वित्तीय नीति: वित्तीय नीति की नौ प्रमुख समस्याएं | Read this article in Hindi to learn about the nine major problems of fiscal policy. The problems are:- 1. नीति विलम्ब (Policy Lags) 2. पूर्वानुमान (Forecasting) 3. राजकोषीय नीति का ठीक आकार और रूप (Correct Size and Nature of Fiscal Policy) 4. राजकोषीय चयनता (Fiscal Selectivity) 5. राजकोषीय उपायों की अपर्याप्तता (Inadequacy of Fiscal Measures) and a Few Others.

यद्यपि राजकोषीय नीति ने सन् 1930 की विश्व मन्दी के दौरान विशिष्टता प्राप्त की, फिर भी इसका प्रैक्टीकल उपयोग की अनेक समस्याएं अथवा सीमाएं हैं । ऐसी स्थिति को ध्यान में रखते हुये राजकोषीय नीति से सम्बन्धित समस्याओं और सीमाओं को पूर्णतया समझना अति आवश्यक है ।

ये समस्यायें इस प्रकार हैं:

Problem # 1. नीति विलम्ब (Policy Lags):

आजकल विवेकाधीन राजकोषीय नीति की वांछनीयता अथवा अवांछनीयता के सम्बन्ध में अधिक तर्क-वितर्क नहीं हैं । इस सन्दर्भ में आवश्यक प्रश्न राजकोषीय उपायों के समय से सम्बन्धित है । जब तक करों और सार्वजनिक व्यय में बदलाव निश्चित समयानुसार नहीं होंगे तब तक वांछित आवर्तन-विरोधी प्रभाव प्राप्त नहीं किये जा सकते ।

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एक विशेष कार्य की आवश्यकता के समय और उस समय के बीच जब कोई राजकोषीय उपाय अपना प्रभाव अनुभव करवाता है, प्राय: एक अन्तराल होता है । इस अन्तराल की अवधि उस सीमा को निर्धारित करती है जिस तक राजकोषीय उपाय प्रभावी हो सकता है ।

इस समय अन्तराल में तीन प्रकार के विलम्ब सम्मिलित होते हैं:

(क) पहचान विलम्ब,

(ख) प्रशासनिक विलम्ब और

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(ग) परिचालन विलम्ब ।

(क) पहचान विलम्ब (Recognition Lag):

यह कार्यवाही की आवश्यकता के समय और जब यह पहचान होती है कि कार्यवाही को आवश्यकता है के बीच का अन्तराल है । यह विलम्ब तब हो सकता है जब अर्थव्यवस्था में एक परिवर्तन और परिवर्तन से सम्बन्धित सूचना आपस में मेल नहीं खाते । ऐसे विलम्ब की अवधि तीन मास की होती है । यदि पूर्वानुमान सन्तोषजनक हो तो इसे कम किया जा सकता है ।

(ख) प्रशासनिक विलम्ब (Administrative Lag):

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यह उस समय के बीच का अन्तराल है, जब किसी कार्यवाही के करने की पहचान की जाती है तथा जिस समय पर वास्तविक कार्यवाही की जाती है । इस विलम्ब से व्यवहार करना कदाचित बहुत कठिन है । कार्यवाही की आवश्यकता के पहचाने जाने के पश्चात वैधानिक और कार्यपालिका से स्वीकृति प्राप्त करने में कुछ समय लगता है, जो 1 माह से 15 माह तक का हो सकता है ।

ऐसे विलम्ब को कम करने तथा वैधानिक एवं कार्यकारी लाल-फीताशाही को न्यूनतम बनाने के लिये सार्वजनिक कार्यों की कगार तैयार रखना महत्व रखता है । पहचान और प्रशासनिक विलम्ब । नीति के आन्तरिक विलम्ब को निर्धारित करते हैं और इसकी लम्बाई विल्लेस (Willes) के अनुसार 4 से 18 माह होती है ।

(ग) परिचालन विलम्ब (Operational Lag):

यह समय अन्तराल कार्यवाही किये जाने के समय और आय एवं रोजगार पर इसका प्रभाव होने के समय के बीच का अन्तराल परिचालन अथवा बाहरी अन्तराल के रूप में जाना जाता है ।

अलबर्ट एण्डो (Albert Ando) और ई. सी. ब्राउन (E. C. Brown) ने इस ओर ध्यान आकर्षित किया है कि व्यक्तिगत आय करों में परिवर्तन प्रयोज्य मौद्रिक आय और उपभोग में एक या दो महीनों में महत्वपूर्ण परिवर्तन उत्पन्न करता है ।

निगमित कर ढांचे में परिवर्तन निगम व्यय में लगभग 3-4 महीने के भीतर परिवर्तन लाता है । विल्लज का विचार था कि राजकोषीय नीति के बाहरी विलम्ब का अन्तराल छोटा होता है जोकि केवल 1 से 3 माह के बीच होता है । जे. जी. रनलैट (J. G. Ranlett) यद्यपि मानते हैं कि इन अनुमानों में संशोधन की आवश्यकता है ।

यू. एस. के सन् 1960 के आयकर आंकड़ों के आधार पर उसने इस बात पर बल दिया कि आयकर दरों में परिवर्तन के कारण उपभोग व्यय में परिवर्तन लगभग उसे 9 महीनों के विलम्ब से आया । यहां तक कि राजकोषीय नीति का बाहरी विलम्ब मौद्रिक नीति के विलम्ब से बहुत कम है ।

Problem # 2. पूर्वानुमान (Forecasting):

राजकोषीय नीति की एक अन्य गम्भीर सीमा आर्थिक अस्थायित्व की आने वाली घटनाओं के अवलोकन की व्यवहारिक कठिनाई है । जब तक उनका ठीक प्रकार से अवलोकन नहीं किया जाता तब तक किये जाने वाले व्यय की राशि अथवा बनाये जाने वाले बजट शेष का स्वरूप और सीमा का सही नियोजन नहीं किया जा सकता । वास्तव में, राजकोषीय उपायों की सफलता विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के सही पूर्वानुमानों पर निर्भर करती है ।

Problem # 3. राजकोषीय नीति का ठीक आकार और रूप (Correct Size and Nature of Fiscal Policy):

अति महत्त्वपूर्ण आवश्यकता जिस पर राजकोषीय नीति की सफलता निर्भर करेगी वह है, एक ओर तो सार्वजनिक प्राधिकरण द्वारा राजकोषीय नीति के सही आकार और स्वरूप के निर्माण की क्षमता और दूसरी ओर इसके प्रयोग के सही समय का पूर्वानुमान ।

तथापि, सरकार से यह आशा रखना अत्यधिक होगा कि वह संघटन के आकार और स्वरूप के सही निर्धारण और राजकोषीय नीति के सही कार्यान्वयन समय के निर्धारण के योग्य होगी ।

Problem # 4. राजकोषीय चयनता (Fiscal Selectivity):

जबकि मौद्रिक नीति का स्वरूप सामान्य और प्रभाव अवैयक्तिक होता है, राजकोषीय नीति इसके विपरीत चयनात्मक होती है । मौद्रिक नीति बाजार यन्त्रवाद को निर्विघ्न संचलन की आज्ञा देती है, जबकि राजकोषीय नीति इसके विपरीत बाजार यन्त्रवाद पर स्पष्टतया हस्तक्षेप करती है और साधनों के ऐसे निर्धारण को जन्म देती है जिसका अच्छा या बुरा होने का अनुमान उसके मूल्य निर्णयों पर निर्भर करता है ।

राजकोषीय उपायों के एक विशेष समूह का कुछ क्षेत्रों पर अत्यधिक निष्ठुर प्रभाव हो सकता है जबकि अन्य लगभग अप्रभावित छूट जाते हैं ।

Problem # 5. राजकोषीय उपायों की अपर्याप्तता (Inadequacy of Fiscal Measures):

मन्दी विरोधी राजकोषीय नीति में, सार्वजनिक व्यय का विस्तार और करों को घटाना अधिक प्रत्यक्ष होता है । यह प्रश्न उठना प्राकृतिक है कि क्या सार्वजनिक व्यय अथवा करों में विशेष बदलाव के वांछित परिणाम होंगे या नहीं ।

यदि मुद्रा के बहाव में अन्त:क्षेपण अथवा धन निकालना आवश्यकता से अधिक या कम होगा तो व्यवस्था ठीक दिशा में बढ़ने में असफल होगी । इससे अर्थव्यवस्था में अस्थायित्व में वृद्धि होगी ।

Problem # 6. आय के पुनर्वितरण पर विपरीत प्रभाव (Adverse Effect on Redistribution of Income):

अनुभव किया जाता है कि राजकोषीय नीति के उपाय आय का पुनर्वितरण करते हैं, वास्तविक प्रभाव अनिश्चित होगा । यदि आय का पुनर्वितरण निम्न आय वर्ग के पक्ष में होता है जिनके सीमान्त उपभोग की प्रवृत्ति ऊंची होती है तो प्रभाव कुल मांग में वृद्धि होगा । यदि अतिरिक्त आय का बड़ा भाग ऐसे लोगों के पास जाता है जिनकी बचत की सीमान्त प्रवृत्ति अधिक होती है तो राजकोषीय नीति का प्रभाव संकुचनकारी होगा ।

Problem # 7. राष्ट्रीय आय में कमी (Reduction in National Income):

सन्तुलित बजट गुणक के मन्दी के दौरान, एक राजकोषीय शास्त्र के रूप में लाभप्रद प्रयोग की शर्त यह तथ्य है कि सार्वजनिक व्यय प्राप्त करने वालों की खर्च करने की सीमान्त प्रवृत्ति करदाताओं की सीमान्त प्रवृत्ति से बड़ी अथवा कम से कम बराबर होनी चाहिये । यदि यह करदाताओं से छोटी हो जाती है तो सन्तुलित बजट के अधीन राजकोषीय कार्यक्रम राष्ट्रीय आय में कमी लायेंगे ।

Problem # 8. बेरोजगारी का कोई समाधान नहीं (No Solution for Unemployment):

राजकोषीय नीति का प्रयोजन पराजित हो जायेगा यदि नीति कार्य प्रयत्न के बढ़ते हुये पूर्ति स्तर को कायम नहीं रख सकती । उत्पादक दक्षता के बढ़ने से कार्य प्रयत्न की बढ़ती हुई पूर्ति से राष्ट्रीय आय बढ़ेगी । परन्तु यदि कर उपाय कठोर तथा बहुत ऊंचे हैं तो वे निश्चित रूप में कार्य के प्रोत्साहन को प्रभावित करेंगे । यह राजकोषीय नीति की एक महत्त्वपूर्ण सीमा है ।

Problem # 9. प्रजातान्त्रिक देशों की प्रशासनिक समस्याएं (Administrative Problems in Democratic Countries):

एक प्रजातन्त्र में राजकोषीय नीति के उपाय समय खर्च करने वाली प्रक्रिया है । वैधानिक एवं प्रशासनिक कार्य और कार्यकारी प्रक्रिया में प्राय: देरी हो जाती है तथा आय अर्जन के मूलभूत अनुमान और सरकारी व्यय व्यर्थ हो जाते हैं । राजकोषीय उपायों से सम्बन्धित परिचालन विलम्ब से प्रभाव का पर्याप्त अपरदन हो जाता है और प्रत्याशित प्राप्ति और वास्तविक प्राप्ति के बीच का अन्तराल विस्तृत हो जाता है ।

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