विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के समझौते | Read this article in Hindi to learn about the nine important agreements signed by world trade organisation. The agreements are:- 1. कृषि में व्यापार (Trade in Agriculture) 2. व्यापार सम्बन्धित बौद्धिक सम्पदा अधिकार [Trade Related Property Rights (TRIPS)] 3. व्यापार सम्बन्धित निवेश उपाय (TRIMS) 4. व्यापार और सेवाओं पर सामान्य समझौता (General Agreement on Trade and Services) (GATS) and a Few Others.

WTO के मुख्य समझौतों का वर्णन नीचे किया गया है:

Agreement # 1. कृषि में व्यापार (Trade in Agriculture):

उरग्वे (Uruguay) दौर ने कृषि क्षेत्र को W.T.O. के अधिकार क्षेत्र में लाकर एक मुख्य प्रारम्भ किया है । कृषि के लिये समझौते की धारा 42 बताती है कि भाग लेने वाली सरकारें ”किसी ऐसे उपाय की सम्भाल नहीं करती, आरम्भ नहीं करती अथवा की ओर नहीं मुड़ती जिसे सामान्य सीमा शुल्कों में परिवर्तित किया गया है ।

कृषि उत्पादों के लिये बड़ी हुई बाजार पहुंच में सम्मिलित हैं-सभी गैर-टैरिफ उपायों का सीमा शुल्कीरण (Tarification) (टैरिफ समानताओं का बदलाव) उन उत्पादों के अतिरिक्त जिनके लिये विशेष व्यवहार का समझौता हुआ है और जहां कृषि उत्पादों पर सभी सीमा शुल्कों पर एक बाध्यता है ।

ADVERTISEMENTS:

उपायों को ऐसे बदलना जिससे वास्तव में सभी गैर-टेरिफ उपाय सम्मिलित हों जो मात्रात्मक आयात प्रतिबन्ध रखते हैं तथा परिवर्तनशील आयात उद्ग्रहण, न्यूनतम आयात कीमतें, विवेकाधीन आयात लाइसेंस और राज्य व्यापार उद्यमों और स्वैच्छिक व्यापार बाधाएं सम्मिलित हैं ।

परिणामस्वरूप, कृषि उत्पादों में व्यापार की सुरक्षा पहली बार औद्योगिक उत्पादों से बडी होगी क्योंकि कृषि उत्पादों की 100 प्रतिशत टेरिफ-रेखा आबद्ध होगी । कृषि सदैव सबसे अधिक विवादास्पद रहा है । अतः कृषि व्यापार नीतियों को सुधारने की आवश्यकता पर सर्व सम्मति रही है ।

समस्या के समाधान के लिये, अन्तिम एक्ट के मुख्य लक्षण नीचे दिये गये है:

(क) घरेलू सबसिडियों को कम करना (Reduction in Domestic Subsidies):

ADVERTISEMENTS:

प्रस्तावों अनुसार, विकासशील देशों में सबसिडी भुगतान का मूल्य कुल कृषि उत्पादन के मूल्य के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं बढ़ना चाहिये । किसानों को दी गई कुल सबसिडी की गणना के लिये समर्थन का कुल माप (AMS), सभी उत्पाद और गैर-उत्पाद, विशेष सबसिडियों का इकट्‌ठा जोड करना आवश्यक है ।

हमारे देश में सरकार 20 कृषि उत्पादों को समर्थन मूल्य उपलब्ध करती है और प्रत्येक प्रकरण में दी गई सबसिडी 10 प्रतिशत से कम होती है । चालू अनुपात 5.2 प्रतिशत है । इसके अतिरिक्त, सुझाव अनुसार इस 10 प्रतिशत मानक में निम्न आय वर्ग और साधन रहित निर्धन किसान शामिल नहीं होते । प्रस्तावों के खाके अनुसार जिन किसानों के पास 2.5 हैक्टेयर से कम भूमि है उन्हें निम्न आय वर्ग के किसान परिभाषित किया गया है ।

(ख) निर्यात सबसिडी में कभी (Reduction in Export Subsidies):

निर्यात सबसिडियों के सम्बन्ध में, विकासशील देश जो भारी सबसिडियां देते हैं उन्हें मूल्य एवं मात्रा दोनों आधारों पर सबसिडिया कम करनी चाहियें । मूल्य आधार पर यह 6 वर्षों में 36 प्रतिशत कम करनी चाहिये जबकि मात्रा धार पर, इसी अवधि में इन्हें 21 प्रतिशत कम करना चाहिये । विकासशील देशों के लिये यह सीमा 10 वर्ष की अवधि में क्रमशः 24 और 14 प्रतिशत हैं ।

ADVERTISEMENTS:

(ग) सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System):

सार्वजनिक वितरण प्रणाली के सम्बन्ध में, अन्तिम एक्ट में विशेष फुटनोट है जो हमारी आशंकाओं को कम करते हैं और फिर विकासशील देशों को पब्लिक स्टॉक होल्डिंग और आहार सहायता कार्यों के सम्बन्ध में बनाये गये दण्ड-विधान से मुक्त करते हैं ।

भारतीय संदर्भ में यह प्रणाली प्रभावित नहीं होगी । हमारे देश में, वर्तमान सार्वजनिक वितरण प्रणाली 20 मिलियन टन प्रतिवर्ष से थोड़ी अधिक है । जो आहार अनाजों के कुल उपयोग के 10 प्रतिशत से कम है इसकी तुलना में 30 प्रतिशत लोग अब भी निर्धनता रेखा से नीचे रहते हैं ।

i. बाजार पहुंच (Market Access):

WTO ने नियमों की व्यवस्था की है और ‘ट्रेड पॉलिसी रिव्यू मैकानिज़्म’ का प्रयोग करता हैं । व्यापार बाधाओं को कम करके और उत्पादों के बीच भेदभाव को समाप्त करके, यह विदेशी उपायों द्वारा हो या घरेलू नीतियों द्वारा, बाजार पहुंच बड़े स्तर सुधारी जाती हैं ।

टैरिफ को बांधने का दायित्व निर्यातकर्ताओं को बाजार पहुंच स्थितियों के सम्बन्ध में अधिक निश्चितता उपलब्ध कर सकता है, जो निम्नलिखित हैं:

(i) WTO नियम ठेका लेने वाले पक्षों (मौलिक सदस्य राष्ट्रों) को आज्ञा देते हैं कि अन्य ठेका लेने वाले पक्ष द्वारा प्रयुक्त उपायों को अमान्य सिद्ध करने के प्रयत्न कर सकता है जो ऐसे बन्धनों/समझौतों को रह अथवा क्षीण कर सकते हैं ।

(ii) WTO के अन्तर्गत गैर-टैरिफ उपाय यथा-मूल्य विशेष टैरिफ में बदले जाते हैं ।

(iii) एक टैरिफ बन्धन वैधानिक रूप में निर्धारित अधिकतम दर है जिस पर टैरिफ निश्चित किया जा सकता है ।

(iv) परिमाणित टैरिफ बाधित होते हैं तथा धीरे-धीरे 6 वर्षों की अवधि में कम किये जाते हैं ।

(v) कृषि को उपलब्ध निवेश सबसिडियां और कृषि सबसिडियां कम आय अथवा निर्धन उत्पादकों को उपलब्ध की जाती हैं । विकासशील देशों द्वारा यह सबसिडियां कम करने की आवश्यकता नहीं है । विकसित देशों के पास यह विकल्प नहीं है ।

(vi) विकासशील देशों को विशेष तथा अधिक हितैषी व्यवहार दिया जाता है । इन देशों के लिये 6 वर्षों की अवधि को 10 वर्षा तक बढ़ा दिया गया है ।

(vii) वास्तविक टैरिफ बंधे हुये दर से कम हो सकता है, परन्तु इसके ऊपर नहीं जा सकता जब तक कि दर सम्बन्धी बातचीत व्यापार में भागीदारों से नहीं की जाती ।

(viii) बहुत कम विकसित अथवा विकासशील देशों को कोई घटाव करने की आवश्यकता नहीं, यद्यपि उन्हें भी गैर-टैरिफ उपायों से मनाही है ।

(ix) बाजार पहुंच सुधारने के लिये औद्योगिक देशों को 6 वर्षों के बीच 36 पतिशत टैरिफ कम करने की आवश्यकता है जबकि विकासशील देशों को 10 वर्षों में 24 प्रतिशत कम करना होता है ।

ii. वस्त्र उद्योग और पहनावा (Textile and Clothing):

WTO ने वर्ष 1974 में ”लघु कालिक प्रबन्ध, दीर्घकालिक प्रबन्ध” और ”मल्टी फाइबर अरेंजमैट” (MFA) के अधीन 31 दिसम्बर, 1994 तक वस्त्र और पहनावा क्षेत्र में 30 वर्षों से अधिक समय के लिये भेदभाव पूर्ण मात्रात्मक बाधाओं को अपनाया । अहम द्विपक्षीय बातचीत द्वारा निर्धारित नियतांशों (Quotas) की श्रेणी है जो विकासशील देशों द्वारा 1950 के दशक में विकसित देशों को वस्त्र निर्यात को सीमित करने के लिये थी ।

इसे यू. एस. द्वारा वस्त्र निर्याताओं को बढ़ते हुये जापानी वस्त्र निर्यात के लिये सुरक्षित करने के लिये निर्मित किया गया था । बाद में इसे भारत सहित अनेक अन्य विकासशील देशों तक विस्तृत किया गया । इन मात्रात्मक प्रतिबन्धो ने पिछले कुछ सालों में अनेक उत्पादों को प्रच्छन्न किया था तथा बढ़ते हुये क्रम से बाधक बन गये थे ।

(i) वस्त्र उद्योग और पहनावे पर समझौते में मुक्त निर्यात और MFA प्रबन्धों पर ऐसे प्रतिबन्धों को रोकने की व्यवस्था है । मात्रात्मक प्रतिबन्ध केवल विकासशील देशों द्वारा औद्योगिक देशों की ओर निर्यात को प्रभावित करते हैं तथा औद्योगिक देशों के परस्पर व्यापार को प्रभावित नहीं करते ।

WTO द्वारा वस्त्र उद्योग और पहनावे सम्बन्धी समझौते का अर्थ होगा “MFA का विलोपन” अथवा वस्त्र उद्योग और पहनावे के उद्योगों में 10 वर्षों के (1995-2004) के लिये सभी गैर-टैरिफ उपायों की समाप्ति । अतः यह वस्त्र उद्योग एवं पहनावे के क्षेत्र का 1 जनवरी 2005 को, W.T.O. के अधीन मुक्त व्यापार प्रणाली में एकीकरण है ।

(ii) दस वर्षों की अवधि का बटवारा तीन सोपानों में होगा पहले तीन वर्षों में 16 प्रतिशत, अगले 4 वर्षों में 17 प्रतिशत और अगले 3 वर्षों में 18 प्रतिशत । इस प्रकार, 1 जनवरी, 2002 तक कुल आयातों का 51 प्रतिशत WTO को मुक्त व्यापार प्रणाली में एकीकृत कर दिया जायेगा जब शेष 49% का एकीकरण 1 जनवरी 2005 तक किया जायेगा ।

(iii) देश WTO व्यवस्थाओं के अधीन उत्पादों पर भेदभावपूर्ण प्रतिबन्ध लागू कर सकते हैं जिन्हें कि पहले GATT अथवा WAT नियमों का विषय नहीं बनाया गया था अथवा जो वर्तमान द्विपक्षीय प्रबन्ध के अधीन नहीं है ।

(iv) विकासशील देशों के हितों को कुछ सुरक्षात्मक नियमों के अधीन सुरक्षित रखा गया है जो अधिकतम तीन वर्षों की अवधि के लिये मान्य हैं । अल्प विकसित देशों को कुछ परिस्थितियों में गैर-टैरिफ उपायों का अनुसरण करने की आज्ञा है यदि आयात उनके घरेलू उद्योगों के लिये खतरा हो ।

Agreement # 2. व्यापार सम्बन्धित बौद्धिक सम्पदा अधिकार [Trade Related Property Rights (TRIPS)]:

नौ प्रकार की बौद्धिक सम्पदा उपलब्ध करते हैं-सूक्ष्म जीवों और पौधों की विविधताओं का एकस्व उनमें से एक है । यद्यपि, समझौता संरक्षण और मानकों के रूपों के सम्बन्ध में खामोश है । WTO के चार वर्ष पूरे होने पर (1999 के पश्चात्) स्थिति पर पुन: विचार की व्यवस्था की गई है ।

तब तक देश ‘Suigeneris’ पर या तो विविधताओं को पेटैन्ट करने या दोनों के मिश्रणों को अपनाने के लिये स्वतन्त्र हैं । जिन देशों में पेटैन्ट की व व्यवस्था नहीं है वहां उस प्रणाली को आरम्भ करने के लिये दो वर्षों की अवधि दी गई है ।

संयोग से, पेटैन्ट आविष्कारों और नव प्रवर्तनों को दिये जाते हैं न कि खोजों को प्राकृतिक जीन अथवा जैव सामग्री को पेटैन्ट नहीं किया जा सकता । अतः निम्नलिखित पेटैन्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर रहेंगे- पौधे, पशु, पौधों और पशुओं के प्रजनन से सम्बन्धित जैविक प्रणाली और व्यक्ति के लिये हानिकारक सभी उत्पाद, पशु अथवा सामान्य पर्यावरण ।

भारत ने ”Sui-Generis” प्रणाली को स्वीकार किया है । यह पेटैन्टों से भिन्न है तथा प्रायः “Plant Breeders’ Rights” (PBR) की संरक्षण प्रणाली के सन्दर्भ में होता है । इसने किसानों को बीज को बचाये रखने की इजाजत दी है, उन्हें अपने खेतों में प्रयोग करने तथा पड़ोसी किसानों के साथ बदलने की इजाजत दी है । शर्त केवल यही है कि बैण्ड वाले बीजों की ‘व्यापारिक बिक्री’ पर प्रतिबन्ध होगा । केवल ‘पौधा प्रजनक’ अधिकार के स्वामी ही अपने प्रजनित पौधों का उत्पादन और बिक्री करेंगे ।

Agreement # 3. व्यापार सम्बन्धित निवेश उपाय (TRIMS):

जो केवल वस्तुओं के व्यापार सम्बन्धी निवेश उपायों पर लागू होते हैं, एक क्षीण समझौता है । यह विदेशी निवेश की बाधाओं को दूर करने की व्यवस्था करता है जो स्वतन्त्र व्यापार में बाधा बनती है, उत्पादन की शर्तों को प्रभावित करती है तथा लागतों और कीमतों को प्रभावित करती है ।

निवेश पर ये बाधाएं अधिकतर विकासशील देशों में पायी जाती हैं और स्वतन्त्र एवं बिना रुकावट विदेशी पूजी के बहाव के विरुद्ध होती हैं इसके अतिरिक्त, यह बाधाएं शर्तों के रूप में होती हैं जिन्हें विदेशी निवेशकों को प्रवेश प्राप्त करने स पहले पूरा करना पड़ता है ।

ये शर्तें हैं:

1. विदेशी निवेशकों को राष्ट्रीय व्यवहार तथा सी सभी सुविधाएं देना जो घरेलू निवेशकों को उपलब्ध हैं ।

2. पाँच वर्षों की अवधि सधी ट्रिमज (TRIMS) दूर करना ।

3. बाहरी निवेशकों को मेजबान देश के प्राथमिकतापूर्ण क्षेत्रों में निवेश के लिये विवश न करना और

4. विदेश निवेशकों को सभी सुविधाएँ उपलब्ध करना ताकि वैश्विक उत्पादन और रोजगार के स्तर में वृद्धि हो तथा उससे सदस्य देशों के भुगतानों के सन्तुलन को राहत मिले ।

संक्षेप में, W.T.O. के अन्तर्गत ट्रिमज (TRIMS) की व्यवस्था विदेशी निवेशकों को विश्व में किसी भी स्थान पर तथा किसी भी आर्थिक गतिविधि में निवेश का अवसर देती है । इसके अतिरिक्त समझौता सुनिश्चित करता है कि सभी इकाईयां वह देशी हो अथवा विदेशी एक समान समझी जायेंगी तथा नियमों और नीतियों के सन्दर्भ में किसी से कोई भेदभाव नहीं होगा । तथापि, निर्यात दायित्वों को पूरा करने के लिये शर्तें लगाई जा सकती हैं ताकि ऐसे उद्यमों के लिये विदेशी विनिमय के बहिर्वाह और अन्तर्वाह का सन्तुलन बना रहे ।

Agreement # 4. व्यापार और सेवाओं पर सामान्य समझौता (General Agreement on Trade and Services) (GATS):

उरुग्वे दौर पहली बार सेवा क्षेत्र को बहुपक्षीय व्यापार नियमों के घेरे में लाता है । सेवाओं में व्यापार (GATS) के सामान्य समझौते के अनुसार केवल दो दायित्व अर्थात् ‘सबसे अधिक कृपादृष्टि वाला राष्ट्र’ (Most Favoured Nation- MFN) जैसा व्यवहार और ‘पारदर्शिता’ सेवाओं के समग्र ब्रह्माण्ड पर लागू होते हैं ।

राष्ट्रीय व्यवहार और बाजार पहुँच अन्य दो वचनबद्धताएँ केवल उन सेवाओं पर लागू होती हैं जो विशेष समझौता वचनबद्धताओं अनुसार खोली जाती हैं । इस प्रकार सेवाओं में व्यापार की परिभाषा-सेवाओं की उत्पादन और वितरण द्वारा पूर्ति, उद्यम की स्थूल उपस्थिति द्वारा बिक्री अथवा सुपुर्दगी द्वारा की जाती है ।

इसके अतिरिक्त विकसित देशों को विस्तृत बाजार उपलब्ध करके वृद्धि का संवर्धन किया जा सकता है और विकासशील देशों में तकनीकों के स्थानान्तरण तथा बैंक, शिप्पिंग, ट्रांसपोर्ट तथा तार संचार आदि जैसी सेवाओं में शुल्क रहित व्यापार की व्यवस्था उपलब्ध की गई है ।

WTO केवल उन सेवाओं में मुक्त व्यापार उपलब्ध करता है जो उन्नत तकनीक पर आधारित हैं तथा जो बैंकिंग, बीमा, शिप्पिंग, ट्रांसपोर्ट, तार संचार और पर्यटन से सम्बन्धित हैं । यह विकसित देशों में वृद्धि विस्तृत बाजारों की उपलब्धता और विकासशील देशों में तकनीकों के स्थानान्तरण द्वारा करेगा । बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को सभी सदस्य देशों में समझौते के अधीन काम करने की स्वतन्त्रता है तथा उन्हें घरेलू कम्पनियों जैसा व्यवहार प्राप्त होगा ।

Agreement # 5. विवाद निपटारा (Dispute Settlement):

विकासशील देशों के अनुदृश्य से यह जानना आवश्यक है कि विवाद निपटारे पर 1966 के तत्व WTO के अन्तर्गत विवाद निपटारा उपायों पर लागू होते रहेंगे । जहां, हमें यह याद रखना आवश्यक है कि इस निर्णय का कभी उपयोग नहीं हुआ है क्योंकि विकासशील देशों ने हाल ही में गैट के विवाद निपटारा उपायों का अधिक प्रयोग आरम्भ किया है ।

इससे विकासशील देशों के लिये विशेष रुचि के लक्षण सम्मिलित हैं, जिसमें WTO के महानिदेशक के अच्छे कार्यालयों तक स्वचलित पहुंच सम्मिलित है जो मध्यस्थता द्वारा विवाद का सन्तोषजनक समाधान खोजेगा और उनके विचार-विमर्श को पूरा करने के लिये ‘छोटी समय-सीमा’ के उपायों का अनुकरण करेगा ।

Agreement # 6. व्यापार नीतियों की निगरानी (Monitoring Trade Policies):

एक व्यापार नीति पुनर्विचार संस्था की व्यवस्था करता है जो सदस्यों की व्यापार नीतियों और व्यवहारों का नियमित मूल्यांकन करेगी, प्रत्येक दो वर्षों में चार बडे व्यापारियों के लिये (ES, US, Japan and Canada), अगले 16 व्यापारियों के लिये प्रत्येक चार वर्ष और बचे हुये व्यापारियों के लिये प्रत्येक 6 वर्ष, यद्यपि बहुत कम विकसित देशों के लिये लम्बे अन्तरालों का सुझाव दिया जा सकता है ।

Agreement # 7. घरेलू समर्थन (Domestic Support):

कृषि के लिए घरेलू समर्थन के उपाय को “Amber Box” माना जाता है यह विकासशील देशों में व्यक्तिगत उत्पाद के उत्पादन के मूल्य का 10 प्रतिशत और विकसित देशों में अधिकतम 5 प्रतिशत तक सीमित है । AMS को (Amber Box) भी कहा जाता है) जिसमें दोनों गैर विशेष अनुदानों (पानी, बिजली ऋण, उर्वरकों, बीजों, कीटनाशकों, फार्म मशीनरी आदि) और उत्पाद विशेष अनुदानों को शामिल किया जाता है यह घरेलू कीमत के आधार को उत्पाद के अन्तर्राष्ट्रीय कीमत से घटा कर निकाला जाता है ।

यदि AMS निर्दिष्ट सीमा (1986-90 आधार) से बढ़ जाती है, देश घरेलू समर्थन को विकासशील देशों की दशा में 10 सालों में प्रतिशत तक और विकसित देशों में 6 सालों में 20 प्रतिशत तक घटाता है । यहाँ उपायों के समर्थन की तीन श्रेणियां हैं जो अनुबंध के अधीन कमी के अधीन नहीं है ।

समर्थन उपायों की छूट की तीन श्रेणियां इस प्रकार हैं:

(a) ”ग्रीन बाक्स” (”Green Box” Measures):

उपाय जिनका व्यापार पर न्यूनतम प्रभाव होता है ।

इसमें निम्न प्रकार की सहायता शामिल होती हैं:

i. साधारण सेवाओं जैसे अनुसंधान, कीटनाशक और बीमारी नियन्त्रण, प्रशिक्षण और सलाह सेवाओं पर सरकारी सहायता ।

ii. खाद्य सुरक्षा उद्देश्यों के लिए सरकारी पूँजी ।

iii. घरेलू खाद्य सहायता ।

iv. उत्पादकों के लिए सीधा भुगतान जैसे आय बीमा और सुरक्षा जाल में सरकारी वित्तीय भागीदारी, कुदरती खतरों से राहत और वातावरणीय सहायता कार्यक्रमों के तहत भुगतानों में ।

v. डीयुग्मित आय समर्थन ।

vi. आय बीमा और आय सुरक्षा नेट कार्यक्रमों में सरकारी वित्तीय भागीदारी ।

vii. कुदरती आपदाओं से राहत के लिए भुगतान ।

viii. उत्पादक, सेवामुक्ति कार्यक्रमों के द्वारा संरचनात्मक समायोजन सहायता, संसाधन सेवा मुक्ति कार्यक्रम, और निवेश सहायता ।

ix. वातावरणीय कार्यक्रमों तहत भुगतान ।

x. प्रादेशिक सहायता कार्यक्रमों के तहत भुगतान ।

(b) ”ब्लू बॉक्स” उपाय (”Blue Box” Measures):

उत्पादन सीमित कार्यक्रम के तहत प्रत्यक्ष भुगतानों को दिखाना । अकेले विकसित देशों के विचार से प्रासंगिकता ।

(c) विकासशील देशों के लिए विशेष और विभिन्न उपचार:

(1) निवेश अनुदान जो विकासशील देशों में कृषि के लिए आमतौर पर उपलब्ध होते हैं, और

(2) कृषि संसाधन सेवाएं जो आमतौर पर विकासशील देशों में कम आय और संसाधन गरीब उत्पादों के उपलब्ध ।

Agreement # 8. निर्यात अनुदान (Export Subsidies):

निर्यात अनुदान कम करने के निश्चित स्तर के अधीन दिया जाता । प्रत्यक्ष निर्यात अनुदान को विकसित देशों में 36 प्रतिशत तक और अनुदान निर्यात की मात्रा को 21 प्रतिशत तक घटाया जाता है । विकासशील देशों में निर्यात अनुदानों को 24 प्रतिशत तक और अनुदान निर्यात की गुणवत्ता को 10 सालों के भीतर 14 प्रतिशत तक कम किया जाता है ।

इसमें विपण की आंतरिक यातायात लागत, निर्यात प्रोत्साहन आदि को शामिल किया जाता है । निर्यात अनुदान जिसमें शामिल नहीं किया जाता था वह है निर्यात क्रेडिट, निर्यात क्रेडिट गारंटी या बीमा । केवल 25 देशों को कृषि पर अनुबंध पर निर्यात अनुदान दिया जाता है । USA, EU, कनाडा, तुर्की और हंगरी द्वारा गेहूँ के मामले में चावल अनुदान 95 प्रतिशत था ।

इंडोनेशिया, उरुगवे, EU, USA और कम्बोडियो में चावल अनुदान 100 प्रतिशत था । चीनी और दुग्ध उत्पादों के मामले में EU निर्यात अनुदानों का प्रमुख उपयोगकर्ता था । यहां तक कि यदि निर्यात अनुदानों को 36 प्रतिशत तक घटाया जाए तो अन्य देशों के साथ प्रतियोगिता करना असाधारण होगा ।

कृषि सरप्लस राज्य जैसे पंजाब और हरियाणा को निर्यात के लिए बुनियादी ढांचे की जरूरत है, जो ग्रीन बाक्स पॉलिसी का हिस्सा है परन्तु सरकार वित्तीय शर्तों के कारण प्रदान करने में अयोग्य थी । भोजन सुरक्षा मूल मुद्दा है, उत्पादकों को प्रेरित करने के लिए निन्त्रतम समर्थन कीमत प्रदान करनी पड़ती है और यहां तक कि मंडी खर्चों और अन्य करों को निर्यातकों पर स्टोरेज की साधारण विपणन लागतों, यातायात आदि के अलावा पर स्टोरेज की साधारण विपणन लागतों, यातायात आदि के अलावा लगावों की बजाये उन्हें निर्यात अनुदान प्रदान किये जाते हैं । कैसे वे विकसित संसार में प्रतियोगिता कर सकते हैं । इसलिए भारत को इस विचार का समर्थन करना चाहिए कि निर्यात अनुदानों को हटाया जाये ।

Agreement # 9. सामाजिक खंड (Social Clause):

ऐसी वस्तुएं जिन्हें विकसित अर्थव्यवस्था द्वारा आयात करों के अधीन लगाया जायेगा ।

इनके नतीजन:

(a) विकासशील देश अग्रिम देशों पर तुलनात्मक हिस्से के जब्त करते हैं ।

(b) बहुराष्ट्रीय फर्में जो विकासशील देशों में निवेश करने में रुचि रखती है । इसे अनाकर्षित मान सकती है ।

(c) अग्रिम देशों के लिए श्रम के प्रवास को रोका जा सकता है । जिसके कारण रोजगार की उच्च दर रहती है और विकासशील अर्थव्यवस्था दुखदायी होती हे ।

(d) बाल श्रम जो कुछ उद्योगों जैसे कारपेट उद्योग में कार्य करने वाली जनसंख्या का महत्वपूर्ण हिस्सा है ऐसे उद्योगों पर गंभीर प्रभाव डालने त्राला माना जाता है ।

इस धारा को अनुबंध में रखा जाता है और भारत ने इसका अन्य विकाशील राष्ट्रों के साथ विरोध किया है ।

TPR प्रक्रिया ने देशों के व्यापार और आर्थिक सुधारों में सहायता की है तथा उरग्वे दौर के अन्तर्गत हुये करण के कुछ भाग में योगदान किया है । भविष्य में गागर TPR प्रक्रिया WTO सदस्यों का समझौतों के कार्यान्वयन के मूल्यांकन में सहायता करेगी तथा व्यापार प्रणाली में भाग लेने वालों को सम्भावित कठिनाइयों की प्रवृतियों की शीघ्र चेतावनी देगी ।

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