बाजार वस्तुओं की छाया मूल्य निर्धारण | Read this article in Hindi to learn about the shadow pricing of market items.

बाजार कीमत स्थितियों के सम्बन्ध में लागत और लाभ पर चर्चा नीचे की गयी है:

1. एकाधिकार (Monopoly):

अपूर्ण बाजारों के प्रकरण में स्थितियाँ और भी कठिन होती हैं । यहां बाजार कीमतें और लागतें वास्तविक सामाजिक मूल्यों को प्रतिबिम्बित नहीं करती । जिन्हें समायोजन की आवश्यकता होती है । ऐसे समन्वित मूल्यों को ”छाया कीमतें” कहा जाता है । इस प्रकार लगान आय अथवा एकाधिकारिक लाभों की गणना नहीं की जानी चाहिये ।

छाया मूल्यों की एक समस्या प्रतियोगितापूर्ण बाजारों में भी उत्पन्न हो सकती है जहां किसी कारक का सार्वजनिक प्रयोग की ओर स्थानान्तरण निजी प्रयोग में इस की कीमत को बढ़ा देता है तथा उस कीमत पर प्रश्न उठता है जिस पर अवसर लागत का माप किया जाना चाहिये । एक मध्यवर्ती मूल्य उचित परिणाम के लिये विवेकशील उपगमन उपलब्ध करता है ।

2. कर (Taxes):

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करों के सम्बन्ध में भी एक ऐसी ही समस्या उत्पन्न होती है, यदि सरकार एक परियोजना के निर्माण के लिये आवश्यक आगतें खरीदती है तो बाजार मूल्य में बिक्री कर अथवा उत्पादन कर सम्मिलित हो सकता है ।

कीमत संघटक एक सामाजिक लागत को प्रतिबिम्बित नहीं करते (क्योंकि यह केवल क्रेता से सरकार की ओर स्थानान्तरण होता है) इसलिये परियोजना की लागत का परिकलन करने में इसकी आज्ञा नहीं होनी चाहिये ।

3. बेरोजगार साधन (Unemployed Resources):

छाया कीमतों का एक अन्य पहलू अन्यथा बेरोजगार साधनों की लागत से सम्बन्धित है । सार्वजनिक साधन प्रयोग में गिनी जाने वाली लागत, इन साधनों को वैकल्पिक उपयोगों में डालने का खोया हुआ अवसर है । यदि साधन अन्यथा बेरोजगार है और अवसर लागत शून्य है तो यह तर्क समाप्त हो जाता है ।

अत: यह तर्क प्रस्तुत किया जा सकता है कि बेरोजगारी के समय में सार्वजनिक कार्य लागत रहित होते हैं तथा अपने मूल्य से भी अधिक लाभप्रद हो सकते हैं क्योंकि वह गुणक प्रभावों द्वारा अतिरिक्त रोजगार की रचना करते हैं ।

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इस तर्क की भावना ठीक है, परन्तु अप्रयुक्त साधनों का दुर्बल प्रयोग, उनको पूर्णतया बेकार छोड़ देने से बेहतर है । इसी प्रकार, यह उतना अच्छा नहीं है जितना कि उनका बेहतर प्रयोजन के लिये प्रयोग है । जब तक कि ऐसे राजनीतिक प्रतिबन्ध न हों जो केवल एक प्रयोग की आज्ञा देते है, लागत-लाभ विश्लेषण को चाहिये कि अवसर लागत की धारणा का प्रयोग करें जहां साधन अन्यथा अप्रयुक्त हैं ।

यह दोनों के सम्बन्ध में लागू होता है प्रतिस्पर्द्धी सार्वजनिक कार्य परियोजनाओं के चयनों और उच्च सार्वजनिक व्ययों और करों के घटाव के कारण बड़े हुये निजी व्ययों में ।

4. विकासशील अर्थव्यवस्थाएं (Developing Economies):

छाया कीमतों की समस्या विकासशील देशों में विशेष महत्व धारण कर लेती है जहां सरकारी निवेश तथा परियोजना मूल्यांकन प्राय: मुख्य भूमिका निभाते हैं । श्रम-अतिरेक अर्थव्यवस्था में श्रम की कीमत निर्धारण पर विचार करें, अर्थव्यवस्था के परम्परागत क्षेत्र में श्रम जब विशेष रूप में बेरोजगार अथवा अल्परोजगार सहित होता है, तो विकसित क्षेत्र में श्रम लागतें उन शक्तियों पर निर्भर कर सकती हैं जो उन्हें श्रम की वास्तविक सामाजिक लागतों से बहुत ऊँचे धकेलती हैं ।

ऐसी स्थिति में, परियोजना मूल्यांकन में यह अभीष्ट हो जाता है कि श्रम के लिये बाजार की कीमत से पर्याप्त रूप में कम छाया कीमतों का प्रयोग किया जाये । छाया कीमतों का एक अन्य पहलू जो विकासशील देशों में महत्व रखता है विनियम दर से सम्बन्धित होता है ।

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यदि स्थानीय करन्सी का अधिमूल्यन हुआ है, जैसा कि प्राय: होता है, आयात और निर्यात दोनों का घरेलू वस्तुओं की तुलना में अधीमूल्यन होगा । एक उलझाव यह है कि आयात पूंजी वस्तुएं घरेलू आगतों की तुलना में सस्ती है विशेषतया वहां जहां श्रम का अधिमूल्यन हुआ है ।

फलत: उत्पादन की एक अत्यधिक पूंजी गहन विधि प्रोत्साहित होती है । इस प्रकार उचित परियोजना मूल्यांकन बाजार की विनिमय दर से एक सही अथवा छाया कीमत का प्रयोग करेगा जिससे इसके समर्थक उपायों की अनुपस्थिति में इसका मूल्य प्रतिबिम्बित होगा ।