स नामक विरोधी के लिए बहुत कम Susceptile होते है ।

मृदा Fungistasis जिसमें Soil द्वारा Fungi, Bacteria के अंकुरण को निरोधित (Suppressed) कर दिया जाता है । अनेक Nematophagous Fungi के Spores के अंकुरण को प्रभावित करने के लिए जाना जाता है ।

प्राकृतिक मृदा में प्रभावी होने वाली बहुत प्रबल विरोधियों की भी यह अयोग्यताएँ जिनसे वे पृथक नहीं किए गये, जैव नियन्त्रण के लिए Antagonists के सीधे प्रयोग में एक मुख्य रुकावट है ।

प्रभावी होने के लिये विरोधी का चयन उसी समान पारिस्थितिक कर्मता (Ecological Nicke) से करना चाहिए जहाँ इससे एक दिए गए Pathogen के विरुध कार्य करने का प्रयोग किया गया । यह उस समय संभव है जब प्रक्षेणों द्वारा ऐसी स्थितियाँ प्रकट की गयी हों, जहाँ एक रोग का प्राकृतिक निरोध हो गया हो ।

यदि इसे एक बार पूर्ण भी कर लिया जाये तो दूसरी समस्या खेत में विरोधी के मुक्त करने के उचित तन्त्र के अभाव की है । इसके अतिरिक्त विरोधी जीव के संवर्धन (Culture) को बहुत अधिक मात्रा में तैयार करना न केवल थकाने वाला एक कठिन कार्य है और ये अलाभप्रद भी होता है ।

इस प्रकार से विरोधी जीव के सीधे या प्रत्यक्ष अनुप्रयोग के स्थान पर यदि मृदा में Microbial Biomass को बढ़ाने के लिए कर्षण प्रक्रियाओं के अपनाया जाये, परपोषी सतहों का निवेशन एक स्पर्धी या विरोधी Microorganism के एकरक्षी विलेपन से करना एक अधिक सार्थक प्रक्रिया है ।

बीजों की सतहों का निवेशन विरोधी Bacteria की Cells अथवा विरोधी Fungi के Spores से करने पर जैव नियंत्रण में अधिक सफलता प्राप्त हुयी है । इसका अधिक व्यापक रूप से प्रयोग होने लगा है ।

ऐसी स्थिति में एक नये पर्यावरण में एक भिन्न स्वभाव के या अन्य देशी (Alien) जीव का प्रवेश करने की कोई समस्या उत्पन्न नहीं होती है । यहाँ पर विरोधी जीव मृदा सूक्ष्मजीवों के साथ-साथ Pathogens का सामना करने से पहले बीज की सतह पर पहुंच कर स्थापित हो जाते है ।

पादप रोगों व Pathogens के जैव नियन्त्रण तन्त्रों के रसायनों का एक विकल्प बनने से पहले कुछ समय अवश्य लगेगा जैव नियन्त्रण रोग प्रबंधक के खर्च को बहुत कम कर सकता है और नाशक मार रसायनों (Pesticides) के अत्यधिक मात्रा में तथा बार-बार प्रयोग द्वारा हुई हानियों (प्रदूषण) को भी कम कर सकता है परन्तु इन जैव का संवर्धन करना ही सबसे कठिन है ।

सूक्ष्म जैविक नियंत्रण के लाभ एवं हानियाँ (Advantages and Disadvantages of Microbial Pest Control):

सूक्ष्म जैविक नियंत्रण (Control) Technique के अनेक लाभ है ।

लाभ (Advantage):

(1) ये रासायनिक Insecticides की भाँति विष अवशेष नहीं छोड़ते हैं व अन्य जानवरों को कोई हानि नहीं पहुँचाते हैं ।

(2) रासायनिक कीट नाशकों की भाँति इनका एक से अधिक प्रकार से मिश्रण के रूप उपयोग में ले सकते हैं ।

(3) ये अत्यंत विशिष्ट प्रकार के होते हैं तथा विशिष्ट पोषकों को ही प्रभावित करते है । अत: केवल हानिकारक कीट ही प्रभावित होते है । ये लाभदायक कीट अप्रभावित रहते हैं ।

(4) रासायनिक Pesticides की तुलना में इनका मूल्य कम होता है ।

हानियाँ (Disadvantage):

(1) ये अत्यधिक विशिष्ट होते है । अत: Pest की पहचान करना अत्यंत आवश्यक है ।

(2) विभिन्न जैविक (Biotic) व अजैविक (Abiotic) कारकों के कारण इनका प्रभाव अलग-अलग प्रकार का होता है ।

(3) सामान्यतया Bacteria जीवन काल कार्यकारी परिस्थितियों में छोटा होता है तथा इनका अवशेषी प्रभाव Negative रहता है ।


7. परजीवियों द्वारा जैविक नियन्त्रण की समस्याएँ

(Problems of Biological Control by the Parasites):

बहुपरजीविता, अतिपरजीविता तथा परात्परजीवियों के प्रति संवेदनशीलता इत्यादि से प्रयोग में लाये जा रहे परजीवियों की प्रभावोत्पादकता कम हो जाती है ।

(1) बहुपरजीविता (Multiple Parasitism):

इसके अन्तर्गत एक अकेले पोषक कीट (नाशककीट) के ऊपर परजीवी कीटों की दो या अधिक जातियों की तरूण अवस्थायें रहती है । अत: ऐसे बहुपरजीवियों को आपस में अंतरजातीय (Interspecific) प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता है जिसके फलस्वरूप बचने वाला जीत तो जाता है परन्तु वह थक सकता है और उसकी प्रजनन क्षमता भी कम हो सकती है जिस कारण जैविक नियन्त्रण करने की उसकी क्षमता कम हो जाती है ।

(2) अति परजीविता (Super Parasitism):

इसके अन्तर्गत एक ही प्राणी के ऊपर एक ही परजीवी जाति के अनेक प्राणियों द्वारा आक्रमण होता पाया जाता है । इस कारण परजीवी की अनेक संतानें व्यर्थ जाती है और आंतरजातीय (Intraspecific) प्रतियोगिता के कारण नियंत्रक परजीवी कमजोर हो जाते हैं ।

(3) परात्परजीविता (Hyper Parasitism):

जब एक नाशक कीट के परजीवी के ऊपर एक दूसरा परजीवी रहता है तब इस स्थिति को परात्परजीविता कहते है । इस कारण नाशक कीट का नाश करने से पहले ही प्रथम परजीवी (नियंत्रक परजीवी) का विनाश हो सकता है ।

(4) प्रतिरक्षा क्रिया (Defence Reaction):

कोई भी जैविक नियन्त्रण की प्रक्रिया शुरू करने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि परपोषक की ओर से बचाव की क्या-क्या क्रियाएं हो सकती हैं क्योंकि यदि परपोषक कीट की ओर से बचाव की प्रक्रिया पूरी हो जाती है तब जैविक नियन्त्रण के लिए प्रयुक्त ऐजेन्सी पूर्णतया प्रभावकारी नहीं हो सकेगी ।

(5) परजीवी की उत्तरजीविता (Survival of Parasite):

प्रमुख ध्यान इस बात का रखना चाहिए कि परजीवी कीट पोषक कीट के शरीर के अन्दर बिना किसी प्रतिरक्षात्मक अभिक्रिया (Immunological Reactions) के जीवित रह जाये ।

(6) परजीवी का संपुटीकरण (Encapsulation of Parasite):

सामान्यतः पोषक कीट परजीवी कीट को अपने साथ बरदास्त करता है जिसके कारण पोषक का विनाश उसी परजीवी द्वारा हो जाता है । यदि परजीवी कीट अप्राकृतिक पोषक कीट में प्रवेश कर जाये तो पोषक कीट के भक्षकाणु उस परजीवी के चारों ओर एक खोल बना लेते हैं जिसके फलस्वरूप सांस न ले पाने के कारण परजीवी की मृत्यु हो जाती है । यदि उसी पोषक कीट पर बार-बार वही परजीवी कीट आक्रमण करता रहे तब पोषक की Capsule बनाने की क्षमता धीरे-धीरे कम होती जाती है ।

परजीवी के प्रचलन की सावधानियाँ (Precautions of Parasitic Operation):

किसी भी परजीवी को नये क्षेत्र में छोड़ते समय निम्न सावधानियाँ बरतनी चाहिए:

(1) यह किसी भी दशा में पादप भोजी (Plant Feedar) नहीं होना चाहिए ।

(2) यह नियन्त्रित किये जाने वाले नाशक कीट की जाति का परजीवी होना चाहिए या दूसरे पौधों की जातियों का ।

(3) यह उस क्षेत्र में पहले से ही उपस्थित प्राथमिक कीट परजीवियों को हानि न पहुंचाये नहीं तो अधिक हानि कर सकता है ।


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