गन्ना खेती के लिए उपयुक्त जलवायु | Suitable Climate for Sugarcane Cultivation in Hindi

गन्ना एक उष्ण-कटिबंधीय पौधा है । लम्बी अवधि वाली ग्रीष्म में पर्याप्त धूप व तापमान के अतिरिक्त संतोषजनक वर्षा इस फसल की बढवार के लिए आवश्यक है । गन्ने की फसल पर बुआई के लिए खेत की तैयारी से लेकर इसकी कटाई उपरांत भी जलवायु का प्रभाव पड़ता है ।

विभिन्न पादपीय अवस्थाओं की जलवायु मांग में भिन्नता होती है जिसे निम्नलिखित अवस्थाओं में स्पष्ट किया गया है । फसल की कटाई उपरान्त मौसम की भविष्यवाणी से बाजार में गन्ना उत्पादों का भाव प्रभावित होता रहता है जो कि अप्रत्यक्ष रूप से गन्ना उत्पादन को प्रभावित करता है ।

गन्ने के संपूर्ण जीवन क्रम को चार अवस्थाओं में विभाजित किया जा सकता है:

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1. जमाव (अंकुरण) – यह बोने के बाद 45 से 50 दिन की अवस्था है ।

2. फुटाव (किल्ले निकलना) – यह अवस्था 45 से 120 दिन तक रहती है ।

3. बढोत्तरी (बढ़वार अवस्था) – यह अवस्था 150 से 270 दिन तक रहती है ।

4. शर्करा संग्रह अवस्था – इस अवस्था में गन्ने में चीनी जमा होने लगती है और यह प्रायः 270 से 365 दिन तक रहती है ।

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गन्ने की विभिन्न अवस्थाओं के लिए अनुकूल जलवायु की दशा में भी विविधता होती है । अंकुरण के लिए भूमि में उपयुक्त नमी के अतिरिक्त 21 से 25 से. होना आवश्यक है । इस तापमान पर गन्ने का जमाव सबसे अच्छा होता है गन्ने के फुटाव अर्थात किल्ले निकलने के लिए उपयुक्त तापमान 30 से 35 से. पाया गया है । इस अवस्था में सापेक्ष आर्द्रता 50 प्रतिशत तथा पूर्ण रूप से सूर्य का प्रकाश उपलब्ध होना चाहिये ।

गन्ने की बढवार के लिए तापमान 30 से 32 से. व सापेक्ष आर्द्रता 70 प्रतिशत से अधिक होनी चाहिए । अधिक तापमान और अधिक आर्द्रता में गन्ने की बढवार बहुत तेजी से होती है इसलिए इस दौरान वर्षा होना बढवार को बहुत फायदा पहुंचाती है ।

गन्ने में चीनी एकत्रित होने के लिए शुष्क और ठंडे मौसम की आवश्यकता होती हैं अतः इस अवस्था में सापेक्ष आर्द्रता 50-60 प्रतिशत के बीच होनी चाहिये तथा अधिकतम और न्यूनतम तापमान का अंतर 10-15से. होना चाहिये इसमें न्यूनतम तापमान 14 से. अधिक न हो ।

ऐसा वातावरण गन्ने में चीनी संग्रह के लिए सबसे अनुकूल होता है । विश्व में, गन्ने में सर्वाधिक शर्करा संचयन आस्ट्रोलया में अंकित की गयी है जहां का न्यूनतम तापमान 10 से 14 से रहता है तथा प्रतिदिन 7 से 8 घंटे सूर्य का प्रकाश उपलब्ध रहता है इस अवस्था में अधिक वाष्पीकरण भी गन्ना रस की गुणवता पर अनुकूल प्रभाव डालता है ।

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इसके अलावा 45-63 प्रतिशत सापेक्ष आर्द्रता शर्करा संचयन में अधिक सहायक सिद्ध हुयी है इस अवस्था में उक्त जलवायु के अभाव में गन्ने की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि तापमान, वर्षा. आर्द्रता तथा प्रकाशीय समय के असामान्य परिवर्तनों से गन्ने की कार्यशीलता को विशेष आघात लगता है ।

उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु में असामान्य और चरम परिवर्तनों के कारण शर्करा संग्रह की अवधि सीमित रहती है । इसके विपरीत ऊष्ण कटिबंधीय जलवायु में जहां शर्करा संचयन की अवस्था में मौसम में विशेष बदलाव नहीं आते, शर्करा संग्रह की अवधि अपेक्षाकृत विस्तृत होती है । यद्यपि जलवायु की तुलना में कम रहता है ।

प्रायः देखा गया है कि गन्ने में बीमारियों और कीड़े-मकोड़ों के प्रकोप को भी जलवायु काफी प्रभावित है । शुष्क मौसम में जब सापेक्ष आर्द्रता 45 से 63 प्रतिशत हो और वायुमंडल का तापमान 35 से 38 से. हो तो गन्ने में तना बेधक का प्रकोप बढ जाता है, जबकि चोटी बेधक का प्रकोप नमी वाले मौसम में बढता है । वर्षा ऋतु में लंबी अवधि तक वर्षा न होने पर सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाने से पाइरिला का प्रकोप बढ जाता है ।

इसी प्रकार काफी समय तक मृदा नम रहने से निमेटोड का प्रकोप बढने लगता है गन्ने की लाल-सडन बीमारी भी नम वातावरण में फैलती है और वायुमंडल का तापमान 25 से 35 से. सापेक्ष-आर्द्रता 80 प्रतिशत तथा वर्षा अधिक होने पर गन्ने का स्मट रोग, गर्म और शुष्क मौसम में तेजी से फैलता है ।

हाल ही में राष्ट्रीय कृषि तकनीकी परियोजना के अंतर्गत एक अध्ययन से पता चला है कि अगस्त-सितंबर में जब वर्षा के कारण वातावरण में आर्द्रता बढ जाती है तब यदि न्यूनतम तापमान घटने लगे तो गन्ने में लाल सडन बीमारी फैलने की आशंका बढ जाती है ।

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