स्वामी राम तीर्थ की जीवनी | Biography of Swami Rama Tirtha in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. जन्म परिचय ।

3. उनके कार्य ।

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4. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

स्वामी रामतीर्थ हिन्दू धर्म के साथ-साथ भारतीयता के प्रबल उद्घोषक थे । धर्म और अध्यात्मिका क्षेत्र में अपना सिक्का पूर्व विदेशियों को भारत कि संस्कृति से परिचित कराया । उनके नाम पर देश में स्थापित कई मिशन एवं संस्थाएं धर्म, आध्यात्म व सामाजिक सुधार का कार्य कर रही हैं ।

2. जन्म परिचय:

स्वामी रामतीर्थ का जन्म पंजाब के गुजरांवाला जिले के मराली गांव में गोस्वामी ब्राह्मण परिवार में 22 अक्टूबर सन् 1873 को दीपावली के शुभ दिन हुआ था । बचपन में माता का स्वर्गवास हो गया । पालन-पोषण  बुआ ने किया । उसके बाद भगत धन्नाराम ने उनकी शिक्षा का भार अपने पर लिया । आर्थिक कठिनाइयों का सामना करते हुए एण्ट्रेंस की परीक्षा पंजाब प्रान्त में प्रथम आकर उतीर्ण की ।

पिता की इच्छा के विरुद्ध कॉलेज में भरती हुए । स्कूल की फीस, पुस्तक आदि का खर्च उन्होंने छात्रवृत्ति, ट्‌यूशन तथा सादगीपूर्ण जीवनशैली अपनाकर पूर्ण किया ।  बी॰ए॰ में वे प्रथम आये । फिर एम॰ए॰ की परीक्षा भी अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की ।

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उनके अच्छे अंकों के कारण कॉलेज के प्रिंसिपल उन्हें आई॰सी॰एस॰ बनाना चाहते थे, किन्तु उन्होंने स्वाभिमानपूर्ण जीवन जीने के साथ-साथ मानव सेवा का मार्ग चुना । कॉलेज में गणित के प्रोफेसर बन गये । 1857 में लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन में नेताओं के बड़े-बड़े भाषण सुनकर उन्हें लगा कि केवल कोरे भाषण से कुछ नहीं हो सकता ।

उनके आदर्श थे, विवेकानन्द । धीरे-धीरे उन पर कृष्णभक्ति का ऐसा गहरा प्रभाव छाने लगा कि वे उत्तराखण्ड के जंगलों की ओर निकल पड़े । नौकरी छोड़ दी । 1901 के मथुरा धर्म सम्मेलन की उन्होंने अध्यक्षता की । 1902 में टेहरी नरेश ने उनके लिए गंगा किनारे एक कुटिया बनवा दी ।

उनके कहने पर वे जापान में हुए धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए चले गये । वहां उनके भाषणों का व्यापक प्रभाव पड़ा । अमेरिका जाकर भी धार्मिक व्याख्यान दिये । मिश्र जाकर इस्लाम धर्म की अच्छी व्याख्या की ।

3. उनके कार्य:

धर्म तथा आध्यात्म की चेतना अपने देश में ही नहीं, विदेश में जगाने वाले स्वामी रामतीर्थ बड़े ही कुशाग्र बुद्धि के थे । विद्यार्थी जीवन की घटना है: एक बार अध्यापक ने विद्यार्थियों से छोटी लकीर को बड़ी लकीर में बदलने को कहा । स्वामी रामतीर्थ ने छोटी लकीर को मिटाये बिना उसके समीप ही बड़ी लकीर खींच दी ।

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एक बार किसी अमरिकन महिला ने स्वामी से पूछा था कि गोपियों की बीच घिरे रहने वाले कृष्णाजी कैसे पवित्र रह सकते हैं ? इस पर स्वामीजी ने उत्तर दिया-व्यक्ति के चरित्र का सम्बन्ध तो उसके विचारों से होता है । विचारों की पवित्रता हमें विचलित नहीं होने देती । जैसे इस समय मैं भी तो महिलाओं से घिरा हुआ हूं । क्या मैं भी अपवित्र हो गया ? उनका ऐसा सटीक उत्तर सुनकर महिला निरूत्तर हो गयी ।

4. उपसंहार:

स्वामी रामतीर्थ आध्यात्मिक सन्त होने के साथ-साथ विलक्षण प्रतिभा के धनी थे । वे जापानियों की कर्मनिष्ठा और परिश्रमशीलता से खासे प्रभावित थे । भारतीय जन-जीवन में भी इसकी महत्ता को शामिल करना चाहते थे । ऐसा सन्त लोकसेवी, व्यक्तित्व 17 अक्टूबर, 1906 को ईश्वर में विलय हो गया ।

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