सार्वजनिक और निजी प्रशासन के बीच अंतर | Difference Between Public and Private Administration in Hindi.

लोक प्रशासन उस परिवेश के अर्थों में (संस्थागत परिवेश) निजी प्रशासन से भिन्न होता है जिसमें यह काम करता है । पॉल एच. एपलबी, सर जोसिया स्टैंप, हरबर्ट ए. साइमन और पीटर ड्रकर ने लोक और निजी प्रशासन में भेद किया है ।

एप्पलबी का उपागम- उनके अनुसार, लोक प्रशासन निजी प्रशासन से तीन पहलुओं में भिन्न है:

(i) राजनीतिक चरित्र,

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(ii) उद्देश्य, प्रभाव और विचार की व्यापकता,

(iii) जन जवाबदेही ।

जोसिया स्टैंप का दृष्टिकोण- उनके अनुसार लोक प्रशासन निजी प्रशासन से चार पहलुओं में अलग है:

(i) एकरूपता का सिद्धांत,

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(ii) बाहरी वित्तीय नियंत्रण का सिद्धांत,

(iii) जनता के प्रति जिम्मेदारी का सिद्धांत,

(iv) सेवा प्रेरण का सिद्धांत ।

हरबर्ट साइमन का दृष्टिकोण- उनके अनुसार लोक प्रशासन और निजी प्रशासन के बीच का अंतर जन कल्पना में निहित है, जो तीन बिंदुओं से संबंधित है:

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(i) लोक प्रशासन नौकरशाहाना है, जबकि निजी प्रशासन व्यापार जैसा ।

(ii) लोक प्रशासन राजनीतिक है, जबकि निजी प्रशासन गैर-राजनीतिक ।

(iii) लोक प्रशासन की पहचान लाल फीताशाही है, जबकि निजी प्रशासन इससे मुक्त है ।

ड्रकर का दृष्टिकोण:

उनके अनुसार, लोक प्रशासन (सेवा संस्थान) निजी प्रशासन (व्यापार संस्थान) से बुनियादी तौर पर अलग है । उनके शब्दों में- ”यह अपने विस्तार क्षेत्र में अलग है । इसके मूल्य अलग हैं । इसे अलग उद्देश्यों की जरूरत है और यह समाज को एक अलग योगदान देता है । ‘प्रदर्शन और परिणाम’ सेवा संस्थान में उस चीज से बिल्कुल अलग होते हैं जो वे एक व्यापार संस्थान में होते हैं । ‘प्रदर्शन का प्रबंधन’ ऐसा एक क्षेत्र है जिसमें सेवा संस्थान व्यापार संस्थान से अहम तरीके से अलग है ।”

लोक और निजी प्रशासन में विभिन्न अंतर हैं:

1. राजनीतिक निर्देशन:

लोक प्रशासन का राजनीतिक चरित्र इसे निजी प्रशासन से अलग कर देता है । लोक प्रशासन पर राजनीतिक निर्देशन और नियंत्रण होता है । यही इन दोनों के बीच पहला अंतर है । पॉल एपलबी दलील देते हैं- ”प्रशासन राजनीति है क्योंकि इसे लोकहित के प्रति उत्तरदायी होना चाहिए… इस तथ्य पर जोर दिए जाने की जरूरत है कि लोकप्रिय राजनीतिक प्रक्रियाएँ, जो जनतंत्र की बुनियाद होती हैं, केवल सरकारी संगठनों के माध्यम से काम कर सकती है, और यह कि सभी सरकारी संगठन सिर्फ प्रशासनिक निकाय नहीं होते बल्कि वे राजनीतिक संघटना होते हैं और उन्हें होना चाहिए ।”

2. उद्देश्य, प्रभाव और सरोकार की व्यापकता:

निजी प्रशासन उद्देश्यों, प्रभाव और सरोकार के मामले में लोक प्रशासन जैसी व्यापकता रखने का दावा नहीं कर सकता । पॉल एच. एपलबी के शब्दों में- ”संगठित सरकार समाज में विद्यमान और गतिमान हर चीज को प्रभावित करती है और उससे प्रभावित होती है । इसमें अति जटिल नीतियों और कार्य शामिल होते हैं । इसकी अधिकतम संभव समझदारी के लिए एक नृपविज्ञानी, इतिहासकार, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, राजनीति विज्ञानी, किसान, मजदूर, उद्योगपति, राजनीतिज्ञ, दार्शनिक और भी तमाम लोगों के विवेक की जरूरत पड़ेगी ।”

3. जनता के प्रति जवाबदेही:

लोक प्रशासन की पहचान जनता के प्रति जवाबदेही से होती है जिससे निजी प्रशासन मुक्त होता है । लोकसेवा को अपने परिवेश के भीतर काम करना होता है जहाँ- अखबार, राजनीतिक पार्टियाँ, दबाव समूह इत्यादि भी होते हैं । इसलिए एक लोकतंत्र में जनता के प्रति जवाबदेही और जिम्मेदारी लोक प्रशासन की छाप होती है ।

पॉल एपलबी टिप्पणी करते हैं- ”सरकारी प्रशासन अन्य सभी प्रशासनिक कार्यों से जन विरोध के चलते इस हद तक अलग है जिसका कल्पना में भी अहसास नहीं किया जा सकता ।”

4. एकरूपता का सिद्धांत:

लोक प्रशासन को अपने व्यवहार में निरंतरतापूर्ण होना चाहिए । दूसरे शब्दों में- व्यवहार की निरंतरता का सिद्धांत लोक प्रशासन का आदर्श वाक्य है । इसके काम और फैसले एकरूप कानूनों, नियमों और कायदों से निर्धारित होते हैं । इससे भिन्न, निजी प्रशासन भेदभावपूर्ण व्यवहार कर सकता है ।

रिचर्ड वार्नर के शब्दों में- ”एक निजी प्रशासन को व्यवहार में एकरूपता के बारे में बहुत चिंता करने की जरूरत नहीं होती । यह विभिन्न विशेष माँगों और उद्देश्यों की पूर्ति, अक्सर ‘ट्रैफिक द्वारा लगाए जा रहे भार’ के अनुसार शुल्क लेकर जन विरोधी तूफान खड़ा किए बिना ले सकता है । लोक प्रशासन में यह जन विरोधी तूफान फौरन उठ खड़ा होगा अगर सरकार द्वारा अमीर के लाभ के लिए एक और गरीब के लाभ के लिए दूसरा कानून बनाया जाए ।”

5. बाह्य वित्तीय नियंत्रण का सिद्धांत:

लोक प्रशासन का वित्त विधान मंडल द्वारा नियंत्रित होता है । दूसरे शब्दों में, विधान मंडल कार्यकारी शाखा की आय और व्यय को अधिकृत करती है । दूसरी और निजी प्रशासन में बाह्य वित्तीय नियंत्रण का सिद्धांत नहीं होता है । यह अपने वित्त का प्रयोग इच्छानुसार करता है ।

6. सेवा प्रेरणा का सिद्धांत:

लोक प्रशासन की पहचान सेवा प्रेरणा से होती है । इसका उद्देश्य जनता की सेवा करना और समुदाय के कल्याण को बढ़ावा देना होता है । इसके विपरीत निजी प्रशासन की पहचान लाभ प्रेरणा से होती है, न कि समाज सेवा से । इसका उद्देश्य लाभ को अधिकतम बनाना है । अपनी सामाजिक भूमिका के कारण लोक प्रशासन की प्रतिष्ठा भी अधिक होती है ।

7. कानूनी ढाँचा:

लोक प्रशासन को कानूनी ढाँचे के भीतर रहते हुए काम करना होता है । इसे कानूनों, नियमों और कायदों द्वारा बनाई गई सीमाओं के भीतर रहना होता है । यह लोक प्रशासन को व्यवहार में कठोर बना देता है । दूसरी ओर निजी प्रशासन ऐसी सीमाओं से तुलनात्मक रूप से मुक्त होता है और इसके काम में लचीलापन होता है ।

8. कामों की प्रकृति:

अपने द्वारा किए जाने वाले कामों की प्रकृति में भी लोक प्रशासन निजी प्रशासन से भिन्न होता है ।

जैसे:

(i) यह निजी प्रशासन से अधिक व्यापक होता है, यानी यह गतिविधियों के व्यापक क्षेत्र को समेटता है ।

(ii) इसकी गतिविधियाँ समाज के अस्तित्व के लिए ही अधिक आवश्यक और अनिवार्य हैं ।

(iii) इसकी सेवाएँ कभी-कभी एकाधिकारी प्रतीत होती हैं । उदाहरणार्थ रक्षा का कार्य ।

अनामता:

लोक प्रशासन अनाम रूप से काम करता है । दूसरे शब्दों में सरकार में लोकसेवा के काम की पहचान अनामता के सिद्धांत से होती है जो मंत्रिमंडलीय उत्तरदायित्व के सिद्धांत के बिल्कुल विपरीत है । इस प्रकार, मंत्री उन कामों की जिम्मेदारी लेता है जो काम उसके अंतर्गत काम कर रहे लोक-सेवक करते हैं ।

प्रभाविता मापन:

लोक प्रशासन प्रभाविता मापन के मामले में निजी प्रशासन से भिन्न होता है । निजी प्रशासन में संसाधन उपयोग या लाभ कमाना (आगत-निर्गत संबंध) प्रभाविता नापने की कसौटी है । लेकिन लोक प्रशासन में प्रभाविता नापते वक्त इस कसौटी को लागू नहीं किया जा सकता ।

पीटर सेल्फ के अनुसार, लोक प्रशासन में तीन किस्म की प्रभाविताएँ महत्त्वपूर्ण हैं:

(i) प्रशासनिक या प्रबंधन प्रभाविता जैसा कि निजी प्रशासन के मामले में भी होता है;

(ii) नीति प्रभाविता अर्थात सही निर्णय लेने और उचित कार्यक्रमों को चुनने की क्षमता और

(iii) सेवा प्रभाविता अर्थात ग्राहक संतुष्टि और विकास ।

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