मौद्रिक नीति के शीर्ष छह उद्देश्य | Top 6 Objectives of Monetary Policy in Hindi. Read this article in Hindi to learn about the top six objectives of monetary policy. The objectives are:- 1. मुद्रा की निष्क्रियता (Neutrality of Money) 2. विनिमय स्थायित्व (Exchange Stability) 3. कीमत स्थायित्व (Price Stability) 4. पूर्ण रोजगार (Full Employment) 5. आर्थिक वृद्धि (Economic Growth) 6. भुगतानों के सन्तुलन में समत्व (Equilibrium in the Balance of Payment).

मौद्रिक नीति के उद्देश्य विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न समयों पर बदलते रहते हैं, उनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है:

Objective # 1. मुद्रा की निष्क्रियता (Neutrality of Money):

वर्कस्टीड (Worksteed), हेक (Hayck) और राबर्टसन (Robertson) जैसे अर्थशास्त्री निष्क्रिय मुद्रा के मुख्य प्रतिपादक है । उनका विचार है कि मौद्रिक प्राधिकरण को अर्थव्यवस्था में मुद्रा की निष्क्रियता का लक्ष्य रखना चाहिये ।

कोई भी मौद्रिक परिवर्तन सभी आर्थिक उतार-चढ़ावों का मूल कारण होता है । निष्क्रियतावादियों के अनुसार, मौद्रिक परिवर्तन देश की आर्थिक व्यवस्था के उचित संचालन में विशुद्धियां और अड़चनें उत्पन्न करते हैं ।

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उनका दृढ़ विश्वास है कि यदि किसी प्रकार निष्क्रिय मौद्रिक नीति का अनुकरण किया जाता है तो कोई चक्रीय उतार-चढ़ाव नहीं होंगे और अर्थव्यवस्था व्यापार चक्र, मुद्रा स्फीति अथवा अवस्फीति नहीं होंगे ।

इस प्रणाली के अर्न्तगत मौद्रिक प्राधिकरण द्वारा मुद्रा को स्थिर रखा जाता है । इस प्रकार, मुद्रा की निष्क्रियता से विचलित न होना ही मौद्रिक प्राधिकरण का मुख्य लक्ष्य है ।

इसका अर्थ है कि मुद्रा की मात्रा पूर्णतया स्थिर होनी चाहिये । अन्य शब्दों में, मुद्रा केवल तकनीकी उपकरण है और राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में केवल निष्क्रिय भूमिका निभाती है और अर्थव्यवस्था के संचालन में यह केवल तटस्थ भूमिका निभाती है ।

परन्तु, मुद्रा की मात्रा में परिवर्तनों के कारण यह सम्भव नहीं भी हो सकता । वास्तव में इसे आर्थिक में होने वाले मौलिक परिवर्तनों का सामना करने के योग्य होना चाहिये ।

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इस प्रकार, निष्क्रिय मुद्रा नीति की निम्नलिखित आधारों पर तीव्र आलोचना की गई है:

(i) एक गलत धारणा होने के कारण इसका कार्यान्वयन नहीं किया जा सका । अत: अब इसे त्याग दिया गया है ।

(ii) यदि मुद्रा की पूर्ति को किसी एक विशेष स्तर पर स्थिर रखा जाता है तो भी यह नियम की स्थिरता सुनिश्चित नहीं करता ।

(iii) निष्क्रिय मुद्रा की अवधारणा अर्थव्यवस्था में मन्दी के आगमन की व्याख्या नहीं करती ।

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(iv) यह स्व-खण्डनक है क्योंकि यह मुद्रा के लिये तटस्थ भूमिका का दावा करती है (स्वतन्त्र नीति पर आधारित) ।

Objective # 2. विनिमय स्थायित्व (Exchange Stability):

विनिमय स्थायित्व मौद्रिक प्राधिकरण का परम्परावादी लक्ष्य था । यह विभिन्न देशों में स्वर्ण मानक (Gold Standard) के अन्तर्गत मुख्य उद्देश्य था जब देश के भुगतानों के सन्तुलन में असन्तुलन था तो यह चलनों द्वारा स्वयं ठीक हो गया था ।

यह इस प्रकार लोकप्रिय था- ”जब स्वर्ण भीतर आ रहा है तो मुद्रा और साख को बढ़ाये और जब स्वर्ण बाहर जा रहा है तो मुद्रा और साख को संकुचित करें ।” इस प्रणाली से भुगतानों के सन्तुलन में असन्तुलन ठीक हो जायेगा और विनिमय स्थायित्व बना रहेगा ।

यह याद रखना आवश्यक है कि यदि विनिमय दरों में अस्थायित्व होगा तो इसके परिणाम में स्वर्ण का बहिर्वाह अथवा अन्तर्वाह होगा, फलत: भुगतानों का सन्तुलन अहितकर होगा । इसलिये सुस्थिर विनिमय दर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में मुख्य भूमिका निभाता है । अन्य शब्दों में, विपरीत शक्तियां जो विनिमय दरों में अस्थायित्व लाती हैं उन्हें दूर करने के प्रयत्न किये जाने चाहिये ।

विनिमय दर में अस्थिरता से अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित प्रभाव होंगे:

(i) यह उग्र उतार-चढ़ावों की ओर ले जाता है जिससे बाजार में सट्टेबाजी वाली गतिविधियां प्रोत्साहित होती हैं ।

(ii) उच्च उतार-चढ़ावों के कारण घरेलू एवं विदेशी पूंजीपतियों का विश्वास उठ जाता है ।

(iii) विनिमय दरों में उतार-चढ़ाव आन्तरिक कीमत स्तर पर विपरीत प्रभाव डालते हैं ।

अर्थव्यवस्था की इन हानियों के बावजूद विनिमय स्थायित्व को एक ऐसे देश के लिये सर्वोच्च माना जाता है जो अन्य देशों के साथ सौहार्दपूर्ण आर्थिक और राजनीतिक सम्बन्ध बनाये रखना चाहता है ।

Objective # 3. कीमत स्थायित्व (Price Stability):

क्रुस्टार कस्सलज (Crustar Cussels) और केन्ज़ (Keynes) जैसे अर्थशास्त्रियों का विचार था कि कीमतों का स्थायित्व मौद्रिक नीति का मुख्य उद्देश्य है । कीमतों में ऊपर अथवा नीचे की ओर उतार-चढ़ाव आर्थिक व्यवस्था एवं प्रत्याशाओं को क्षति पहुंचाता है और समाज के भिन्न-भिन्न वर्गों पर भिन्न-भिन्न प्रभाव डालता है ।

ऋण लेने वालों को लाभ पहुंचता है और ऋण देने वालों को हानि । संक्षेप में, राजनीतिक उथल-पुथल और अशान्ति एक सामान्य लक्षण बन जाता है । कीमत अस्थायित्व का समग्र प्रभाव हानिकारक और भयानक होता है ।

श्रम और पूंजी के बीच सम्बन्ध तनावपूर्ण बन जाते हैं और आय का वितरण अव्यवस्थित हो जाता है । इसी प्रकार कीमतों में गिरावट, उत्पादन और लाभों की गिरावट की ओर ले जाती है तथा अन्त में अर्थव्यवस्था मन्दी और अव्यवस्था की गिरफ्त में आ जाती है ।

इस दो-तरफा स्थिति को ध्यान में रखते हुये, कीमत स्थिरता को मौद्रिक नीति का एक अति उचित लक्ष्य माना जाता है । अत: कीमत स्थायित्व का अर्थ कीमत की कठोरता अथवा कीमत की निश्चलता नहीं है ।

कीमत स्तर में थोड़ी सी वृद्धि आर्थिक विकास के लिये टॉनिक का कार्य करती है । यह सुस्थिर कीमत के सभी गुणों को बनाये रखती है । I.M.F. का एक अध्ययन दर्शाता है कि कीमतों में दो या तीन प्रतिशत वार्षिक वृद्धि, तीव्र विकास की इच्छा रखने वाले अल्प विकसित देशों के लिये वांछनीय है ।

Objective # 4. पूर्ण रोजगार (Full Employment):

विश्व मन्दी के दौरान, बेरोजगारी की समस्या कई गुणा बढ़ गई थी । इसे सामाजिक रूप में संकटपूर्ण, आर्थिक रूप में व्यर्थतापूर्ण और नैतिक रूप में शोचनीय माना गया है । अत: पूर्ण रोजगार को मौद्रिक नीति का मुख्य लक्ष्य स्वीकार किया गया ।

आजकल, यह तर्क प्रस्तुत किया जाता है कि पूर्ण रोजगार की प्राप्ति अपने आप कीमत और विनिमय के स्थायित्व को सम्मिलित कर लेती है । तथापि केन्ज़ का रोजगार, ब्याज तथा धन का सिद्धांत (Keynes General Theory of Employment, Interest and Money) के 1936 में प्रकाशित होने पर पूर्ण रोजगार के लक्ष्य को मौद्रिक नीति के मुख्य उद्देश्य के रूप में पूर्ण समर्थन प्राप्त हुआ ।

क्रोथर (Crowther) का विचार है कि किसी देश की मौद्रिक नीति का मुख्य उद्देश्य बचत और निवेश के बीच पूर्ण रोजगार के स्तर पर सन्तुलन लाना है । केन्ज़ का आय का समीकरण, Y = C + 1 इस बात पर प्रकाश डालता है कि मौद्रिक नीति से पूर्ण रोजगार कैसे प्राप्त किया जा सकता है ।

वे तर्क प्रस्तुत करते हैं कि आय, उत्पादन और रोजगार को बढ़ाने के लिये आवश्यक है कि उपभोग व्यय और निवेश व्यय को साथ-साथ बढ़ाया जाये । इससे अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी की समस्या का परोक्ष रूप में समाधान हो जायेगा क्योंकि लघु काल में उपभोग फलन प्राय: स्थायी होता है ।

मौद्रिक नीति को निवेश व्यय बढ़ाने का लक्ष्य रखना चाहिये । मौद्रिक नीति क्योंकि मुद्रा और साख से सम्बन्धित सरकार की नीति होती है । इस प्रकार, सरकार के मुद्रा और साख के उपाय सरलता से अर्थव्यवस्था में व्यापार के उतार-चढ़ाव की समस्या से निपट सकते हैं ।

दूसरी ओर जब अर्थव्यवस्था मन्दी और बेरोजगारी की समस्या का सामना कर रही होती है तो ‘सस्ती मुद्रा नीति’ को अपना कर मौद्रिक प्राधिकरण द्वारा निजी निवेश प्रोत्साहित किया जा सकता है । इसलिये यह नीति निजी निवेश के लिये प्रभावी एवं आदर्श उत्तेजक का कार्य करेगी क्योंकि अर्थव्यवस्था में सभी ओर निराशावाद है ।

यहां, यह याद रखना आवश्यक है कि पूर्ण रोजगार के स्तर को प्राप्त कर लेने के तुरन्त बाद ‘सस्ती मुद्रा नीति’ को त्याग दिया जाना चाहिये । अधिक निवेश द्वारा पूर्ण रोजगार के संवर्धन के लिये सर्वोत्तम एवं हितकर मौद्रिक नीति का अनुकरण किया जाना चाहिये ।

संक्षेप में, पूर्ण रोजगार की नीति के निम्नलिखित दूरगामी लाभप्रद प्रभाव हैं:

(क) बेरोजगारी और अदृश्य बेरोजगारी की वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखते हुये, विशेषतया उन देशों में जहां जनसंख्या तीव्रता से बढ़ रही है, मौद्रिक नीति का उपरोक्त उद्देश्य बहुत अनुकूल है ।

(ख) मानवीय आधार पर यह नीति बेरोजगारी की गम्भीर समस्या के समाधान में भी बहुत सहायक हो सकती है ।

(ग) समाज को आर्थिक और सामाजिक कल्याण उपलब्ध करवाने का यह लाभप्रद उपकरण है ।

(घ) यह नीति एक बड़ी सीमा तक व्यापारिक उतार-चढ़ाव की समस्या का समाधान करती है ।

Objective # 5. आर्थिक वृद्धि (Economic Growth):

हाल ही के वर्षों में, विश्व भर के अर्थशास्त्रियों तथा राजनेताओं के बीच चर्चा का मुख्य विषय आर्थिक विकास है ।

इसका अर्थ है कुल भौतिक अथवा वास्तविक उत्पादन में वृद्धि, मानवीय आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिये वस्तुओं का उत्पादन । अन्य शब्दों में, इसका अर्थ है सभी उत्पादक साधनों जैसे प्राकृतिक, मानवीय एवं पूंजी का इस प्रकार से प्रयोग जिससे समयोपरि राष्ट्रीय एवं प्रति व्यक्ति आय में सतत वृद्धि हो ।

इसलिये, मुद्रा के लिये कुल मांग और कुल उत्पादन क्षमता के बीच सन्तुलन कायम रख कर और बचत एवं निवेश के लिये हितकर परिस्थितियों की रचना द्वारा मौद्रिक नीति सतत और निरन्तर आर्थिक वृद्धि का संवर्धन करती है ।

मांग और पूर्ति के बीच समानता लाने के लिये लोचपूर्ण मौद्रिक नीति सर्वोत्तम मार्ग है । दूसरे शब्दों में, मौद्रिक प्राधिकरण को चाहिये कि एक ऐसी सरल मौद्रिक नीति का अनुकरण करें जो विकास की आवश्यकताओं के अनुकूल हो ।

इस प्रकार, मौद्रिक नीति निम्नलिखित ढंग से आर्थिक विकास में योगदान कर सकती है:

(i) मौद्रिक नीति व्यापारिक उतार-चढ़ावों को न्यूनतम बनाती है ।

(ii) यह उच्च बचत और निवेश के लिये अनुकूल वातावरण तैयार करती है तथा इसे अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्र में निवेश का प्रबन्ध करती है ।

(iii) यह भुगतानों के सन्तुलन में कठिनाइयों को दूर करने में सहायता करती है ।

(iv) यह बचतों को गतिशील करके इन्हें उत्पादक निवेश के लिये जुटाने का महत्त्वपूर्ण कार्य करती है ।

(v) यह मुद्रा एवं साख बाजार में अशुद्धियों को कम करने में सहायक है ।

(vi) यह आर्थिक एवं संस्थानिक वातावरण विकसित करती है जो विकास के लिये प्रेरक माना जाता है ।

Objective # 6. भुगतानों के सन्तुलन में समत्व (Equilibrium in the Balance of Payment):

भुगतानों के सन्तुलन में समत्व मौद्रिक नीति का एक अन्य लक्ष्य है जिसने युद्ध उपरान्त वर्षों में महत्व प्राप्त किया है । यह केवल अन्तर्राष्ट्रीय द्रवता की समस्या के कारण है जोकि विश्व व्यापार के विश्व द्रवता की तुलना में तीव्र गति से वृद्धि के कारण हुई है ।

यह अनुभव किया गया कि भुगतानों के सन्तुलन में बढ़ता हुआ घाटा किसी अर्थव्यवस्था द्वारा अन्य लक्ष्यों की प्राप्ति की क्षमता को कम करता है । फलत: अनेक अल्प-विकसित देशों को अपने आयात कम करने पड़े जो विकास गतिविधियों पर विपरीत प्रभाव डालते हैं । इसलिये मौद्रिक प्राधिकरण प्रयत्न करते हैं कि भुगतानों के सन्तुलन में समत्व बनाये रखा जाये ।