पारंपरिक और विकास प्रशासन के बीच अंतर | Read this article in Hindi to learn about the difference between traditional and development administration.

परम्परागत प्रशासन और विकास प्रशासन में अन्तर:

यह विवाद आज भी बना हुआ है कि क्या विकास प्रशासन और परम्परागत प्रशासन (जिसे सामान्य या गैर विकास प्रशासन भी कहा जाता है।) में भेद किया जाना उचित है ? और यदि हां तो, उनमें ऐसे कौन से अन्तर है ?

विकास प्रशासन के उदय के पहले तक सरकारी प्रशासन को ”प्रशासन” ही कहा जाता था । यह प्रशासन मुख्य रूप से गैर विकास कार्यों के लिये बना था, मसलन शांति व्यवस्था बनाये रखना, करों की वसूली, आर्थिक-सामाजिक क्रियाओं का जनहित में नियमन इत्यादि ।

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इन कार्यों को नियामिकिय कार्य कहा जाता है अत: परम्परागत प्रशासन को नियामिकीय प्रशासन भी कहा गया । लेकिन विकसित राष्ट्रों में तो यह प्रशासन अनेक विकास कार्यों में भी संलग्न था, यहां तक कि पराधीन राष्ट्रों के औपनिवेशक तन्त्र को भी सड़क या रेल्वे, पुल या बाँध निर्माण के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी कुछ काम एक सीमा तक करने होते थे ।

फिर भी यह विकास प्रशासन नहीं था क्योंकि प्रथम तो विकसित राष्ट्रों के ”विकास” की कोई गंभीर चुनौती एकाएक सामने नहीं आयी अत: वहां सामान्य प्रशासन के लिये विकास प्रशासन का चोला ओढ़ने की जरूरत नहीं पड़ी । वह स्वभाविक रूप से नियमन के साथ विकास में भी लगा रहा ।

दूसरा यह कि ”विकास” प्रशासन की जरूरत तृतीय विश्व के नव स्वतन्त्र राष्ट्रों को इसलिये पड़ी क्योंकि इनके सामने चहुँमुखी विकास की गंम्भीर मांग और चुनौती मौजूद थी और इनको विरासत में मिला परम्परागत प्रशासन इस अपेक्षा को पूरा करने के अनुरूप नहीं पाया गया । अत: इस तन्त्र में बदलाव करना था ।

यह बदलाव दो प्रकार से अपेक्षित था:

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1. संरचनागत अर्थात् ढाँचागत परिवर्तन और

2. व्यवहारजन्य नौकरशाही के स्थान पर विनौकरशाहीकृत प्रशासन जिसमें प्रक्रिया, व्यवहार आदि को लचीला और जनोन्मुख बनाया जाए ।

इस परिवर्तन के भी दो स्वरूप रहें हैं । अधिकांश राष्ट्रों में प्रारंभ में ढाँचागत परिवर्तन कम हुऐ और परम्परागत प्रशासन को ही विकास के कार्य सौंपे गये । जैसे भारत में काफी समय तक जिला प्रशासन ही विकास की मुख्य धुरी रहा और कुछ हद तक आज भी है । अनेक राष्ट्रों ने नियामिकिय और विकास कार्यों के लिये पृथक्-पृथक् संरचनाएं निर्मित की है ।

भारत में भी जिला ग्रामीण विकास अभिकरण (1980-81) की स्थापना करके नियामिकिय तन्त्र से विकास कार्यों को पृथक् किया गया है । पंचायती राज प्रणाली की स्थापना द्वारा प्रारंभ से ही विकास की विकेन्द्रीत संरचना निर्मित करने कि कोशिशें बराबर की जाती रही ।

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दोनों प्रशासनों में विद्वान निम्नलिखित अन्तर बताते हैं:

1. परम्परागत प्रशासन का मुख्य उद्देश्य शांति व्यवस्था जैसे नियामिकिय कार्यों को सम्पन्न करना है जब कि विकास प्रशासन का मुख्य बल विकास संबंधी कार्यों को करना है ।

2. इसलिये पहले का कार्य क्षेत्र सीमित और दूसरे का अत्यधिक विस्तृत हैं ।

3. स्पष्ट है कि पहले के उद्देश्य सरल एवं साधारण प्रकार के है, जबकि दूसरे के जटिल, बहुमुखी और बहुयोजनीय है ।

4. विस्तृत कार्यों को करने के कारण विकास प्रशासन का आकार भी अपेक्षाकृत बड़ा होता है ।

5. नियामिकीय कार्यों से संबंधित होने के कारण परम्परागत प्रशासन में नियमों, प्रक्रियाओं की कठोरता पर बल है जबकि विकास कार्यों को तीव्र करने के लिये आवश्यक लचिलापन विकास प्रशासन की विशेषता है ।

6. कठोरता पहले में सृजनात्मकता को दबाती है जबकि लचिलापन विकास प्रशासन को सृजनात्मक और नवीनतावादी बनाता है ।

7. अत: नियत प्रक्रिया वाली नौकरशाही परम्परागत प्रशासन की विशेषता है जबकि विकेन्द्रीत अधिकारी तन्त्र विकास प्रशासन की ।

8. परम्परागत प्रशासन के अधिकार केन्द्रीत और अन्तर्मुखी संरचना है जबकि विकास प्रशासन कार्य केन्द्रित और बर्हिमुखी संरचना है ।

9. अत: पहला यथास्थिति वादी है, जबकि दूसरा परिवर्तनवादी ।

10. अत: पहलें के कार्यों की प्रकृति पुनरावृत्ति पूर्ण और निरस है जबकि दूसरे के कार्य नवीन अधिक चुनौतीपूर्ण और रचनात्मक है ।

11. पहला अधिकारी तन्त्र (नौकरशाही) को ही उद्देश्य प्राप्ति का साधन मानता है जबकि दूसरा जनसहभागिता को ।

12. अत: पहलें की अपेक्षा दूसरा अधिक जनोन्मुख है ।

13. परमपरागत प्रशासन पर्यावरण की अपेक्षा करता है जबकि विकास प्रशासन अनिवार्यत: पर्यावरण प्रेरित है ।

14. पहला नियोजन पर उतना बल नहीं देता जितना दूसरा पट के लिये नियोजन को अनिवार्य मानता है ।

15. पहले का उद्देश्य कार्यकुशलता और मितव्ययिता है जबकि दूसरे का प्रभावकारिता और सक्षमता ।

16. पहले में समय-कालिकता पर बल नहीं है जबकि दूसरा समय पर उपलब्धि पर विशेष ध्यान देता है ।

उपर्युक्त अन्तर का सूक्ष्म विश्लेषण करें तो स्पष्ट होगा कि दोनों प्रशासन की विशेषताएं कम-अधिक मात्रा में दोनों में विद्यमान है । आधुनिक युग में सामान्य प्रशासनिक कार्यवाहियों का स्वरूप भी अत्यन्त जटिल होता जा रहा है । जो चुनौतियां नियामिकीय प्रशासन के सामने निरन्तर बढ़ रही है उनसे निपटने के लिये न केवल प्रशासनिक अमले की संख्या बढ़ाना पड़ी है अपितु उसे विविध कार्य-दायित्वों से भी जोड़ा गया है ।

आधुनिक तकनीक से युक्त संसाधनों का इस्तेमाल कर सामान्य प्रशासन अधिक कार्योन्मुख, लक्ष्योन्मुख बन गया है । यही नहीं आर्थिक उदारीकरण और बाजार तंत्र ने उसको संरचनात्मक और व्यवहारात्मक-दोनों रूप में लचीलापन अपनाने के लिये प्रेरित किया है ।

फिर यह भी नहीं भूलना चाहिये कि यह परम्परागत प्रशासन भी पहले विकास कार्यों को अंजाम देता रहा, भले ही वे अत्यल्प हो । अत: विलियम वुड कहते हैं कि अन्तर करने वाले परम्परागत प्रशासन का महत्व कम करना चाहते हैं, जो अनुचित है ।