आर्थिक विकास और विकास के बीच अंतर | Read this article in Hindi to learn about the difference between economic development and growth.

सामान्यत: वाक्यांश आर्थिक विकास, आर्थिक वृद्धि, आर्थिक प्रगति, आर्थिक कल्याण और दीर्घकालिक परिवर्तन को समानार्थक शब्द माना जाता है तथा सभी परस्पर परिवर्तन योग्य हैं ।

एक सामान्य व्यक्ति के लिये इनमें अन्तर करना कठिन है । परन्तु शुम्पीटर, मिसेज हिक्स, मैडीसन बीन और डी. ब्राइट सिंह जैसे अर्थ-शास्त्रियों ने आगे आ कर इनमें सीमा रेखा खींचने का प्रयत्न किया है ।

आर्थिक विकास और आर्थिक वृद्धि (Economic Development and Economic Growth):

“विकास, स्थिर स्थिति में एक असतत और सहज परिवर्तन है जो पहले से विद्यमान संतुलित स्थिति को सदा के लिये बदलता है तथा विस्थापित करता है, जबकि वृद्धि मन्द तथा सतत होने वाला परिवर्तन है जो दीर्घ काल में होता है और बचत तथा जनसंख्या की दर में सामान्य वृद्धि द्वारा लाया जाता है ।” –शुम्पीटर

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“आर्थिक विकास अल्पविकसित देशों की समस्याओं से व्यवहार करता है जबकि ‘आर्थिक वृद्धि’ विकसित देशों की समस्याओं से व्यवहार करती है । अल्प-विकसित देशों में समस्याएं विकास को आरम्भ करने और तीव्र करने की होती है ।” –यू. के. हिक्स

“समृद्ध देशों में आय स्तरों के बढ़ने को प्राय: आर्थिक वृद्धि कहा जाता है तथा निर्धन देशों में इसे आर्थिक विकास कहा जाता है ।” -मैडीसन्

सी. पी. किन्डलबर्गर (C. P. Kindle Berger) ने आर्थिक विकास और आर्थिक वृद्धि में अन्तर की व्याख्या की है । ”आर्थिक वृद्धि का अर्थ है अधिक उत्पादन और आर्थिक विकास का अर्थ अधिक उत्पादन और तकनीकी एवं संस्थागत प्रबन्धों में परिवर्तन दोनों हैं जिनके द्वारा इसे उत्पादित किया जाता है ।”

प्रो. किन्डलबर्ग का यह विचार दर्शाता है कि वृद्धि और उच्च उत्पादन समानार्थी हैं । आर्थिक तत्वों की मात्रा में वृद्धि, वृद्धि के रूप में दर्शायी जाती है । अपने मत के समर्थन में वे कहते हैं- ”वृद्धि में ऊंचाई या भार पर बल दिया जाता है जबकि विकास कार्यात्मक क्षमता में परिवर्तन की ओर ध्यान आकर्षित करता है ।”

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पूर्व वर्णित विभिन्न अर्थशास्त्रियों के उपरोक्त विचार दर्शाते हैं कि ये दोनों शब्द केवल समानार्थक है । दोनों के बीच का अन्तर काल्पनिक और अवास्तविक है । इस सन्दर्भ में प्रो. लुईस (Prof. Lawis) को उद्धृत करना उचित होगा ।

उसके अनुसार- ”अधिकतर हम केवल वृद्धि का वर्णन करेंगे, परन्तु कभी-कभी विविधता हेतु ‘प्रगति’ और ‘विकास’ का प्रयोग भी कर सकते हैं ।” इसी स्वर में प्रो. पाल ए. बैरान ने (Prof. Paul A. Baron) कहा है कि, ‘विकास’ और ‘वृद्धि’ के विचार, मात्र किसी पुरानी वस्तु जिसकी उपयोगिता समाप्त हो चुकी है, में नये परिवर्तन का बोध करवाते है ।

आर्थिक वृद्धि और आर्थिक प्रगति (Economic Growth and Economic Progress):

कुछ अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक वृद्धि और आर्थिक प्रगति में अन्तर किया है । आर्थिक वृद्धि का अर्थ है कुल राष्ट्रीय आय में वृद्धि जबकि आर्थिक प्रगति का अर्थ है प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि ।

अन्य शब्दों में, आर्थिक प्रगति का अर्थ है लोगों के जीवन स्तर में सुधार और आर्थिक वृद्धि राष्ट्रीय उत्पादन के स्तर में वृद्धि की ओर ले जाती है । परन्तु हमें याद रखना चाहिये कि जीवन का उच्च स्तर तभी सम्भव है यदि राष्ट्रीय आय में वृद्धि के साथ जनसंख्या में वृद्धि नहीं हो ।

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इसलिये, आर्थिक वृद्धि देश/क्षेत्र को आर्थिक प्रगति की ओर ले जाती है । इसके अतिरिक्त, आर्थिक वृद्धि का प्रयोग समष्टिगत रूप में किया जाता है जबकि आर्थिक प्रगति को व्यष्टिगत अर्थ में लिया जाता है ।

आर्थिक प्रगति और आर्थिक कल्याण (Economic Progress and Economic Welfare):

कुछ अर्थशास्त्रियों का विचार है कि आर्थिक प्रगति का अभिप्राय ही आर्थिक कल्याण में वृद्धि है । अत: इस प्रकार आर्थिक प्रगति वास्तविक प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के सन्दर्भ में होती है जबकि आर्थिक कल्याण प्रति व्यक्ति वास्तविक आय के वितरणात्मक पहलू से सम्बन्धित होता है ।

”आर्थिक प्रगति को सरल शब्दों में, आर्थिक कल्याण में सुधार के रूप में परिभाषित किया जा सकता है ।” -प्रो. कोलिन क्लार्क

“आर्थिक कल्याण और कुछ नहीं बल्कि उन सब वस्तुओं और सेवाओं की बहुलता है जिनका विनिमय मुद्रा के द्वारा जा सकता है ।” -प्रो. पिगु

परन्तु, वस्तुओं की बहुलता अपने आप ही आर्थिक कल्याण की ओर नहीं ले जायेगी । सम्भव है कि जब प्रति व्यक्ति आय बढ़ रही हो तो समृद्ध लोग अधिक समृद्ध हो जाये और निर्धन अधिक निर्धन ।

यह केवल तब होता है जब वितरण प्रणाली असमान हो और आय का बड़ा भाग कुल जनसंख्या के एक छोटे भाग के हाथों में चला जाये । कभी-कभी आर्थिक कल्याण को मौद्रिक आय की क्रय शक्ति के सन्दर्भ में भी परिभाषित किया जा सकता है ।

अत: जब मुद्रा की क्रय शक्ति बढ़ जाती है तो आर्थिक कल्याण को भी बढ़ा हुआ कहा जाता है । मुद्रा मूल्यों में वृद्धि आर्थिक कल्याण दर्शाती है जबकि कीमतों में गिरावट आर्थिक कल्याण को बढ़ाती है । इसलिये मूल्य सूचनांक आर्थिक कल्याण का मानदण्ड है ।

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