भारत की विरसता पर निबंध! Here is an essay on ‘India’s Heritage’ in Hindi language.

शैशव-दशा में देश प्राय जिस समय सब व्याप्त थे,

नि:शेष विषयों में तभी हम प्रौढ़ता को प्राप्त थे ।

संसार को पहले हमीं ने ज्ञान-शिक्षा दान की,

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आचार की, व्यापार की, व्यवहार की, विज्ञान की ।।

यदि विश्व की समग्र प्राचीन सभ्यता-संस्कृतियों का तुलनात्मक विश्लेषण किया जाए, तो निश्चय होकर यह कहा जा सकता है कि कवि मैथिलीशरण गुप्त रचित इन पंक्तियों में कहीं कोई अतिशयोक्ति नहीं है ।

सर वाल्टर रेले ने भी विश्व के इतिहास में लिखा है- “जल-प्रलय के उपरान्त सर्वप्रथम भारतवर्ष में ही लता-वृक्ष आदि की उत्पत्ति हुई और मानवों की बस्ती कायम हुई ।” किसी भी देश की अपनी सभ्यता-संस्कृति होती है, जो उसे विरासत में मिली होती है ।

यह सभ्यता संस्कृति उस देश को दूसरे देशों से अलग बनाती है । विरासत में मिली इस सभ्यता-संस्कृति के अन्तर्गत भाषा, रहन-सहन, जीवन-दर्शन, साहित्य, ललित कला, स्थापत्य कला, परम्परा इत्यादि सम्मिलित होते हैं ।

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भारत को भी कला एवं संस्कृति, भाषा, जीवन-दर्शन, साहित्य, ललित कला, स्थापत्य कला, परम्परा रहन-सहन इत्यादि विरासत में मिले हैं । इन सभी भारतीय विरासतों की विश्व में एक विशिष्ट पहचान है ।

भारत की इन्हीं विशेषताओं से आकर्षित होकर हर वर्ष लाखों विदेशी सैलानी यहाँ भ्रमण के लिए आते हैं । भारत की ऐतिहासिक धरोहर, विविधता में एकता, धार्मिक सहिष्णुता, भारतीय दर्शन एवं आध्यात्म इत्यादि भारत की ऐसी विरासत हैं, जिन पर प्रत्येक भारतवासी को गर्व होता है ।

तभी तो ह्वेनसांग ने हमारे देश का गुणगान करते हुए लिखा है- ”धन्य है वह भारत जहाँ न्यायालय है पर कोई अपराधी नहीं, कारागार है पर कोई कैदी नहीं, घरों में सम्पूर्ण समृद्धि है पर ताले नहीं ।”

भारतीय सभ्यता का इतिहास पाँच हजार वर्ष से भी पुराना है । इस दौरान कई विदेशी आक्रमणकारी यहाँ आए और इसकी सभ्यता-संस्कृति में घुल-मिल गए । वैदिक सभ्यता को छोड़कर शेष सभी या तो नष्ट हो गए या फिर उनका अस्तित्व न के बराबर है ।

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प्राचीनकाल में भी भारत के लोग धार्मिक रूप से सहिष्णु थे । इसका प्रभाव इसके समाज पर पड़ा । आज भारत में हिन्दू, मुस्लिम, बौद्ध, जैन, सिख, ईसाई इत्यादि विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं, किन्तु संवैधानिक रूप से भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है ।

भारत में हर वर्ष इतने त्योहार मनाए जाते हैं कि यदि इसे त्योहारों का देश कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा । स्वतन्त्रता दिवस, गणतन्त्र दिवस एवं गाँधी जयन्ती हमारे राष्ट्रीय त्योहार हैं ।

इसके अतिरिक्त होली ईद, दीपावली, पोंगल, ओणम, गणेश-चतुर्थी, दुर्गापूजा, गुडफ़्राइडे, क्रिसमस जैसे त्योहार भारत के प्रमुख त्योहार हैं । भारत को अनेक ऐतिहासिक स्थल विरासत में मिले है ।

नालन्दा, राजगीर, बोधगया, वैशाली, कुरुक्षेत्र, मथुरा, वाराणसी, प्रयाग (इलाहाबाद), हरिद्वार, दिल्ली, सारनाथ, अयोध्या, खजुराहो, साँची, कोलकाता, ओडिशा इत्यादि स्थानों का धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व है । दक्षिण भारत के मन्दिर भारतीय विरासत के गौरव हैं ।

इन्हें देखने के लिए हर वर्ष लाखों विदेशी पर्यटक भारत आते हैं । भारतीय ललित कला एवं स्थापत्य कला की विश्व में एक अलग पहचान है । उत्तर भारत के शहरों में मुगलकालीन स्थापत्य एवं शिल्प कला लोगों का ध्यान आकृष्ट करते हैं ।

आगरा स्थित ताजमहल भारत का गौरव है । इस विश्व के सात आश्चर्यों में शामिल किया गया है । नालन्दा प्राचीनकाल में विश्वभर में शिक्षा के प्रमुख केन्द्र के रूप में जाना जाता था ।

मध्यकाल में इस विश्वविद्यालय को बख्तियार खिलजी ने तहस-नहस कर दिया, किन्तु सरकार इसके पुनरुद्धार की योजनाओं पर कार्य कर रही है । महाराष्ट्र की अजन्ता एवं एलोरा की गुफाओं को देखने से भारत की प्राचीन चित्रकला एवं स्थापत्य कला का परिचय मिलता है ।

भारतीय मूर्तिकला के उत्कृष्ट उदाहरण हमें खजुराहो एवं ओडिशा के पुरी तथा भुवनेश्वर के मन्दिरों में मिलते हैं । भारतीय संगीत की भी दुनिया में एक अलग पहचान है । इसमें विभिन्न प्रकार की गायन शैलियाँ हैं ।

ध्रुपद, धमार ख्याल, तराना, ठुमरी, टप्पा, गजल, होरी, भजन, गीत, लोकगीत इत्यादि भारतीय संगीत की विभिन्न शैलियाँ हैं । नृत्य एवं गायन में प्राचीनकाल से ही यहाँ विभिन्न प्रकार के वाद्ययन्त्रों का प्रयोग होता रहा है, जिनमें से सरोद, सितार, वीणा, शहनाई, बाँसुरी, मृदंग इत्यादि भारत के प्राचीन वाद्ययन्त्र हैं ।

इनका प्रयोग वर्तमान समय में भी व्यापक रूप से होता है । भारत के लोग प्राचीनकाल से ही अपने जीवन में नृत्य को विशेष महत्व देते आए हैं । विभिन्न प्रकार के लोकनृत्य देश के हर क्षेत्र में देखने को मिलते हैं ।

इन लोकनृत्यों में विदेशिया, नौटंकी, कजरी, घूमर, गरबा, लावनी, यक्षगान गिद्दा, भाँगड़ा इत्यादि अत्यन्त लोकप्रिय हैं । भरतनाट्यम्, ओडिसी, कथकली, कुचिपुड़ी, कत्थक, मणिपुरी, मोहिनीअट्टम इत्यादि भारत के प्रमुख शास्त्रीय नृत्य हैं ।

भारतीय विरासत की बात हो और आयुर्वेद एवं योग की चर्चा न हो, भला ऐसा कैसे हो सकता है । भारत आयुर्वेद एवं योग का विश्व-गुरु है । स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से योग आज के वैज्ञानिक युग में अत्यन्त सार्थक एवं मानवोपयोगी साबित हो रहा है । इसलिए दिन-प्रतिदिन इसकी लोकप्रियता में वृद्धि हो रही है ।

भारत में कई भाषा-भाषी लोग रहते हैं । इस समय भारत में 22 भाषाओं को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई है । ये 22 भाषाएँ हैं- हिन्दी, पंजाबी, बांग्ला, कन्नड़, गुजराती, मलयालम, उड़िया, संस्कृत, मेला, तमिल, सिन्धी, मणिपुरी, कश्मीरी, मराठी, उर्दू, नेपाली, कोंकणी, भोजपुरी, मैथिली, सन्थाली, बोडो एवं डोगरी ।

इनमें से अधिकतर भाषाओं के साहित्य समृद्ध हैं । संस्कृत के प्राचीन ग्रन्थ भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की ऐतिहासिक धरोहर हैं । अमेरिकी इतिहासकार बिल दुरान्त के शब्दों में- “संस्कृत यूरोप की सभी भाषाओं की जननी है ।”

‘विविधता में एकता’ भारत को विरासत में मिली है । भारत में कई धर्मों एवं जातियों के लोग रहते हैं, जिनके रहन-सहन एवं आस्था में अन्तर तो है ही, साथ ही उनकी भाषाएँ भी अलग-अलग हैं । इन सबके बावजूद पूरे भारतवर्ष के लोगों में राष्ट्रीय एकता देखी जा सकती है ।

इसी भावना का परिणाम है कि जब कभी भी हमारी एकता को खण्डित करने का प्रयास किया जाता है, भारत का एक-एक नागरिक सजग होकर ऐसी असामाजिक शक्तियों के विरुद्ध खड़ा दिखाई पड़ता है ।

राष्ट्रीयता के लिए भौगोलिक सीमाएँ, राजनीतिक चेतना और सांस्कृतिक एकबद्धता अनिवार्य होती है । यद्यपि प्राचीनकाल में हमारी भौगोलिक सीमाएँ इतनी व्यापक नहीं थीं और यहाँ अनेक राज्य स्थापित थे तथापि हमारी संस्कृति और धार्मिक चेतना एक थी ।

कन्याकुमारी से हिमालय तक और असोम से सिन्ध तक भारत की संस्कृति और धर्म एक थे । यही एकात्मकता हमारी राष्ट्रीय एकता की नींव थी । भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अपनी-अपनी अलग परम्पराएं, आस्थाएँ एवं रीति-रिवाज थे, किन्तु समूचा भारत एक सांस्कृतिक सूत्र में आबद्ध था ।

इसी को ‘अनेकता में एकता’ एवं ‘विविधता में एकता’ कहा जाता है, जो पूरी दुनिया में हमारी अलग पहचान स्थापित कर हमारे गौरव को बढ़ाता है । भारत को विरासत में समृद्ध संस्कृति मिली है, जिस पर भारतवासियों को नि:सन्देह गर्व हो सकता है, किन्तु इसके, साथ ही कुछ बुराइयाँ भी भारत को विरासत में मिली है ।

प्राचीनकाल में समूचा भारत एक ही सांस्कृतिक सूत्र में आबद्ध था, किन्तु आन्तरिक दुर्बलता के कारण विदेशी शक्तियों ने हम पर आधिपत्य स्थापित कर लिया । इन विदेशी शक्तियों ने हमारी सभ्यता और संस्कृति को नष्ट करना शुरू किया, जिससे हमारी आस्थाओं एवं धार्मिक मूल्यों का धीरे-धीरे हनन होने लगा ।

लगभग एक हजार वर्षों की परतन्त्रता के बाद अनेक संघर्षों व बलिदानों के फलस्वरूप हमें स्वाधीनता प्राप्त हुई स्वतन्त्रता प्राप्त करने के बाद हमारी एकता सुदृढ़ तो हुई, परन्तु आज साम्प्रदायिकता, क्षेत्रीयता, जातीयता, अज्ञानता और भाषागत अनेकता ने पूरे देश को जकड़ रखा है ।

भारतीय विरासत की चर्चा भारतीय विचारधारा के बिना अधूरी ही रहेगी । नि:सन्देह भारत आज अनेक प्रकार की सामाजिक समस्याओं से ग्रस्त है, जो इसे विरासत में मिली हैं, फिर भी भारतीय जीवन मूल्य दुनियाभर में भारतीय लोगों के प्रति विशेष सम्मान का एक महत्वपूर्ण कारण है ।

वैदिककाल में ही भारत के लोगों ने कहा था- “उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।” यदि दुनिया आज भारत को एक शान्तिप्रिय देश के रूप में जानती है एवं आतंकवाद जैसी वैश्विक समस्या की स्थिति में भारत की भूमिका को महत्वपूर्ण माना जाता है, तो इसका कारण इसके प्राचीन जीवन मूल्य ही हैं, जो इसे विरासत में मिले हैं ।

अपनी आस्थाओं एवं मूल्यों के अनुरूप यह देश दुनिया में विश्व-शान्ति के प्रयासों में लगा रहता है । अपनी विरासत की रक्षा करना प्रत्येक भारतीय का कर्त्तव्य है । भारत की एकता एवं अखण्डता तथा इसकी आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रगति के लिए भी यह आवश्यक है ।

आज हम सभी देशवासियों को राम मनोहर लोहिया के स्वर में स्वर मिलाकर भारतमाता से प्रार्थना करने की आवश्यकता है- ”हे भारत माता ! हमें शिव का मस्तक, कृष्ण का हृदय और राम का कर्म व वचन दो । हमें असीम मस्तिष्क और हृदय के साथ-साथ जीवन की मर्यादा से रचो ।”

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