आजादी के बाद भारत का विदेश व्यापार | India’s Foreign Trade After Independence.


1. विदेशी व्यापार  की परिभाषा (Introduction to Foreign Trade):

विदेशी व्यापार किसी देश की अर्थव्यवस्था में निर्णायक भूमिका निभाता है । राबर्टसन के अनुसार, ”विदेशी व्यापार वृद्धि का इंजन है ।” यह देश के प्राकृतिक साधनों के उपयोग और अतिरेक उत्पादन के निर्यात में सहायता करता है । इसके अतिरिक्त प्राकृतिक आपदा की स्थिति में विदेशों से तकनीकी ज्ञान का आयात किया जा सकता है ।

एक देश बाहर के उन्नत एवं औद्योगीकृत देशों से आवश्यक पूंजी, मशीनों और कच्चा माल आयात करके देश का औद्योगीकरण कर सकता है । पुन: विदेशी व्यापार द्वारा ही एक देश अपने आर्थिक विकास के लिये विदेशों से आवश्यक सहायता और अन्य साज-सामान प्राप्त कर सकता है । इसी कारण से योजना आयोग ने, पंचवर्षीय योजनाओं में विदेशी व्यापार के विकास को बहुत महत्व दिया है ।


2. देश की स्वतन्त्रता के पश्चात भारत का विदेशी व्यापार (Foreign Trade of India since Independence):

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पश्चात जब भारत ने प्रथम पंचवर्षीय योजना आरम्भ की इसके विदेशी व्यापार में बहुत परिवर्तन हुआ । इस परिवर्तन को व्यापार की मात्रा के रूप में तालिका 10.1 में वर्णित किया गया है ।

1. व्यापार के मूल्य में भारी वृद्धि (Huge Growth in the Value of Trade):

तालिका 10.1 दर्शाती है कि विदेशी व्यापार का कुल मूल्य जो 1950-51 में 1,214 करोड़ रुपये था धीरे-धीरे बढ़ते हुये 1960-61 में 1,764 करोड रुपये तथा इसके पश्चात विदेशी व्यापार का मूल्य तीव्र दर से बढ़ता हुआ वर्ष 1970-71 में 3,169 रूपयें से बढ़ कर 1980-81 में 19,260 करोड़ तक पहुंच गया । 2013-14 में व्यापार का कुल मूल्य 47 लाख करोड़ रूपये तक बढ़ा ।

2. आयातों की उच्च वृद्धि (High Growth of Imports):

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आयातों का कुल मूल्य जोकि 1950-51 में केवल 608 करोड़ रुपये था वर्ष 1980-81 में 12,549 करोड़ रुपयों तक पहुंच गये तथा फिर वर्ष 1990-91 में 43,193 करोड रुपयों तक बढ़ गये जो कि पिछले दो दशकों में क्रमशः 130% और 210% की वृद्धि दर्शाता है । आयात में वृद्धि के मुख्य कारक हैं- औद्योगिक आगतों के भारी आयात, पी. एल. 480 के अन्तर्गत खाद्य अनाजों के नियमित आयात स्फीति-विरोधी आयातों में वृद्धि, अनावश्यक वस्तुओं के उदार आयात, तेल की कीमतों में लगातार वृद्धि की ।

3. निर्यातों की अपर्याप्त वृद्धि (Inadequate Growth of Exports):

आरम्भिक काल में भारत में निर्यातों का कुल मूल्य 1950-51 में 606 करोड़ रुपयों से सीमान्त रूप में बढ कर वर्ष 1970-71 में 1,535 करोड रुपये हो गया जो केवल 62% की वृद्धि दर्शाता है । परन्तु तब से देश में निर्यातों की वृद्धि आयतों की वृद्धि के साथ गति बना कर नहीं चल पायी ।

वर्ष 1980-81 में निर्यातों का कुल मूल्य क्रमिक 6,711 करोड़ रुपयों तक बढ गया जो वर्ष 1970-71 से 33.7% की वृद्धि दर्शाता है तथा पुन: 1990-91 में 32,553 करोड़ रुपयों जो 1980-81 के मूल्य पर 3.85 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है । वर्ष 1990-91 में निर्यातों का मूल्य 32,553 करोड़ रुपयों तक बढ़ गया जो पिछले वर्ष से 15.6% का वृद्धि दर दर्शाता है । पुन: 2000-01 में निर्यातों का मूल्य 2,03,571 करोड़ रुपये था ।

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वर्ष 2013-14 में यह 19.31 करोड रुपये था । अनेक निर्यात संवर्धक उपाय लागू करने के कारण, 1966 में रुपये के अवमूल्यन के कारण भारतीय निर्यात ने कुछ वृद्धि दर्ज की, परन्तु आयातों के मूल्य में अत्याधिक वृद्धि को ध्यान में रखते हुये निर्यात की यह वृद्धि पूर्णतया अपर्याप्त थी । इससे देश में व्यापार घाटा निरन्तर बढ़ रहा है ।

4. व्यापार का सन्तुलन (Balance of Trade):

निर्यात आयातों को बढ़ावा दे रहे हैं जिस कारण भारत में व्यापार सन्तुलन प्रतिकूल है हाल ही में इसने 9 लाख के स्तर को छुआ है ।

i. आयातों का गठन (Compositions of Imports):

वर्ष 1960-61 में आयातों की कीमत 1,122 करोड़ रुपये थी जिसमें ऊपर के चार वर्गों का भाग क्रमशः इस प्रकार सम्मिलित था- 214 करोड रुपये (15.9 प्रतिशत), 527 करोड रुपये (43.4 प्रतिशत) 356 करोड रुपये (31.2 प्रतिशत) तथा 25 करोड रुपये (9.7 प्रतिशत) ।

वर्ष 1980 के दशक में सरकार द्वारा आयात के उदारीकरण के नीति के कारण, देश का आयात बिल पर्याप्त रूप में बढ कर 1990-91 में 43,193 करोड़ रूपये हो गया तथा पुनः 2000-01 में 2,30,873 करोड़ रुपयों तक बढ़ गया और 2004-05 में 5,01,065 करोड़ रुपये हो गया ।

1985-86 में थोडी गिरावट थी परन्तु 1987-88 से, आयात 1989-90 से 1990-91 तक 29.3 मिलियन टन गया तथा पी. ओ. एल. के आयात पर तीव्रता से बढता हुआ 2000-01 तक 71,497 करोड़ रुपयों तक बढ़ गया । वर्ष 2008-09 तक इसके 13,74,436 करोड हो गया ।

इससे, हम परिचर्चा का निष्कर्ष निम्नलिखित अनुसार निकाल सकते हैं:

(क) पी. ओ. एल. पर आयात व्यय वर्ष 1970-71 में 136 करोड़ रुपयों से महत्वपूर्ण ढंग से बढ़ते हुये 1998-99 में 27,064 करोड़ रुपयों तक बढ़ गया । सरकारी अनुमान दर्शाते हैं कि आने वाले वर्षों में पी.ओ.एल और ऊपर जायेगा क्योंकि पैट्रोलियम उत्पादों के बढ़ने की सम्भावना है ।

(ख) विभिन्न प्रकार की पूजी वस्तुओं का आयात भी महत्वपूर्ण ढंग से बढ़ता हुआ वर्ष 2013-14 में यह 3.24 लाख करोड़ रुपयों तक बढ गया ।

(ग) मोतियों, बहुमूल्य और अच्छे-बहुमूल्य रत्नों का आयात बिल जोकि वर्ष 1970-71 में 25 करोड़ रुपये था, वर्ष 1995-96 में बढ्‌कर 7,045 करीड रुपये हो गया तथा यह 1995-96 के कुल आयात का 7.9 प्रतिशत था । वर्ष 2013-14 तक इसके 144557 करोड रुपयों तक बढ गया ।

(घ) उर्वरकों और उर्वरक सामग्री पर भी आयात बिल पर्याप्त रूप से बढ़ते हुये 1970-71 में 86 करोड़-रुपयों से बढ़ कर 1995-96 में 5,628 करोड रुपये हो गया और वर्ष 2000-01 में इसकी राशि 5,560 करोड रुपये थी जोकि 2000-01 के कुल आयात का लगभग 2.4 प्रतिशत थी । वर्ष 2013-14 तक यह 38231 करोड़ तक पहुंच गया ।

(ङ) लोहे और इस्पात का आयात बिल जोकि 1960-61 में 197 करोड़ रूपये था पर्याप्त रूप में बढ़ता हुआ 1990-91 में 2,113 करोड़ रूपये हो गया । वर्ष 2011-12 तक यह 57552 करोड़ रूपये तक बढ़ गया और 2013-14 में यह रु. 47912 करोड रुपये हो गया ।

(च) 2011-12 में खाने योग्य तेल रु. 8440 करोड आयात बिल के साथ था और 2013-14 में रु. 56489 था ।

आयातों के गठन में परिवर्तन के कारण (Causes for the Change in Composition of Imports):

1. कृषि उत्पादों के आयात में गिरावट (Decline in the Import of Agricultural Products):

स्वतन्त्रता के पश्चात कृषि उत्पादों के आयात में पर्याप्त कमी हुई है । वर्ष 1970- 71 में 213 करोड़ रुपयों के खाद्य अनाज आयात किये गये जो 2007-08 में 79 करोड़ रुपयों तक रह गये । घरेलू उत्पादन के कारण 2011-12 में अनाज का आयात रु. 352 करोड़ था, परन्तु दालों और तेल बीजों का 2013-14 में रु. 56489 करोड़ आयात था ।

2. पूंजी वस्तुओं का आयात (Import of Capital Goods):

दूसरी पंचवर्षीय योजना के पश्चात, पूंजी वस्तुओं के आयात में पर्याप्त वृद्धि हुई है । उदाहरणतया वर्ष 1970-71 में 504 करोड़ रुपयों की पूंजीगत वस्तुएं आयात की गई थीं जबकि वर्ष 2013-14 में इनका आयात 2,272,54 करोड़ रुपयों तक बढ़ गया ।

3. रासायनिक उर्वरकों का आयात (Import of Technical Fertilizers):

उर्वरकों पर आयात व्यय जोकि वर्ष 1970-71 में 86 करोड़ रुपये था वर्ष 2001- 02 में बढ़ कर 18,435 करोड़ रुपये हो गया, परन्तु वर्ष 2011-12 में घट कर रु. 53311 करोड़ रुपये रह गया । यह उर्वरकों की कीमतों में वृद्धि तथा उनकी माँग में वृद्धि के कारण था । घरेलू उत्पादन में वृद्धि के कारण यह अब घट गया है ।

4. पैट्रोलियम का आयात (Import of Petroleum):

पैट्रोलियम के आयात व्यय पर पर्याप्त वृद्धि हुई । उदाहरणतया 1970-71 में, आयातों की राशि 163 करोड़ रुपये थी जो वर्ष 2013-14 में रु. 10,00064 करोड़ रुपयों तक बढ गई । इस बढ़ती हुई प्रवृत्ति के दो कारण हैं – पहला पैट्रोलियम की कीमतों में वृद्धि, दूसरा औद्योगिक एवं यातायात क्षेत्र के विस्तार के लिये पैट्रोलियम पदार्थों की माँग ।

ii. निर्यातों का गठन (Composition of Exports):

स्वतन्त्रता के आरम्भ में पटसन, चाय और सूती वस्त्रों का संयुक्त निर्यात देश की कुल निर्यात आय के 50 प्रतिशत से अधिक था । वर्ष 1950-51 में इन तीनों वस्तुओं ने देश के कुल निर्यात अर्जन में 60 प्रतिशत का योगदान किया ।

क्रमिक विविधीकरण और औद्योगिक क्षेत्र की वृद्धि के कारण भारत ने अनेक गैर-परम्परागत वस्तुओं का निर्यात आरम्भ कर दिया । तदानुसार, पटसन, चाय और सूती वस्त्रों का भाग देश की कुल निर्यात कमाई में धीरे-धीरे घटता हुआ वर्ष 1970 -71 में 31 प्रतिशत रह गया तथा तब 1996-97 में पर्याप्त रूप में घट कर 10.6 प्रतिशत रह गया ।

परन्तु भारत के कुल निर्यात में मशीनरी और इंजीनियरिंग वस्तुओं का भाग जोकि 1960-61 में केवल 2.1 प्रतिशत था वर्ष 1970-71 में 12.9 प्रतिशत हो गया और वर्ष 2013-14 में यह 22% था ।

महत्वपूर्ण निष्कर्षों पर नीचे परिचर्चा की है:

1. कुल निर्यात जो वर्ष 1960-61 में 642 करोड़ रूपये था, वर्ष 1990-91 में 32,553 करोड़ रूपये हो गया, पुनः वर्ष 2000-01 में यह रु. 203571 करोड़ रुपयों तक बढ गया जबकि वर्ष 2013-14 में यह 19 लाख करोड रुपये था ।

2. आरम्भ में पटसन सबसे महत्वपूर्ण निर्यात वस्तु थी तथा कुल निर्यात अर्जन में इसका भाग 20 प्रतिशत था । निर्मित वस्तुएँ निर्यात का दो-तिहाई थीं जिसमें मशीनरी, आभूषण, कीमती पत्थर, कॉटन और फैबरिक, कैमीकल प्रमुख निर्यात वस्तुएँ थी ।

3. कृषि निर्यात समय दर समय बढ़ा है । चावल, कॉटन, मछली, मसाले और तेल देश के निर्यात में योगदान देने वाली प्रमुख वस्तुएँ हैं ।

4. खनिज, ईंधन और लुबरीकैंट निर्यात किए उत्पादों का 20% निर्यात मूल्य है ।

5. खनिजों और अभ्रक का भी निर्यात किया जाता है परंतु इसका हिस्सा घटना जा रहा है ।

निर्यातों के गठन में परिवर्तन के कारण (Causes for the Change in Composition of Exports):

निर्यातों के परिवर्तन के लिये उत्तरदायी मुख्य कारक नीचे दिये गये हैं:

1. कृषि उत्पादों के प्रतिशत भाग में गिरावट (Decline in Percentage Share of Agricultural Products):

स्वतन्त्रता पश्चात, कुल निर्यातों में कृषि उत्पादों की प्रतिशत भाग बहुत घट गया है । उदाहरणतया 1970-71 में कृषि उत्पादों ने कुल निर्यात अर्जन में 31% का योगदान किया जोकि वर्ष 2013-14 में 14% तक रह गया ।

2. परम्परागत वस्तुओं के भाग में गिरावट (Decline in Conventional Items):

स्वतन्त्रता से पूर्व परम्परागत वस्तुओं में पटसन, चाय, खाद्य, अनाज और खनिज पदार्थ सम्मिलित थे जिनका निर्यात में योगदान 41% से अधिक था । परन्तु वर्ष 2013-14 में इन वस्तुओं का भाग 12.7 प्रतिशत तक नीचे आ गया है । इस गिरावट का मुख्य कारण है जनसंख्या की वृद्धि के कारण खाद्य अनाजों और कच्चे माल की मांग में असामान्य वृद्धि ।

3. निर्मित वस्तुओं की मांग में वृद्धि (Increase in Share of Manufactured Goods):

देश की स्वतन्त्रता के पश्चात कुल निर्यात कमाई में निर्मित वस्तुओं के भाग में पर्याप्त वृद्धि हुई । वर्ष 1970-71 में निर्मित वस्तुओं का भाग 56% था जो वर्ष 2013-14 में 64 प्रतिशत तक नीचे आ गया ।

4. पैट्रोलियम उत्पादों के भाग में वृद्धि (Increase in Share of Petroleum Products):

कुल निर्यात कमाई में पैट्रोलियम उत्पादों की निर्यात कमाई की प्रतिशतता बढ़ती हुई प्रवृत्ति प्रदर्शित कर रही है । वर्ष 1970-71 में 13 करोड़ रुपयों के पैट्रोलियम उत्पाद निर्यात किये गये थे । वर्ष 2013-14 में पैट्रोलियम उत्पादों की कीमत लगभग 21% तक बढ़ गई ।

5. रत्नों और तैयार वस्त्रों के निर्यात में वृद्धि (Increase in the Export of Petroleum Products):

हाल ही के वर्षों में रत्नों और तैयार वस्त्रों का निर्यात एक महत्वपूर्ण विदेशी विनिमय कमाने वाले निर्यात के रूप में सामने आया है । रत्नों के निर्यात को देश की कुल निर्यात कमाई में प्रथम स्थान प्राप्त है तथा तैयार वस्त्रों को दूसरा स्थान प्राप्त है ।


3. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार (International Trade):

पिछले 10 सालों से, भारत का व्यवसाय का भारत के वैश्विक निर्यातों और आयतों में हिस्सा 2004 में 0.8 प्रतिशत और 1.0 प्रतिशत से 2013 में 11.7 प्रतिशत और 2.5 प्रतिशत तक सुधरा । प्रमुख निर्यातकों और आयातकों के बीच यह दर्जा 2004 में 30 और 23 से 2013 में 19 और 12 तक सुधरा ।

भारत के कुल आयातों में सोने और चाँदी का हिस्सा 2012-13 में 11.4 प्रतिशत और 2013-14 में 7.4 प्रतिशत था । सोना और चांदी आयात जो 2012-13 और 2013-14 में 9.6 प्रतिशत और 40.4 प्रतिशत गिरे और 2014-15 (अप्रैल-जनवरी) में 8.0 प्रतिशत बढे ।

पूजी वस्तुओं का आयात 2011 से निरन्तर गिरा । Non-Pol और Non-Gold और चाँदी आयात, जिन्होंने औद्योगिक क्रिया के लिए जरूरी आयातों को प्रभावित किया है, यह 2013-14 और 2013-14 में 0.7 प्रतिशत और 6.9 प्रतिशत की गिरावट के बाद, 2014-15 में बढ़े ।

निर्मित वस्तुओं ने हाल ही के वर्षों में निर्यातों (63% तक) को बनाया जिसमें कच्चा और पैट्रोलियम उत्पाद (कोयले के साथ) 20 प्रतिशत तक और कृषि और सहायक उत्पादों में 13.7 प्रतिशत हुए । 2011-12 में US$ 300 बिलियन को पार करने के बाद, निर्यात की विकास दर में महत्वकारी रूप से कमी होती गई जो वैश्विक व्यापार आयामों के रूप में वैश्विक घटना थी ।

पैट्रोलियम और कृषि उत्पादों के निर्यात में विकास जो पिछले चार सालों से सकारात्मक था 2014-15 में नकारात्मक हो गया । कीमती पत्थरों, आभूषण और इलैक्ट्रांनिक वस्तुओं का निर्यात 2013-13 में घटता गया । यह 2014-14 में घटता गया ।

2014-15 के दौरान, कुछ क्षेत्र जैसे यातायात, उपकरण, मशीनरी और संसाधन, धातुओं का निर्माण और रेडीमेड कपड़े निर्यातों में सकारात्मक विकास को दर्ज किया गया । समुद्री उत्पादों और चमड़ा और चमड़े के उत्पादों में 2012-13, 2013-14 और 2014-15 में सापेक्ष रूप से उच्च वृद्धि को दर्ज किया गया ।


4. भुगतान सन्तुलन (Balance of Payments):

2011-12 में Current Account Deficit की व्यापकता और 2012-13 में आयातों के स्तर में उठाव आया और इसके वित्तपोषण का बड़े खर्च के रूप में निहितार्थ था क्योंकि निवेश आय अदृश्य खाते में थी । CAD के स्तर का अनुपात में ऐसा खर्च 2007-08 में 28.2 प्रतिशत से 2013-14 में 72.6 प्रतिशत तक बड़े जो CAD में कमी के लिए महत्वपूर्ण बात थी । CAD का निवेश आय खर्च के द्वारा व्यापक प्रभाव है ।

पूंजी बहाव CAD की अत्यधिक वित्तीय जरूरत में थे और जिसके फलस्वरूप विदेशी विनिमय संसाधनों में एक साथ वृद्धि हुई । CAD को 2014-15 में US $ 17.9 बिलियन को समान अवधि 2013-14 में US $ 26.9 बिलियन के विरुद्ध रखा गया । कुल विदेशी निवेश और कुल ECD भी सुधरे ।

कुल पूंजी बहावों के साथ CAD की अपेक्षा उच्च रहे, भारत के विदेशी विनिमय संसाधनों के लिए US $ 18.1 बिलियन की । वृद्धि 2014-15 में H1 में थी जो 2013-14 के H1 में US $ 10.7 बिलियन की गिरावट के विरुद्ध थी ।

CAD के साथ प्रमुख मितव्ययताओं के बीच, भारत ब्राजील के बाद दूसरा सबसे बड़ा विदेशी विनिमय संसाधन धारक है । भारत के विदेशी विनिमय संसाधन 2015 में US $ 330.2 बिलियन है जो मुख्यतः US $ 305.0 बिलियन रकम के विदेशी पूजी सम्पत्तियों से बने हैं जो लगभग 92.5 प्रतिशत है ।

2014-15 के पहले छ: महीने में संसाधनों की बढौतरी के साथ, सभी संसाधन आधारित परम्परागत बाहरी क्षेत्र भेदनीयता सूचकों में सुधार हुआ । उदाहरण के लिए संसाधनों के लिए लघु काल के बाहरी ऋण का अनुपात 2014 में 27.5 प्रतिशत घटा और संसाधन जिन्हें आयात के लिए कवर किया गया वह 8.1 तक बढ़े ।

विदेशी संस्थानिक निवेश और FDI का उच्च अंतर्बहाव के कारण इक्विटी और बांड बाजार में रुपये-US डालर विनिमय दर स्थिर थी । यूरोप और जापान में कमजोर अर्थव्यवस्था के कारण, रूपयों को सितम्बर, 2014 से यूरो और येन के विरुद्ध बढावा मिला । रूपये ने दिसम्बर 2014 में 63.75 प्रति US डॉलर को छुआ और इसमें मूल्यहाव हुआ ।

बाहरी ऋण (External Debt):

भारत का बाहरी ऋण स्टॉक सितम्बर 2014 के अन्त पर US $ 455.9 बिलियन तक बढ़ा । बाहरी ऋण में वृद्धि उच्च दीर्घकाल ऋण के कारण हुई थी विशेष रूप से व्यावसायिक उधार और गैर-प्रवासी भारतीय जमा राशियों से । भारत के बाहरी ऋण का परिपक्वता प्रोफाइल दीर्घकाल के उधारों के प्रभुत्व को दर्शाता है ।

2014 में, दीर्घ काल के ऋण बड़े और यह कुल बाहरी ऋण के 81.1% के कारण थे । भारत के बाहरी ऋण प्रबन्धकीय सीमाओं के भीतर थे । यह 2013-14 में 23.5% की GDP अनुपात के बाहरी ऋण को दर्शाते और ऋण सेवा अनुपात के 5.9% को दिखाते । भारत सरकार की प्रूडेंट बाहरी ऋण प्रबन्ध नीति ने आरामदायक बाहरी ऋण स्थिति को बनाने में सहायता की ।

भारत के व्यापार की दिशा (Direction of India’s Trade):

भारत पूरे विश्व में व्यापार को कर रहा है । तालिका 10.4 आयातों और निर्यातों को दर्शाती है, ज्यादातर देश संतुलन को बनाए रखने के लिए एक-दूसरे के समानांतर जा रहे हैं ।

एशिया निर्यात व्यापार 50.0% था जबकि निर्यात कुल का 60.8 प्रतिशत था । आगे पश्चिमी एशिया, NE एशिया और ASEAN के लिए निर्यात 19.0, 8.1 और 16.4 थे जबकि आयात 18.7, 8.7 और 9.1 थे । यूरोपियन देशों विशेष रूप से EU समूह अमेरिका द्वारा अनुपालना किए व्यापार के लिए अगला अनुकूल समूह है ।

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