भारत में डब्ल्यूटीओ का उद्भव | Read this article in Hindi to learn about the emergence of world trade organisation in India along with its benefits.

भारतीय किसान अत्याधिक भयभीत थे, वे समझते थे कि वे बहुराष्ट्रीय निगमों की दया पर होंगे जोकि कृषि इनपुट की महत्वपूर्ण वस्तुओं जैसे बीज, उर्वरक और कीटनाशक आदि के वितरण का नियन्त्रण करते है । केवल कुछ ही किसान बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की सुधरी हुई इनपुट से लाभ उठा सकेंगे ।

छोटे किसान शीघ्र ही भूमिहीन श्रमिक बन जायेंगे और भारत में कृषि भारत की 2/3 जनसंख्या की जीविका का साधन नहीं रहेगी । इससे केवल उनकी दरिद्रता में अधिक वृद्धि होगी ।

समझौता प्रस्तावित करता है कि विकासशील देशों को चाहिये कि कृषि उत्पादों (उत्पाद रियायतों) पर स्पष्ट रियायतें कम कर दी जायें, इसके साथ ही कृषि में उपयोग होने वाले इनपुट जैसे बिजली, पानी, साख, उर्वरक (गैर-उत्पाद रियायतें) पर रियायतें उत्पाद के मूल्य के 10 प्रतिशत से कम कर देनों चाहिये ।

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दूसरी ओर, विकसित देशों में ये रियायतें एक निश्चित समय के भीतर 5 प्रतिशत तक कम कर देनी चाहिये । छोटे और निर्धन किसानों को इस धारा से छूट दी गई है । यह सोचना पूर्णतया गलत हो कि समझौता रियायतों के घटाव का कारण बनेगा । सहायता का कुल माप (AMS) जिसका निर्माण देश द्वारा प्राप्त संरक्षण की सीमा की गणना के लिये किया गया है, भारतीय कृषि के प्रकरण में नकारात्मक है ।

इसका अर्थ है कि अधिकांश वस्तुओं की कीमत उनकी अन्तर्राष्ट्रीय कीमत से कम है । अतः भारत को सबसिडियां समाप्त करने की आवश्यकता नहीं है । वाणिज्य मन्त्रालय के अनुमानों के अनुसार, ‘नॉन-प्रोडक्ट स्पेसेफिक’ ASM 2.9 से 6.0 प्रतिशत है जो 10 प्रतिशत से कम है । इस समय भारत की कुल कृषि सबसिडियां 6 प्रतिशत से नीचे हैं और इसलिये समझौते की यह व्यवस्था भारत को विपरीत प्रभावित नहीं करेगी ।

(i) सबसिडियों को घटाना (Slashing Subsidies):

समग्र रूप में, भारतीय कृषि एक गैर-व्यापारिक कार्य पर समझौते के नियम लागू नहीं होते क्योंकि यह व्यापारिक उत्पादन और व्यापार गतिविधियों पर लागू होते हैं क्योंकि भारत एक कृषि निर्यातकर्ता नहीं है, भारतीय कृषि पर प्रभाव सम्बन्धी विवाद बहुत कम है वास्तविक प्रभाव जापानी और दक्षिण कोरिया के किसानों पर होगा ।

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(ii) खाद्य अनाजों के निर्यात में वृद्धि (Increase in Export of Food Grains):

विकसिट देशों में कृषि उत्पादों की कीमतें सबसिडियों को घटाने के परिणामस्वरूप बढ़ जायेंगी । फलतः हमारे किसानों को लाभ होगा क्योंकि अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में उन्हें अपने उत्पादों की अधिक कीमतें प्राप्त होगी । इससे जापान और दक्षिणी कोरिया जैसे देशों की ओर भारतीय निर्यात विशेषतया चावल का निर्यात प्रोत्साहित होगा ।

(iii) उत्पादन में वृद्धि (Increase in Production):

यह अनुभव किया जाता है कि भारत में भी कुछ उत्पादों की कीमतें बढ़ेगी क्योंकि घरेलू अभाव की पूर्ति के लिये कुछ कृषि वस्तु जैसे तेल के बीज आयात करने पड़ेंगे ।

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(iv) सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System):

समझौता भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में हस्ताक्षेप नहीं करता, समाज के दुर्बल वर्गों को कम दरों पर आवश्यक खाद्य सामग्री की पूर्ति होती रहेगी ।

(v) खाद्य-अनाजों के आयातों में कोई वृद्धि नहीं (No Increase in Imports of Food Grains):

समझौते अनुसार, भारत में खाद्य अनाजों के आयात को बढ़ाने की कोई सम्भावना नहीं है । समझौते में यह वर्णन है कि निर्धन देश जो भुगतानों के सन्तुलन का सामना करते हैं वे खाद्य अनाजों के आयात पर टैरिफ लगाना जारी रख सकते हैं । भारत इस व्यवस्था का लाभ उठा सकता है और खाद्य-सामग्री के आयात से बच सकता है ।

अतः खाद्य अनाजों के सरल आयातों से दूर रह सकता है । यह सन्देहपूर्ण है कि खाद्य अनाजों के आयात पर 100 प्रतिशत टैरिफ ड्‌यूटी, संसाधित आहार पर 150 प्रतिशत और खाद्य तेलों पर 300 प्रतिशत टैरिफ ड्‌यूटी के साथ आयात घरेलू बाजारों में बने नहीं रह सकते ।

(vi) पेटैन्ट और सुई-जैनरिस (Patents and Sui-Generis):

भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि बीजों को पेटैन्ट न करने की वर्तमान नीति जारी रहेगी । जहां तक सुई-जैनरिस प्रणाली का सम्बन्ध है, आशा की जाती है कि प्रजनकों के अधिकारों का संरक्षण पौधों के प्रजनन की सुधरी हुई विविधताएं सुनिश्चित करेगा । भारत में बीज और प्रजनन तकनीक में मूलभूत अनुसंधान की व्यवस्था है ।

पेटैन्ट और सुई-जैनरिस का आलोचनात्मक विश्लेषण दर्शाता है कि बीज उत्पादन अर्थात् नई किस्मों का विकास उनका गुणन और विपणन जो पिछले वर्षों में मुख्यतया सरकार के अधीन था अब निजी क्षेत्र के हाथों में जा रहा है । नवीनतम, जैव-प्रोद्योगिकीय (Biotechnological) उपकरणों का प्रयोग निगमों द्वारा संकर और कृत्रिम बीजों और पौधा-सामग्री के लिये किया जाता है । भारत की विश्व बाजार में बीजों को एक मुख्य निर्यातकर्ता के रूप में सामने आने की क्षमता है ।

(vii) बीजों के प्रयोग की स्वतन्त्रता (Freedom to Use Seeds):

नि:सन्देह केवल समृद्ध और बड़े किसान ही ब्रैण्ड बीजों का प्रयोग करने में सक्षम होंगे । इससे स्पष्टतया समृद्ध और निर्धन किसानों के बीच का अन्तराल बढ़ेगा । पुन: यह एक आधारहीन आशंका है । WTO समझौते के अन्तर्गत किसान अन्य के साथ बीजों के विनिमय के लिये स्वतन्त्र है । इसलिये, उन्हें खुले बाजार से बीज खरीदना आवश्यक नहीं है ।

(viii) बाजार पहुंच (Market Access):

डनकेल ड्राफ्ट (Dunkel Draft) किसी भी प्रकार भारतीय किसानों के हितों का अहित नहीं करेगा । बल्कि, यह भारत द्वारा खाद्य-अनाजों के निर्यात को प्रोत्साहित करेगा और फसलों की कृषि के क्षेत्र अनुसंधान को उत्साहित करेगा । ड्राफ्ट, हमारी ग्रामीण उन्नति की किसी भी योजना में हस्ताक्षेप नहीं करता ।

सरकार किसानों को दी गई किसी भी सबसिडी को कम नहीं करना चाहती । किसानों को पूर्ण स्वतन्त्रता है कि अपने उत्पादन का एक भाग अगली फसल के लिये बीज के रूप में प्रयोग करें । वे अपने अतिरेक उत्पाद का परस्पर विनिमय भी कर सकते हैं । इसके अतिरिक्त खाद्य अनाजों की प्राप्ति, सार्वजनिक वितरण प्रणाली और खाद्य अनाजों के बफ्फर स्टॉक पहले की तरह जारी रहेंगे ।

समझौता, प्रत्येक कृषि वस्तु के लिये, कम से कम बाजार के 3 प्रतिशत भाग की आयातकर्ताओं को सुनिश्चित पहुंच प्रस्तावित करता है । इसे कृषि व्यापार में ‘न्यूनतम अनिवार्य पहुंच’ (MCA) का नाम दिया गया है । यद्यपि, कोई देश अपने भुगतानों के सन्तुलन की समस्या के आधार पर इस धारा से छूट प्रान्त कर सकता है ।

भारत में विश्व व्यापार संगठन के लाभ (Benefits of WTO in India):

हमारे देश को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होंगे:

(क) उत्पादन (Production):

भारत को अपने घरेलू उपभोग के लिये 2% से 5% तक आयात करना पड़ेगा, चाहे हमें इसकी आवश्यकता हो या न । यह व्यवस्था उन वस्तुओं के उत्पादन को प्रोत्साहित करेगा, जिसके लिये हमारी स्थिति बेहतर है ।

(i) यह व्यवस्था हमें कृषि वस्तुओं के निर्यात द्वारा विश्व बाजार में प्रवेश के अवसर प्रदान करती है ।

(ii) यदि वैश्विक स्तर पर कृषि वस्तुओं पर टैरिफ हटा दिया जाता है, तो भारतीय किसानों को कुछ वस्तुओं जैसे- फल, सब्जियां, फूल, पशुधन उत्पाद के निर्यात का लाभ वर्तमान परम्परागत निर्यात वस्तुओं जैसे चावल, मसाले, चाय, कॉफी, चीनी आदि के साथ प्राप्त होगा ।

(iii) विश्व बाजार खुलने से आशा की जाती है कि भरी-पूरी फसल का लाभ उपलब्ध होगा ।

(ख) व्यापार सम्बन्धी निवेश उपाय (Trade Related Investment Measures – TRIMS):

समझौते अनुसार भारत किसी बाहरी निवेश पर कोई बाधाएँ नहीं खडी करेगा । इसका अर्थ है कि बहु-राष्ट्रीय कम्पनियां भारतीय बाजार मैं स्वतन्त्रतापूर्वक कार्य करेंगी । इससे भारतीय उद्योगपतियों के हितों को चोट लगेगी क्योंकि उनकी प्रतियोगिता शक्ति दुर्बल है । आशंका है कि उत्पादन और रोजगार के स्तर प्रभावित हो सकते हैं, परन्तु यह गलत, तर्कहीन और आधारहीन आलोचना है ।

आशा की जाती है कि TRIMS भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये विभिन्न प्रकार के लाभ उत्पन्न करेंगे । वास्तव में इससे निवेश, उत्पादन और रोजगार के स्तर सुधरेंगे । सरकार को स्वतन्त्रता की मात्रा और निजीकरण करने वाले क्षेत्रों के सम्बन्ध में अपने नियन्त्रणों को प्रयोग करने का अधिकार जारी रहेगा ।

(ग) व्यापार सम्बन्धित बौद्धिक सम्पदा अधिकार (Trade Related Intellectual Property Rights – TRIPS):

सन्देह है कि ट्रिपस भारत जैसे निर्धन देशों में अनुसन्धान और नव प्रवर्तन की प्रक्रिया को हतोत्साहित करेगा । ट्रिपस सम्बन्धी मामलों में सभी सदस्य देशों में को समान स्तर पर रखा गया है और एक जैसे मानक तय किये गये हैं । भारत जैसे विकासशील देशों में अनुसंधान और नवप्रवर्तन के निम्न मानकों के दृष्टिकोण से यह उचित नहीं है ।

पहले से ही दुर्बल शोध और नव प्रवर्तन व्यवस्था को कोई भी हानि भारतीय कृषि और उद्योग को विपरीत प्रभावित कर सकती है । सन्देह है कि ट्रिपस के कारण दवाइयों की कीमतें 10-15 प्रतिशत बढ़ सकती हैं और कृषि क्षेत्र पर भी विपरीत प्रभाव पड़ सकता है ।

समझौते में कापीराइट, ट्रेड मार्क, व्यापार-गोपनीयता, औद्योगिक रूपरेखा और ट्रिपस के अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत पेटैन्ट की व्यवस्था है । इसके, भारत के हितों के लिये हानिकारक होने की सम्भावना नहीं है क्योंकि पेटैन्टों के क्षेत्र में, विशेषतया जो औषधियों से सम्बन्धित हैं, भारत के नियम स्पष्टतया समझौते के साथ समकालिक नहीं हैं ।

औषधियों की कीमतों में सामान्य सी वृद्धि हो सकती है भारत में केवल 10 से 15 प्रतिशत औषधियां, समझौते के अन्तर्गत पेटैन्टों के अधिकार क्षेत्र में आती हैं । विश्व स्वास्थ्य संगठन (WTO) ने आवश्यक एवं जीवन रक्षक दवाइयों को WTO के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा है ।

इसके गैर पेटैन्ट दवाइयों पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं । इनसे, भारत में, पेटैन्ट औषधियों की कीमत वृद्धि नियन्त्रित रहेगी । पेटैन्ट सम्बन्धी यह नियम 10 वर्ष बाद लागू होगा । भारतीय औषध उद्योग के लिये इस समय के दौरान अपना ब्रैण्ड विकसित करना कोई कठिन बात नहीं है जिससे दवाइयों की कीमतों में वृद्धि को रोका जा सके ।

(घ) सेवाओं में व्यापार (Trade in Services) (GATS):

गैटस के भी विपरित प्रभावित होने की आशंका है घरेलू बैंक सेवाएं, बीमा, परिवहन और संचार सेवाएँ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा उपलब्ध की गई सेवाओं की तुलना में बहुत कम प्रतियोगी हैं । दुर्बल संचालक दक्षता के कारण, घरेलू सेवाओं की हानि निश्चित हे । यह भी एक कथन है तथा एक बढा-चढ़ाकर किया हुआ कथन । यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये वृद्धि के नये दृश्य खोलेगा तथा देश में रोजगार के बेहतर अवसर उपलब्ध करेगा ।

(ङ) वस्त्र और पहनावे में उद्योग (Trade in Textile and Clothing):

भारतीय वस्त्र उद्योग को WTO समझौते से लाभ प्राप्त करने की आशा है । भारतीय वस्त्र उद्योग के आयात पर कोटा बाधाओं को अगले दस वर्षों के भीतर समाप्त कर दिया जायेगा । इससे, विशेषतया संयुक्त राज्यों तथा यूरोपियन देशों में भारतीय निर्यात प्रोत्साहित होगा तथा वस्त्र उद्योग में रोजगार के अधिक अवसर उत्पन्न होंगे ।

विश्व व्यापार संगठन की बैठक की महत्वपूर्ण प्रमुखताएं नीचे दी गई हैं:

1. अन्तर्राष्ट्रीय रूप में मान्य मूल श्रम मानकों के पालन की वचनबद्धता दोहराई गई और अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के कार्य का समर्थन तथा उसके संवर्धन का पुन: पुष्टि ।

2. संरक्षणवादियों के कार्यों के लिये श्रम का उपयोग नकार दिया गया तथा कम वेतन वाले विकासशील देशों के तुलनात्मक लाभ पर किसी प्रकार का प्रश्न न उठाया जाये ।

3. WTO व्यवस्था में शीघ्रता लाना अब 28 आवेदक सहमति के लिये बातचीत कर रहे हैं ।

4. विवाद निपटारा ज्ञान (DSU) प्रणाली के साथ लम्बा अनुभव विवाद निपटारा प्रणाली की विश्वसनीयता तथा उसके प्रभावीपन को और भी बढ़ायेगा ।

5. बहुत कम विकसित देशों में, उनके व्यापार अवसरों को बढ़ाने में सहायता के लिये, व्यापार और विकास, सहायता अभिकरणों और अन्य संस्थाओं पर यू.एन. कान्फ्रैंस की एक बैठक बुलाई जायेगी ।

6. व्यापार और निवेश पर समिति (TRIMS) व्यापार उदारीकरण, आर्थिक विकास और पर्यावरण के संरक्षण के बीच सम्पूरकताओं के क्षेत्र का परीक्षण जारी रखेगी ।

7. आधारभूत दूर-संचार पर बातचीत फरवरी 1997 तक सफलतापूर्वक पूरी कर ली जायेगी और वित्तीय सेवाओं सम्बन्धी बातचीत अप्रैल 1997 में आरम्भ की जायेगी ।

8. व्यापार और निवेश के बीच सम्बन्ध के परीक्षण के लिये कार्य वर्ग (Working Group) की स्थापना के लिये समझौता । यह व्यापार एवं प्रतियोगिता नीति के बीच प्रतिक्रिया के सम्बन्ध में सदस्यों द्वारा उठाये गये मामलों का अध्ययन करेगा । सामान्य परिषद् दो वर्षों के भीतर निर्धारित करेगी कि प्रत्येक संस्था का कार्य कैसे बड़े । भविष्य में बातचीत तभी होगी जब एक स्पष्ट सर्व-सम्मति पूर्ण निर्णय लिया जायेगा ।

9. सरकार की प्रापण प्रथाओं में पारदर्शिता पर अध्ययन करने के लिये एक कार्य वर्ग की स्थापना पर समझौता, राष्ट्रीय नीतियों को ध्यान में रखते हुये होगा ।

व्यापार और श्रम मानकों की अति विवादास्पद समस्या पर, घोषणा ने मूल श्रम मानकों के पालन के लिये कहा, जिसमें सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार और बेगार और शिशु श्रम के शोषण की मनाही सम्मिलित है ।

घोषणा में कहा गया कि अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) इन मानकों को स्थापित करने और इनसे व्यवहार करने के लिये योग्य संस्था है । यह विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को पुन: आश्वस्त करने के लिये था ।

अतः सिंगापुर WTO मन्त्रालय की मीटिंग, समीप भविष्य में मुक्त वैश्विक व्यापार सुनिश्चित करने के लिये सफल आह्वान बन गई है ।

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