भारत की बढ़ती वैश्विक ख्याति पर निबंध! Here is an essay on ‘India’s Growing Global Reputation’ in Hindi language.
वर्तमान समय में हम दावे के साथ कह सकते है कि भारत विश्व की एक महत्वपूर्ण शक्ति बन चुका है । भारतवर्ष के लिए आर्थिक रूप से विकसित देशों से आगे निकलना इतना आसान न था, क्योंकि यह देश सैकड़ों वर्षों तक गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा रहा था ।
भारत के विश्व शक्ति बनने का मुख्य कारण उदारीकरण एवं निजीकरण की नीति को माना जा सकता है । हालाँकि भारत ने इस नीति को समग्र रूप से अपनाने में कुछ अधिक समय लिया, लेकिन आज वह दूसरे विकासशील एवं विकसित देशों से अधिक आगे इसलिए भी निकल सका है, क्योंकि इसने आर्थिक विकास के क्षेत्र में अपनी विशाल जनसंख्या को एक कारगर हथियार की तरह इस्तेमाल किया ।
आज अधिक आबादी से तात्पर्य अधिक-से-अधिक उपभोक्ता वस्तुओं का बाजार तथा उत्पादन प्रक्रिया में कम मजदूरी लागत से है, जिसे आर्थिक सफलता का एक मजबूत स्तम्भ कहा जा सकता है । लगभग वर्ष 1990 भारत विदेशी सहायता के लिए हाथ फैलाए दिखता था ।
ADVERTISEMENTS:
भारत को तीसरी दुनिया का देश समझा जाता था और अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों में अन्य विकासशील देश भारत को आर्थिक रोल मॉडल की बजाय केवल दस्तावेज तैयार करने वाले विशेषज्ञ के रूप में देखते थे । ब्राजील जैसे कई विकासशील देश विकास की दौड में भारत को पीछे छोड़ रहे थे, लेकिन वर्ष 1991 में अपनाई गई उदारीकरण एवं निजीकरण की नीति ने देश की आर्थिक स्थिति में अछूत-मूल परिवर्तन ला दिया ।
इसी नीति का परिणाम था कि भारत की विशाल जनसंख्या, जो अभी तक बोझ लग रही थी, अब उसके लिए महत्वपूर्ण बन गई । अब भारत को एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में देखा जाता है । इसे तथाकथित भावी विश्व शक्ति चीन का सबसे ताकतवर प्रतिद्वन्ही और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का भावी स्थायी सदस्य समझा जाता है ।
आज सवा अरब की आबादी के साथ भारत दुनिया का सबसे बहा लोकतान्त्रिक देश है । भारत ने समयानुकूल अपनी नीतियों में परिवर्तन करके निरन्तर उच्च आर्थिक विकास दर को बनाए रखा और अधिकांश सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों की प्राप्ति की । वास्तव में, इस समय भारत एक ऐतिहासिक बदलाव के दौर से गुजर रहा है, जिससे विश्व के सभी देश किसी-न-किसी रूप में प्रभावित हो रहे हैं ।
वर्ष 1974 में पोखरण में भारत द्वारा पहला परमाणु परीक्षण किए जाने का विश्व के विकसित देशों ने काफी विरोध किया था । फलस्वरूप हमारे देश को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था, किन्तु वर्ष 2008 में हमारे देश और अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन अर्थात् चीन को छोड़कर पी-5 के सभी सदस्य देशों के मध्य हुए असैन्य परमाणु समझौतों से यह स्पष्ट हो जाता है कि अब वैश्विक पटल पर हमारी अनदेखा नहीं की जा सकती ।
ADVERTISEMENTS:
अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद श्री बराक ओबामा ने अपने कार्यकाल के पहले राजकीय अतिथि के रूप में 24 नवम्बर, 2009 को भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह का शानदार स्वागत करते हुए कहा था कि भारत एक परमाणु शक्ति है । वास्तव में, यह भारत के छठे परमाणु सम्पन्न राष्ट्र के तौर पर मिली अनौपचारिक मान्यता ही थी ।
यह अनायास नहीं है कि विश्व की एकमात्र महाशक्ति के रूप में अभी तक अपनी पहचान बनाए रखने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति श्री बराक ओबामा ने नवम्बर, 2010 की अपनी भारत यात्रा के दौरान स्पष्ट रूप से कहा कि भारत अब उभरती हुई शक्ति नहीं, बल्कि उभर चुकी शक्ति बन गया है ।
क्रय-शक्ति क्षमता के मामले में दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ भारत सूचना प्रौद्योगिकी, दूरसंचार और व्यापार आउटसोर्सिंग के क्षेत्र में एक वैश्विक शक्ति एवं प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरा है । भारत एक महत्वपूर्ण विश्व शक्ति के रूप में स्थापित होने की दिशा में अग्रसर है ।
वर्ष 2010 में भारत-अमेरिका के बीच सम्पन्न परमाणु समझौता वास्तव में भारत की बढती वैश्विक शक्ति पर विश्व की महाशक्ति द्वारा लगाई गई मुहर थी । अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान लगभग 10 अरब डॉलर के जो व्यापारिक समझौते हुए उससे अमेरिका में लगभग पचास हजार लोगों को रोजगार सृजित कराए गए ।
ADVERTISEMENTS:
इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि भारत अब विश्व की महाशक्ति के सामने याचक की भूमिका में नहीं, बल्कि बराबरी के स्तर पर खड़ा हो गया । यह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत-अमेरिका सम्बन्धों को 21वीं सदी के भविष्य से जोडते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा कि एशिया के नेतृत्व में भारत की अत्यधिक विशिष्ट भूमिका है ।
वर्ष 2010 में ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँचों स्थायी सदस्यों-अमेरिका, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन एवं रूस के राष्ट्राध्यक्षों ने भारत का दौरा किया । इस दौरान कई तरह के द्विपक्षीय व्यापारिक एवं कारोबारी समझौते किए गए । ये समझौते इस बात के द्योतक हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय जगत में भारत की छवि एवं महत्व दोनों में गुणात्मक परिवर्तन आया है ।
फ्रांस के साथ 13 अरब डॉलर, अमेरिका के साथ 10 अरब डॉलर, चीन के साथ 16 अरब डॉलर और रूस एवं ब्रिटेन के साथ भी अरबों डॉलर के समझौते का होना, इसी का परिणाम था । इन समझौतों का आर्थिक महत्व होने के साथ-साथ कूटनीतिक महत्व भी अत्यधिक है ।
भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए जोरदार प्रयास कर रहा है और इस रणनीति में उसे चीन को छोड़कर विश्व की प्रमुख शक्तियों का समर्थन भी मिल रहा है । वर्ष 2014 में केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के पश्चात् सितम्बर में भारत एवं ऑस्ट्रेलिया के मध्य असैन्य परमाणु समझौते हुए ।
इसी माह चीनी राष्ट्रपति श्री शी जिन पिंग की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच आर्थिक, व्यापारिक, सांस्कृतिक, स्वास्थ्य, मीडिया, रेलवे, कस्टम, अन्तरिक्ष, परमाणु ऊर्जा, क्षेत्रीय विकास आदि से सम्बन्धित 16 महत्वपूर्ण समझौते हुए ।
हमारे नवनिर्वाचित प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने चीनी राष्ट्रपति के सामने सीमा मुद्दे पर खुलकर बात की और इस विवाद को जल्द सुलझाने का सुझाव दिया, दूसरी ओर अक्तूबर में वियतनाम के प्रधानमन्त्री न्यून तंग जुग के भारत आने पर चीन की आपत्तियों को दरकिनार कर हमारे देश ने दक्षिण चीन सागर में अपनी उपस्थिति बढने का निर्णय लेते हुए वियतनाम के साथ वहाँ दो गैस ब्लॉक अन्वेषण सम्बन्धी समझौते किए ।
अमेरिकी राष्ट्रपति श्री बराक ओबामा के आमन्त्रण पर सितम्बर, 2014 में हमारे प्रधानमन्त्री अमेरिका गए । वहाँ श्री ओबामा ने गुजराती में ‘केम छो मिस्टर पीएम’ कहकर उनका गर्मजोशी से स्वागत किया । श्री मोदी की इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार को आगे बढाने हेतु अन्तर एजेंसी सम्पर्क समूह गठित करने का निर्णय किया ।
हमारे प्रधानमन्त्री ने अमेरिकी राष्ट्रपति से महत्वपूर्ण द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर बात की, जिसमें व्यापार, निवेश, आर्थिक सहयोग एवं सुरक्षा सम्मिलित है । उन्होंने विश्व व्यापार सरलीकरण का समर्थन करते हुए भारत की खाद्य सुरक्षा चिन्ताओं का समाधान किए जाने की चर्चा भी की ।
श्री ओबामा ने इस भेंट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा- ”मैं भारत के प्रधानमन्त्री के न सिर्फ देश के गरीबों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने एवं अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के प्रयासों, बल्कि उनके इस दृग विचार से भी प्रभावित हुआ कि वह अपने देश को ऐसी बड़ी शक्ति बनाना चाहते हैं, जो पूरे विश्व में शान्ति व सुरक्षा लाने में सहयोग कर सके ।”
नि:सन्देह आज चीन अथवा अमेरिका जैसी विश्व शक्तियाँ विश्व पटल पर भारत के वर्चस्व को नकार नहीं सकती और उन्हें अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने हेतु वृहत भारतीय अर्थव्यवस्था का सहारा चाहिए । आशा है देश के आर्थिक और सामरिक हितों को सर्वाधिक महत्व देने बाले श्री नरेन्द्र मोदी जैसे प्रधानमन्त्री मिलने से भारत आने वाले समय में विश्व राजनीतिक पटल पर और भी मजबूती से अपनी मौजूदगी दर्ज कराएगा ।
आज भारत को कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर और बी पी ओ के क्षेत्र में अत्यधिक ख्याति प्राप्त है इससे अमेरिकी कामगारों और विश्लेषकों के मन में भय पैदा हो गया है । भारतीय औद्योगिक घराने अन्तर्राष्ट्रीय कारोबारी कम्पनियों को खरीदकर दुनिया के बडे कारोबारी समूह बन गए हैं ।
लक्ष्मी निवास मित्तल विश्व के सबसे बड़े स्टील उत्पादक है, तो मुकेश अम्बानी का नाम विश्व के सर्वोच्च पाँच धनी व्यक्तियों में लगभग प्रत्येक वर्ष शामिल रहता है । टाटा स्टील ने अपने आकार से लगभग छ: गुना बडी कम्पनी कोरस को खरीद लिया, तो टाटा मोटर्स ने विश्व प्रसिद्ध ब्राण्ड जगुआर लैण्ड रोवर को खरीदकर इसे फोर्ड एवं बी एम डब्ल्यू की प्रतियोगिता में लाकर खडा कर दिया है ।
जहाँ बिडला की कम्पनी, ‘नोविलिस’ को खरीदकर वैश्विक एल्युमीनियम कम्पनी बन गई, वहीं दूरसंचार कम्पनी भारती एयरटेल 16 अफ्रीकी देशों में दूरसंचार सेवा प्रदान कर रही है । अफ्रीका की सबसे बड़ी खान, जाम्बिया की कोनकोला खान (जिसे कभी बहुराष्ट्रीय एंग्लो-अमेरिकी कम्पनी ने खरीदा था) को स्टरलाइट ने खरीद लिया ।
इनके अतिरिक्त टाइम्स ग्रुप, ओ एन जी सी, महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा, रेनबैक्सी आदि सहित कई भारतीय कम्पनियों ने कई विदेशी अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियों का अधिग्रहण करके भारत की बढ़ती आर्थिक स्थिति को विश्व के सामने प्रदर्शित किया है । टाटा की नैनो कार ने वाहन उद्योग में भारत को दुनियाभर में लोकप्रिय एवं चर्चित बना दिया ।
उधर, भारतीय मूल के विदेशी उद्योगपतियों ने भारत के बाहर रहकर भी भारत की प्रसिद्धि में वृद्धि ही की है । इन उद्योगपतियों में अमर बोस, इन्दिरा सूची, अरुण सरीन, सबीर भाटिया, विनोद खोसला, गुरुराज देशपाण्डे आदि का नाम विशेष रूप से लिया जा सकता है ।
इसके साथ ही, सलमान रुश्दी (लेखक), अमर्त्य सेन (अर्थशास्त्री), बुला लहरी (लेखिका), वेंकटरमन रामकृष्णन (नोबेल पुरस्कार विजेता, 2009) आदि भारतीय मूल के विदेशी नागरिक विभिन्न क्षेत्रों में भारतीय प्रतिभा का लोहा मनवा रहे है । इन सभी घटनाओं ने पश्चिम के साथ भारत के प्रौद्योगिकी सम्बन्धों को उलटकर रख दिया है ।
अमेरिका की लगभग सभी फॉर्च्युन 500 कम्पनियों ने भारत में अपनी गतिविधियों की शुरूआत कर दी है, क्योंकि आज की परिस्थितियों में ये कम्पनियाँ भारत जैसे बड़े बाजार में नहीं होने का जोखिम नहीं ले सकती । वैश्विक पटल पर भारत की आर्थिक शक्ति को भविष्य में टक्कर देने की हैसियत यदि किसी देश में है, तो यह चीन है ।
भारत में लागू की गई उदारीकरण की नीति से लगभग एक दशक पहले ही 80 के दशक में चीन ने ‘ओपन डोर पॉलिसी’ अपनाई, जिसका लाभ चीन को भारत से पहले मिला । तब से आज तक चीन निरन्तर विदेशी निवेश का केन्द्र बना हुआ है, लेकिन तकनीकी क्षेत्र में सबसे आगे रहने वाले देश जापान का मानना है कि भारत चीन की अपेक्षा अधिक आगे बढ़ गया है, क्योंकि चीन की श्रम-लागत में अब अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि हो रही हे ।
इसके अतिरिक्त पिछले कुछ समय से चीनी बाजार में अनिश्चितता का दौर भी प्रारम्भ हो गया है, जिससे विदेशी कम्पनियाँ चीन में निवेश करने से पहले सोचने लगी हैं जापान बैंक फॉर इण्टरनेशनल को-ऑपरेशन का मानना है कि विदेशी निवेश के क्षेत्र में भारत एक सुदृढ़ स्तम्भ बनकर उभरा है आज भारत में निवेश करने के लिए वातावरण अधिक अनुकूल है ।
घरेलू बाजार अत्यन्त व्यापक होने के कारण ही विश्व व्यापार में पिछले दिनों आई आर्थिक मन्दी का भी भारत पर अधिक प्रभाव देखने को नहीं मिला । अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत ने सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात की दृष्टि से दूसरे देशों में निवेश करने के मामले में विश्व कीर्तिमान कायम किया है । इससे पहले कम आय वाले किसी अन्य देश ने दुनिया को कभी इतना अधिक प्रभावित नहीं किया था ।
भारत के आर्थिक विकास से इसके राजनीतिक प्रभाव में वृद्धि हुई है, इसलिए अन्तर्राष्ट्रीय मंचों एवं वार्ताओं में भारत को नियमों में छूट की सुविधा प्राप्त हो जाती है और इसकी माँग को अनदेखा करना कठिन हो जाता है । इस दशक के अन्त तक भारत नि:सन्देह विकसित देशों के समूह में शामिल हो जाएगा और तब हम सब भारतवासी कवि मैथिलीशरण गुप्त की ये पंक्तियाँ फिर से सगर्व गा सकेंगे-
भू-लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला-स्थल कहाँ ?
फैला मनोहर गिरि हिमालय और गंगाजल जहाँ ।
सम्पूर्ण देशों से अधिक किस देश का उत्कर्ष है ?
उसका कि जो ऋषिभूमि है, वह कौन? भारतवर्ष है । ।