शिक्षक दिवस पर निबंध! Here is an essay on ‘Teacher’s Day’ in Hindi language.

”शिक्षक वह नहीं जो विद्यार्थी के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूँसे, बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है, जो उसे आने बाले कल को चुनौतियों के लिए तैयार करे ।” यह बात भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कही है ।

हमारे देश में प्रत्येक वर्ष 5 सितम्बर ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है । यह दिवस विद्यार्थियों और शिक्षकों, दोनों के लिए खास होता है । 1888 ई. में इसी तिथि (5 सितम्बर) को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था ।

डॉ. राधाकृष्णन भारत के दूसरे राष्ट्रपति थे और राष्ट्रपति पद को सुशोभित करने से पहले कई वर्षों तक उन्होंने शिक्षण कार्य किया था, इसलिए उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है । ‘अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस’ 5 अक्टूबर को मनाया जाता है और इसकी शुरूआत वर्ष 1994 में यूनेस्को ने की थी ।

ADVERTISEMENTS:

5 सितम्बर, 1888 को मद्रास शहर (अब चेन्नई) से लगभग 50 किमी दूरी पर स्थित तमिलनाडु राज्य के तिरूतनी नामक गाँव में जन्मे एस राधाकृष्णन ने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मिशन स्कूल, तिरुपति तथा बेलौर कॉलेज, बंगलुरु में प्राप्त की थी ।

इसके बाद मद्रास के क्रिश्चियन कॉलेज में प्रवेश लेकर उन्होंने बही से बी.ए. तथा एम.ए. की उपाधि प्राप्त की । राधाकृष्णन कुशाग्र बुद्धि के थे । वे विषयों को बड़ी तेजी से समझ लेते थे ।

उनकी इच्छा एक अध्यापक बनने की थी और उनकी यह इच्छा पूरी हुई, जब वे वर्ष 1909 में मद्रास के एक कॉलेज में दर्शनशास्त्र के अध्यापक नियुक्त हुए । बाद में उन्होंने मैसूर एवं कलकत्ता विश्वविद्यालयों में भी दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया ।

इसके बाद कुछ समय तक वे आन्ध्र विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे । इसके अतिरिक्त, काशी विश्वविद्यालय में भी उन्होंने कुलपति के पद को सुशोभित किया । कुछ समय तक वे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भी दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर रहे ।

ADVERTISEMENTS:

वे वर्ष 1948-49 में यूनेस्को के एक्जीक्यूटिव बोर्ड के अध्यक्ष रहे । वर्ष 1952-62 की अवधि में वे भारत के उपराष्ट्रपति रहे । बाद में वे वर्ष 1962 में राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हुए ।

उन्होंने ‘द फिलॉसफी ऑफ द उपनिषद्‌स’, ‘भगवद्‌गीता’, ‘ईस्ट एण्ड वेस्ट सम रिफ्लेक्शंस’, ‘ईस्टर्न रिलीजन एण्ड वेस्टर्न थॉट’, ‘इण्डियन फिलॉसफी’, ‘ऐन आइडियालिस्ट व्यू ऑफ लाइफ’, ‘हिन्दू व्यू ऑफ लाइफ’ आदि पुस्तकों की रचना भी की ।

शिक्षा एवं साहित्य के प्रति गहरी रुचि एवं उल्लेखनीय योगदान के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1954 में उन्हें भारत के सर्वोच्च अलंकरण ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया ।

शिक्षक दिवस देश के सभी विद्यालय-महाविद्यालयों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । इस दिन शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थी ही शिक्षक की भूमिका निभाते नजर आते हैं ।

ADVERTISEMENTS:

विभिन्न कक्षाओं से अलग-अलग विद्यार्थियों का चयन ‘शिक्षक’ के रूप में किया जाता है एवं उन्हें अपनी कक्षा से छोटी कक्षा को शिक्षक के रूप में पढ़ाने के लिए भेज दिया जाता है ।

शिक्षक बना विद्यार्थी खुद को इस रूप में पाकर रोमांचित और गौरवान्वित महसूस करता है । कक्षा में जाकर छात्रों को पढ़ाते समय उसे एक जिम्मेदारी का अहसास होता है ।

कई बार विद्यार्थी एक शिक्षक के कार्य को लेकर तरह-तरह की बातें बना बैठते हैं । उस समय विद्यार्थी बने शिक्षक को यह अहसास होता है कि वास्तव में एक शिक्षक का कार्य जिम्मेदारी एवं चुनौतियों से भरा होता है ।

कक्षा में विद्यार्थियों को पढ़ाना, उन्हें सम्बोधित करना कोई सरल कार्य नहीं होता, यह शिक्षक बना विद्यार्थी भली-भांति समझने लगता है और इससे उसकी शिक्षण एवं शिक्षक के प्रति आस्था मजबूत होती है । शिक्षक दिवस ऐसे छात्रों के लिए ‘प्रायोगिक दिवस’ के समान होता है, जो अपना भविष्य एक शिक्षक के रूप में सँवारना चाहते हैं ।

वे एक दिन के लिए शिक्षक बनकर जहाँ स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं, वहीं इस बात का प्रण भी लेते हैं कि यदि उन्हें शिक्षक बनने का अवसर मिला, तो वे अपने पद की गरिमा बनाते हुए ईमानदारीपूर्वक अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह करेंगे ।

बहरहाल, शिक्षा के निजीकरण के बाद से शिक्षा एक व्यवसाय का रूप लेती जा रही है इसलिए शिक्षकों के व्यवहार में भी परिवर्तन देखने को मिला है, यही कारण है कि शिक्षकों के सम्मान में पिछले कुछ वर्षों में कमी आई है ।

शिक्षकों के सम्मान में आई इस कमी के लिए छात्र ही नहीं शिक्षक भी समान रूप से दोषी है । शिक्षक दिवस मनाने का उद्देश्य न केवल विद्यार्थियों को शिक्षकों का महत्व बताते हुए उन्हें सम्मान देने के लिए प्रेरित करना होता है, बल्कि शिक्षकों को भी उनकी भूमिका एवं उत्तरदायित्व का आभास करवाना होता है ।

विश्व के महान् वैज्ञानिक ‘अल्बर्ट आइंस्टाइन’ ने कहा हैं- “विद्यार्थियों में सृजनात्मक भाव और ज्ञान का आनन्द जगाना ही एक शिक्षक का सबसे महत्त्वपूर्ण गुण है ।”

यद्यपि शिक्षक का मुख्य कार्य अध्यापन करना होता है, किन्तु अध्यापन के उद्देश्यों की पूर्ति तब ही हो सकती है जब यह इसके अतिरिक्त, विद्यालय अथवा महाविद्यालय की अनुशासन व्यवस्था में सहयोग कर, शिष्टाचार का पालन करें, अपने सहकर्मियों के साथ सकारात्मक व्यवहार करें एवं पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाकलापों में भी अपने साथी शिक्षकों एवं शिक्षार्थियों का सहयोग करें ।

शिक्षकों को धार्मिक कट्टरता, प्राइवेट ट्‌यूशन, नशाखोरी इत्यादि से बचना चाहिए । एक आदर्श शिक्षक सही समय पर विद्यालय आता है, शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए शिक्षण सहायक सामग्रियों का भरपूर प्रयोग करता है, छात्रों से मधुर सम्बन्ध रखता है, उन्हें प्रोत्साहित करता है तथा अपने साथियों से भी मित्रतापूर्ण सम्बन्ध रखता है ।

इस प्रकार आशावादी दृष्टिकोण, प्रशासनिक योग्यता, जनतान्त्रिक व्यवहार, मनोविज्ञान का ज्ञान, समाज की आवश्यकताओं का ज्ञान, विनोदी स्वभाव, दूरदर्शिता, मिलनसार प्रवृत्ति, अपने कार्य के प्रति आस्था, प्रभावशाली व्यक्तित्व इत्यादि एक आदर्श शिक्षक के गुण हैं ।

आवश्यकता पड़ने पर शिक्षकों को शिक्षार्थियों के मित्र, परामर्शदाता, निर्देशक एवं नेतृत्वकर्ता की भूमिका भी अदा करनी पड़ती है । ‘कबीर’ ने इस दोहे में शिक्षक एवं विद्यार्थी दोनों के आदर्श रूप को बड़े ही सहज ढंग से प्रस्तुत किया है-

“गुरु तो ऐसा चाहिए सिख से कछु नहिं लेय ।

सिख तो ऐसा चाहिए गुरु को सब कुछ देय ।।”

सचमुच, शिक्षक दिवस का आयोजन तभी सार्थक और सफल हो सकेगा, जब शिक्षकों को अपने दायित्व का भान हो और विद्यार्थी एवं अभिभावक उन्हें महत्व एवं सम्मान दें ।

शिक्षक दिवस शिक्षकों और विद्यार्थियों के संकल्प लेने का दिन है कि वे अपने कर्त्तव्य का निर्वाह पूरी ईमानदारी के साथ करेंगे और अपने देश को उन्नति के पथ पर ले जाने में सहयोग देंगे । डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन से सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए ।

Home››Essay››