आर्थिक विकास के केनेसियन मॉडल | Keynesian Model of Economic Development in Hindi.

कीन्ज के विश्लेषण की आधारभूत प्रवृतियों को स्पष्ट करने के पश्चात् कीन्ज के मॉडल को फलनात्मक सम्बन्धों के द्वारा अभिव्यक्त किया जा सकता है । यहाँ हम आय निर्धारण का स्थैतिक मॉडल प्रस्तुत कर रहे हैं जिसमें समय चर को ध्यान में नहीं रखा गया है ।

1. पूंजी की सीमान्त उत्पादकता एवं विनियोग फलन:

यदि i = मौद्रिक रूप से अभिव्यक्त विनियोग या चालू कीमत स्तर पर गणना की गई विनियोग वस्तुओं की माँग हो तथा i = ब्याज दर से तब,

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I = (i) …(1)

समीकरण 1 से अभिप्राय है कि विनियोग निर्णय अर्थात् विनियोग वस्तुओं की माँग, ब्याज की दर में होने वाले परिवर्तनों पर निर्भर करती है । विनियोग वस्तुओं की माँग एवं ब्याज की दर के आपसी सम्बन्ध को पूँजी की सीमान्त उत्पादकता MEC के द्वारा समझाया जा सकता है । पूंजी की सीमान्त उत्पादकता बट्टे की वह दर है जो किसी पूँजी परिसम्पत्ति के जीवन काल में प्राप्त होने वाले प्रत्याशित प्रतिफलों के वर्तमान मूल्यों को परिसम्पत्ति की पूर्ति कीमतों के बराबर कर देती है अर्थात् पूर्ति कीमत = भावी प्राप्तियाँ-बट्टा ।

यदि नयी पूँजी परिसम्पत्ति की पूर्ति कीमत या पुन: स्थापन लागत Cr एवं R1, R2, R3,…,Rn पूँजी परिसम्पत्ति से प्राप्त होने वाली प्रत्याशित वार्षिक प्राप्तियाँ में तथा m बट्टा दर हो जो पूँजी की सीमान्त उत्पादकता को प्रकट करें तो Cr की गणना निम्न सूत्र के द्वारा की जा सकती है:

यह ध्यान रखना आवश्यक है कि R का मूल्य हर वर्ष एक समान नहीं रहता । समीकरण में R1/1+m उस प्राप्ति की सूचक है जो पहले वर्ष की समाप्ति पर m दर पर बट्टा करके प्राप्त होती है । इसी प्रकार R2/(1+m)2 उस प्राप्ति के वर्तमान मूल्य को प्रकट करता है जो दूसरे वर्ष की समाप्ति पर r दर पर बट्टा करके प्राप्त होती है ।

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उपर्युक्त समीकरण में C व R ज्ञात राशियाँ हैं तथा m अज्ञात है । समीकरण को हल करने पर m या बट्टा दर ज्ञात होती है ।

बट्टा दर m तथा ब्याज दर (i) के सन्दर्भ में तीन विकल्प सम्भव हैं:

1. m > i अर्थात् पूँजी की सीमान्त उत्पादकता अधिक है ब्याज की दर से । इस स्थिति में पूँजी वस्तुओं में विनियोग करने का निर्णय लिया जाएगा तथा वित्तीय बाजार में विनियोग लाभपूर्ण न होने के कारण नहीं किया जाएगा ।

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2. m < i, अर्थात् पूँजी की सीमान्त उत्पादकता कम है ब्याज दर से । इस स्थिति में पूँजीगत वस्तुओं के विनियोग का निर्णय नहीं लिया जाएगा तथा वित्तीय बाजार में विनियोग अधिक लाभप्रद होने के कारण किया जाएगा ।

3. m = I, अर्थात् पूँजी वस्तु तथा वित्तीय बाजार दोनों में ही विनियोग करना समान रूप से लाभप्रद होगा ।

कीन्ज के अनुसार- विनियोग ब्याज की दर का गिरता हुआ फलन है अर्थात् ब्याज की दर के बढ़ने पर पूँजी वस्तुओं में विनियोग करने से लाभ गिरने की प्रवृति रखता है तथा ब्याज की दर के गिरने पर पूँजीगत वस्तुओं में विनियोग करना लाभ को बढ़ाने की प्रवृति रखेगा । यह इस तथ्य पर निर्भर करेगा कि पूँजी की सीमान्त उत्पादकता गिरती हुई होगी ।

संक्षेप में, विनियोग को उस बिन्दु तक बढ़ाया जाना सम्भव है जहाँ पूँजी की सीमान्त उत्पादकता ठीक बराबर हो ब्याज की दर के । यह ध्यान रखना होगा कि कीन्ज ने पूँजी की सीमान्त उत्पादकता को एक तकनीकी घटक के रूप में नहीं बल्कि मनोवैज्ञानिक घटक के रूप में समझे जाने पर जोर दिया । व्यावसायिक वातावरण के आशा जनक होने पर उपक्रमी भविष्य में अधिक लाभ व आय प्राप्ति के प्रति निश्चिंत रहता है, जबकि निराशाजनक व्यावसायिक परिस्थितियों में आय प्राप्ति की सम्भावना कम होती है ।

2. बचत फलन:

बचत फलन को निम्न समीकरण द्वारा प्रकट किया जा सकता है:

 

S = S (Y, i) …(2)

जहाँ S = मौद्रिक रूप से अभिव्यक्त बचतें या चालू कीमतों पर उत्पादित लेकिन उपभोग न किए गए साधनों की मात्रा

Y = मौद्रिक आय तथा

i = ब्याज की दर

उपर्युक्त सूत्र से स्पष्ट है कि बचत [S] फलन है आय [Y] तथा ब्याज की दर (i) का अत: आय एवं ब्याज की दर के बढ़ने पर बचतों में वृद्धि होगी । आय के उच्च होने पर बचत की सम्भावना भी बढ़ती है तथा ब्याज की दर जितनी अधिक होगी बचत करने की प्रेरणा भी उतनी अधिक होगी ।

3. सन्तुलन की दशा:

सन्तुलन की दशा में I = S …(3) जहाँ T = विनियोग तथा S = बचत है । सन्तुलन की दशा में विनियोग की धारणा प्रस्तुत की गयी । Exante विनियोग से अभिप्राय है उपक्रमी के द्वारा नियोजित विनियोग तथा Expost विनियोग से अभिप्राय है उपक्रमी के द्वारा वास्तव में किया गया विनियोग । यही बात Exante एवं Expost बचतों के सन्दर्भ में भी लागू होती है । कीन्ज के अनुसार- Expost बचत व Expost विनियोग में समानता विद्यमान होती है वस्तुत: यह समानता लेखे की समानता है ।

4. मुद्रा की माँग:

यदि L = मुद्रा की माँग मौद्रिक आय तथा i ब्याज की दर हो, तब

L = L (Y, i) …(4)

अर्थात् मुद्रा की माँग (L) ब्याज की दर (i) तथा आय के स्तर (Y) का फलन होती है । मुद्रा की मांग मुद्रा की मात्रा के द्वारा निर्दिष्ट होगी । व्यक्ति मुद्रा को अपने पास तरल रूप में इसलिए रखना चाहते है, क्योंकि इसकी सहायता से वह हस्तान्तरण उद्देश्य, सतर्कता उद्देश्य तथा सट्टा उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं । सतर्कता उद्देश्य के लिए मुद्रा की माँग को हस्तान्तरण के लिए चाही मुद्रा की मांग जैसा ही समझा जा सकता है ।

अत: यह कहा जा सकता है कि मुद्रा के हस्तान्तरण हेतु की गई माँग आपस में मिल कर मुद्रा की कुल माँग को निरूपित करते है । हस्तान्तरण के लिए मुद्रा की माँग वस्तुत: आय का बढ़ता हुआ फलन होती है । आय के बढ़ने पर चालू हस्तान्तरणों या लेन देन के लिए मुद्रा की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है । दूसरी ओर सट्टा उद्देश्यों के लिए की गयी मुद्रा की माँग ब्याज की दर का फलन होती है अर्थात् व्याज की दर के बढ़ने पर तरलता की लागत बढ़ती है । तात्पर्य यह है कि तरल रूप में मुद्रा को रखने से व्यक्ति उससे प्राप्त होने वाले पुरस्कार से वंचित रह जाता है । स्पष्ट है कि ब्याज की दर परित्याग की गई तरलता का पुरस्कार है ।

5. मुद्रा की पूर्ति:

मुद्रा की पूर्ति से अभिप्राय मुद्रा की वह मात्रा है जिसे मौद्रिक अधिकारी आर्थिक प्रणाली में प्रवाहित करते हैं । मुद्रा की पूर्ति बर्हिजात रूप से दिया हुआ प्राचल है अर्थात् M = M̅ …(5)

जहां M̅ बर्हिजात रूप से निर्दिष्ट मुद्रा की मात्रा है ।

6. मुद्रा की माँग एवं पूर्ति की साम्यता मुद्रा की माँग (L) एवं पूर्ति (M) की साम्यता तब होगी, जब

L = M …(6)

7. वास्तविक आय:

वास्तविक आय (X) मौद्रिक आय (Y) का सामान्य कीमत स्तर (P) से अनुपात व्यक्त करती है । अर्थात X = Y/P …(7)

8. श्रम की माँग:

श्रम की माँग की कीमत वह मजदूरी है जिसे उपक्रमी भुगतान करने को तत्पर रहते हैं अर्थात् यह श्रम की सीमान्त उत्पादकता के मूल्य के बराबर होती है । अत: श्रम की माँग की कीमत को मौद्रिक मजदूरी के द्वारा अभिव्यक्त किया जा सकता है ।

अत: W = X (N) P …(8)

जहाँ N रोजगार तथा P सामान्य कीमत स्तर तथा X वास्तविक आय है ।

किसी उत्पादक साधन की सीमान्त उत्पादकता की भाँति श्रम की सीमान्त उत्पादकता भी गिरती है । रोजगार के बढ़ने पर श्रम माँग की कीमत कम हो जाएगी । मौद्रिक मजदूरी सापेक्षिक कीमत निर्देशांक के बढ़ते स्तरों के सापेक्ष बढ़ती जाती है । अत: यह कहा जा सकता है कि श्रम की माँग की कीमत रोजगार के सापेक्ष घटती है तथा सामान्य कीमत स्तर के सापेक्ष बढ़ती है ।

9. श्रम की पूर्ति (Supply of Labour):

रोजगार वास्तविक मजदूरी का फलन है अर्थात्

N = F (W/P) … (9)

समीकरण 9 से W का मूल्य ज्ञात किया जा सकता है, अर्थात्

W = F-1 (N) P

स्पष्ट है कि श्रम पूर्ति की कीमत अर्थात् श्रमिकों के द्वारा माँगी गई मजदूरी W रोजगार N तथा सामान्य कीमत स्तर का बढ़ता हुआ फलन होता है । श्रम की पूर्ति कीमत रोजगार का एक बढ़ता हुआ फलन इस कारण होती है, क्योंकि रोजगार के बढ़ने पर श्रम दुर्लभ हो जाता है तथा इसकी कीमतें बढ़ती हैं । इसी समय यह कीमतों के सामान्य स्तर का भी एक बढ़ता हुआ फलन होता है, क्योंकि यदि कीमतें बढ़ती हैं तब श्रम की कीमतें भी बढ़ती हैं ।

कीन्ज के विश्लेषण की उस आधारभूत संकल्पना को भी ध्यान में रखना आवश्यक है जिसके अनुरूप रोजगार तथा कीमतों का कोई भी स्तर विद्यमान हो श्रमिक एक निश्चित न्यूनतम स्तर से कम की मजदूरी स्वीकार नहीं करते । अत: पूर्ण रोजगार की स्थिति तब होगी जब वह समस्त श्रमिक जो एक न्यूनतम मजदूरी पर कार्य करने के इच्छुक हैं वास्तव में रोजगार प्राप्त कर लेते हैं ।

10. रोजगार के फलन के रूप में वास्तविक आय (Real Income as a Function of Employment):

वास्तविक आय रोजगार का फलन होता है अर्थात् X = (N) …(10) वस्तुत: अल्पकाल में प्लाण्ट की उत्पादक क्षमता के दिए होने पर उत्पादन केवल परिवर्तनीय उत्पादन साधन श्रम का फलन होता है । उपर्युक्त समीकरणों में समीकरण 1 से समीकरण 6 मॉडल के मौद्रिक भाग को अभिव्यक्त करते हैं । इनके द्वारा मौद्रिक आय का निर्धारण किया जाएगा ।

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