शंपटर के विकास मॉडल और इसके घटक | Read this article in Hindi to learn about the economic development model of Schumpeter and its components.

शुम्पीटर के अनुसार- उत्पादन की प्रकिया भौतिक एवं अभौतिक उत्पादक शक्तियों का संयोग है । भौतिक उत्पादक शक्तियाँ उत्पादन के मूल साधनों अर्थात् भूमि एवं श्रम द्वारा उत्पन्न होती हैं, जबकि उत्पादक शक्तियों का अभौतिक समुच्चय ‘तकनीकी तथ्य’ एवं सामाजिक संगठन के तथ्यों से निर्धारित होता है ।

शुम्पीटर के उत्पादन फलन को निम्न प्रकार लिखा जा सकता है:

जहाँ O = उत्पादन, k = पूँजी, q = प्राकृतिक साधन, l = रोजगार में लगी श्रम शक्ति, u = तकनीकी ज्ञान, v = सामाजिक संगठन या सामाजिक, सांस्कृतिक दशाएँ जिनके अधीन अर्थव्यवस्था संचालित होती है ।

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समी॰ 1 से हम उत्पादन में परिवर्तन की दर ज्ञात कर सकते है ।

 

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समीकरण 2 प्रदर्शित करता है कि उत्पादन की वृद्धि की दर निर्भर करती है:

(i) उत्पादक शक्तियों की वृद्धि की दर,

(ii) तकनीकी वृद्धि की दर,

(iii) सामाजिक सांस्कृतिक वृद्धि की दर ।

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शुम्पीटर के अनुसार- उत्पादक शक्तियों की पूर्ति में परिवर्तन द्वारा आर्थिक प्रणाली में नियमित सतत् व धीमा परिवर्तन ही लाया जा सकता है । दूसरी ओर तकनीकी एवं सामाजिक परिवर्तन का प्रभाव उत्पादन के प्रवाह में आकस्मिक व अनियमित परिवर्तन करता है ।

दो भिन्न प्रभावों को ध्यान में रखते हुए शुम्पीटर अर्थव्यवस्था के विकास की प्रावैगिक दशाओं के दो संघटकों के भेद को स्पष्ट करते हैं:

(a) वृद्धि का संघटक जो साधन उपलब्धता में होने वाले परिवर्तनों से नियमित, सतत एवं धीमा विकास करता है ।

(b) विकास का संघटक जो तकनीकी एवं सामाजिक वातावरण में होने वाले परिवर्तन से उत्पादन के प्रवाहों में स्वत: व अनियमित परिवर्तन करता है ।

शुम्पीटर ने भूमि को स्थिर माना, अत: इस कारण

वृद्धि का संघटक, इस कारण जनसंख्या में परिवर्तन के प्रभाव एवं उत्पादक वस्तुओं में होने वाली वृद्धि को सम्मिलित करेगा लेकिन शुम्पीटर ने जनसंख्या में होने वाली वृद्धि तथा वस्तु व सेवाओं के प्रवाह में होने वाले परिवर्तनों के मध्य किसी पूर्ववर्त्ती संबंध के विद्यमान न होने पर जोर दिया । इस प्रकार शुम्पीटर जनसंख्या वृद्धि को बहिर्जात रुप से निर्धारित मानते हैं ।

अत: जनसंख्या वृद्धि, शुप्टीटर के अनुसार:

अब उत्पादक वस्तुओं में होने वाली वृद्धि विशुद्ध बचतों की धनात्मक दर का परिणाम है । बचत एवं संचय, लाभ हेतु किए जाते हैं । परन्तु शुम्पीटर के अनुसार- लाभ तब भी प्राप्त हो सकते हैं, जब उत्पादन की नई तकनीकें प्रयोग की जाएं या नई वस्तुओं को उत्पादित किया जाए । अत: मुख्य रूप से यह तकनीकी ज्ञान (अर्थात् चर u) में होने वाला परिवर्तन है जो उत्पादित होने वाली वस्तुओं के स्टॉक में कोई परिवर्तन करता है ।

समीकरण के रूप में:

अर्थात् पूँजी संचय की दर प्रत्यक्ष रूप से तकनीकी परिवर्तन की दर पर निर्भर करती है ।

विकास के संघटक को समझाते हुए शम्पीटर ने मार्क्स द्वारा वर्णित इतिहास के भौतिकवादी निर्वचन को ध्यान में रखा तथा यह मत स्थापित किया कि व्यक्तियों की आर्थिक स्थिति केवल पूर्ववर्ती सम्पूर्ण दशा द्वारा प्राप्त होती ।

इस तर्क के आधार पर हम चर v के लिए एक समीकरण की व्युत्पत्ति कर सकते हैं:

अब समीकरण 5 को u के एक फलन के रुप में दिए k के लिए समीकृत किया जा सकता है । चूँकि l एक बहिर्जात चर है तथा q स्थिर है अत: समीकरण 6 एक Differential Equation होगा जिसका संबंध निर्भर चर u तथा v एवं स्वतंत्र चर समय (t) के साथ है ।

अत: समीकरण 2 से उत्पादन में परिवर्तन की दर निम्न होगी:

यदि हम तकनीकी सूचक u को समय के फलन के रूप में व्यक्त करें, तब समीकरण (6) के आधार पर v को भी समय के फलन के रूप में व्यक्त कर सकते हैं । समीकरण (7) में u और v के मूल्य प्रतिस्थापित करने पर हम उत्पादन का समय पथ ज्ञात कर सकते हैं ।

समीकरण (7) से शुम्पीटर के सिद्धान्त का सर्वाधिक महत्वपूर्ण बिंदु प्राप्त होता है कि उत्पादन का विस्तार तकनीकी विकास के स्तर पर निर्भर करता है, अर्थात् उत्पादन की वृद्धि नवप्रवर्तनों की दर को गति प्रदान करती है । शुम्पीटर ने आर्थिक वृद्धि को जनसंख्या वृद्धि जैसे बहिर्जात घटक द्वारा नियत माना, परन्तु आर्थिक विकास की प्रक्रिया अनियमित तकनीकी परिवर्तनों अर्थात् नवप्रवर्तनों द्वारा गति प्राप्त करती है ।

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