एक देश का आधुनिक आर्थिक विकास: 9 विशेषताएं | Read this article in Hindi to learn about the top nine features of modern economic growth.  The features are:- 1. प्रति व्यक्ति उत्पाद और जनसंख्या की उच्च वृद्धि दर (High Rates of Growth of per Capital Product and Population) 2. उत्पादकता में वृद्धि (Rise in Productivity) 3. ढांचागत बदलाव की उच्च दर (High Rate of Structural Transformation) and a Few Others.

आधुनिक आर्थिक वृद्धि का सम्बन्ध विकसित राष्ट्रों जैसे पश्चिमी जर्मन, पश्चिमी यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका, कैनेडा आदि के विकास से है । साइमन कुज़नेटस (Simon Kuznets) इस विषय में अपने मार्गदर्शक कार्य और विकसित राष्ट्रों में दीर्घकालिक राष्ट्रीय आय प्रवृत्तियों के विश्लेषण के लिये जाने जाते हैं ।

उन्होंने राष्ट्रीय वृद्धि को इस प्रकार परिभाषित किया है- ”अपनी जनसंख्या को विविध प्रकार की आर्थिक वस्तुओं की पूर्ति की क्षमता में दीर्घकालिक वृद्धि, यह बढ़ती हुई क्षमता, उन्नत प्रौद्योगिकी तथा इसकी मांग के अनुसार संस्थागत और सैद्धान्तिक समन्वय पर आधारित है ।”

साइमन कुज़नेटस ने आधुनिक आर्थिक वृद्धि की छ: विशेषताएं दी हैं जोकि राष्ट्रीय उत्पाद और इसके घटकों, जनसंख्या, श्रम शक्ति तथा इस प्रकार की अन्य वस्तुओं पर आधारित विश्लेषण से उत्पन्न हुई है ।

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छ: विशेषताओं में से दो मात्रात्मक है जो राष्ट्रीय आय एवं जनसंख्या वृद्धि से सम्बन्धित है, दो संरचनात्मक बदलाव और दो अन्तर्राष्ट्रीय विस्तार से सम्बन्धित है ।

आधुनिक आर्थिक विकास के निम्नलिखित मुख्य लक्षण हैं:

Feature # 1. प्रति व्यक्ति उत्पाद और जनसंख्या की उच्च वृद्धि दर (High Rates of Growth of per Capital Product and Population):

अठारहवीं अथवा उन्नीसवीं शताब्दी की आधुनिक आर्थिक वृद्धि के लक्षण है- प्रति व्यक्ति उत्पाद और जनसंख्या की पर्याप्त उच्च दर । वृद्धि की अति उच्च दर जनसंख्या से पाँच गुणा ऊंची तथा भूतकाल में देखी गई जनसंख्या से कम-से-कम 10 गुणा ।

सायमन कुज़नेटस ने दर्शाया है कि आधुनिक काल में फ्रांस को छोड़ कर 13 देशों की जनसंख्या की दर पूर्व आधुनिक काल से अधिक है । इन सभी देशों के प्रति व्यक्ति उत्पाद में दशक की वृद्धि आस्ट्रेलिया को छोड़ कर सभी देशों में 13 प्रतिशत से ऊपर थी जबकि आस्ट्रेलिया में 8 प्रतिशत थी ।

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“आधुनिक आर्थिक वृद्धि का अर्थ है प्रति व्यक्ति उत्पाद और जनसंख्या में भी असाधारण बढ़ती हुई वृद्धि । परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि परवर्ती पूर्व के लिये आवश्यक शर्त थी……. कुछ देशों में, प्रति व्यक्ति उत्पाद में वृद्धि की उच्च दर के साथ जनसंख्या में भी उच्च दर से वृद्धि होती है तथा अन्यों में निम्न दर से ।”

प्रति व्यक्ति उत्पाद और जनसंख्या की वृद्धि की उच्च दरों का अर्थ है कुल उत्पाद में वृद्धि की उच्च दर । आधुनिक आर्थिक वृद्धि काल के दौरान कुल उत्पाद में प्रति दशक वृद्धि की दर यू. एस. एस. आर. में उच्चतम और यू. के. में न्यूनतम थी । इन देशों में कुल उत्पाद की वृद्धि दर 21 से 40 प्रतिशत के बीच रही ।

इन वृद्धि दरों में विचलनों के परिणामस्वरूप निष्पादन के कुल विस्तार का अत्याधिक गुणन होता है । एक दशक के बीस प्रतिशत वृद्धि दर का अर्थ है एक शताब्दी में, आरम्भिक स्तर में 6 गुणा से अधिक वृद्धि, 50 प्रतिशत दर का अर्थ है, आरम्भिक स्तर में लगभग 58 प्रतिशत गुणा वृद्धि ।

गैर-साम्यवादी विकसित देशों में, आधुनिक आर्थिक वृद्धि काल में प्रतिवर्ष वृद्धि की दर प्रति व्यक्ति उत्पाद के लिये लगभग दो प्रतिशत थी । इसने जनसंख्या के लिये 1 प्रतिशत तथा कुल उत्पाद के लिये 3 प्रतिशत रिकार्ड किया है ।

Feature # 2. उत्पादकता में वृद्धि (Rise in Productivity):

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आधुनिक आर्थिक विकास का एक लक्षण कारक उत्पादकता, विशेषतया श्रम की उत्पादकता में प्रभावशाली वृद्धि है । इस सन्दर्भ में कुज़नेटस का मत है कि- ”प्रति व्यक्ति उत्पाद के दर में वृद्धि मुख्यता गुणवत्ता में सुधार के कारण थी न कि अधिक दक्षता के लिये आवश्यक आगतों की मात्रा के कारण अथवा आगत की सामान्य प्रति इकाई के उत्पादन के कारण जो लाभप्रद ज्ञान ओर इसके उपयोग के लिये बेहतर संस्थागत प्रबन्धों की वृद्धि में उपलब्ध है ।”

कुज़नेटस ने परीक्षण किया है कि उत्पादकता में तीव्र वृद्धि एक या दो क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है । राष्ट्रीय उत्पाद की वृद्धि जनसंख्या में अत्याधिक वृद्धि के कारण है जिस कारण श्रम शक्ति में बहुत वृद्धि हुई ।

राष्ट्रीय उत्पाद में वृद्धि के कारण पूंजी संचय में पर्याप्त वृद्धि हुई और इसलिये पुन: उत्पादन योग्य पूंजी में भी वृद्धि हुई । कुल उत्पादन से श्रम शक्ति का अनुपात स्विट्‌जरलैण्ड, इटली और आस्ट्रेलिया को छोड़ कर सभी विकसित देशों के लिये ऊपर की ओर प्रवृत्ति दर्शाता है ।

”सम्भव है कि यह वृद्धि जनसंख्या के आयु ढांचे में परिवर्तन के कारण हो जोकि क्रियाशील आयु के पक्ष में है, जो जन्म दरों में गिरावट से और क्रियाशील आयु के नीचे अनुपात अथवा लाभप्रद व्यवसायों में स्त्रियों की भागीदारी में वृद्धि तथा सेवा-निवृत्ति की आयु कम करने से सम्बन्धित है । कारण कुछ भी हो, कुल जनसंख्या से लाभप्रद व्यवसायों में व्यस्त लोगों का अनुपात बढ़ा है ।”

परन्तु विकसित देशों की आर्थिक वृद्धि के साथ प्रति व्यक्ति श्रम घण्टों में दीर्घकालिक गिरावट आई है । यह प्रवृत्ति दक्षता अथवा उत्पादकता में वृद्धि दर्शाती है । प्रति व्यक्ति उत्पाद में वृद्धि में पूंजी आगत के योगदान का अनुमान पूंजी उत्पाद अनुपातों में प्रवृत्तियों द्वारा लगाया जा सकता है ।

राष्ट्रीय आय से पुन: उत्पादन योग्य पूंजी का अनुपात यू. एस. ए. में 11 प्रतिशत, यू. के. में 9 प्रतिशत और जापान में 7 प्रतिशत बढ़ा है । समग्र रूप में पूंजी-उत्पाद अनुपात उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में और बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में 1.6 प्रतिशत से बढ़ कर बीसवीं शताब्दी में सभी उन्नत देशों में 3.1 प्रतिशत तक हो गया ।

Feature # 3. ढांचागत बदलाव की उच्च दर (High Rate of Structural Transformation):

विकसित देशों की अर्थव्यवस्था में तीव्र संरचनात्मक बदलाव आधुनिक आर्थिक वृद्धि का एक लक्षण है । संरचनात्मक बदलाव में सम्मिलित हैं- कृषि से गैर-कृषि कार्यों में परिवर्तन तथा उद्योगों से सेवाओं की ओर परिवर्तन, उत्पादन इकाइयों के परिमाप में परिवर्तन और इससे सम्बन्धित व्यक्तिगत उद्यमों से आर्थिक फर्मों के अवैयक्तिक संगठनों में परिवर्तन जिस कारण श्रम के व्यवसायिक पद में भी परिवर्तन आता है ।

कुल उत्पाद में कृषि क्षेत्र का भाग आस्ट्रेलिया को छोड़ कर सभी विकासशील देशों में कम हुआ है । जहां तक सेवाओं के क्षेत्र में गतिविधियों के भाग का सम्बन्ध है, वह देशों के बीच न तो सुस्पष्ट है और न ही सुसंगत । सेवाओं का भाग स्वीडन और आस्ट्रेलिया में कम हुआ जबकि कैनेडा और जापान में बढ़ा और अन्य देशों में प्रवृत्ति महत्वहीन थी ।

आधुनिक आर्थिक विकास में बदलते हुये संरचनात्मक बदलावों की व्याख्या श्रम शक्ति के तीन मुख्य क्षेत्रों के बीच वितरण में परिवर्तनों द्वारा को जा सकती है । औद्योगिक क्षेत्र के साथ जुड़ी श्रम शक्ति का भाग जापान और यू. एस. एस. आर. को छोड़ कर 40 से 58 प्रतिशत के बीच था जोकि औद्योगिकीकरण के क्षेत्र में देर से आने वाले था ।

कुल श्रम शक्ति में सेवाओं के क्षेत्र का भाग ग्रेट ब्रिटेन, बेलजियम, स्वीडन और आस्ट्रेलिया में या तो स्थिर रहा या सापेक्षतया कम । परन्तु स्विट्‌जरलैण्ड, इटली, जापान, यू. एस. एस. आर. तथा संयुक्त राज्यों में इसने पूर्ण अथवा सापेक्ष वृद्धि दर्ज की ।

Feature # 4. शहरीकरण (Urbanization):

आधुनिक आर्थिक वृद्धि के साथ तीव्र सामाजिक एवं सैद्धान्तिक परिवर्तन भी आये हैं । पूर्व-आधुनिक समाजी की संस्थाएं तीव्र आर्थिक उन्नति विशेषतया औद्योगिक-करण में कठिनता से सहायक थी । शहरीकरण का अर्थ है विकसित देशों में ग्रामीण क्षेत्रों से लोगों का शहरों की ओर बढ़ता हुआ स्थानान्तरण ।

यह मुख्यतया औद्योगिक-करण के कारण होता है । प्रौद्योगिक परिवर्तन के परिणामस्वरूप गैर-कृषि प्रयत्न से उत्पन्न होने वाले परिमाप की मितव्ययताओं के कारण श्रम और जनसंख्या का बड़ा भाग ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की जोर स्थानान्तरित हो गया है ।

विकसित राष्ट्रों के आधुनिक आर्थिक विकास पर शहरीकरण के कारण जन्म दर कम हुयी है । शहरीकरण ने, विकसित देशों में तीन प्रकार से उपभोक्ता व्यय के ढांचे और स्तर को प्रभावित किया है ।

सायमन कुज़नेटस के मतानुसार वे हैं:

(i) इसके कारण श्रम का बढ़ता हुआ विपथन और बढ़ता हुआ विशेषीकरण हुआ तथा परिवार अथवा गांव में बहुत से क्रिया-कलाप गैर-बाजार प्रवृतिक प्रयत्नों से परिवर्तित होकर विशेष बाजार प्रवृतिक फर्मों की भांति हो गये ।

“बहुत सा आहार संसाधन, सिलाई, वस्त्र निर्माण और भवनों की मरम्मत अथवा निर्माण, एक समय पर घरेलू अथवा गांव में ही सामूहिक प्रयत्नों द्वारा किया जाता था जबकि आजकल ऐसे कार्यों का बड़ा भाग व्यापारिक कार्यों द्वारा शहरी आधुनिक समाज के भीतर किया जाता है ।”

(ii) इससे बहुत सी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि अधिक महंगी हो गई । अत्याधिक भीड़ और संकुलन के कारण शहरी जीवन महंगा हो गया । जिससे शहरों में आधारभूत सुविधाओं की प्राप्ति जैसे निवास के लिए गृह, सफाई, जल, शहरों के भीतर और शहरों में परस्पर यातायात कठिन हो गया । यह शहरी जीवन की अतिरिक्त लागतें हैं जिनके कारण विभिन्न प्रकार की उपभोक्ता वस्तुओं पर उपभोक्ताओं का व्यय बढ़ गया ।

(iii) शहरी जीवन के प्रदर्शक प्रभाव के कारण बहुत से बाहर से आने वालों के उपभोग का प्रतिरूप सीमित हो गया जिस कारण उपभोक्ता व्यय में वृद्धि हुई ।

Feature # 5. विकासशील देशों का बाहरी विस्तार (Outside Expansion of Developing Countries):

विकासशील देशों की वृद्धि की प्रगति समतल न होकर असमान है । कुछ राष्ट्रों में आधुनिक आर्थिक वृद्धि अन्यों की तुलना में शीघ्र हो गई । जोकि ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और पूर्ववृत्त में विस्तृत अन्तरों के कारण थी ।

अत: जब आधुनिक विज्ञान और ज्ञान का विकास हुआ तो औद्योगिक क्रान्ति पहले अठारहवीं शताब्दी के दूसरे अर्द्ध भाग में इंग्लैण्ड में घटित हुई । यूरोप मूल के विकसित देशों का ऊपर की ओर विस्तार मुख्यता यातायात और संचार के क्षेत्र में प्रौद्योगिक क्रान्ति के कारण हुआ ।

इससे उपनिवेशों पर सीधा राजनीतिक प्रभुत्व बढ़ गया तथा जापान जैसे क्षेत्र जोकि, पहले बन्द थे, खुल गये । अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में राजनीतिक अथवा शक्ति के तत्व आधुनिक आर्थिक विकास के प्रसार में आवश्यक कारक हैं ।

इसका अर्थ है कि राष्ट्रों के बीच सदैव बढ़ती हुई परस्पर निर्भरता, निकट सम्बन्धों की सम्भाव्यता तथा अनेक राष्ट्रों द्वारा उसी परिवर्ती ज्ञान के भण्डार के प्रयोग के कारण है । ऐसी निर्भरता के कारण विकसित राष्ट्रों के बीच शिक्षा का प्रसार हुआ जिसने उनकी दोहन शक्ति का विस्तार किया और जिससे परीक्षित और लाभप्रद ज्ञान के उपलब्ध भण्डार का उचित प्रयोग हुआ ।

एक राष्ट्र द्वारा ज्ञान और तकनीकों का चयन इसके आधुनिक आर्थिक वृद्धि की प्रक्रिया में प्रवेश के समय पर निर्भर करता है और उस राष्ट्र के विशेष लक्षणों जैसे आकार, प्राकृतिक साधन और ऐतिहासिक विरासत पर निर्भर करता है ।

उदाहरण के रूप में नार्वे की आर्थिक वृद्धि में नौ-परिवहन का विकास महत्व रखता है । स्वीडन में कागज और लोहा, न्यूजीलैण्ड और आस्ट्रेलिया में कृषि उत्पाद आदि कारकों को आधुनिक आर्थिक विकास में महत्व प्राप्त है ।

Feature # 6. आर्थिक वृद्धि का सीमित प्रसार (Limited Spread of Economic Growth):

तथापि आधुनिक आर्थिक विकास के कुछ कारक विश्व के लगभग सभी क्षेत्रों में प्रवेश प्रविष्ट हो गये हैं । देश के आर्थिक एवं सामाजिक ढांचे के बदलाव द्वारा घटित होने वाली आधुनिक आर्थिक वृद्धि, विश्व की जनसंख्या के 1/3 से भी कम भाग में संकेन्द्रित है ।

पुरुषों, वस्तुओं और पूंजी का अन्तर्राष्ट्रीय बहाव उन्नीसवीं शताब्दी की दूसरी तिमाही से प्रथम विश्व युद्ध तक बढ़ा, परन्तु पतन प्रथम विश्व युद्ध से आरम्भ हुआ तथा दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति तक जारी रहा ।

Feature # 7. प्रवास (Migration):

अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास की संचयी और बढ़ती हुई मात्रा का आधुनिक आर्थिक वृद्धि के प्रतिरूपों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव है । सन् 1846-50 में अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास का स्तर एक मिलियन की चरम सीमा पर चतुर्थांश सन् 1906 से 1915 तक 1.5 मिलियन की चर्म सीमा तक पहुंच गया ।

अर्न्तमहाद्वीपीय प्रवास की वृद्धि से वार्षिक अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास की मात्रा बढ़ गई होती । अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास को बढ़ाने वाले कारक हैं- समुद्री जहाजों द्वारा अर्न्तमहाद्वीपीय यातायात की सुविधाएं और यूरोप में रेल मार्गों द्वारा अर्न्तमहाद्वीपीय प्रवास, परन्तु यू. एस. ए. की ओर प्रवास वहां की बेहतर आर्थिक स्थितियों के कारण था ।

परन्तु दीर्घ काल में, कृषि एवं उद्योग के आधुनिकीकरण द्वारा जनित विस्थापन का प्रगतिशील प्रभाव प्रोत्साहन का महत्वपूर्ण कारक है । यह कारक मुख्यता यूरोप से उत्तर और दक्षिणी अमरीका, अफ्रीका में यूरोपियन उपनिवेशों और समुद्र में उसकी शाखाओं में अर्न्तमहाद्वीप प्रवास के लिये उत्तरदायी था ।

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान तथा उसके पश्चात् अन्तर्राष्ट्रीय प्रवास वैध प्रतिबन्धों के कारण लगभग रुक गया, विशेषतया 1930 के दशक में जोकि मन्दी का दशक था, परन्तु यह प्रक्रिया 1950 के अन्त तक जारी रही ।

Feature # 8. वस्तुओं का बहाव (Flow of Goods):

विदेशी वस्तुओं का व्यापार, विकसित देशों के बाहर की ओर विस्तार का अन्य अति महत्वपूर्ण घटक है । इस सम्बन्ध में दो प्रवृत्तियां देखी गई हैं । पहली, 1820 से 1913 के बीच विश्व व्यापार में वृद्धि की दर बहुत ऊंची थी । सन् 1820-30 और 1850-60 के बीच और 1850-60 तथा 1880-90 के बीच वृद्धि की दर 50 प्रतिशत प्रति दशक थी और 1881-85 तथा 1911-13 के बीच यह दर लगभग 37 प्रतिशत प्रति दशक थी ।

दूसरे कुछ विकसित देशों का विश्व विदेशी व्यापार में भाग 1820 से 1913 के बीच ऊंचा रहा है, उत्तर-पश्चिमी यूरोप और संयुक्त राज्यों ने 1820-30 में 6/10 रिकार्ड किया और 1880-89 में 2/3 ।

कुल उत्पादन में वस्तु विदेशी व्यापार का अनुपात महत्वपूर्ण ढंग से बढ़ा परन्तु कुछ एक बड़े देशों के लिये इसमें वृद्धि नीची दरों पर हुई । वे देश थे- कैनेडा, आस्ट्रेलिया और यू. एस. ए. । परन्तु इसके साथ ही वस्तु विदेशी व्यापार की मात्रा विश्व उत्पादन की मात्रा से अधिक तीव्रतापूर्वक बढ़ी ।

विश्व वस्तु व्यापार की मात्रा सन् 1850 से 1880 के दौरान तीन गुणा हो गई और पुन: 1880 और 1913 के दौरान तीन गुणा हो गई । इस प्रकार मौलिक रूप से 9 गुणा बढ़ गई ।

कुज़नेटस के अवलोकन के अनुसार पुराने विकसित देशों में प्रथम विश्व युद्ध से दशकों पहले विदेशी व्यापार में घरेलू उत्पादन से अधिक वृद्धि के लिये दो कारक उत्तरदायी हैं । पहला कारक वस्तुओं के परिवहन में क्रान्ति था जो भाप के इंजन का प्रयोग करने वाले रेल मार्गों, सड़कों तथा समुद्री यातायात के विकास के कारण अस्तित्व में आया ।

दूसरा कारक, मुक्त व्यापार विकसित करने और श्रम के अन्तर्राष्ट्रीय विभाजन के सम्बन्ध में यू. के. का निर्णय था । विदेशी व्यापार की निरपेक्ष मात्रा में वृद्धि की दर प्रथम विश्व युद्ध के आरम्भ होने से घट गई ।

Feature # 9. पूंजी के बहाव (Flows of Capital):

विदेशी पूंजी निवेश के अन्तर्राष्ट्रीय बहाव उन्नीसवीं शताब्दी के दूसरे चतुर्थांश से प्रथम विश्व युद्ध के समय तक तीव्रतापूर्वक बढ़ गये । पूंजी के तीन मुख्य निर्यातकर्त्ताओं के लिये, सन् 1874-1914 के दौरान पूंजी के विकास का औसत 1913 की कीमतों पर $0.5 और $ 1.1 बिलियन था ।

इन तीन देशों द्वारा निवेश की गई विदेशी पूंजी का संचयी जोड़, 1913 की कीमतों पर, बढ़कर $4.9 से 35.3 बिलियन हो गया । प्रति दशक वृद्धि की यह दर 64 प्रतिशत बनती है ।

इन पूंजी बहावों का एक महत्वपूर्ण भाग विकसित देशों के पास गया तथा यह मुख्यता राजनैतिक आधार पर था न कि आर्थिक आधार पर । ग्रेट ब्रिटेन के कुल विदेशी निवेश में, लगभग आधा भाग फ्रांस साम्राज्य के पास था ।

लगभग आधे विदेशी निवेश रूस, टर्की, बलकान राज्यों, आस्ट्रिया, हंगरी और उसके उपनिवेशों में थे तथा जर्मन के निवेशों का लगभग 1/3 भाग आस्ट्रिया, हंगरी, टर्की, रूस और बलकान राज्यों के पास था ।

यद्यपि, कुछ अन्य प्रकरणों में, आर्थिक और राजनैतिक विचार शामिल हो सकते हैं । परन्तु अन्तर की अन्य रेखाएं स्पष्टतापूर्वक नहीं खींची जा सकती, नि:सन्देह, विदेशी पूंजी निवेश का एक बड़ा भाग राजनैतिक विचारों से प्रेरित था ।

युद्ध कालों के अन्तराल के दौरान अन्तर्राष्ट्रीय पूंजी का बहाव, 1913 की कीमतों पर $110.170 मिलियन प्रतिवर्ष था । जबकि, जर्मन एक मुख्य ऋण प्राप्त करने वाला देश बन गया । यू. एस. ए. एक प्रमुख अर्न्तराष्ट्रीय साखदाता के रूप में सामने आया ।

यू. एस. ए. से विदेशी पूंजी निवेश और पूंजी का बहाव जोकि सन् 1921-29 के दौरान $43 मिलियन था सन् 1930-38 में चालू मूल्यों पर बढ़ कर $78.1 मिलियन हो गया । परन्तु 1950 के दशक में अन्तर्राष्ट्रीय पूंजी बहावों में बहुत से परिवर्तन हुये ।

सन् 1951 से 55 के दौरान पूंजी बहावों की औसत मात्रा लगभग $2 बिलियन प्रतिवर्ष तथा 1950-61 के दौरान $3.3 बिलियन (सन् 1913 के मूल्यों पर) थी । परन्तु 1950 के दशक में निजी पूंजी कुल बहावों में केवल 45 प्रतिशत थी ।

इन बहावों में सरकारी अनुदानों और सरकारी एवं अन्तर्राष्ट्रीय अभिकरणों से ऋण प्रमुख थे । इस दशक का महत्वपूर्ण लक्षण यह था कि यू. एस. ए. विश्व का मुख्य ऋणदाता बनकर सामने आया ।

परन्तु यह अंक वास्तविक चित्र प्रस्तुत नहीं करते क्योंकि यह अन्तर्राष्ट्रीय पूंजी बहाव विशेषतया प्रथम विश्व युद्ध के बाद साखदाता देशों की जी. एन. पी. का एक बहुत छोटा अनुपात था । कुज़नेटस के अनुसार- ”अन्तर्राष्ट्रीय पूंजी बहावों के विस्तार में 1913 के पश्चात् पांच दशकों में प्रथम विश्व युद्ध से पूर्व शताब्दी की तुलना में स्पष्ट विलम्बन था ।”