मूल्य निर्धारण नीति: अर्थ, उद्देश्य और कारक | Read this article in Hindi to learn about:- 1. विकासशील अर्थव्यवस्था में कीमत नीति का उद्देश्य (Objectives of Pricing Policy in Developing Economy) 2. नियोजित अर्थव्यवस्था में कीमत नीति का महत्व (Importance of Pricing Policy in a Planned Economy) 3. नियोजित अर्थव्यवस्था में कीमत नियमन की आवश्यकता (Need) and Other Details.

Contents:

  1. विकासशील अर्थव्यवस्था में कीमत नीति का उद्देश्य (Objectives of Pricing Policy in Developing Economy)
  2. नियोजित अर्थव्यवस्था में कीमत नीति का महत्व (Importance of Pricing Policy in a Planned Economy)
  3. नियोजित अर्थव्यवस्था में कीमत नियमन की आवश्यकता (Need for Pricing Regulation in Planned Economy)
  4. कीमत नीति के पहलू (Aspects of Price Policing in Developing Economy)
  5. कीमत नीति के सिद्धान्त (Principles of Pricing Policy in Developing Economy)
  6. कीमत नीति के कार्य (Functions of Pricing Policy in Developing Economy)
  7. कृषि कीमत नीति (Agricultural Price Policing in Developing Economy)
  8. औद्यगिक वस्तुओं की कीमतें (Prices of Industrial Products)
  9. सार्वजनिक क्षेत्र में कीमत नीति (Pricing Policy in Public Sector)

1. विकासशील अर्थव्यवस्था में कीमत नीति का उद्देश्य (Objectives of Pricing Policy in Developing Economy):

तीव्र विकास की प्राप्ति में कीमत नीति अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । एक उचित कीमत नीति आर्थिक विकास के लिये अधिक धन उपलब्ध कर सकती है । यह बचतों की वृद्धि और पूँजी निर्माण में सहायक हो सकती है । निवेश के लिये बड़े प्रोत्साहन उपलब्ध होने से निवेश बढ़ता है । इसका उपयोग आर्थिक स्थायित्व की स्थापना और साधनों के अधिक न्यायपूर्ण आबंटन के लिये किया जा सकता है ।

इसलिये किसी अल्पविकसित देश में कीमत नीति को प्राय: निम्नलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये कार्य करना चाहिये:

ADVERTISEMENTS:

(i) निम्न आय-वर्ग के लोगों द्वारा प्रयुक्त होने वाली आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में तीव्र वृद्धि को रोकना ।

(ii) कीमतों की स्फीतिकारी प्रवृत्ति और स्फीति की बुराईयों को रोकना । अन्य शब्दों में मूल्य स्थायित्व लाने में सहायता करना ।

(iii) उत्पादकों के लिये प्रोत्साहक कीमतें बनाये रखना ।

(iv) उपभोक्ता वस्तुओं में उत्पादन और आय कीं वृद्धि में उचित सन्तुलन कायम रखना ।

ADVERTISEMENTS:

(v) यह सुनिश्चित करना कि सापेक्ष कीमतों का चलन योजनाओं में दी गई वरीयताओं के अनुकूल हैं ।


2. नियोजित अर्थव्यवस्था में कीमत नीति का महत्व (Importance of Pricing Policy in a Planned Economy):

यदि नियोजित अर्थव्यवस्था में कीमतें लगातार बढ़ती है तो एक सुनिर्मित कीमत नीति का विशेष महत्व होता है । इसके प्रभाव केवल लोगों के जीवन स्तर पर ही नहीं पड़ते बल्कि पूर्ण योजना के व्यय में वृद्धि के कारण, नियोजन के निर्धारित लक्ष्य और उद्देश्य भी बिखर जाते है । फलत: आर्थिक विकास में बाधा पड़ती है ।

परन्तु अल्पविकसित देशों में आर्थिक विकास के साथ कीमत वृद्धि प्राकृतिक होती है । जब तक लोगों की मौद्रिक आय में वृद्धि कीमत में वृद्धि से अधिक होती है तब तक चिन्ता का विषय नहीं होता, परन्तु जब निवेश एवं राष्ट्रीय आय से कीमत वृद्धि अधिक होती है तो अर्थव्यवस्था को मौद्रिक उतार-चढ़ाव की त्रुटियों से सुरक्षित करने की आवश्यकता होती है । जिसके लिये कीमत नियमन की आवश्यकता होती है ।

संक्षेप में, विकासशील देशों में कीमत नीति का महत्व इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है:

ADVERTISEMENTS:

1. उचित जीवन स्तर बनाये रखना (To Maintain Appropriate Living Standard):

कीमतों की वृद्धि से लोगों का जीवन स्तर गिर जाता है और देश का आर्थिक विकास प्रतिबन्धित होता है । उचित जीवन स्तर बनाये रखने के लिये कीमतों को नियन्त्रित रखना आवश्यक है ।

2. आयोजन को बनाये रखना (To Maintain Planning):

कीमतों के बढ़ने से आयोजन का कार्य बढ़ जाता है जिससे आयोजन के निर्धारित लक्ष्यों और उद्देश्यों में बाधा पड़ती है । आयोजन प्रक्रिया के बढ़िया संचालन को बनाये रखने के लिये कीमतों को हर हालत में नियन्त्रित रखा जाये ।

3. मौद्रिक उतार-चढ़ाव से रक्षा (Protection from Monetary Fluctuations):

जब कीमत वृद्धि निवेश एवं राष्ट्रीय आय में वृद्धि से अधिक होती है तो मौद्रिक उतार-चढ़ाव की त्रुटियां उत्पन्न हो जाती हैं जिन्हें दूर करने के लिये उचित कीमत नियन्त्रण आवश्यक है ।

4. मांग और पूर्ति में सन्तुलन की स्थापना (Establishment of Balance in Demand and Supply):

किसी विकासशील अर्थव्यवस्था में बदलती हुई परिस्थितियों के कारण मांग और पूर्ति का सन्तुलन बिगड़ जाता है जिससे उपभोक्ता, उत्पादक और निवेश कर्ताओं को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । इससे स्पष्ट है कि माँग और पूर्ति को ठीक प्रकार से सन्तुलित करने की आवश्यकता है ।

5. सुसमायोजित वितरण प्रबन्ध के लिये (For Well Adjusted Distribution Management):

उपभोक्ताओं के दृष्टिकोण से कम कीमतों पर वस्तुओं की शीघ्र पूर्ति के लिये वितरण प्रबन्ध सुसमायोजित होना चाहिये तथा इसके लिये, विशेषतया उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों का नियन्त्रण आवश्यक है ।


3. नियोजित अर्थव्यवस्था में कीमत नियमन की आवश्यकता (Need for Pricing Regulation in Planned Economy):

विकासशील देशों को निम्नलिखित कारणों से कीमत नियमन की आवश्यकता होती है:

(i) कीमतों में उतार-चढ़ाव आर्थिक विकास में बाधा बनते हैं । अत: सन्तुलित विकास के लिये कीमतों पर उचित नियन्त्रण की आवश्यकता है ।

(ii) आयोजन एवं निवेश की सुदृढ़ रूप रेखा बनाये रखने के लिये प्रजातान्त्रिक देश में कीमत नियमन की आवश्यकता होती है ।

(iii) जब उपभोक्ता सूचकांक बढ़ जाता है तो श्रमिक अधिक वेतनों की माँग करते हैं । वेतन बढ़ने से उत्पादन की लागत बढ़ती है, अत: उपभोक्ता सूचक को सुदृढ़ बनाने के लिये कीमत नियमन की आवश्यकता होती है ।

(iv) लोगों की वास्तविक आय कम हो जाती है, कीमतें बढ़ जाती हैं और मुद्रा का अवमूल्यन हो जाता है इससे बचतों और पूँजी निर्माण में कमी होती है, आर्थिक विकास प्रतिबन्धित होता है । अत: बचतों के प्रोत्साहन के लिये कीमत नियमन समय की मांग है ।

(v) भुगतान सन्तुलन और विदेशी विनिमय की बचतों को हित्तकर बनाये रखने के लिये, निर्यात आयातों से अधिक होने चाहियें । यह नियन्त्रित कीमत नीति द्वारा ही सम्भव है ।

(vi) प्रजातान्त्रिक अर्थव्यवस्था में आयोजन की सफलता लोगों के सहयोग और लोगों की भावनाओं पर निर्भर करती है ।

(vii) उपभोक्ताओं को कम कीमत पर वस्तुओं की पूर्ति करना अर्थात् वितरण व्यवस्था का सुप्रचालन, कीमत नियमन नीति आदि को विकासशील देश की आवश्यकता समझा जाता है ।

(viii) देश के बाजार-तन्त्र के स्थायित्व को भी नियन्त्रित कीमत नीति की आवश्यकता होती है ।

(ix) कीमत वृद्धि की मौद्रिक स्फीति को रोकने के लिये नियन्त्रित कीमत नीति की आवश्यकता है ।


4. कीमत नीति के पहलू (Aspects of Pricing Policy in Developing Economy):

i. कीमत नीति के व्यष्टिगत पहलू (Micro Aspects of Price Policy):

कीमत नीति को इसके व्यष्टिगत पहलू में, अर्थव्यवस्था में अप्रयुक्त साधनों के उपयोग के लिये एक प्रोत्साहन के रूप में प्रयोग किया जाना चाहिये । इसे योजना में निर्धारित प्राथमिकताओं के अनुसार साधनों के उपभोग का संवर्धन करना चाहिये तथा साधनों का गैर-आवश्यक क्षेत्रों की ओर बहाव रोकना चाहिये ।

निवेश और मूलभूत उपभोग के लिये आवश्यक वस्तुओं को छोड़कर उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन के लिये साधनों के प्रयोग को नियन्त्रित करना चाहिये । वी.के.आर.वी.रॉव के शब्दों में- अपने व्यष्टिगत पहलू में कीमत नीति को मूलभूत निवेश वस्तुओं के उत्पादन को निरन्तर अधिकतम बनाने का लक्ष्य रखना चाहिये तथा इसके साथ ही उपभोक्ता वस्तुओं की प्राप्ति का लक्ष्य रखना चाहिये जो निवेश व्यय में वृद्धि के परिणामस्वरूप उपभोग व्यय में वृद्धि के अनुकूत होगा ।

इसलिये कीमत तन्त्र अपने व्यष्टि रूप में इच्छित निवेश के लिये प्रोत्साहक और अवांछित मार्गों में निवेश के लिये बाधक के रूप में उपयुक्त होगा । वास्तव में, यह निवेश व्यय को उपयुक्त मार्गों की ओर निर्देशित करने का उपकरण है ।

ii. कीमत नीति का समष्टिगत पहलू (Macro Aspect of Price Policy):

अपने समष्टिगत रूप में कीमत नीति मौद्रिक एवं राजकोषीय नीति का रूप धारण करती है । भारी विकास व्यय उत्पादन के कारकों की मांग को आगे बढ़ाता है और उनकी कीमतें बढ़ती हैं । जिसके परिणामस्वरूप लोगों की मौद्रिक आय बढ़ती है जो व्यय और मांग और वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि की ओर ले जाती है ।

इस स्फीतिकारी प्रवृत्ति को रोकने के लिये मौद्रिक एवं राजकोषीय उपाय अपनाने आवश्यक होंगे । मौद्रिक नीति को निवेश और परिणामित आय की रचना को गलत दिशाओं में जाने से रोकने का लक्ष्य रखना चाहिये । यह एक उचित ब्याज नीति और चयनात्मक साख नियन्त्रणों द्वारा सम्भव है ।

राजकोषीय नीति का लक्ष्य ऐसी आय को कम करना होना चाहिये जो व्यय को गलत दिशाओं की ओर ले जाती है । यह एक उचित कर नीति द्वारा सम्भव हो सकता है । इसके अतिरिक्त, मौद्रिक एवं राजकोषीय नीति दोनों को समाज में बचतों को अधिकत्तम बनाने का कार्य करना चाहिये ।

अत: कीमतों के सम्बन्ध में समष्टि नीति व्यक्तिगत कीमतों पर सीधे प्रभाव द्वारा संचालित नहीं होती परन्तु परोक्ष रूप में आय रचना और आय उपयोग पर इसके प्रभाव द्वारा संचालित होती है । इस प्रकार, कीमतों में सभी परिवर्तनों के लिये, दो चर मौद्रिक ढांचे का निर्धारण करते हैं ।


5. कीमत नीति के सिद्धान्त (Principles of Price Policy in Developing Economy):

वी. के आर. वी रॉव ने कीमत नीति के निम्नलिखित मौलिक सिद्धान्तों का वर्णन किया:

1. आय और उत्पादन की वृद्धि में समानता (Equality in Increase of Income and Production):

कीमत नीति ऐसी होनी चाहिये कि राष्ट्रीय आय और राष्ट्रीय उत्पादन में समान वृद्धि होनी चाहिये । इससे कीमत वृद्धि की सम्भावना नहीं होगी । अत: विकासशील देशों में सरकार को प्रयत्न करना चाहिये कि आय में वृद्धि उत्पादन में वृद्धि से कम न हो अन्यथा कीमतें बढ़ेंगी ।

2. स्थानान्तरण द्वारा आय वृद्धि (Income Increase by Transfer):

एक विकासशील अर्थव्यवस्था में, किसी श्रेणी अथवा क्षेत्र में वृद्धि आवश्यक रूप में, अन्य क्षेत्र अथवा श्रेणी की कम आय के स्थानान्तरण द्वारा होनी चाहिये अन्यथा किसी श्रेणी की मांग में वृद्धि तथा किसी अन्य श्रेणी की मांग में कमी प्रतिस्थापन कर लेंगी तथा कीमत वृद्धि को जन्म देंगी अर्थात् अर्थव्यवस्था में स्फीतिकारी आवेग को जन्म देंगी ।

3. बचतों और निवेश में सन्तुलन (Balance in Savings and Investment):

एक विकासशील अर्थव्यवस्था को चाहिये कि जहां तक सम्भव हो बचतों और निवेश में सन्तुलन रखे अन्यथा बचतों में कमी मौद्रिक उतार-चढ़ाव को जन्म देगी । अन्य शब्दों में बचत का बढ़ते हुये निवेश के बराबर होना आवश्यक है ।

4. पर्याप्त वितरण प्रबन्ध (Adequate Distribution Management):

यदि अनिवार्य उपभोक्ता वस्तुओं की पूर्ति मांग के अनुकूल है तो कीमत स्थायित्व होगा । परन्तु लघुकाल में यह सम्भव नहीं । ऐसी स्थितियों में मूल्य नियन्त्रण, वितरण नियन्त्रण तथा कीमत प्रोत्साहन नीति का समंजस्यतापूर्ण प्रयोग किया जाना चाहिये । अनिवार्य वस्तुओं की मांग और पूर्ति में सन्तुलन बनाये रखने के लिये ठीक नियन्त्रण आवश्यक है ।

5. अनिवार्य उपभोग की वस्तुओं की कीमतों पर नियन्त्रण (Control over the Prices of Goods of Compulsory Consumption):

अल्पविकसित देशों में उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के कारण मुद्रा स्फीति होती है न कि कीमत वृद्धि को पूंजी में परिणत करने से । अत: कीमत नीति द्वारा केवल अनिवार्य उपभोक्ता वस्तुओं का नियन्त्रण करना चाहिये । इसके अतिरिक्त, यह लागत स्फीति को जन्म देती है और कीमतों में इस प्रकार वृद्धि को तुरन्त नियन्त्रित करना चाहिये ।

6. प्रतिरोधक भण्डार का निर्माण (Formation of Buffer Stock):

विकासशील देशों में प्रतिरोधक भण्डारों की स्थापना करनी चाहिये ताकि सूखा, भारी वर्षा, अकाल और बाढ़ जैसी अकस्मात अथवा अस्थायी स्थितियों के कारण कीमतों की वृद्धि को नियन्त्रित किया जा सके । ऐसी स्थितियों में ऐसे भण्डार वांछित वस्तुएं उपलब्ध कर सकते हैं ।


6. कीमत नीति के कार्य (Functions of Price Policy in Developing Economy):

विकासशील देशों में कीमत नीति निम्नलिखित महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न करने होते हैं:

1. स्थिरता (Stability):

विकासशील अर्थव्यवस्था में मूलभूत उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है । इसलिये आवश्यक है कि उपभोक्ता के कीमत सूचनांक में स्थायित्व बनाये रखा जाये ।

कीमतों के स्थायित्व को बनाये रखने की दृढ़ आवश्यकता है, विशेषतया उन वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों का जिनका अत्यधिक उपयोग होता है । यदि उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों को बढ़ने दिया जाता है तो श्रमिक उच्च मजदूरी की मांग करेंगे जिससे उत्पादन की लागत में वृद्धि होगी तथा कीमतें और भी बढ़ेगी ।

स्फीतिकारी शक्तियों को नियन्त्रित रखने के लिये आवश्यक है कि आधारभूत उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों को स्थिर रखा जाये । कीमतों के स्थायित्व के लिये आवश्यक है कि उपभोक्ता वस्तुओं पर व्यय में वृद्धि के साथ, बिक्री के लिये प्रस्तुत उपभोक्ता वस्तुओं की मात्रा में उतनी ही वृद्धि हो ।

इस प्रकार, कीमत वृद्धि हानिकारक नहीं होगी यदि उत्पादन कीमत वृद्धियों के प्रति संवेदनशील होगा, क्योंकि इस स्थिति में उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन बढ़ेगा तथा ऐसी कीमत वृद्धि स्वविनाशक होगी ।

2. पूँजी निर्माण (Capital Formation):

उपभोग को प्रतिबन्धित करके यह एक अन्य कार्य करता है, कीमत नीति इस योग्य होनी चाहिये कि यह पूँजी निर्माण के लिये साधनों को मुक्त करें । अल्पविकसित देशों में उपभोग को नियन्त्रित करना बचतों के स्तर को बढ़ाने का मुख्य कारक है, अत: एक न्याय संगत मूल्य नीति इस दिशा में बहुत सहायक सिद्ध हो सकती है ।

3. उचित मार्ग के लिये मांग (Demand for Proper Channel):

कीमत नीति ऐसी होनी चाहिये जो मांग को सही मार्गों की ओर निर्देशित करने में सहायक हो । इसका अभिप्राय है कि वह अनावश्यक वस्तुओं के उपभोग को समाप्त कर सकती हो सके । कीमत वृद्धि से उत्पादन में वृद्धि नहीं होती ।

स्पष्ट है कि कीमतों की वृद्धि में पक्ष में कोई तर्क नहीं है तथा ऐसी वृद्धि को रोकने के सभी संभव उपाय किये जाने चाहिये । परन्तु कीमतों में वृद्धि उपभोग में कमी अथवा अनावश्यक दिशाओं में साधनों के उपभोग को कम करने में सहायक हो सकती है ।

इसलिये, कीमतों में वृद्धि तब भी स्वीकार्य हो सकती है यदि यह कुल उत्पादन में वृद्धि नहीं करती बशर्ते कि यह मांग के पुनर्निर्देशन, उत्पादक शक्तियों के पुननिर्धारण और उत्पादन को वांछित दिशाओं की ओर ले जाये ।

4. प्रोत्साहन (Incentive):

कीमत नीति के लिये आवश्यक है कि वह कुल उत्पादन बढ़ाने के लिये उचित प्रोत्साहन उपलब्ध करें । बढ़ती हुई कीमतें निवेश के लिये उचित परिस्थितियों की रचना करती हैं । निवेश की प्रेरणा कम होने की स्थिति में वह निवेश को प्रोत्साहित करती हैं ।

विकासशील अर्थव्यवस्था में कीमत नीति ऐसी होनी चाहिये जो खाद्य पदार्थों और उपभोग की अन्य आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि को प्रोत्साहन उपलब्ध करा सके । संयम से बढ़ता हुआ कीमत स्तर, अधिक निवेश और उत्पादन के लिये सर्वोत्तम स्थितियों की रचना करता है ।


7. कृषि कीमत नीति (Agricultural Price Policy in Developing Economy):

एक विकासशील अर्थव्यवस्था में, कृषि सम्बन्धी कीमत नीति कीमत नीति का एक महत्वपूर्ण भाग हैं । किसी अल्पविकसित अर्थव्यवस्था के विकास की कुली एक न्याय-संगत कृषि कीमत नीति में निहित है । कृषि वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन, सामान्य कीमत स्तर को बहुत प्रभावित करते हैं ।

ऐसे देशों में जनसंख्या का लगभग 65 प्रतिशत भाग स्पष्ट अथवा परोक्ष रूप में कृषि पर निर्भर होता है तथा उनका कल्याण कृषि वस्तुओं की कीमतों द्वारा प्रभावित होता है । उपभोक्ता अपनी आय का एक बड़ा भाग कृषि वस्तुओं पर खर्च करते हैं तथा यह बदले में लोगों के सामान्य कल्याण को प्रभावित करता है ।

खाद्य पदार्थों की उच्च कीमतें श्रम अशान्ति की ओर ले जा सकती है जिससे उच्च वेतनों की माँग उत्पन्न हो सकती है जिसका प्रभाव स्फीतिकारी हो सकता है । इसके अतिरिक्त, कृषि से सम्बन्धित कच्चे माल की कीमतें औद्योगिक उत्पादों की उत्पादन लागत को प्रभावित करती हैं । इस कारण से, कृषि से सम्बन्धित मूल्य किसी विकासशील अर्थव्यवस्था में केन्द्रीय स्थान रखते हैं ।

कृषि मूल्यों की नीति के निम्नलिखित उद्देश्य हो सकते हैं:

1. अनावश्यक व्यापारिक उतार-चढ़ाव की उपेक्षा द्वारा कृषि कीमतों में विवेकशील स्थायित्व कायम करना ।

2. कृषकों को प्रोत्साहक कीमतें उपलब्ध करना, कृषि वस्तुओं की कीमतें बहुत कम नहीं होनी चाहिये । वास्तव में, उन्हें उत्पादन बढ़ाने के लिये प्रोत्साहन उपलब्ध करने चाहिये ।

इस प्रकार कृषि से सम्बन्धित कीमत नीति का उद्देश्य कृषि वस्तुओं की कीमतों में उतार-चढ़ाव को कम करना होना चाहिये ताकि अधिक फसल होने की स्थिति में, उत्पादकों को कीमतों के गिरने से होने वाली हानि से बचाया जा सके, और फसल की असफलता की स्थिति में उपभोक्ताओं को कीमतों की तीव्र वृद्धि से होने वाली कठिनाइयों से बचाया जा सके ।

कृषि सम्बन्धी कीमत नीति के मुख्य लक्ष्ण निम्नलिखित अनुसार संक्षिप्त किये गये हैं:

1. कृषि वस्तुओं की उच्चतम और न्यूनतम कीमतें विशेषतया खाद्य अनाजों की कीमतें निश्चित की जानी चाहिये । न्यूनतम और उच्चतम कीमतों का निर्धारण कृषि कीमत नीति का मुख्य नियम है ।

एक ओर, एक फसल के लिये न्यूनतम कीमत का निर्धारण विभिन्न क्षेत्रों में क्षेत्रीय विविधताओं को ध्यान में रखते हुये इस प्रकार किया जाना चाहिये कि उत्पादकों को उत्पादन बढ़ाने के लिये प्रोत्साहन प्राप्त हो । जब कि दूसरी ओर, अधिकतम कीमत इस प्रकार निर्धारित की जाये जिससे उपभोक्ताओं पर अनावश्यक बोझ न पड़े ।

2. बड़े स्तर पर प्रतिरोधक भण्डार की रचना अवश्य की जाये । केवल प्रतिरोधक भण्डार की स्थापना द्वारा ही सरकार बाजार में कीमतों का परिचालन कर सकती है । यदि घरेलू उत्पादन पर्याप्त नहीं है तो प्रतिरोधक भण्डार की रचना के लिये आयातों का प्रबन्ध करना आवश्यक है ।

3. उचित वितरण के लिये थोक स्तर पर सरकार द्वारा व्यापार तथा खुरदरा (Retail) स्तर पर सहकारी संस्थाओं की स्थापना आवश्यक है । जहां तक खाद्य पदार्थों के व्यापार का सम्बन्ध है, जहां तक सम्भव हो सके इसे निजी हाथों में नहीं रहने दिया जाये ।

4. कृषि नीति का उत्पादन प्रवृतिक होना आवश्यक है ।

5. विभिन्न कृषि वस्तुओं की कीमतों के बीच सापेक्ष एकरुपता बनाये रखना आवश्यक है । कृषि एवं औद्योगिक वस्तुओं की कीमतों में उचित सम्बन्ध बनाये रखना आवश्यक है ।

6. देश में उत्पादन बढ़ाने के सभी सम्भव उपाय करना आवश्यक है ।


8. औद्यगिक वस्तुओं की कीमतें (Prices of Industrial Products):

कृषि वस्तुओं की कीमत नीति की भान्ति, औद्योगिक उत्पादों को निम्नलिखित दिशाओं में निर्धारित नीति के अनुसार कार्य करना आवश्यक है:

1. गैर आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं अथवा विलासतापूर्ण वस्तुओं की कीमतों को बाजार शक्तियों पर छोड़ दिया जाना चाहिये । इन वस्तुओं के प्रकरण में उच्च कीमतें स्वीकार की जा सकती हैं । इसके अतिरिक्त, उच्च कराधान और साधनों का नियन्त्रित आवंटन करना आवश्यक है ।

2. औद्योगिक कच्चे माल जैसे लोह और इस्पात, सीमेन्ट, कोयला, रसायन आदि की कीमतों पर नियन्त्रण आवश्यक है । इससे निर्मित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि को रोकने में सहायता मिलती है ।

3. निर्यात बढ़ाने के लिये उपभोग कम करने हेतु तथा उत्पादन एवं निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये, उच्च कीमतों की नीति स्वीकार की जानी चाहिये । परन्तु यह ध्यान रखना आवश्यक है कि यह लाभों अत्यधिक की ओर न ले जाये ।

4. कृषि एवं उद्योग क्षेत्रों में उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं दोनों के सांझे हितों की रक्षा आवश्यक है ।

5. घरेलू उपभोक्ताओं के लिये निर्यात योग्य वस्तुओं की कीमतें ऊँची रखी जाये ताकि उपभोग को कम किया जा सके । इन वस्तुओं को विदेशी बाजार में, हानि की ओर ध्यान दिये बिना, कम कीमतों पर बेचा जा सकता है ।


9. सार्वजनिक क्षेत्र में कीमत नीति (Price Policy in Public Sector):

सार्वजनिक क्षेत्र की कीमत नीति निजी क्षेत्र द्वारा अपनायी गई नीतियों से बहुत भिन्न होती है । निजी क्षेत्र में कीमतों का निर्धारण लाभ के उद्देश्य से किया जाता है । कर-व्यवस्था जो पूँजी एवं उद्यम को आकर्षित करती है को भी ध्यान में रखा जाता है ।

परन्तु इसके विपरीत, सार्वजनिक क्षेत्र में कीमत नीति को आर्थिक और व्यावसायिक विचारों की और ध्यान न देते हुये, सामाजिक कल्याण के विचार द्वारा मार्गदर्शित होना चाहिये ।

एकाधिकारिक परिस्थितियों में, सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा उत्पादित वस्तुओं की कीमत कम हो सकती है क्योंकि सरकार उपभोक्ताओं को रियायतें देती है । तथापि, सार्वजनिक क्षेत्र में कीमत नीति निर्धारित करने के लिये तीन नियमों का अनुकरण किया जा सकता है ।

जो निम्नलिखित हैं:

1. जन उपयोगी सेवाओं जैसे सुरक्षा, शिक्षा, नागरिक सेवाएं आदि के प्रकरण में, जो व्यक्ति को उपलब्ध की गई सेवा की लागत को ध्यान में न रखते हुये निःशुल्क उपलब्ध की जाती हैं । जॉन एफ. डयु ने (John F. Due) इस प्रकार के चार प्रकरणों का उल्लेख किया हैं जहां सेवाएं निःशुल्क उपलब्ध की जानी चाहिये तथा लागत सामान्य कराधान से वसूल की जानी चाहिये ।

वह हैं:

(i) सेवाओं का स्वरूप ऐसा है कि यदि उन्हें निःशुल्क उपलब्ध किया जाता है तो कोई व्यर्थता नहीं होती ।

(ii) सेवाओं का स्वरूप ऐसा है कि कीमत एकत्रित करने की लागतें ऊँची हो ।

(iii) समग्र समाज के लिये प्रदान की गई सेवाएं ऐसी हैं कि एक कीमत वसूलने से सेवा के प्रयोग पर अनावश्यक प्रतिबन्ध लगेगा ।

(iv) वह सेवाएं जो आय और धन के समान वितरण की ओर ले जाती हैं ।

2. सेवाओं की अनिवार्य लागत के प्रकरण में, लाभ प्राप्त करने वालों को पहचाना जाना चाहिये तथा उनको उपलब्ध की गई अथवा कल्पित सेवा के लिये लागत के अनुपात में वसूली की जाये । यह नियम गली में प्रकाश उपलब्ध करने के प्रकरण में लागू होता है ।

3. स्वैच्छिक कीमतों के प्रकरण में, यह उसके लिये मांगी जाती हैं जहां सार्वजनिक सेवाओं के उपभोक्ता, सार्वजनिक प्राधिकरण द्वारा निर्धारित कीमत का भुगतान करके सार्वजनिक सेवाओं में से किसी एक का चयन करने हेतु स्वतन्त्र हैं ।

इस प्रयोजन से निम्नलिखित तीन नियमों का अनुकरण किया जाता है:

(i) सीमान्त लागत मूल्य का सिद्धान्त,

(ii) न लाभ न हानि का सिद्धान्त,

(iii) एक अतिरेक अर्जित करने का सिद्धान्त ।


Home››Economics››Price Policy››