डीएनए जांच: मतलब और तैयारी | Read this article in Hindi to learn about:- 1. डी.एन.ए. प्रोब का अर्थ (Meaning of DNA Probe) 2. डी.एन.ए. प्रोब का निर्माण (Preparation of DNA Probe) 3. लेबलिंग (Labelling).

डी.एन.ए. प्रोब का अर्थ (Meaning of DNA Probe):

कॉलोनी संकरण युक्ति रेडियोलेबल्ड DNA प्रोब (Probe) की उपलब्धता पर आधारित है । DNA प्रोब तो DNA अणु (24-10 bp) का रेडियोलेबल्ड (32PO4) छोटा विखण्ड है, जो कि वांछित DNA के न्यूनतम एक भाग (Part) पर पूरक हो । साधारणतया प्रोब DNA को 32PO4 से अथवा कभी-कभी RS I से लेबल करते है ।

32PO4 द्वारा B कण विमुक्त एवं 1251 द्वारा Y-years उत्सर्जित की जाती है । रेडियोएक्टिव समस्थानिक तत्वों के प्रयोग के अतिरिक्त समस्थानिक गंधक या प्रतिदीप्तिशील अणुओं (Molecules) का भी प्रयोग किया जा सकता है । इसीलिए DNA प्रोब (Probe) A, T, G व C न्यूक्लिओसाइड की पहचान करता है एवं लक्ष्य DNA के संपूरक खण्ड के साथ जुड़ता है ।

प्रोब (Probe) के A व T लक्ष्य DNA के T व A से जुड़ जाते हैं एवं इस का विपरीत होता है । इसी प्रकार प्रोब (Probe) के G व C लक्ष्य DNA के C व G जुड़ जाते है एवं इसका विपरीत होता है । न्यूक्लिक अम्ल संकरण युक्ति में क्रियात्मक लक्ष्य DNA की खोज में DNA प्रोब का प्रयोग किया जाता है ।

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बड़े आकार के DNA प्रोब (Probe) की तुलना में छोटे आकर के DNA प्रोब संस्करण के लिए सरलता से लक्ष्य DNA को पकड़ लेते हैं । इसके अतिरिक्त लक्ष्य DNA अणुओं की खोज 32P-DNA के उच्च सान्द्रण को बनाये रखने पर अधिक दर पर संकरण होता है ।

DNA प्रोब (Probe) को अपने लक्ष्य DNA के प्रति अत्याधिक विशिष्ट होता है, इस विशिष्टता को परिशुद्धता कहते हैं । प्रोब (Probe) आंशिक रूप से शुद्ध mRNA रसायनत: संश्लेषित ऑलिगोन्यूक्लियोटाइड अथवा संबंधित जीन हो सकता है, जो सदृश रीकॉम्बिनेंट DNA की पहचान करता है । DNA प्रोब (Probe) का वाणिज्यिक महत्व होता है । ये विशिष्ट DNA क्रमों (जीन्स) की पहचान करते है एवं रोगों जाँचों, सूक्ष्मजैविक जाँचों, व अनुसंधान में प्रयोग किये जाते है ।

डी.एन.ए. प्रोब का निर्माण (Preparation of DNA Probe):

प्रोब (Probe) के निम्न विधियों से बनाया जा सकता है:

(1) DNA खण्डों को M13 फेज (Phage) वेक्टरों (Vectors) में क्लोन (Clone) करने पर एक स्ट्रैण्ड वाला DNA का प्रोब प्राप्त होता है ।

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(2) उच्च शुद्धता के m-RNA को प्रोब के रूप में प्रयोग कर सकते हैं ।

(3) पॉलीमरेस श्रृंखला अभिक्रिया (Polymerase Chain Reaction, PCR) के उपयोग से DNA खण्ड की एक स्ट्रैण्ड (Strand) वाली प्रतियाँ प्राप्त कर सकते है । इन्हें प्रोब की तरह प्रयोग में लाया जा सकता है ।

(4) किसी जीव के जीनोम (Genome) के DNA खण्डों या c-DNA अणुओं को ई. कोली (E. Coli) में क्लोन (Clone) करके, इसका प्रोब के रूप में प्रयोग करते हैं । ऐसे प्रोब (Probe) दो स्ट्रैण्ड (Strand) वाले होंगे, अत: इन्हें संकरण (Hybridization) के पहले डीनेचर (Denature) करना पड़ता है ।

(5) किसी DNA खण्ड को विशेष वेक्टरों (Vectors), जैसे- pGEM, में क्लोन करके एक स्ट्रैण्ड (Strand) वाला RNA प्रोब प्राप्त कर सकते हैं ।

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(6) DNA प्रोबों (Probes) का रासायनिक संश्लेषण भी करते हैं । इस प्रकार एक स्ट्रैण्ड वाले प्रोब का निर्माण होता है । यदि जीन (Gene) का क्षारक क्रम या उसके द्वारा उत्पादित RNA का क्षारक कम ज्ञात हो तो यह काफी सरलता से किया जा सकता है, लेकिन यदि जीन (Gene) द्वारा कोडित प्रोटीन के एक खण्ड का अमीनो अम्ल क्रम ज्ञात हो, तो इसके आधार पर जीन (Gene) के सम्बन्धित खण्ड का क्षारक क्रम ज्ञात कर सकते हैं ।

किन्तु आनुवंशिक कोड (Genetic Code) की डीजेनेरेसी के कारण एक ही अमीनो अम्ल क्रम कोडित करने वाले एक से अधिक क्षारक क्रम हो सकते हैं । ऐसी दशा में इन सभी क्षारक क्रमों वाले प्रोबों के मिश्रण का उपयोग किया जाता है ।

डी.एन.ए. प्रोबों की लेबलिंग (Labelling of DNA Probe):

प्रोबों (Probes) से संकरण के बाद DNA खण्डों को ढूँढना भूसे के ढेर से सुई ढूँढने के समान है, जब तक कि उसे कोई पहचान चिन्ह न दे दिया जाये ।

अत: प्रोबों (Probes) का सफलतापूर्वक उपयोग सुनिश्चित करने के लिए निम्न विधियाँ प्रयोग में लायी जाती है:

(1) प्रोबों (Probes) को रेडियोधर्मी अणुओं से चिन्हित किया जाता है ।

(2) किन्हीं विशेष प्रकार के सिगनल अणुओं (Signal Molecules), जैसे- फ्लोरिसेन्ट एन्टीबॉडी (Florescent Antibody) तथा एन्जाइम को प्रोबों (Probes) से जोड़ दिया जाता है । ये अणु खास प्रकार के उत्प्रेरक के साथ सपना एक रंग (Colour) देते हैं ।

1. रेडियोधर्मी लेबलिंग (Radioactive Labelling):

साधारणतया रेडियोएक्टिव चिन्हित प्रोबों (Probes) का उपयोग कई प्रकार के प्रयोगों में होता है । मुख्यतः 32P अणु का प्रयोग रेडियोएक्टिव प्रोबों में करते हैं । अन्य आइसोटोप हैं- 3H, 35S तथा 125I ।

रेडियोधर्मी चिन्हन की निम्न विधियाँ हैं:

(i) निक स्थानान्तरण (Nick Translation),

(ii) छोर चिन्हन (End Labelling),

(iii) प्राइमर विस्तार (Primer Extension),

(iv) प्रत्यक्ष चिन्हन (Direct Labelling),

(v) RNA पॉलीमरेस आधारित विधियाँ (Methods Based on m-RNA Polymerase) ।

निक स्थानान्तरण (Nick Translation):

यह DNA चिन्हन (Labelling) की सबसे पुरानी और अब तक की सर्वाधिक उपयोग की जाने वाली विधि है । इसके द्वारा काफी बड़ी मात्रा में प्रोबों (Probes) का निर्माण किया जा सकता है ।

इसमें, जिस DNA को चिन्हित करना है, को बहुत कम समय के लिए DNase I से उपचारित करके तैयार करते हैं । इससे इन DNA अणुओं के एक स्ट्रैण्ड में रैण्डम साइट (Random Site) पर निक (Nick) उत्पन्न होते हैं ।

इन निक (Nick) युक्त DNA अणुओं को ई. कोली (E. Coli) के DNA पॉलीपरेस एन्जाइम (DNA Polymerase Enzyme) द्वारा DNA संश्लेषण (DNA Synthesis) के लिए टेम्पलेट के रूप में उपयोग करते है ।

यह एन्जाइम निक (Nick) पर स्थित 3′-OH समूह से नये न्यूक्लियोटाइड (Nucleotide) जोड़ता जाता है और निक (Nick) के 5′- सिरे से न्यूक्लियोटाइड निकालता जाता है । इस संश्लेषण (Synthesis) के लिए उपयोग किये जाने वाले न्यूक्लियोटाइडों में से कम-से-कम एक 32P द्वारा रेडियों चिन्हित होता है ।

32P- चिन्हित न्यूक्लियोटाइड नए संश्लेषित खण्ड में उपस्थित होता है । इस विधि में DNA अणु में निक स्थल DNA संश्लेषण के साथ बदलता (स्थानान्तरित होता) जाता है, अत: इसे निक स्थानान्तरण (Nick Translation) कहते हैं ।

छोर चिन्हन में सर्वप्रथम DNA खण्ड के दोनों स्ट्रैण्डों के 5′ छोर पर (पॉलीन्यूक्लियोटाइड काइनेस) Polynucleotide Kinase एन्जाइम (Enzyme) द्वारा अथवा 3′ छोर पर (डीऑक्सीन्यूक्लियोटाइडिल ट्रांसफरेस) Deoxynucleotidyl Transferase एन्जाइम (Enzyme) द्वारा 32P-ATP (32P-डीऑक्सीएडिनोसीन ट्राइफॉस्फेट (Deoxyadenosine Tri-Phosphate) जोड़ते हैं, इससे ये छोर रेडियोचिन्हित (Radiolabelled) हो जाते है ।

अब इस DNA खण्ड (Segment) को या तो (1) एक ऐसे प्रतिबन्ध एण्डोन्यूक्लिएस (Restriction Endonuclease) द्वारा काटते हैं जो इसे केवल दो और असमान लम्बाई के खण्डों (Segment) में कटता है ।

ये दोनों खण्ड जेल इलेक्ट्रोफोरेसिस (Gel Electrophoresis) द्वारा अलग कर लिये जाते हैं अथवा डिनेचर (Denature) करके इसके दोनों कॉप्लीमेण्ट्री स्ट्रैण्डों को इलेक्ट्रोफोरेसिस (Electrophoresis) द्वारा अलग कर लेते हैं ।

दोनों ही विधियों (Methods) से प्राप्त DNA खण्डों (एक स्ट्रैण्ड या दो स्ट्रैण्ड) के केवल एक 5’ या 3’ छोर का रेडियो-चिन्हन (Radio-Labelling) हुआ रहता है । प्रत्यक्ष चिन्हन में प्रोब के संश्लेषण (Synthesis) के दौरान एक 32 P चिन्हित (Labelled) न्यूक्लियोटाइड का उपयोग करते हैं जिससे यह न्यूक्लियोटाइड (Nucleotide) प्रोब कई संरचना में शामिल हो जाता है ।

रेडियोधर्मिता की निम्न समस्याएँ भी हैं:

उपयोग में खतरा, आइसोटोपों की कम अर्द्ध-आयु (Short Half-Life) आदि के कारण इनका शीघ्र उपयोग आवश्यकता होता है, अत: ये लम्बे समय तक स्टोर नहीं किये जा सकते हैं । इनके निस्तारण (Disposal) की समस्या भी होती है ।

2. अरेडियोधर्मी लेबलिंग (Non-Radioactive Labelling):

बायोटिन (Biotin), डिजॉक्लिजेनिन, प्रतिदीप्तिशील अणु (Biotin, Digoxigenin, Fluorescent Molecules) आदि से भी प्रोबों की लेबलिंग (Labelling) की जाती है । बायोटिन (Biotin) से चिन्हन (Labelling) के लिए प्रोब (Probe) का उत्पादन निक स्थानान्तरण (Nick Translation) द्वारा करते है, जिसमें बायोटिन-संयुग्मित (Biotin-Conjugated) न्यूक्लियोटाइडों का उपयोग किया जाता है ।

बायोटिन (Vitamin, H) युक्त प्रोब (Probe) से न्यूक्लिक अम्ल का संकरण (Hybridization) करने के बाद, मुक्त प्रोबों (Free Probes) को धोकर निकाल देते हैं । इसके बाद कई जैव-रासायनिक (Bio-Chemical) अभिक्रियाओं (Reactions) द्वारा बायोटिन युक्त प्रोब नीला रंग उत्पादित करता है ।

ये अभिक्रियाएँ मूल रूप से बायोटिन (Biotin) की एविडिन (Avidin, अण्डे में उपस्थित एक प्रोटीन) के लिए उच्च बन्धुता (High Affinity) पर आधारित है । अत: बायोटिन चिन्हन से उन बैण्डों या डॉटों (Dots) आदि में गाढ़ा नीला रंग बनता है, जिनसे कि प्रोब का संकरण (Hybridization) हुआ रहता है ।

रंग की तीव्रता बायोटिन अणुओं में संख्या का निर्भर होती है, अत: प्रोबों में अक्सर बायोटिन संयुग्मित (Biotin Conjugated) न्यूक्लियोटाइडों वाली लम्बी पूंछ (Tail) जोड़ दी जाती है ।

बायोटिन चिन्हन (Biotin Labelling) से संकरण (Hybridization) के परिणाम (Result) काफी शीघ्रता से प्राप्त होते हैं । लेकिन इस प्रक्रिया में नीला रंग एक अघुलनशील अवक्षेप (Precipitate) के कारण उत्पन्न होता है । अत: नायलॉन (Nylon) आदि झिल्लियों का दुबारा उपयोग सम्भव नहीं होता ।

इसके साथ ही एक प्रोब के साथ संकरण करने के बाद फिल्टर से इम्मोबिलाइज्ड (Immobilized) न्यूक्लिक अम्लों का किसी अन्य प्रोब के साथ संकरण करने के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता । लेकिन रेडियोधर्मी प्रोबों (Radioactive Probes) का उपयोग करने पर उपरोक्त दोनों ही समस्याएं नहीं आती है ।

इनके अतिरिक्त अरोडियोधर्मी लेबलिंग विधियों (Methods) का विस्तारण हो रहा है । नये-नये अणुओं को पहचान चिन्ह के रूप में जोड़ने के लिए विभिन्न विधियाँ (Methods) विकसित की जा रही है । नये अणुओं में हेप्टेन डिटरमिनेन्ट्स (Hapten Determinants) 2-4, डाइनाइट्रोफीनॉल (2-4 Dinitrophenol) आदि हैं ।

रिकॉम्बिनेंट DNA कार्य के सुरक्षा उपाय एवं नियमन:

संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान ने U.S. खोजबीनकर्ताओं के लिए कुछ दिशा-निर्देश घोषित किये है । प्रयोगशालाओं के चार स्तरों (P1 से P4) सावधानियों के बढ़ते स्तर अनुमोदित किये गये थे । इस प्रकार प्राइमेट ऊतक व जंतु विषाणुओं के DNA संबंधी क्रियाकलाप अल्ट्रा-सेक्योर P4 प्रयोगशालाओं में ही किये जा सकते है ।

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