दुग्धशाला बहिस्राव प्रबन्धन: प्रबंधन और उपचार | Read this article in Hindi to learn about the management and treatment of dairy effluent.

दुग्धशाला बहिस्राव प्रबन्धन (Dairy Effluent Management):

दुग्ध उद्योग में बनने वाला प्रत्येक पदार्थ विभिन्न गुणों वाले मल मुकत बहिस्राव पदार्थ (Waste Material) छोड़ता है । इसमें उपस्थित जीवाणु पर्यावरणीय कारकों से प्रभावित दर से इन पदार्थों का विघटन करके पर्यावरण में प्रदूषण फैलाते हैं ।

भारत सरकार ने पर्यावरण सुरक्षा की दृष्टि से Environmental Protection Act (1986) द्वारा निर्धारित किया है कि प्रत्येक डेरी उद्योगपति को डेरी बहिस्राव (Dairy Effluents) को बाहर छोड़ने से पूर्व उपचारित करना होगा ।

दुग्ध उद्योग में प्रसंस्करण द्वारा विपणित दूध, बटर, चीज़ योगर्ट, संघनित दूध, दुग्ध चूर्ण आईसक्रीम, परम्परागत दुग्ध पदार्थ आदि उपभोक्ता वस्तुएं उत्पादित की जाती है ।

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विभिन्न उपचारों जैसे- अवशीतलन, पृथक्कीकरण, पास्तुरीकरण, समांगीकरण, संघनन, निर्जलीकरण (Desiccation), किण्वन, स्कन्दन, शुष्कन, व हिमीकरण आदि तथा विभिन्न उपोत्पाद जैसे- मक्खनिया दूध तथा व्हे द्वारा अन्य दुग्ध उत्पादों के समान ही मल पदार्थ उत्पादित होते हैं । प्रत्येक पदार्थ के उत्पादन में प्रत्येक पद पर कुछ न कुछ मल पदार्थ निकलता है ।

दुग्ध उद्योग बहिस्रावों (Dairy Effluents) में घुलित शर्करा, प्रोटीन, वसा तथा कुछ योगकों (Additives) के अवशेष उपस्थित होते हैं । भारत के लगभग 200 दुग्ध सयंन्त्रों में दुग्ध उत्पादन का लगभग 15% दूध प्रतिदिन प्रसंस्करित होता है ।

1 लीटर दूध के प्रसंस्करण में लगभग 8-10 लीटर मलयुक्त जल (Waste Water) निकलता है । इस जल की मात्रा निर्मित पदार्थ, उपयोग हुए जल की गुणवत्ता, उपचार का प्रकार तथा प्रबन्धन का आदि कारकों से भी प्रभावित होती है ।

डेरी मल पदार्थ अन्य उद्योगों के मल पदार्थों से विशिष्ट होता है क्योंकि इसमें कार्बनिक पदार्थ की सान्द्रता अधिक होने के कारण इसकी आक्सीजन मांग (Biological Oxygen Demand – BOD) अधिक होता है । दूध, पानी तथा मल जल में उपस्थित जीवाणु श्वसन (Respiration) क्रिया द्वारा आक्सीजन उपभोग करते हैं ।

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इन जीवाणुओं द्वारा आवश्यक आक्सीजन की मात्रा उस पदार्थ की जैविक आक्सीजन माँग (Biological Oxygen Demand) कहलाती है । किसी पदार्थ की BOD उसमें सूक्ष्म जैविक क्रियाशीलता (Microbial Activity) की माप है । दुग्ध उद्योग में BOD का महत्व भी है ।

दूध में घुलित आक्सीजन दुग्ध वसा का आक्सीकरण करके उसमें तेलीय दुर्गुण उत्पन्न करती है । परन्तु जीवाणु इस घुलित O2 को अवशोषित करके दूध की इस दुर्गुण से रक्षा करते हैं । परन्तु दूध में अधिक मात्रा में जीवाणुओं की उपस्थिति दूध को विघटित भी कर देती हैं ।

डेरी बहिस्राव का उपचार से पूर्व B.O.D. 800 से 2500 मि.ग्रा. प्रति लीटर होता है । यह दूध से बनने वाले पदार्थ की प्रकार पर भी निर्भर करता है । B.I.S. Standards के अनुसार डेरी मल जल को सिंचाई हेतु प्रयोग करने के लिए BOD 100 mg/lit. तथा गन्दे नाले में बहाने के लिए B.O.D. 350 mg/lit. तक कम करना आवश्यक है ।

अत: डेरी बहिस्राव को बाहर छोड़ने से पूर्व बहिस्राव की BOD में कमि लाने के लिए उपचारित किया जाता है । डेरी मल जल में BOD का मुख्य कारक क्रीम, मक्खन, चीज तथा व्हे उत्पादन है । इस मल जल का C.O.D. (Chemical Oxygen Demand), B.O.D. का लगभग 1.5 गुणा होता है ।

बहिस्राव उपचार विधियों का चयन (Selection of Criteria for Waste Treatment Methods):

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मल जल को उपचारित करने के लिए विधियों का चयन करने से पूर्व निम्नलिखित कारकों को ध्यान में रखना आवश्यक है:

1. बहिस्राव मानक (Effluent Standards):

देश में BIS (Bureau of Indian Standards) द्वारा उद्योगों से निकले बहिस्राव के लिए मानक निश्चित किये गये हैं । उद्योगीकरण के इस युक्त में जल तथा वायु प्रदूषण की दृष्टि से इन मानकों का पालन कड़ाई के साथ होना चाहिए । डेरी मल जल को सिंचाई के लिए प्रयोग हेतु छोड़ते समय उसमें BOD-100 mg./lit., pH- 5.5-9.0 तथा अकार्बनिक घुलित ठोस 2100 mg/lit. से अधिक नहीं होना चाहिए ।

2. स्थान की स्थिति (Location of Site):

मल जल उपचार संयंत्र की स्थापना तथा विकास के लिए पर्याप्त भूमि की आवश्यकता होती है । दुर्गन्ध तथा ध्वनी प्रदूषण के कारण संयंत्र की शहरी क्षेत्र में स्थापना प्रतिबन्धित है ।

3. डेरी मल जल के गुण (Dairy Waste-Water Characteristics):

डेरी संयंत्र से निकलने वाले मल जल की प्रकृति तथा संगठन संयन्त्र में प्रसंस्करित दूध व निर्मित पदार्थों की मात्रा तथा प्रकार पर निर्भर करती है । इसमें वसा, प्रोटीन, लेक्टोज, लैक्टिक अम्ल, खनिज लवण, अपमार्जक तथा परिशोधक (Sanitizers) पाये जाते हैं ।

इनकी सान्द्रता, प्रसंस्करण की प्रक्रिया पर भी निर्भर करती है । इस जल में कार्बनिक व अकार्बनिक तत्व घुलित अवस्था में पाये जाते हैं जो साधारण तलछटन (Sedimentation) की क्रिया द्वारा अलग नहीं किये जा सकते हैं । डेरी मल जल में कार्बन से नाईट्रोजन अनुपात घरेलू मल जल से भिन्न होता है, अत: इसे उपचारित करने के लिए सामान्य विधि में कुछ परिवर्तन करने होते हैं ।

4. मल जल में भिन्नता (Variations in Waste-Water):

डेरी से निष्कासित होने वाला बहिस्रावित जल के संगठन में नियमितता नहीं होती है । अत उपचार विधि अचानक बड़ी सांद्रता के प्रति संवेदनशील होनी चाहिए ।

5. उपचार व्यय (Cost of Treatment):

उपचार विधि के चयन में उसकी प्रारम्भिक लागत तथा उसे चलाने का खर्चा महत्वपूर्ण कारक होता है । विधि के चयन में अप्रत्यक्ष व्यय जैसे व्हे पृथक्कीकरण तथा अवमल (Sludge) रखरखाव के व्यय को भी दृष्टिगत रखना चाहिए ।

उपचार विधियां (Treatment Method):

डेरी संयंत्र के बहिस्राव को उपचारित करने के लिए कार्बनिक पदार्थों की सान्द्रता के कारण जैविक विधियों का प्रयोग किया जाता है ।

इन विधियों को दो प्रमुख समूहों में विभक्त करते हैं:

(1) परम्परागत या लौकिक विधियां (Conventional Methods)- Anaerobic Digestion, Activated Sludge and Trickling Filters.

(2) निम्न व्यय उपचार विधियां (Low Cost Waste Treatment Methods)- Aerated Lagoons, Stabilization Ponds and Oxidation Ditch.

यूरोपियन देशों में डेरी बहिस्राव को उचित उपचार के उपरान्त ही बाहर छोड़ा जाता है । इसका उपयोग कृषि भूमि में सिंचाई के लिए सफलतापूर्वक किया जा सकता है जबकि भारत में बहिस्रावित जल के उपचार पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है । यहां आद्योगिक प्रदूषण नियन्त्रण को भी अधिक महत्वपूर्ण नहीं समझा जाता है ।

सामान्यतय मल जल को साफ पानी में मिलाकर सान्द्रता कम करके सिंचाई के लिए प्रयोग कर लेते हैं । शहर में स्थिर डेरी संयन्त्रों का बहिस्राव सीधे रूप में नालियों में बहा दिया जाता है या नदी नाला में छोड़ दिया जाता है जो प्रदूषण फैलाने के साथ-साथ कृषि योग्य भूमि को भी खराब करता है ।

भारत में मल-जल उपचार के लिए प्रयोग की जाने वाली प्रमुख विधियां निमवत् है:

1. सक्रियित अवमल विधि (Activated Sludge) :

लौकिक अवमल विधि (Conventional Sludge Process) में एक वायवीय टैंक (Aeration Tank), एक तलछटन टैंक (Sedimentation Tank) तथा एक अवमल पुन: चक्रीय पंक्ति (Sludge Recycle Line) सम्मिलित होते हैं । वायवीय टैंक में यान्त्रिक विधि द्वारा वायु मिश्रित करके वायुजीवी जीवाणु की क्रियाशीलता में वृद्धि की जाती है ।

डेरी संयंत्र का Influent Waste Water तथा Recycled Sludge टैंक के उपरी सिरे से प्रवेश करता है । इस टैंक में 6-8 घन्टे रखा जाता है । यह दोनों मल जल व अवमल को यान्त्रिक विधि से मिश्रित करते हैं । तत्पश्चात् तलछटन टैंक (Sedimentation Tank) में तलछटन उपरान्त Influent मल जल का लगभग 25 से 50% अवमल तलछटन टैंक से में प्रवाहित किया जाता है ।

यह प्रक्रिया Aerobic Biological उपचार के लिए की जाती है । अवमल के पुन: Aeration Tank में आने से मल जल में जीवाणुओं की सान्द्रता बढ़ जाती है फलस्वरूप मल जल में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों का विघटन शीघ्र होता है । तथा छोटे आकार का रियेक्टर बड़ी मात्रा में मल जल को उपचारित करने के लिए पर्याप्त होता है ।

2. वायवीय छिछली झील (Aerated Lagoons):

इस विधि में 2.5 से 3.5 मीटर गहरा कच्चा तालाब होता है । जिसकी सतह पर Mechanical Surface Aerator लगे होते हैं । कम सान्द्रता युक्त मल जल (50 से 500 mg/lit) को उपचारित करने के लिए इस विधि का उपयोग करते है । इस तालाब में मल जल को 3-4 दिन तक रोककर 90% तक BOD निकाली जा सकती है ।

3. आक्सीकरण खाई (Oxidation Ditch):

इस विधि में 1 से 1.5 मीटर गहरी पक्की खाई बनायी जाती है । इसके प्रवेश द्वार से मल जल तथा पुन: चक्रित अवमल प्रवेश करता है । प्रवेश द्वार के पास लगा रोटर इसे मिश्रित करता है तथा एक अन्य रोटर की सहायत से इसे गतिशील बनाये रखता है । यहीं इसमें वायु भी मिश्रित होती रहती है ।

आक्सीकरण खाई एक वायुवीय प्रणाली है । जिसमें 4000 mg/lit. सान्द्रता तक के मल जल को उपचारित किया जा सकता है । इस विधि का कार्य सिद्धान्त क्रियाशील अवमल प्रक्रिया के समान है तथा यूरोपियन देशों में इस विधि का प्रयोग अधिक किया जाता है ।

4. रिसाव छनना (Trickling Filter):

रिसाव छनना उच्च पारगम्यता युक्त माध्यम है जिसमें सूक्ष्म जीवाणु सम्बद्ध हो जाते हैं तथा मल जल रिसाव द्वारा बूँद-बूँद के रूप में छन छन के नीचे टपकता रहता है । इस विधि में प्रयुक्त छनने में 25 से 100 मि.मी. आकार का पत्थर चूरा की 0.9 से 2-5 मीटर मोटी परत होती है ।

इस परत के ऊपर तरल मल जल फैलाया जाता है । छनने से निकले जल का स्वच्छीकरण (Clarification) करके कीचड़ ठोस (Sloughed Solids) अलग किया जाता है । ये छनने में क्रियाशील जैविक परत बनाये रखने के लिए आवश्यक होते हैं ।

डेरी मल जल का BOD, नगरीय मल जल की अपेक्षा अधिक होता है अत: उचित वातायन (Ventilation) बनाये रखना आवश्यक है । इस विधि में माध्यम स्तर का Shock Loads को भी सहन किया जा सकता है यद्यपि थोड़े समय के लिए Effluent की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है ।

5. घूमने वाली जीवविज्ञानीय डिस्क (Rotating Biological Discs):

यह रिसाव छनना विधि का रूपान्त्रित रूप है जिसमें एक स्थिर जीववैज्ञानीय परत (Fixed Biological Film) मिल जल में घूमती है । इस विधि का विकास जर्मनी में 1955 में हुआ । यूरोप में हजारों संयंत्रों में इस विधि का उपयोग किया जा रहा है । एक शाफ्ट पर चढ़े सघन डिस्क (Closely Spaced Discs) मन जल में 2 rpm की गति से चक्कर लगाते हैं ।

इनका लगभग 40% भाग जलमग्न रहता है । डिस्क पर उपस्थित जैविक पदार्थ (Biological Mass) कार्बनिक पदार्थ का शोषण करता है तथा उसे आक्सीजन की उपस्थिति में आक्सीकृत करता है । डिस्क पर कीचड़ जमा होकर जैविक आक्सीकरण को बढ़ाता है । डिस्क पर अधिक कीचड़ तथा जैविक पदार्थ एकत्र होने जाने पर स्वच्छीकरण (Clarification) किया जाता है ।

डेरी बहिस्राव की उपचार तकनीकियां (Dairy Effluents Treatment Technologies):

डेरी बहिस्राव को उपचारित करने की विधि को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है:

1. पूर्व उपचार (Pre-treatments),

2. जैविक उपचार (Biological Treatment) ।

पूर्व उपचारों में Screening, Flow Equalization, Neutralization तथा Air Flotation सम्मिलित करते हैं । इनके उपरान्त अगला उपचार Biological Treatment दिया जाता है । भूमि उपलब्ध होने पर तालाब प्रणाली (Pond System) सक्षम उपचार विधि है ।

अन्य जैविक उपचारों में Trickling Filters, Rotating Biological Contactor’s तथा Activated Sludge उपचार विधियां हैं । सम्बन्धित अधिकारी की अनुमति उपरान्त डेरी बहिस्राव को पूर्व उपचारों के बाद नाले (Sewerage) में भी छोड़ा जा सकता है ।

डेरी में मल जल उपचारण संयंत्र की कार्य प्रणाली (Unit Operations of Waste Treatment Plant):

1. Screening- डेरी मल जल को सर्वप्रथम उसमें से मोटे कण दूर करने के लिए छाना जाता है । यह प्रथम पूर्व उपचार है ।

2. Flow Equalization- डेरी संयंत्र से निकलने वाले मल जल का बहाव दर को नियमित रखा जाता है ।

3. Mixing- डेरी संयंत्र से निकले मल जल की अच्छी प्रकार मिश्रित करते हैं ताकि सभी अव्यव समान रूप से समांग मिश्रण बनायें/इससे जैविक उपचार में लाभ होगा ।

4. Flocculation- उपयुक्त रसायन मिलाकर हिलाते हैं ताकि मल कण एकत्र होकर गुच्छा (Flocculation) बना ले व निलम्बन अवस्था में आ जाए ।

5. Sedimentation- गुरुत्वाकर्षण तलछटन (Gravitational Setting) विधि द्वारा उपरोक्त उपचार में निलम्बित कणों को स्थिर अवस्था में रखते हैं ताकि भारी कण नीचे बैठ जाए ।

6. Flotation- तरल अवस्था (Liquid Phase) से ठोस या तरल मल को तरल अवस्था से अलग करने की यह एक विधि है । इस प्रक्रिया में तरल अवस्था में महीन हवा के बुलबुले पैदा करते हैं जो पदार्थ के कणों को साथ जुड़ कर उन्हें सतह पर उठाते हैं ।

इस उपचार का मुख्य उद्देश्य निलम्बित पदार्थ को अलग करना तथा जैविक अवमल (Biological Sludge) की सान्द्रता में वृद्धि करना है । इस विधि द्वारा बहुत छोटे तथा हल्के निलम्बित कणों को भी पूर्ण रूप से तथा कम समय में अलग किया जा सकता है ।

7. Filtration- मल जल में शेष ठोस पदार्थों को छानने की विधि का चलन बहुत पुराना नहीं है । मल जल को छानने के लिए विभिन्न प्रकार के दानेदार माध्यम (Granular Media) उपयोग किये जाते हैं ।

डेरी वेस्ट से दुग्ध अव्यवों की अलग करने के लिए झिल्ली प्रक्रिया (Membrane Process) का उपयोग भी किया जा सकता है । जिसमें Microfiltration विधि का उपभोग करके जीवाणुओं की Waste में अलग कर सकते हैं ।

Ultra Filtration द्वारा प्रोटीन को, Reverse Osmosis द्वारा लवण को तथा Electro Dialysis द्वारा कार्बनिक अम्ल तथा लवण डेरी मल जल से पृथक किये जा सकते हैं । Pervaporation का प्रयोग करके मल जल से Alcohol, Flavour तथा Aroma यौगिकों को निकाल सकते हैं ।

जैविक उपचार (Biological Treatment):

मल विघटन के लिए Bio-Mass Engineering का प्रयोग करते हुए जीवाणुओं की क्रियाशीलता में वृद्धि के लिए चयनित सूक्ष्म जीवाणुओं को मल जल में मिलाया जाता है । इससे अव्यव विघटन क्रिया उच्च स्तर पर स्थिर बनी रहती है । विभिन्न प्रदूषकों (Pollutants), बहिस्रावों (Effluents) तथा अन्य वातावरणीय मलों के उपचार हेतु विभिन्न उत्पाद उपचार हेतु मिलाये जाते हैं ।

डरी संयंत्र में 1 मीट्रिक टन दूध प्रसंस्करण के लिए 1-2 घन मीटर मल जल निकलता है । उद्योगपतियों को चाहिए कि 1 टन दूध प्रसंस्करण पर 1 घन मीटर उससे भी कम मल जल निकालने का लक्ष्य निर्धारित करें । दूघ की एक टन मात्रा पर B.O.D. 2.5 kg से कम रहना चाहिए ।