बाचेन्द्री पाल की जीवनी | Bachendri Pal Kee Jeevanee | Bachendri Pal Biography in Hindi

1. प्रस्तावना ।

2. जन्म परिचय व इनकी साहस गाथा ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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बछेन्द्री पाल का नाम भारत की उन महिलाओं में अग्रगण्य है, जिन्होंने पर्वतारोहण के क्षेत्र में अपने साहसिक कार्य से महिलाओं के गौरव को बढ़ाया है । बछेन्द्री पाल का जीवन कठिन परिश्रम, लगन और दृढ़ निश्चय की अद्‌भुत मिसाल है । वह भारत की प्रथम महिला पर्वतारोही हैं ।

2. जीवन परिचय व इनकी साहस गाथा:

बछेन्द्री का जन्म 24 मई, 1954 को गंगा किनारे स्थित नुकरी नामक गांव में हुआ था । इनके पिता किसनसिंह पाल एक छोटे व्यापारी थे । इनकी मां हंसा देवी सामान्य भारतीय महिला थीं । इनका परिवार खेती-किसानी में भी रुचि रखता था । बछेन्द्री के बड़े भाई बचनसिंह सीमा सुरक्षा बल में इंस्पेक्टर हो गये थे । उनकी तरह ही बछेन्द्री की रुचि पर्वतारोहण में बचपन से रही थी ।

बछेन्द्री के भाई बचनसिंह अपने छोटे भाई राजेन्द्र सिंह को पर्वतारोहण हेतु प्रेरित करते थे । बछेन्द्री की इस ओर रुचि होकर भी इन्हें एक लड़की होने के कारण इस हेतु बड़े भाई प्रोत्साहित नहीं करते थे । इस प्रकार के भेदभाव से बछेन्द्री का मन बहुत अधिक दुखी हो जाता था ।

बाल्यावस्था से ही वह बहुत ही बातूनी और नटखट स्वभाव की थीं । कहा जाता है कि एक दिन इनके पिता रामायण पढ़ रहे थे । नटखट बछेन्द्री उन्हें बार-बार परेशान कर रही थी । पिता ने क्रोध में आकर इन्हें ऐसे ही धकेल दिया ।

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वह पहाड़ी ढलानों से लुढ़कती-लुढ़कती झाड़ियों में जा अटकी । नीचे खाई देखकर वह एक झाड़ी को पकड़कर लटक गयीं । इनके पिता दौड़े-भागे इन्हें वहां से सुरक्षित निकलवाकर उन्होंने इन्हें बहुत प्यार दिया । इस घटना ने बछेन्द्री के मन में ऊंचाइयों पर चढ़ने की लालसा को जन्म दिया ।

वह बहुत महत्त्वांकाक्षी भी थीं । इन्हें पहाड़ों पर चढ़ने के साथ-साथ हवाई यात्रा करने, प्रधानमन्त्री व राष्ट्रपति से मिलने की चाह थी । प्रारम्भिक शिक्षा कक्षा 8 तक पूर्ण करने के पश्चात् बछेन्द्री ने अपना ध्यान हिमालय की ऊंची चोटी पर चढ़ने में ही लगा दिया । इस कार्य में लगने वाली रकम का इंतजाम करने के लिए वह सिलाई करने लगीं । इससे होने वाली कमाई को वह पर्वतारोहण के लिए आवश्यक उपकरण खरीदने में खर्च किया करती थीं ।

बछेन्द्री ने अपने आगे की पढ़ाई जारी रखी । एम॰ए॰ तथा बी॰एड॰ तक की शिक्षा ग्रहण करने के साथ-साथ इन्होंने खेलकूद में भी कई पुरस्कार प्राप्त किये थे । इन्होंने नेहरू पर्वतारोहण केन्द्र में प्रशिक्षण हेतु प्रवेश ले लिया । जहां इन्हें सर्वश्रेष्ठ पर्वतारोही घोषित किया गया ।

1982 में बछेन्द्री को पर्वतारोहण के उच्च प्रशिक्षण हेतु चयनित किया गया । उस दौरान इन्हें 6387 मीटर की कालानाग पर्वत की चढ़ाई की । इसी समय इन्हें माउण्ट एवरेस्ट की चढ़ाई पर जाने वाले दल में सम्मिलित होने का निमन्त्रण मिला ।

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वह अधिक बोझ लेकर पर्वतारोहण का अभ्यास करने लगीं । 1983 में बछेन्द्री की मुलाकात एवरेस्ट पर चढ़ने वाले शेरपा तेनजिंग नोर्गे तथा एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली जापानी महिला पेटिट जुनको तबाई से हुई, जिससे वह काफी उत्साहित हुईं । एवरेस्ट पर चढ़ने वाले 1983 के भारतीय दल के नेता कर्नल डी॰के॰ खुल्लर थे, जिनके दल में 13 पुरुष 7 महिलाएं थीं । इनमें बछेन्द्री भी थीं ।

7 मार्च, 1984 को इनका दल काठमाण्डू पहुंचा । वहां से 10 दिन पैदल चलते हुए नामचा बाजार से पहली बार एवरेस्ट के दर्शन किये । बछेन्द्री ने एवरेस्ट को प्रणाम करते हुए अपनी इच्छा पूर्ति की कामना की । 23 मई 1984 को एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए शेरपा अंगडोरजी तथा शेरपा ल्हाटू भी इनसे जा मिले ।

नायलोन की रस्सी के सहारे वे एवरेस्ट की चढ़ाई पर निकल पड़े । उस समय काफी तेज हवा चल रही थी । बर्फ काटने की कुल्हाड़ी को गाड़कर बछेन्द्री उसका सामना करते हुए बड़ी कठिनाई से डटी थीं । इनके दोनों साथी आगे बढ़ रहे थे, बछेन्द्री नयी शक्ति के साथ चल रही थीं ।

23 मई, 1984 को दोपहर 1 बजकर 7 मिनट पर माउण्ट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली बछेन्द्री प्रथम भारतीय महिला बन गयीं । अपने परिश्रम को सफल होते देख वह फूली न समा रही थीं । 1 बजकर 50 मिनट के बाद वे नीचे की ओर आने लगे । पहाड़ों से उतरना भी कम खतरनाक नहीं होता । बछेन्द्वी व उनका दल सकुशल नीचे आ पहुंचा था ।

3. उपसंहार:

इस प्रथम भारतीय पर्वतारोही महिला के साहसिक कार्य हेतु दिल्ली पहुंचने पर भारतीय पर्वतारोहण संघ ने इन्हें स्वर्ण पदक प्रदान किया । इन्हें पद्मश्री तथा अर्जुन पुरस्कार से भी नवाजा गया । अपने गांव पहुंचने पर इनका बड़ी ही गर्मजोशी व उत्साह के साथ स्वागत किया गया । इनके माता-पिता अपनी इस वीर पुत्री की साहसिक यात्रा से स्वयं को गौरान्वित महसूस कर रहे थे । सच ही कहा गया है कि भाग्य भी उनका साथ देता है, जो साहसी होते हैं ।

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