गन्ना बीज उत्पादन: तकनीक और भंडारण | Read this article in Hindi to learn about:- 1. बीज गन्ना उत्पादन की प्रस्तावना (Introduction to Sugarcane Seed Production) 2. बीज गन्ना उत्पादन तकनीक (Techniques of Sugarcane Seed Production) 3. रखरखाव (Storage).

बीज गन्ना उत्पादन की प्रस्तावना (Introduction to Sugarcane Seed Production):

साधारणतया सभी फसलों की बीजोत्पादन तकनीक, व्यावसायिक कृषि तकनीक से भिन्न होती है । गन्ने का व्यावसायिक उत्पादन इसके वानस्पतिक भाग से होने के कारण बीज गन्ना को बीजजनित बीमारियों से सर्वथा मुक्त होना नितांत आवश्यक है ।

गन्ने की प्रमुख बीमारियाँ जैसे-काना, उकठा, कंडुआ, घासीय प्ररोह, पर्णदाह आदि संक्रमित बीज गन्ना की बुआई करने से बावक फसल में पहुंच जाती हैं । अनेक अच्छी उपज देने वाली प्रजातियां जैसे-को. 213, को. 463, को. 527, को. शा. 770, बी.उ. 16, बी.उ. 32 आदि काना रोग से ग्रस्त होने के कारण निरस्त कर दी गयी ।

रोगी बीज गन्ना की बुआई से पैदावार व चीनी का परता तो कम होता ही है, प्रजातियों का भी हनन हो जाता है । किसी भी क्षेत्र के लिए संस्तुत प्रजातियों का ही चुनाव करना चाहिए । इसके पश्चात् बीज लेने वाले स्थान से प्रजाति शुद्धता रोग मुक्तता एवं अपरिपक्वता के बारे में सुनिश्चित जानकारी कर लेनी चाहिए । गिरे हुए तथा चूहों या जंगली जानवरों द्वारा क्षतिग्रस्त गन्ने छांटकर अलग कर देने चाहिए ।

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गन्ने की हंसिये से छिलाई करने पर आंखों के कट जाने की आशंका रहती है । इसलिए हमेशा हाथ से छिलाई की जानी चाहिए । जिन खेतों में खाद एवं पानी की प्रचुर मात्रा दी जाती है उसके बीज का जमाव अच्छा होता है । इसके अतिरिक्त गन्ने के ऊपरी 2/3 भाग का जमाव अपेक्षाकृत ज्यादा अच्छा रहता है ।

पेडों (सेट्‌स) की कटाई के बाद उनका अच्छी प्रकार निरीक्षण करना भी आवश्यक है । जिन पेडो के कटे हुए सिरे लाल हों, आंखे खराब हों, गन्ना बेधक के छिद्र हों, असाधारण पतले हों, हल्के व खोखले हों तथा जडें निकली हों, उनको छांटकर निकाल देना चाहिए । सामान्यतः एक हैक्टर क्षेत्रफल में लगभग 38-40 हजार तीन आँख वाले पेडों की आवश्यकता पडती है परंतु पिछेती बुआई (अप्रैल/मई) के समय बोने की परिस्थितियों में बीज की मात्रा बढा देना श्रेयस्कर होता है ।

बीज गन्ने का संवर्धन:

गन्ने को ताप शोधित कर त्रिस्तरीय बीज (आधार, प्रमाणित, व्यावसायिक) संवर्धन की संस्तुति की गई है ।

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i. आधार बीज:

आधार बीज तैयार करने के लिए शुद्ध किस्म और रोग रहित फसल से केंद्रक बीज लिया जाता है । बीज को गर्म- नम वायु संयंत्र में (54 से. पर 2.5 घंटे) या गर्म-जल में (50 से. पर 2.0 घंटे) गर्म-वाष्प युक्त हवा में (50 से. – 1.0 घंटे) किसी एक विधि से तापशोधित किया जाना सबसे महत्वपूर्ण है ।

द्वितीय संक्रमण और अधिक भीषण प्रकोप वाले गन्ने में पूर्ण रोग मुक्तता न हो पाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता । अतः रोगी पौधे को बीज फसल से निष्कासित करना भी आवश्यक है । कम से कम 3 बार (40-60 दिन, 120-30 दिन, 15 दिन कटाई के पूर्व) निरीक्षण करके रोगी पौधे को जड समेत उखाडकर निकाल देना चाहिए ।

ii. प्रमाणित बीज:

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इस प्रकार तैयार आधार बीज को दूसरे वर्ष बिना ताप शोधन किये अच्छी देख रेख में उगाया जाता है । रोगों के लिए फसल का निरीक्षण आवश्यक होता है । इसे प्रमाणित बीज कहते हैं ।

iii. व्यावसायिक बीज:

तीसरे वर्ष प्रमाणित बीज को उगाया जाता है । लगभग 25 प्रतिशत फसल को तीन बार बीमारियों के लिए निरीक्षण किया जाता है । अधिकतम सीमा से ऊपर बीमार पौधे होने पर फसल बीज के लिए अनुपयुक्त हो जाती है । कृषकों को विस्तृत क्षेत्र पर उगाने के लिए व्यावसायिक बीज उपलब्ध कराया जाता है । इस प्रकार शुद्ध शोधित बीज से गन्ने की किस्म 5-6 वर्षों तक बराबर उपज देती रहती है ।

बीज की खास बातें:

1. जिस खेत में पहले गन्ना बोया गया है उस खेत को बीज गन्ना फसल बोने के लिए नहीं चुनना चाहिये तथा खेत में पनि निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए ।

2. बीज गन्ना की प्रजाति शुद्धता 100 प्रतिशत, जमाव क्षमता 85 प्रतिशत एवं उसमें नमी 6.5 प्रतिशत होना चाहिए ।

3. प्रत्येक गांठ पर स्वस्थ आँख होना जरूरी होता है । यदि 5 प्रतिशत से अधिक आँखें स्वस्थ व सही हालत में न हों तो उस गन्ने को बीज के लिए नहीं लेना चाहिए ।

4. बावक फसल का गन्ना ही बीज के लिए उपयुक्त होता है ।

5. बीज गन्ने की फसल अवधि 10 माह सर्वोतम होती है ।

बीज गन्ना उत्पादन तकनीक (Techniques of Sugarcane Seed Production):

1. बुआई:

उत्तरी भारत में फरवरी-मार्च और अक्तूबर में बीज गन्ने की बुआई की जाती है । दक्षिणी भारत के अनाकापल्ली क्षेत्र में 6 महीने की फसल का बीज (फरवरी-मार्च का बोया गन्ना) अगस्त, सितंबर में पुनः प्रयोग किया जाता हैं । तेलंगाना क्षेत्र में मुख्यतः नवंबर-मार्च और अधसाली फसल जून-सितंबर में बोई जाती है ।

सामान्यतया तीन आँख के टुकडे बोने के लिए प्रयोग में लिए जाते हैं । एक आँख के टुकडों का प्रयोग अंतरालित प्रतिरोपण विधि में किया जाता है । बीज गन्ने की बुआई 90×60 सें.मी. पर करने से लगभग 18000 आँखें प्रति हैक्टर की आवश्यकता होती है ।

बीज गन्ने के लिए सामान्य फसल की अपेक्षा नाइट्रोजन व फास्फोरस की 25 प्रतिशत और पोटाश की 50 प्रतिशत अधिक मात्रा देना आवश्यक होता है । नाइट्रोजन की बढी हुई 25 प्रतिशत मात्रा कटाई के 4-6 सप्ताह पूर्व में देना चाहिए । ऐसा करने से बोते समय गन्ने का जमाव अधिक होता है ।

बीज गन्ने की सूखी पतियों को सितंबर में निकाल देने से उसमें कीट प्रकोप कम हो जाता है । बीज गन्ने को अधिक दूरी तक ले जाने पर उसमें नमी की कमी से जमाव पर प्रतिकूल प्रभाव पड सकता है । अतः सूखी पत्तियों के साथ पूरे गन्ने पर पानी छिडककर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना चाहिए ।

बुआई से पूर्व बीज के टुकडों को पानी में डुबोकर बोने से जमाव अधिक होता है । फफूँदी नाशक, बैवसटीन के 0.25 प्रतिशत घोल में टुकडों को डुबोकर बोने से जमीन में फफूँदियों से बचाव भी हो जाता है और पानी की कमी भी पूरी हो जाती है । दीमक, जड बेधक तथा तना बेधक से सुरक्षा के लिए गामा बी.एच.सी. 1 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व प्रति है या क्लोरोपाइरीफास का छिडकाव नालियों (कूड़ों) में बोए गए टुकडों पर किया जाता है उसके बाद कुंडों की भराई कर दी जाती है ।

2. अंतरालित प्रतिरोपण विधि से गन्ने के बीज का संवर्धन:

ताप शोधित गन्ने के एक आँख के टुकड़ों को 10 मी. × 5 मी. क्यारियों में रोपाई से लगभग एक महीने पूर्व बुआई कर दी जाती है । इस विधि में केवल प्रति हैक्टर 2 टन बीज को शोधित करने की आवश्यकता होती है तीन पक्षी वाली नर्सरी पौध होने पर उनका रोपण नालियों में 60 सें.मी. पर करने से 1:40 के अनुपात में गन्ने की उपज बढती है । रोगी पौधों को नर्सरी में उगाते समय जांच परख कर उखाड दिया जाता है ।

3. ऊतक संवर्धन से गन्ना बीज का उत्पादन:

इस विधि से बहुत कम गन्ने से प्रयोगशाला में परखनली में मोरस्टम टिप को उगाया जाता है । समुचित प्रयोगशाला और तकनीकी ज्ञान से गन्ने की एक आँख से एक वर्ष में लगभग 78408 पौधे तैयार किए जा सकते हैं । इस विधि की प्रमुख बात विषाणुरोग मुक्त पौध पैदा करने की है ।

अन्य दूसरी विधियों में विषाणु पूर्णतः समाप्त नहीं होते हैं इसके अतिरिक्त बीज में खनिज तत्वों की उपलब्धता भी बढ जाती है । नवीन किस्मों का अधिक से अधिक ओर शीघ्रतम विकास होने में इस विधि की विशेष भूमिका हो सकती है ।

गन्ने की नवीनतम प्रजातियों के त्वरित बीज संवर्धन हेतु अधिकांश गन्ना शोध संस्थान एवं चीनी मिले ऊतक संवर्धन विधि द्वारा बीज तैयार करके किसानों को वितरित कर रहे है । इस दिशा में पुणे स्थित बंसतदादा शर्करा संस्थान अग्रणी है ।

ऊतक संवर्धन विधि द्वारा बीज गन्ना उत्पादन निम्नलिखित चरणों में सम्पन्न होता है:

चरण 1 – मुख्य सामग्री एवं संगरोध पौधशाला:

गन्ना प्रजनक की देखरेख में उगाये गये क्षेत्र विशेष के लिए संस्तुत, स्वस्थ एवं रोग व कीट व्याधि मुक्त बीज गन्ने का चयन किया जाता है । पौधे घासी प्ररोह, मोजेक विषाणु, लाल सडन व कण्डुवा रोग से मुक्त होने चाहिए । इसकी जांच पी. सी. आर. एवं एलीसा टेस्ट द्वारा की जा सकती है ।

चयनित गन्नों को उष्ण-नम वायु संयंत्र से उपचारित करके विसंक्रमणित गंड़ासे द्वारा एक आँख के टुकडे काटकर पोली बैग में लगा दिया जाता है । एक माह पश्चात इन गन्नों को विसंक्रमणित रेत से भरे हुए गमलों में स्थानांतरित करके नेट हाउस में रखने के पश्चात रोग व कीटों का निरंतर निरीक्षण करते है । निरीक्षण के दौरान अलग तरह के पौधे दिखने पर उन्हें उखाडकर नष्ट कर देना चाहिए ।

चरण 2 – आधार बीज पौधशाला तैयार करने की विधि:

उपरोक्त विधि द्वारा तैयार किये गये पौधों में से रोग व कीट मुक्त पौधों को छांटकर उन्हें विषाणु मुक्त चाकू द्वारा एक आँख के टुकड़े करके रोग व कीट मुक्त नेट हाउस में बुआई कर देना चाहिए । उपरोक्त पौधों में से रोग व कीट मुक्त पौधे छांटकर उनमें से सूक्ष्म प्रवर्धन पौध उत्पादन के लिए ऊतक लिया जाता है ।

चरण 3 – सूक्ष्म प्रवर्धन द्वारा आधार बीज का उत्पादन:

पौधे 4-5 माह के हो जाने पर ऊतक संवर्धन हेतु उनसे एक्स-प्लांट लेकर फफूँदी व विषाणु रहित उपयुक्त मीडियम में रखकर उगाते हैं । उपर्युक्त प्रक्रिया 3-4 चक्र तक दोहराते रहना चाहिए तथा 5-6 सप्ताह बाद पी.सी.आर. द्वारा इनकी आनुवंशिक शुद्धता की जाँच कर लेनी चाहिए ।

रोगरहित एवं आनुवंशिक रूप से शुद्ध पौधों को छांटकर उपयुक्त मीडियम में स्थानांतरित करके इनकी संख्या बढाने के लिए 5-7 बार सब-कल्चरिंग की जाती है । जडें निकलने के पश्चात बाहरी वातावरण में कठोर बनाने हेतु पोली बैग में रखकर मिस्ट हाउस में स्थानांतरित कर देना चाहिए ।

पौधे में 4-5 पत्तियां विकसित हो जाने पर पौधे बीज गन्ना पौधशाला धारक कृषकों तथा चीनी मिल प्रक्षेत्रों पर वितरण हेतु तेयार हो जाते है । इन्हें अब छिद्रयुक्त बक्सों में रखकर भेजा जा सकता है ।

चरण 4 – आधार बीज गन्ना पौधशाला:

इन पौधों को अच्छी तरह से तैयार खेत में 90 × 60 सें. मी. की दूरी पर रोपाई की जा सकती है । इसके उपरांत खेत में शीघ्र स्थापन हेतु सिंचाई अवश्य करें तथा तीन माह पश्चात पौधों को नाइट्रोजन देकर थोडी सी मिट्टी चढाना आवश्यक है । इस पौधशाला से प्राप्त होने वाले बीज गन्ने द्वारा अगले वर्ष प्रमाणित बीज तैयार किया जा सकता है । जिसके मानक परंपरागत विधि से तैयार किये जाने वाले बीज गन्ना की तरह ही होंगे ।

गन्ना बीज फसल का रखरखाव (Storage of Sugarcane Seed):

(i) बीज गन्ना फसल बोने के लिए जिस फसल से बीज लेना हो वह रोग व कीट रहित होनी चाहिये तथा जिस खेत में फसल बोना हो वह समतल व उपजाऊ होना चाहिये ।

(ii) बोने के लिए गन्ने का नीचे का एक तिहाई हिस्सा उपयोग नहीं करना चाहिये ।

(iii) बोने के लिए गन्ने के टुकडों को उचित एवं संतुलित कवकनाशियों से उपचारित कर लेना चाहिये ।

(iv) बोने के बाद दीमक से बचाव के लिए क्लोरापाईरीफास 1.00 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/हैक्टर की दर से टुकडों पर छिडक देना चाहिये ।

(v) बीज गन्ना फसल का बुआई का समय ऐसा हो कि प्रयोग के समय फसल 8 से 10 माह की हो जाये ।

कटाई उपरांत बीज गन्ना का रखरखाव:

(i) बीज गन्ना फसल की सूखी पत्तियों एवं अंगोला समेत तेज धार वाले औजार से कटाई करनी चाहिये तथा गन्ना बीज को पत्तियों सहित बंडलों में बांध देना चाहिये ।

(ii) बीज गन्ना की बुआई के समय उसकी नमी कम होने लगती है, जिससे आँखे सुख जाती हैं अतः बीज गन्ना को सुखी पत्तियों से ढककर बुआई करना चाहिये ।

लंबी दूरी की बुआई करने पर बीच-बीच में उस पर पानी छिडकते रहना चाहिये ताकि बीज ताजा बना रहे ।

(iii) जिन क्षेत्रों में सर्दियों में तापमान काफी कम रहता है और पाला पडने की संभावना रहती है वहाँ बीज गन्नों को गड्‌ढों में रखकर उसे ऊपर 20 से 30 सें. मी. मिट्टी की परत से ढक देना चाहिये । मिट्टी को ठीक से दबाकर हवा निकाल देनी चाहिये । जब बुआई करनी हो तो गडढों को सावधानीपूर्वक खोलकर गन्ने निकाल लें तथा उनके टुकडे बनाकर बो दें ।

बीज गन्ना के मापदंड:

(i) कटाई के समय बीज फसल की आयु 10 माह से ज्यादा न हो ।

(ii) बीज नुकसान रहित अच्छी प्रकार साफ होना चाहिये ।

(iii) गन्ने के बीज में प्रत्येक गाठ पर स्वस्थ आँख होनी चाहिये । 15 प्रतिशत से अधिक आँखें खराब न हों ।

(iv) बीज गन्ने की गांठों में जडों का विकास नहीं होना चाहिये । जल प्लावन वाले क्षेत्रों में 5 प्रतिशत की छूट दी जा सकती है ।

(v) गन्ने में नमी की मात्रा 65 प्रतिशत होनी चाहिये ।

(vi) आंखों का जमाव 85 प्रतिशत से कम नहीं होना चाहिये ।

(vii) भौतिक एवं जननित शुद्धता 100 प्रतिशत होनी चाहिये ।

(viii) गन्ना बीज फसल में कीट और बीमारियों की स्थिति का मापदंड सारणी 12.1 में दर्शाया गया है ।

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