मशरूम खेती के लिए बीज उत्पादन तकनीकें | Read this article in Hindi to learn about the seed production techniques adopted for mushroom cultivation.

किसी कवक या दूसरे सूक्ष्म जीवों की कृत्रिम माध्यम पर वृद्धि संवर्धन कहलाती है । खुंभी के फलनकाय के किसी भी भाग (तना, टोपी, तना और टोपी का जुडा भाग या बीजाणु) से कवकजाल प्राप्त करने की विधि को पृथक्करण कहते हैं । पृथक्करण के समय संवर्धन किसी अन्य प्रकार के सूक्ष्म जीव से पूर्ण रूपेण मुक्त होना चाहिए ।

यदि दूसरा सूक्ष्म जीव उसमें मिश्रित है तो उसे अलग करने की विधि को शुद्धीकरण कहते हैं । आधुनिक खुंभी उत्पादन को दो भागों में बांटा जा सकता है । पहला खुंभी का बीज बनाना, जिसका उपयोग खाद में बोकर खुंभी उत्पन्न करने के लिये किया जाता है ।

यह खुंभी के कवकजाल का शुद्ध संवर्धन है जिसे ठोस आधार जैसे अनाजों के बीज पर उगाया जाता है । दूसरा भाग खुंभी के कवकजाल की बाढ और उसका विस्तार है जिससे सुरक्षित दशा में उसमें खुंभी का फलनकाय पैदा हो । सेन एंटोनियों के अनुसार स्पान शब्द फ्रांसीसी क्रिया इस्पान्ड्रे से लिया गया है जिसका अभिप्राय फैलना होता है ।

ADVERTISEMENTS:

खुंभी की प्रयोगशाला को स्थापित करने के लिए सावधानीपूर्वक नवा बनाना चाहिये । स्थान की उपलब्धता पर प्रयोगशाला को क्रियाओं और कार्यों के आधार पर अलग कक्षों में विभाजित किया जा सकता है । अत्यधिक कमी होने पर कुछ क्रियाओं और कार्यों को कम स्थान में किया जा सकता है ।

स्पान प्रयोगशाला में साफ पानी का स्त्रोत एवं पानी का निकास उचित होना चाहिये । इसके अलावा सतत विद्युत की व्यवस्था और धूल को दूर रखने के लिए आसपास के क्षेत्र में पेड होना चाहिये । स्पान और कच्चे माल के परिवहन के लिए कार्य स्थल सडक के नजदीक होना चाहिये । संदूषण रोकने के लिए स्पान प्रयोगशाला खाद बनाने वाले स्थल से दूर रहना चाहिये ।

एक आदर्श स्पान प्रयोगशाला में विभिन्न क्रियाविधियों के लिए निम्न कक्ष होने चाहिये:

ADVERTISEMENTS:

 

स्पान प्रयोगशाला:

निवेशन कक्ष के ढाँचे पर विशेष ध्यान देना चाहिये । इस स्थल पर निजर्मीकरण कार्य करते है जिससे कक्ष में रोगाणुरहित वातावरण उत्पन्न हो सके । निवेशन कक्ष के प्रवेश द्वार पर स्थित गलियारा निवेशन कक्ष एवं बाह्य वातावरण के बीच सुरक्षात्मक स्थल की तरह कार्य करता है । जब प्रवेश कक्ष खुला हो तो निवेशन कक्ष बंद होना चाहिये ।

आधुनिक स्पान प्रयोगशाला के लिए आधारभूत उपकरणों में ऑटोक्लेव, बी.ओ.डी., उष्मायित्र, लेमीनार एयर फ्लो, फ्रिज, वातानुकुलित, पी.एच.मीटर, उबालने का बर्तन आदि आते हैं ।

ADVERTISEMENTS:

इन उपकरणों के अलावा स्पान प्रयोगशाला में निम्न उपकरण भी अत्यन्त आवश्यक है जैसे- परखनली, पेट्रीप्लेट और दूसरे ग्लासवेयर, कार्य मेज और कुर्सी, अल्मारी, यू.वी., लैम्प, अल्कोहल लेम्प, निवेशन सुई, चाकू रूई, प्लास्टिक के छल्ले, माचिस, रबर बैंड, अंकित करने वाले पेन, अल्यूमिनियम की पट्‌टी, भंडारण टंकी, पीली प्रोपाइलीन थैले, चपटी गोल स्पान बोतल, छन्नी । उपयोग में आने वाले आधारभूत रसायन, डेक्सट्रोज, अगर-अगर, अल्कोहल, फार्मेल्डीहाइड, कैल्शियम कार्बोनेट, कैल्शियम सल्फेट, यीस्ट सत, माल सत, और आलू ।

खेती योग्य खुंभी की उपज और गुणवत्ता मुख्यत: प्रभेद के अनुवांशिक गुणों और अंशतः तकनीक जिसमें कि स्पान उत्पादन में उपयोग में आने वाले क्रियाधार आता है, पर निर्भर करता है ।

खुंभी खेती के लिए  स्पान उत्पादन तकनीक:

A. स्पान का क्रियाधार:

खुंभी का स्पान बनाने के लिए कई प्रकार के व्यर्थ कृषि पदार्थों का उपयोग किया जाता है । व्यर्थ कृषि पदार्थ विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग होते है जैसे धान का पैरा, तंबाकू की पत्ती का मध्यशिरा, लकडी का बुरादा, जलकुंभी की पत्तियाँ, अनाज के दाने, इस्तेमाल की गयी चाय की पत्ती, काफी का छिलका, व्यर्थ कपास, कपास की लुगदी और छिलका तथा कमल का छिलका आदि ।

आधार ऐसा होना चाहिये जिस पर खुंभी का कवकजाल अच्छी तरह फैल सके । प्रायः अनाजों के दाने गेहूं ज्वार, धान, राई को मदर स्पान के रूप में और व्यर्थ कृषि पदार्थों को शिशु स्पान (प्लाटिंग बीज) का आधार बनाने में उपयोग में लाया जाता है ।

गेहूँ व ज्वार के बडे दानों में उपलब्ध खाद्य पदार्थ अधिक होता है अत: यह खुंभी के कवकजाल को खाद में स्थापित हो जाने तक सहारा प्रदान करता है, जबकि दूसरी तरफ बाजरा जैसे छोटे दानों में उपलब्ध भोजन कम रहता है परन्तु प्रति इकाई भार अधिक दाने आने के कारण फफूँद को फेलने से अधिक बिंदु मिलते हैं ।

B. स्पान रखने के पात्र:

खुंभी स्पान रखने के पात्र ताप अवरोधी और ढक्कनदार होने चाहिये । आजकल ताप अवरोधक पोलीप्रोपाइलिन के लिफाफों को उपयोग में लाया जा रहा है, क्योंकि ये हल्के होते हैं और परिवहन में आसानी रहती है ।

अस्पतालों में उपलब्ध डेक्सट्रोज की काँच की बोतलों का उपयोग मदर स्पान बनाने में करते हैं क्योंकि इसके पतले मुँह से बीज अजर्म अवस्था में आसानी से बाहर निकल आता है । जबकि व्यवसायिक स्पान बनाने के लिए पोली प्रोपाइलिन की शैलियों का उपयोग किया जाता है ।

C. खुंभी का मदर स्पान बनाना:

खुंभी बीज उत्पादन तकनीक को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है:

1. शुद्ध कवक जाल संवर्धन बनाना ।

2. शुद्ध संवर्धन से मातृ मास्टर संवर्धन बनाना ।

3. मास्टर संवर्धन से बीजाई के लिए बीज बहुगुणन ।

1. संवर्धन माध्यम:

खेती योग्य खुंभी का शुद्ध संवर्धन प्राप्त करने के लिए निम्न कृत्रिम माध्यमों का उपयोग प्रायः किया जाता है:

(a) माल्ट अर्क अगर माध्यम:

माल्ट अर्क को 750 मि.लि. लिटर पानी में 2-3 मिनिट तक उबालने के पश्चात इसमें डाइपोटेशियम हाइड्रोजन फॉस्फेट, अमोनियम क्लोराइड और साइट्रिक अम्ल डालते हैं । इसकी अम्लीयता 6.5 होना चाहिये । इसके पश्चात अगर-अगर पाउडर डालकर दोबारा उबालते हैं ।

प्रत्येक साफ परखनली में ऐसे माध्यम को 10 मि.ली. लीटर भर देते हैं और परखनली का मुंह नमी न सोखने वाली रूई के ढक्कन से बद कर देते हैं । इन परखनलियों को ऑटोक्लेव में रखकर 15 पौंड प्रति वर्ग इंच के दबाव पर 15-20 मिनट तक रखकर निजर्मीकरण करते हैं । ठंडा होने पर इन निजर्मीकृत परखनलियों को निकालकर तिरछी अवस्था में रखकर ठंडा किया जाता है ।

(b) गेहूँ अर्क अगर माध्यम:

बीस ग्राम गेहूँ के दानों को 1 लीटर पानी में 2 घण्टे तक उबालते हैं । 24 घंटे पश्चात इसे छान लेते हैं और अर्क में पानी डालकर 1 लीटर आयतन बना लिया जाता है । इसमें अगर-अगर मिलाकर उबालते हैं और जीवाणु रहित करते हैं ।

(c) लैर्म्बट अगर माध्यम:

 

 

अगर-अगर के अलावा सब चीजे पानी में घोल लेते हैं । इस घोल में अगर-अगर मिलाकर उबालते हैं और माध्यम को जीवाणुरहित किया जाता है ।

(d) खाद अर्क माध्यम:

 

दो लीटर आसुत जल में कृत्रिम खाद को 2 घण्टे तक उबालते हैं । 24 घण्टे बाद इसे छान लेते हैं । इस अर्क में पानी डालकर 1 लीटर आयतन का बना लेते हँ । इसमें अगर-अगर मिलाकर उबालते हैं और माध्यम का पी.एच. 6.5 से 7.0 के बीच निर्धारित कर लेते हैं । माध्यम का 10 मि.ली. लीटर प्रति परखनली भरकर जीवाणु रहित कर लेते हैं ।

(e) यीस्ट पोटेटो डेक्सट्रोज अगर:

 

आलू को पानी में डालकर नरम होने तक उबालते हैं । इसे छानकर आलू के टुकडे अलग कर लेते हैं । इस निथरे पानी में यीस्ट अर्क, डेक्सट्रोज व अगर-अगर पाउडर डालकर उबालते हैं और इस माध्यम का आयतन पानी डालकर 1 लीटर का बना लेते हैं । इसके बाद इसे जीवाणु रहित किया जाता है ।

स्पान बनाने के लिए खुंभी का कवक जाल संवर्धन स्वस्थ व क्षरण रहित होना चाहिये । साधारण खुंभी का कवकजाल रेशेदार, सिल्क के समान और मटमैले सफेद से सफेद रंग का होता है ।

फुज्जीदार और कपास जैसी वृद्धि अवांछनीय है । ऐसे संवर्धन को उपयोग में नहीं लाना चाहिये । स्पान बनाने के लिए उपयोग में आने वाला कवकजाल संवर्धन विश्वसनीय जगह से प्राप्त करना चाहिये जिसमें उपरोक्त गुण मौजूद हों । इसे खुंभी के फलनकाय से भी प्राप्त किया जा सकता है ।

2. कवक का संवर्धन:

खुंभी फलनकाय से शुद्ध कवकजाल संवर्धन प्राप्त करने की दो विधियों है:

(a) ऊतक संवर्धन:

ऊतक संवर्धन जीवित जीवों के क्लोन तैयार करने की विधि है । इसके द्वारा सारे अनुवांशिक गुण सुरक्षित रहते है । ऊतक संवर्धन बनाने के लिए स्वस्थ व 24-48 घटे उम्र वाली खुली का चयन किया जाता है ।

निजर्मीकृत चाकू से तने का निचला मिट्‌टी के पास का भाग काट लेते हैं और खुंभी को 50 प्रतिशत इथेनॉल से साफ करते हैं जिससे टोपी व तने पर लगे मिट्‌टी के कण अलग हो जाये । अब जीवाणु रहित वातावरण में इस खुंभी को मरक्यूरीक के घोल में 30 सैकण्ड तक डुबाकर रखते हैं तत्पश्चात इसे तीन बार निजर्मीकृत पानी से धोया जाता है ।

इसके बाद खुंभी को निजर्मीकृत फिल्टर पेपर से सुखा लिया जाता है । अब एक साफ निजर्मीकृत ब्लेड या चाकू से भागों में काटते हैं । निजर्मीकृत निवेशन सुई की सहायता से इस ताजे कटे भाग में टोपी और तने के संगम वाले भाग से ऊतक का छोटा टुकड़ा उठाकर निजर्मीकृत वातावरण में ही परखनली में तैयार संवर्धन माध्यम के रख देते हैं और परखनली का मुंह रूई के ढक्कन से बंद देते हैं ।

इन परखनलियों को उष्मायित्र (इनक्यूबेटर) में 25 ± 1° से तापक्रम पर उदभवन (इनक्यूबेट) करते हैं । दो-तीन पश्चात माध्यम पर कवकजाल की सफेद वृद्धि दिखायी पडने लगती हैं । 10 से 15 दिन पश्चात माध्यम की सतह कवकजाल वृद्धि से पूर्णरूपेण ढक जाती हैं ।

(b) बीजाणु संवर्धन:

बेसिडियोबीजाणु संग्रहित करने के लिए एक बडी तथा स्वस्थ खुंभी का चयन करते है । इस खुंभी को पहली विधि के समान ही साफ व उपचारित करके पहले से ही निजर्मीकृत पेट्रीप्लेट में तार पर इस प्रकार रखते हैं कि खुंभी का तना व टोपी पेट्री प्लेट के सम्पर्क में नहीं आये ।

इनको निजर्मीकृत बीकर से ढककर उष्मायित्र में रख देते हैं । 24-48 घटे पश्चात इस खुंभी से बीजाणु झडकर पेट्रीप्लेट पर इकट्‌ठे हो जाते हैं । जब बीजाणु की मोटी तह जमा हो जाती है तो बीकर, खुंभी व तार को हटाकर इसे निजर्मीकृत ढक्कन से ढक देते हैं । इस पेट्रीप्लेट को फ्रिज में रख दिया जाता है ।

आपेक्षित बीजाणु का रंग सफेद पीलापन लिये हुए, गुलाबी, भूरा, काला या बैंगनी होता है । वोल्वेरिय वोल्वेसिया के बीजाणु चिन्ह को कमरे के तापक्रम पर रखना चाहिये । क्योंकि कम तापक्रम बीजाणु के ऊगने की क्षमता को कम कर सकता है ।

(अ) एक बीजाणु संवर्धन:

केवल एक बीजाणु को अलग करने के लिए बीजाणु समूह को निजर्मीकृत वातावरण में निजर्मीकृत निवेशन सुई से परखनली में रखे 10 मिली. लिटर निजर्मीकृत पानी में स्थानान्तरित करते हैं । एक मिली लीटर बीजाणु निलबन (संस्पेशन) जिसमें लगभग 20 बीजाणु हो, को 2 प्रतिशत पिघले पानी अगर आधार पर निजर्मीकृत पेट्रीप्लेट पर स्थानान्तरित करते हैं । माध्यम के जम जाने पर, पेट्रीप्लेट को उल्टा करके अनुबीजाणु यंत्र (माइक्रोस्कोप) से अकेले बीजाणु को देखते हैं और उसको स्याही से इंगित कर लेते हैं ।

एकल बीजाणु को निवेशन सुई की सहायता से गेहूँ अर्क अगर या लेम्बर्ट अगर माध्यम वाली परखनली में स्थानान्तरित कर देते हैं । इसके पश्चात इन परखनलियों को 25-28 ± 10 से.ग्रे. तापमान पर उष्मायित्र में रखा जाता है । कुछ दिन पश्चात इन परखनलियों में कवकजाल दिखायी देने लगता है ।

(ब) बहुबीजाणु संवर्धन:

एक मिली लीटर बीजाणु निलबन को परखनली में रखे 10 मि.ली. लीटर पिघले अर्क अगर माध्यम में मिश्रित करके उनको तिरछा करके जमा दिया जाता है । इन परखनलियों को 28 डिग्री सेन्टीग्रेड तापक्रम पर 2 सप्ताह के लिए उदभदन कराते हैं । कुछ समय पश्चात माध्यम की सतह पर कवकजाल की वृद्धि दिखाई देने लगती है ।

सभी विषमथैलसी (हेट्रोथेलिक) स्वभाव वाली खुभियों (अगेरिकस बाइटरकस, लेनटानस इडोडस) के बीजाणु संवर्धन बन्ध्य होते हैं और ये फसल पैदा नहीं करते । द्वितीयक समथैलिसी कवक (अगेरिकस बाइस्पोरस) में भी एक बीजाणु संवर्धन का लगभग 30 प्रतिशत बन्ध्य होता है ।

ऊतक और बहुबीजाणु संवर्धन से बनने वाले फलनकाय के गुण पैतृक गुणों के समान ही रहते हैं जबकि एकल बीजाणु के गुणों में बहुत अधिक विभिन्नाता पायी जाती हैं अतः बीज बनाने के लिए सही एकल बीजाणु संवर्धन को चुनने में सावधानी पूर्ण आवश्यक है ।

कुछ माध्यम जैसे स्टार्च अगर, जई अगर और पोटेटो डेक्सट्रोज अगर कवकजाल की (फ्लफी) वृद्धि देते हैं अत: इनका उपयोग नहीं करना चाहिये । खाद अगर, गेहूँ अगर और माल्ट अर्क अगर स्ट्रेंडी वृद्धि देते हैं अतः इनको संवर्धन माध्यम के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है ।

(स) दूसरी प्रयोगशालाओं का उपसंवर्धन (सबकल्चर):

प्रयोगशालाओं में ऊतक संवर्धन बनाने के अलावा इन्हें प्रामाणिक प्रयोगशालाओं या विश्वसनीय स्थानों से भी प्राप्त किया जा सकता है । यह प्रामाणिक रूप से शुद्ध तो होते ही साथ ही साथ इनकी उत्पादन क्षमता भी पहले से परखी रहती है ।

इन परखनली संवर्धन को स्पान के निवेश द्रव्य के रूप में उपयोग करने से पूर्व इन्हें दूसरी परखनलियों में स्थानान्तरित कर देते हैं । दूसरे स्त्रोत से प्राप्त स्पान को भी संवर्ध के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है ।

परंतु यह विधि जोखिम वाली है क्योंकि यह अज्ञात रहता है कि इस स्पान संवर्ध को कितनी बार स्थानान्तरित किया गया है । अतः यह आवश्यक है कि स्पान को उगाकर फलनकाय रचना उत्पन्न करें और फिर फलनकाय रचना से पृथक्करण करें ।

3. माह (मास्टर) स्पान बनाना:

शुद्ध खुंभी कवक संवर्ध को निजर्मीकृत वातावरण में जब बोतल में तैयार माध्यम में स्थानान्तरित किया जाता है तब इससे प्राप्त स्पान मदर स्पान कहलाता है ।

(a) क्रियाधार (सब्सट्रेट) बनाना:

ऊतक या बीजाणु से प्राप्त शुद्ध संवर्धन को अनुकूल क्रियाधार (गेहूँ ज्वार, बाजरा, कंगनी या राई दाने) पर निवेशित करते हैं । ये दाने कवकजाल को खाद्य पदार्थ प्रदान करते हैं ।

मदर स्पान तैयार करने के लिए स्वस्थ व साफ बीजों को रातभर पानी में भिगोते हैं । मरे व तैरते बीजों को निकालकर बीजों को पुन: धोते हैं । इन बीजों को पानी (10 किलो बीज 15 लीटर पानी) में 10-15 मिनट तक उबालते है । जिससे कि ये नर्म पड जायें ।

दानों को देर तक उबालने से बीज फट जाते हैं और स्पान बनाते समय इन पर जीवाणु का सक्रमण हो जाता है । इसके पश्चात् छन्नी पर दानों को पलटकर पानी निथार लेते हैं । इन दानों को ठण्डा करने के लिए साफ पॉलीथीन की चादर पर छाया में 1-2 घण्टे पड़ा रहने देते हैं ।

अब इसमें 200 ग्राम कैल्शियम सल्फेट व 50 ग्राम कैल्शियम कार्बोनेट अच्छी तरह से मिला देते हैं । कैल्शियम सल्फेट दानों को अम्लीयता (पी.एच. 6.6) नियंत्रित करता है जबकि कैल्शियम कार्बोनेट दानों को चिपकने से बचाता है । अब इन दानों को ग्लूकोज की बातलों या पोलीप्रोपेलीन थैलियों में दो तिहाई भाग तक भरते हैं ।

बोतल/थैली का मुंह पानी न सीखने वाली रूई का दक्कन बनाकर बद कर देते हैं । थैली का मुंह रूई से बद करते समय पहले आधा इंच त्रिज्या वाला प्लास्टिक का छल्ला लगाते हैं फिर रूई का ढक्कन लगाते हैं ।

अब इन बोतलों/थैलियों को 22 पौंड प्रति वर्ग इंच दाब पर ऑटोक्लेव में 1.5 से 2 घण्टे रखकर निजर्मीकृत करते हैं । इस समय तापक्रम 121.60 सेन्टीग्रेट होने के कारण बीज में उपस्थित जीवाणु और दूसरे जीव नष्ट हो जाते हैं और बीज बाद में खराब होने से बच जाता है । अब दानों को कमरे के तापक्रम पर ठण्डा करते हैं । बीज को जोर से हिलाते है जिससे दाने इकट्‌ठ न हों ।

(b) निवेशन:

दाना स्पान के निवेशन के लिये शुद्ध खुंभी कवक संर्वधण को निजर्मीकृत कक्ष में तैयार माध्यम (बोतल) में स्थानान्तरित किया जाता है । तब इस बीज को मदर या मास्टर स्पान कहते हैं । निवेशन कमरे या लेमीनार फ्लो केबीनेट को अच्छी तरह साफ करके निवेशन किया जाता है । मास्टर स्पान बनाने के लिए बोतल में कम से कम दो कवकजाल अगर प्लग निवेशन सुई की सहायता से डालना चाहिये ।

(c) ऊष्मायन (इन्क्यूबेशन):

इन टीकाकृत बोतलों को 25 डिग्री. से. सेन्टीग्रटे पर ऊष्मायित्र में रखा जाता है । एक सप्ताह के पश्चात इन बोतलों को एक या दो बार अच्छी तरह हिलाया जाता है । जिससे जिन दानों पर कवकजाल द्वारा बस्ती बन गई हो, उनको अलग-अलग कर सकें ।

लभगभ सभी दाने 12-15 दिन बाद कवकजाल की वृद्धि से ढक जाते हैं । यह स्पान बीजाई के लिए बीज बनाने के काम आता है । बोतलों को हिलाने के पहले संवर्धन को समय-समय पर देखते रहना चाहिये ।

बोतलों में अनेक प्रतिस्पर्धात्मक कवक जैसे ट्राइकोडरम, एस्पर्जीलस, राइजोपस एवं जीवाणुओं की वृद्धि के कारण बीज नीला, हरा, काला एवं पनीला दिखायी दे तो ऐसी बोतलों को अलग करके नष्ट कर देना चाहिये । इस प्रकार संदूषित बोतलों को सप्ताह में एक बार निजर्मीकरण कर देना चाहिये । जिससे बोतलों को साफ करने के समय खोलने से संदूषक (कंटेमिनेंट) हवा में उडकर इधर-उधर न फैल जाये । ये बोतलों और थैलियाँ स्टाक/मास्टर संवर्धन के रूप में गुणन के लिए तैयार हैं ।

D. मास्टर स्पान से शिशु स्पान बनाना:

खुंभी की खेती के लिए शिशु स्पान ही वास्तव में बोने का पदार्थ है और अगेरिकस और प्लूरोटस उगाने वाले किसान मास्टर स्पान को सीधे ही क्रियाधार वाले शैलों में बोने के काम में ले आते हैं ।

जैसे मास्टर स्पान तैयार किया जाता है उसी विधि से शिशु स्पान को तैयार करते हैं । एक बोतल मास्टर बीज से 20-30 पोलीप्रोपाइलीन की थैलियों को निवेशित करते हैं । निवेशित थैलियों को 250 सेन्टीग्रेट ताप पर ऊष्मायित्र में 2-3 सप्ताह के लिए रखा जाता है । ये बोतलें खाद में बीजाई के लिए उपयोग में लाई जा सकती है ।

वोल्वेरियैला खुंभी के लिए उपयोग में आने वाले क्रियाधार और शिशु स्पान बनाने की विधि निम्नलिखित है:

(a) धान कर पैरा:

धान के स्वच्छ व साफ पैरा को 2-3 सेन्टीमीटर के टुकडों में काटते हैं । इन टुकडों को पानी में 1-20 घण्टे के लिए भिगो देते हैं । अधिक पानी को निथारकर अलग एक लिटर की बोतलों में हल्के हाथों से भर देते हैं । दो प्रतिशत चीनी और 2 प्रतिशत पेप्टोन का पानी में घोल बनाकर इस घोल की 10 मिली मात्रा प्रत्येक बोतल में डालते हैं ।

(b) उपयोग में लाई गई चाय पत्ती:

वोल्वेरियैला खुंभी के लिए उपयोग में लाई गई चाय की पत्ती को स्पान का आधार बनाने के लिए बहुतायत में उपयोग में लाया जाता है । स्थानीय चाय घरों में बहुत अधिक मात्रा में चाय की पत्ती मिल सकती है । ये महीन ढीली बुनावट वाली होती है और इसमें नत्रजन (7-10 प्रतिशत) और लिग्निन (45-50 प्रतिशत) बहुत अधिक मात्रा में होता है ।

इन पत्तियों को पानी में धोकर धूप में अच्छे से सुखाकर हवा बद डिबों में रखते हैं । जब इनका उपयोग करना हो तो इस पत्ती को कुछ घटे पानी में भिगोते हैं । फिर अधिक पानी निथारकर इसमें 2 प्रतिशत कैल्शियम कार्बोनेट का घोल डालते हैं, जिससे आदर्श अम्लीय पीएच स्थापित हो जाये ।

इन पत्तियों को हल्के से बोतल में दो तिहाई भर देते हैं । इन बोतलों को 22 पौंड प्रति वर्ग इंच दाब पर 1-2 घटे तक रखकर निजर्मीकृत करते हैं । ठण्डा होने पर मास्टर स्पान से निवेशित करते हैं ।

(c) सुबबूल की पत्तियाँ और बुरादा:

एक भाग लकडी का बुरादा और 3 भाग सुबबूल की पत्तियों को भली प्रकार मिलाकर प्लास्टिक की बाल्टी में रख देते हैं । बाल्टी में इन पदार्थों के ऊपर वजन रखकर बाल्टी को पानी से भर दिया जाता है । रोज पत्तियों को हिलाया जाता है और 3-4 दिन तक किण्वन के लिए छोड दिया जाता है ।

अधिक पानी को निथारकर सडी पत्तियों को तीन बार साफ पानी से धोया जाता है । इसमें 5 प्रतिशत धान की भूसी को भली प्रकार मिलाया जाता है । इस मिश्रण को हाथ में लेकर दबाने से ऊंगलियो के बीच से बहुत कम पानी निकलना चाहिये । इस मिश्रण को बोतलों में भरकर निजर्मीकृत कर लिया जाता है । 24 घण्टे पश्चात इनको मास्टर स्पान से निवेशित किया जाता है ।

(d) व्यर्थ कपास:

स्थानीय कपडे की मिलों से व्यर्थ कपास को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है । यह बीज बनाने और खुंभी का क्रियाधार बनाने के लिए भी उपयोगी है । इसको आसानी से संभाला जा सकता है और इसमें संक्रमण की समस्या भी सबसे कम पायी जाती है ।

इसको तैयार करने की विधि चाय की पत्ती का आधार बनाने वाली विधि के ही समान है । इस आधार के ज्यादा ठोस हो जाने पर इसमें चाय की पत्ती मिलाई जा सकती है । कपोक से भी स्पान का आधार बनाया जा सकता है ।

वोल्वेरियैला का स्पान बनाने के लिए दूसरे पदार्थ जैसे तम्बाकू की पत्तियों की शिरायें, काफी की भूसी, नारियल का रेशा जिसमें सुबबूल की पत्तियाँ मिली हो, जल कुंभी की कटी, सूखी पत्तियाँ और लकडी का बुरादा जिसमें नारियल के रेशे का चूर्ण मिला है, भी उपयोगी सिद्ध हुए ।

तम्बाकू की पत्ती की शिरायों को काटकर, सुखाकर फिर पानी में 4-6 दिन भिगोया जाता है । इसके पानी को निथारकर बोतल में भरने से पहले लकड़ी का बुरादा (2:1) मिलाया जाता है । काफी की भूसी और नारियल के रेशों की धूल को भी 3 दिन तक भिगोकर रखने के बाद बोतल या पीली प्रोपीलिन की थैलियों में डाला जाता है । इन सभी आधारों को मास्टर स्पान से निवेशित करने के पहले 1210 सेन्टीग्रेड पर निजर्मीकृत कर लिया जाता है ।

(e) मास्टर सवा से स्पान का बहुगुणन:

स्टाक या मास्टर संवर्धन के समान ही स्पान भी बनाया जाता है । एक बोतल मास्टर संवर्ध 20-30 स्पान की बोतलों को निवेशित करने के लिये पर्याप्त रहता है । निवेशित बोतलों को 250 सेन्टीग्रेड पर उद्‌भवित किया जाता है । दो सप्ताह में स्पान की बोतले उपयोग के लिए तैयार हो जाती है ।

खुंभी खेती के लिए उत्तम स्पान के गुण:

अच्छी वृद्धि और पैदावार के लिए स्पान तेजी से वृद्धि करने वाला होना चाहिये । यदि स्पान सशक्त नहीं है तो प्रतिस्पर्धी फफूँद और जीवाणु खुंभी के कवकजाल को ढक लेंगे ।

वोल्वेरियैला की खुली जगह में खेती करने के लिए जो आधार उपयोग में लाया जाता है उसका निजर्मीकरण नहीं किया जाता । इस दशा में स्पान को आधार पर पाये जाने वाले प्रतिस्पर्धात्मक फफूंदों से स्पर्धा करनी पडती है ।

स्पान खाद में तेजी से वृद्धि करने वाला, केसिंग के पश्चात जल्दी फसल देने वाला, अधिक उपज वाला और अच्छी गुणवत्ता वाली खुंभी उत्पन्न करने वाला होना चाहिये । स्पान बनाने वाली प्रयोगशालाओं को स्पान की गुणवत्ता बनाये रखने के लिए निम्न मानकों को ध्यान में रखना चाहिये ।

i. स्पान बनाने के लिए दाने साबुत व अच्छी गुणवत्ता वाला होना चाहिये ।

ii. ऊपर दी गयी विधि के अनुसार दानों को उबालना चाहिये । जिससे दानों में 40-50 प्रतिशत नमी रहे ।

iii. उपयुक्त मात्रा में कैल्शियम कार्बोनेट एवं कैल्शियम सल्फेट मिलाकर उबले दानों का पी.एच. मान 6.5 से 7.5 के बीच रखा जाता है ।

iv. स्पान बनाने के लिए विभेद अधिक व जल्दी उपज देने वाला और अच्छी गुणवत्ता के डंठल वाला होना चाहिये ।

v. केवल मदर संवर्ध से ही स्पान बनाना चाहिये ।

vi. कवक और जीवाणु संदूषण कम करने के लिए निवेशन कार्य निजर्मीकृत निवेशन कक्ष या लेमीनार एयर फ्लो कक्ष में ही करना चाहिये ।

vii. निवेशित बोतलों को अच्छी तरह मिलाकर कवकजाल की वृद्धि के लिए 25 ± 1 डिग्री सेन्टीग्रेड ताप पर उष्मायित्र में रखना चाहिये ।

viii. स्पान कक्ष से लगातार संदूषित बोतलों को छाटकर बाहर निकालते रहना चाहिये ।

ix. पूर्ण विकसित स्पान को 3-5 डिग्री सेन्टीग्रेड पर फ्रिज या शीत गृह में संग्रहित करना चाहिये पर दो महीने से अधिक नहीं रखना चाहिये ।

खुंभी खेती के लिए उत्तम स्पान के लक्षण:

a. ज्वार व गेहूँ के दानों से बना स्पान बाजरा, जौ और कोदो के दानों से बने स्पान की अपेक्षा अधिक उपज देता है ।

b. स्पान बनाने में लिए आधार के रूप में उपयोग में आने वाले प्रत्येक दाना कवकजाल से ढका रहना चाहिये । बीजायी के बाद बिना कवकजाल वृद्धि वाला दाना मोल्ड फफूँदो द्वारा शीघ्र ही संक्रमित हो जाता है ।

c. बीज की बोतल में कवकजाल की वृद्धि, चमकीली, चिकनी और रेशेदार होना चाहिये । इसमें कपास के समान वृद्धि नहीं होना चाहिये, क्योंकि इसके कारण पीठिका (स्ट्रोमा) बनती हैं, जो कि केसिंग पदार्थ में वायु के आवागमन और नमी सोखने की क्षमता में बाधक होते हैं । इस कारण से कम पैदावार प्राप्त होती है ।

d. उच्च गुणवत्ता वाला स्पान लगभग सफेद होता है । उमर के साथ-साथ स्पान का रग भूरा हो जाता है । नया स्पान पुराने स्पान की अपेक्षा अधिक पैदावार देता है । किसी भी दशा में स्पान एक माह से ज्यादा पुराना नहीं होना चाहिये ।

e. स्पान हमेशा शुद्ध संवर्धन से ही बनना चाहिये । स्पान से स्पान नहीं बनाना चाहिये ।

f. अधिकतर खुंभी के स्पान को 40 सेन्टीग्रेट तापक्रम पर रखा जाता है पर इसे शिशु स्पान के निवेशन के पहले कमरे के तापमान पर ले आते हैं । वोल्वेरियेला के स्पान में कवकजाल की वृद्धि पूर्ण होने के पश्चात इसे कभी भी शीतगृह या फ्रिज में नहीं रखना चाहिये । कमरे के तापमान पर भी इसे 4 हफ्ते से ज्यादा नहीं रखना चाहिये । वोल्वेरियेला के स्पान में उपस्थित गुलाबी रंग के क्लेमाइडोस्पोर स्पान की अधिक उपजाऊ और शीघ्र वृद्धि दर्शाते हैं ।

g. स्पान की बोतल में चिपचिपी वृद्धि जीवाणु संक्रमण इंगित करती हैं ।

h. स्पान में हरे या काले रंग का धब्बा नहीं दिखना चाहिये । इस प्रकार के धब्बे बोतल में मोल्ड फफूँद का संक्रमण दर्शाते हैं ।

स्पान का परिवहन:

स्पान की बोतल को 400 सेन्टीग्रेड पर 48 घंटे तक रखने से कवकजाल नष्ट हो जाता है । परंतु 350 सेन्टीग्रेड पर रखा स्पान 14 दिन तक जीवित रहता है । अतः 350 सेन्टीग्रेड से अधिक तापक्रम पर स्पान को नहीं रखना चाहिये ।

इस प्रकार के खतरों से बचने के लिए बोतलों को थर्मोकोल के बक्सों में जिसमें बर्फ भरी हो या प्रशीतन गाडी में या रात में एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना चाहिये । परिवहन के उपरांत स्पान को जल्दी से जल्दी प्रयोग में ले आना चाहिये ।

स्पान का संग्रहण/भण्डारण:

जहाँ तक संभव हो खुंभी के स्पान का भण्डारण करने से बचना चाहिये । आवश्यकता पड़ने पर स्पान को 3-50 डिग्री सेन्टीग्रेट पर एक माह तक भण्डारण किया जा सकता है । यदि स्पान को किसी कारणवश खुंभी फार्म पहुंचाने में पहले या बाद में फिर से भरना पडे तो ऐसे स्पान को भण्डारण में न रखकर शीघ्र ही प्रयोग में लाना चाहिये ।

Home››Cultivation››Mushroom››