स्वतन्त्रता दिवस पर निबंध! Here is an essay on ‘Independence Day ‘in Hindi language.

“स्वतन्त्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे ।” यह घोषणा भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अमर नायक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने की थी । सचमुच स्वतन्त्रता के बिना जीवन व्यर्थ है । पराधीन मनुष्य न तो सुखी रह पाता है और न ही अपनी इच्छाओं के अनुकूल जीवन व्यतीत कर पाता है ।

इसलिए कहा गया है- “पराधीन सपनेहुँ सुख नाहिं ।” प्रत्येक व्यक्ति के लिए स्वतन्त्रता का विशेष महत्व होता है और यदि सदियों की परतन्त्रता के बाद स्वतन्त्रता हासिल हुई हो, तो ऐसी स्वतन्त्रता का महत्व और बढ़ जाता है ।

हमारा देश भारत, सदियों की परतन्त्रता के बाद 15 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्र हुआ था । इसी के उपलक्ष्य में इस दिन को हम हर वर्ष ‘स्वतन्त्रता दिवस’ के रूप में मनाते हैं । यह हमारा राष्ट्रीय त्योहार है ।

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भारत का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है । इस लम्बे इतिहास में इसे कई विदेशी आक्रमणों का सामना करना पड़ा । अधिकतर विदेशी आक्रमणकारी यहाँ रहने के दौरान भारतीय सभ्यता-संस्कृति में इस तरह घुल-मिल गए, मानो वे यहीं के मूल निवासी हो ।

शक, हूण इत्यादि ऐसे ही विदेशी आक्रमणकारी थे । विदेशी आक्रमणकारियों के आगमन एवं यहाँ की सभ्यता-सुकृति में धुल-मिल जाने का सिलसिला मध्यकालीन मुगलों के शासन तक चलता रहा । अठारहवीं सदी में जब अंग्रेजों ने भारत के कुछ हिस्सों पर अधिकार जमाया, तो पहली बार यहाँ के लोगों को गुलामी का अहसास हुआ ।

अब तक सभी विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत को अपना देश स्वीकार कर यहाँ शासन किया था, किन्तु अंग्रेजों ने भारत पर अधिकार करने के बाद अपने देश इंग्लैण्ड को धन-धान्य से सम्पन्न करने के लिए इसका पूरा-पूरा शोषण करना शुरू किया ।

उन्नीसवीं शताब्दी में जब अंग्रेजों ने मुगलों का शासन समाप्त कर थे भारत पर अपना अधिकार कर लिया, तो उनके शोषण एवं अत्याचारों में भी वृद्धि होने लगी, फलस्वरूप भारतीय जनमानस दासता की बेड़ियों में जकड़ता गया ।

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भारतमाता गुलामी की जंजीरों में कराहने लगी । तब ”जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” में विश्वास करने वाले स्वतन्त्रता के दीवानों ने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी के संघर्ष का बिगुल फूँक दिया ।

आजादी का यह संघर्ष उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में प्रारम्भ हुआ था । इस संघर्ष में भारतमाता के असंख्य वीर पुत्र शहीद हुए, अनगिनत निर्दोष भारतीय अंग्रेजों के जुल्म के शिकार हुए ।

मातृभूमि की स्वतन्त्रता के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले बहुत से वीरों को जेल की सलाखों के पीछे नारकीय जीवन व्यतीत करना पड़ा । अधिकतर को काला-पानी की सजा दी गई । आजादी का यह संघर्ष वर्ष 1947 तक चला ।

आजादी के इस संघर्ष के अनगिनत नायकों में मंगल पाण्डे, लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, कुँवर सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, सुभाषचन्द्र बोस, चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह, खुदीराम बोस, महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, जयप्रकाश नारायण, अबुल कलाम आजाद इत्यादि का विशेष योगदान था ।

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सदियों की परतन्त्रता के बाद 15 अगस्त, 1947 को जब भारत स्वतन्त्र हुआ, तो भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने उस दिन लालकिले के प्राचीर पर तिरंगा फहराया था, तब से हर वर्ष लालकिले पर इस दिन प्रधानमन्त्री द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है ।

झण्डे को इक्कीस तोपों की सलामी दी जाती है एवं रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं । प्रधानमन्त्री झण्डा फहराने के बाद देश के नागरिकों को सम्बोधित करते हुए भाषण भी देते हैं ।

इसके बाद सभी नागरिक देश के लिए कुर्बान हुए शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपने प्राणों की बाजी लगाकर देश की स्वतन्त्रता की रक्षा करने का वचन देते है । इस राष्ट्रीय पर्व पर रामप्रसाद बिस्मिल की कही ये पंक्तियाँ पूर्णतः सत्यापित होती दिखती हैं-

“शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,

वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा ।”

स्वतन्त्रता दिवस हमारा राष्ट्रीय त्योहार है, इसलिए इस दिन राष्ट्रीय अवकाश होता है । स्कूल, कॉलेजों एवं सरकारी कार्यालयों के अतिरिक्त निजी कार्यालयों में भी ध्वजारोहण समेत अन्य रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं । इस दिन पूरा राष्ट्र हर्ष, उल्लास, जोश एवं उत्साह से भरा होता है ।

लोग एक-दूसरे को बधाई देते हैं । स्कूल-कॉलेजों में विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाता है । विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों के समापन के बाद मिठाई एवं पुरस्कारों का वितरण किया जाता है ।

15 अगस्त, 1947 को लालकिले पर झण्डा फहराते हुए प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था- ”रात बारह बजे जब आधी दुनिया सो रही है, भारत जीवन और स्वतन्त्रता पाने के लिए जाग रहा है । यह एक ऐसा क्षण है, जो दुर्लभ है, जब हम पुराने युग से नए युग की ओर कदम बढ़ा रहे हैं… भारत पुन:…. अपनी पहचान बनाएगा ।”

आजादी के बाद भारत की प्रगति को देखकर यह कहा जा सकता है कि नेहरू जी का यह कथन आज सार्थक हो रहा है आज भारत दुनियाभर में राजनीतिक ही नहीं आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है ।

भारतीय युवा अपनी प्रतिभा एवं क्षमता का लोहा पूरी दुनिया में मनवा रहे हैं । गाँवों का तेजी से विकास हो रहा है । महिलाएँ भी पुरुषों के साथ हर क्षेत्र में कन्धे-से-कन्धा मिलाकर चल रही हैं ।

आजादी प्राप्त करने के बाद 26 जनवरी, 1950 को भारतीय संविधान के लागू होने के साथ ही हमारा देश गणतन्त्र हुआ । भारतीय प्रजातन्त्र में लिंग, जाति, धर्म इत्यादि किसी भी आधार पर नागरिकों में विभेद नहीं किया जाता ।

धर्मनिरपेक्षता भारतीय गणतन्त्र की एक प्रमुख विशेषता है । पिछले कुछ वर्षों में साम्प्रदायिकता की स्वार्थपूर्ण एवं कुटिल राजनीति के कारण भारत की धर्मनिरपेक्षता की भावनाओं को काफी ठेस पहुँची है । इसके अतिरिक्त, कुछ विघटनकारी शक्तियों ने भी देश के भीतर अपनी जड़ें स्थापित कर ली हैं ।

हमें हर हाल में साम्प्रदायिक ताकतों एवं देश की विघटनकारी शक्तियों का विरोध कर अपनी राष्ट्रीय एकता की रक्षा करनी है । स्वतन्त्रता दिवस हमें देश के लिए शहीद हुए लोगों की याद दिलाता है । यह हमें किसी भी कीमत पर स्वतन्त्रता की रक्षा करने की प्रेरणा देता है ।

अंग्रेजों ने जब भारतवर्ष के अन्तिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार किया था, तब आत्मसम्मान से भरे स्वर में जफर ने कहा था- “हिन्दियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की, तख्त लन्दन पर चलेगी तेग हिन्दुस्तान की ।”

और समय आने पर ईश्वर और धर्म पर विश्वास रखने वाले सच्चे हिन्दुस्तानियों ने अपने बाहुबल की बदौलत अंग्रेजों से सत्ता छीनकर उनकी बातों को सच साबित कर दिया ।

जो राष्ट्र संगठित होता है, उसे न कोई तोड़ सकता है और न ही कोई उसका कुछ बिगाड़ सकता है । वह अपनी एकता एवं सामूहिक प्रयास के कारण सदा प्रगति के पथ पर अग्रसर रहता है ।

कई बार हमारे दुश्मन देश या पैसे के लिए सब कुछ बेच देने वाले कुछ स्वार्थी, अराजकता एवं आतंकी कार्यों द्वारा हमारी एकता को भंग करने का असफल प्रयास करते हैं । अत: भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है कि इसकी एकता और अखण्डता बनाए रखने के लिए हर बलिदान और त्याग करने को प्रस्तुत रहे ।

हम अपनी चौकन्नी दृष्टि से ऐसे तत्त्वों को पनपने से रोक सकते हैं । देश के बुद्धिजीवियों और प्रबुद्ध नागरिकों का कर्त्तव्य है कि वे देश की जनता को इस दिशा में जागरूक कर समूचे राष्ट्र की एकता कायम रखने में अपना आवश्यक योगदान दें ।

चूंकि राष्ट्रीय एकता ही सशक्त और समृद्ध राष्ट्र की आधारशिला होती है, इसलिए देश की एकता और अखण्डता की रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है । स्वतन्त्रता दिवस प्रत्येक वर्ष हमें इसी की प्रेरणा देता है ।

इतिहास साक्षी है कि अनेक धर्मों, अनेक जातियों और अनेक भाषाओं वाला यह देश अनेक विसंगतियों के बावजूद सदा एकता के एक सूत्र में बँधा रहा है । यहाँ अनेक जातियों का आगमन हुआ और बे धीरे-धीरे इसकी मूल धारा में विलीन हो गई ।

उनकी परम्पराएँ, विचारधाराएँ और संस्कृति इस देश के साथ एकरूप हो गईं । भारत की यह विशेषता आज भी ज्यों-की-त्यों बनी हुई है । भारत के नागरिक होने के नाते हमारा कर्त्तव्य है कि हम इस भावना को नष्ट न होने दें वरन् इसको और अधिक पुष्ट बनाएँ ।

इस कार्य में स्वतन्त्रता दिवस की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है, इसके रूप में हम अपनी राष्ट्रीय एकता का जश्न मनाते हैं । यह हमारी राष्ट्रीय एकता का प्रतीक पर्व बन गया है ।

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