घरेलू अपशिष्ट का जैव रासायनिक प्रतिक्रिया | Read this article in Hindi to learn about the biochemical reaction of household waste.

घरेलू गंदगी के मुख्य घटक कार्बनिक पदार्थ होते हैं । उनके जैवरासायनिक विघटन के कुप्रभाव काफी गंभीर होते हैं । साथ ही ये प्रभाव काफी बड़े क्षेत्रों में महसूस होते हैं । यदि गंदगी सागर के ऐसे क्षेत्र में डाली जाती है जिसका पानी मुक्त रूप से अन्य क्षेत्रों के पानी से नहीं मिलता तब कुप्रभाव और अधिक गंभीर तथा हानिकारक हो सकते हैं ।

खाड़ी, पश्चजल आदि सागर के ऐसे अंग हैं जिनका पानी मुक्त रूप से सागर में नहीं मिल पाता । खाड़ी में गंदगी डालते रहने से वह कितनी अधिक प्रदूषित हो सकती है इसके उदाहरण के रूप में आमतौर से बंबई के निकट स्थित महिम खाड़ी का उल्लेख किया जाता है ।

सागर में पहुंचने पर घरेलू गंदगी के कार्बनिक पदार्थों का विघटन होने लगता है । पहले यह विघटन गंदगी में उपस्थित सूक्ष्मजीवों द्वारा होता है । पर गंदगी के पानी में तनुकृत हो जाने के बाद, यह काम सागर के पानी में मौजूद बैक्टीरिया करने लगते हैं ।

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इस जैवरासायनिक विघटन में पानी में घुली ऑक्सीजन बहुत तेजी से खर्च होती है । दूसरे शब्दों में, इस क्रिया की ‘जैवरासायनिक ऑक्सीजन माँग’ (बायोकैमिकल ऑक्सीजन डिमांड-बी.ओ.डी.) इतनी अधिक होती है कि विसरण और प्रकाश-संश्लेषण क्रियाओं द्वारा प्राप्त होनेवाली ऑक्सीजन इस माँग को पूरा नहीं कर पाती ।

फलस्वरूप सागर के पानी में घुली संपूर्ण ऑक्सीजन समाप्त हो जाती है । ऐसा खाड़ियों, ज्वारनदमुखों अथवा थल से घिरे सागरों में, जिनके पानी का उन्मुक्त सागर के पानी के साथ जल्दी-जल्दी आदान-प्रदान नहीं होता, अकसर होता ही रहता है ।

घुली हुई ऑक्सीजन के समाप्त हो जाने के बाद भी कार्बनिक पदार्थों के जैवरासायनिक विघटन की क्रिया जारी रहती है । पर अब यह किया अनाक्सित सूक्ष्मजीव (जिन्हें जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन नहीं चाहिए) करते हैं ।

वे पहले पानी में घुले नाइट्रेटों को विघटित कर ऑक्सीजन प्राप्त करते हैं और उनके समाप्त हो जाने के बाद सल्फेटों को विघटित करने लगते हैं । ये नाइट्रेट और सल्फेट थल से ही वर्षा, नदियों आदि के पानी में बहकर सागर में आते हैं । सल्फेटों के विघटन से हाइड्रोजन सल्फाइड, एक हानिकारक गैस, बनती है ।

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इन जैवरासायनिक विघटनों में कार्बन डाइऑक्साइड तथा अमोनिया भी बनती है और फास्फेट मुक्त होते हैं । ऑक्सीजन की कमी, नाइट्रेटों और सल्फेटों के विघटन के फलस्वरूप बने पदार्थ तथा हाइड्रोजन सल्फाइड गैस का उत्पादन, ये तीनों बातें समुद्री जीवों के लिए घातक सिद्ध हो सकती है ।

अनेक जातियों के जीव पानी में घुली ऑक्सीजन में कमी को सहन नहीं कर पाते । ऑक्सीजन के एक सीमा विशेष से कम हो जाने पर वे पानी में सांस नहीं ले पाते और तुरंत मर जाते हैं । इस प्रकार जीव-जंतुओं की बड़ी संख्या में मृत्यु हो जाती है ।

हाइड्रोजन सल्फाइड जहरीली गैस है । उसमें साँस लेने से जीव-जंतुओं की मृत्यु हो जाती है । उसमें केवल वे ही प्राणी रह सकते हैं जिन्हें जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन नहीं चाहिए । सागर में घरेलू गंदगी और सीवेज आदि के मिलने के फलस्वरूप उत्पन्न प्रभावों की आगे चर्चा करने से पहले जैवरासायनिक ऑक्सीजन माँग के बारे में कुछ बताना समीचीन होगा ।

किसी बहिःस्राव (सीवेज आदि) में सूक्ष्मजीवों को जीवित रहने और अपना भोजन पचाने के लिए ऑक्सीजन चाहिए । जैवरासायनिक ऑक्सीजन माँग का संबंध इसी ऑक्सीजन से है । इसका मान एक निश्चित ताप पर, निश्चित समयावधि के लिए ज्ञात किया जाता है ।

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आमतौर से ताप 20° से. और जैवरासायनिक समयावधि पाँच दिन नियत की जाती है । पानी जितना अधिक प्रदूषित होगा ऑक्सीजन माँग उतनी ही अधिक होगी । कुछ लोगों का मत है कि जैवरासायनिक ऑक्सीजन माँग सागर के पानी में प्रदूषण को मात्रा को सही तरीके से नहीं दर्शाती ।

वह उस सुपोषण के कारण भी बहुत अधिक बढ़ जाती है जो कार्बनिक पदार्थों के आधिक्य से उत्पन्न होता है । ये कार्बनिक पदार्थ सीवेज के अंग नहीं होते । ये तो उन पादप प्लांक्टनों के शरीरों के अंग होते हैं जिनकी पैदावार सुपोषण के फलस्वरूप बहुत बढ़ जाती है ।