तेनजिंग नोर्के-(प्रथम एवरेस्ट विजेता) | Biography of Tenzing Norgay in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. जीवन परिचय एवं उपलब्धियां ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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मनुष्य की जिज्ञासा वृत्ति ने उसे न जाने कितनी खोजों और आविष्कार के लिए प्रेरित किया । यह सभी मनुष्य की साहसिक एवं कल्याणकारी सोच का ही परिणाम था । ”भारत का मुकुट”, “भारत का पहरेदार” तथा ”बर्फ का घर” कहलाये जाने वाला हिमालय तथा उसकी दुर्गम चोटियां सभी के लिए आकर्षण का केन्द्र रही हैं ।

हिमालय की इन दुर्गम बर्फीली चोटियों पर चढ़ने का साहसिक अभियान मनुष्य की यात्रा का एक ऐसा शौक रहा है, जिसे विजित करने हेतु कई लोगों ने दुर्दम्य साहस किया, किन्तु इसमें सर्वप्रथम सफलता प्राप्त की-तेनजिंग नोर्वे और सर एडमण्ड हिलेरी ने । 29 मई, 1953 का पर्वतारोहण का वह गौरवगय दिन था, जब हिमालय की सबसे ऊंची चोटी और संसार की सबसे ऊंची चोटी 8848 मीटर माउन्ट एवरेस्ट पर मानव के कदम पड़े थे ।

2. जीवन परिचय एवं उपलब्धियां:

तेनजिंग नोर्वे का जन्म नेपाल के एक गांव सिलिखुंबी में 1914 को हुआ था । उनके पिता इतने गरीब थे कि पर्यटकों का सामान अपनी पीठ पर ढोकर अपने परिवार का किसी तरह गुजर-बसर किया करते थे । बालक तेनजिंग को बचपन से ही पर्वत पर चढ़ने का बेहद शोक था ।

अपने इस खतरनाक शौक के कारण वे कई बार अपने माता-पिता की डांट-फटकार भी सहते थे । पर्यटकों का सामान ढोते-ढोते तेनजिंग की यह इच्छा 31 वर्ष की अवस्था में पूर्ण हो पायी । ब्रिटिश पर्वतारोही दल के 2 सदस्यों के रूप में तेनजिंग और हिलेरी को कर्न ल हट के नेतृत्व में एवरेस्ट पर चढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।

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इसके बाद तो एवरेस्ट पर चढने का जैसे ताता ही लग गया । 1965 में पहली बार भारतीय दल के लें॰ कोहली के नेतृत्च में 9 सदस्यीय दल ने एवरेस्ट की ऊंची चोटी पर चढ़ने में सफलता प्राप्त की थी, किन्तु सर्वाधिक प्रसिद्धि तो तेनजिंग को ही मिली थी ।

इस यात्रा में अनेक कठिनाइयां आयीं थीं । अत्यधिक ठण्ड का होना, बर्फीले तूफान का चलना और बहुत से साथियों का एक के बाद एक बीमार होना, इसमें शामिल था । संकरे बर्फीले रास्तों पर घुटनों, कन्धों, हाथों का सहारा लेकर बर्फ को काटते हुए आगे बढना कई बार जान को पूरी तरह जोखिम में डालना था ।

रारत्ते में इस साहसिक अभियान के निकले कई लोगों के शवों को देखकर मन दुखी हो जाता था । फिर भी मार्ग में आने वाली सभी बाधाओं को पार करते हुए तेनजिंग और हिलेरी 50 पौण्ड वजन अपनी पीठ पर लादे, आवश्यक सामग्री सहित 29 मई, 1953 के दिन एवरेस्ट पर चढने में सफल रहे ।

नेपाल में जन्मे तेनजिंग 1933 से भारत में ही रहे थे । बौद्ध धर्म के अनुयायी होने के कारण वे मास, मदिरा, धूमपान आदि से दूर रहे । उन्हे कुत्ते पालने का बेहद शौक था । विदेशी पर्वतारोहियों के साथ रहते हुए उन्होंने कई भाषाओं को भी सीख लिया था ।

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तेनजिंग ने पर्वतारोहण का यद्यपि किसी प्रकार का प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया था, तथापि नेहरूजी के शासनकाल में दार्जिलिंग में प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना करके उन्होंने पर्वतारोहण के लिए भारतीयों का रास्ता प्रशस्त कर दिया, जिसके वे निदेशक भी थे ।

अन्तिम क्षणों तक इस सरकार में अपनी सेवाएं देते हुए सन् 1986 में उनकी मृत्यु हो गयी । भारत, नेपाल तथा इंग्लैण्ड सरकार ने उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया । 1959 में उन्हें ‘पद्‌मभूषण’ मिला, तो इंग्लैण्ड की महारानी ने ‘जार्ज पदक’, तो नेपाल सरकार ने उन्हें ‘नेपाल तारा’ की उपाधि से विभूषित किया । नेपाल में जनो होने के बावजूद तेनजिंग ने हमेशा रचय को भारतीय ही माना ।

3. उपसंहार:

किसी भी कार्य में यदि सफलता प्राप्त करनी है, तो अटूट साहस, आत्मबल, धैर्य, लगन, संयम, सहनशक्ति, सूझबूझ आवश्यकता होती है । निर्धन परिवार में जन्म लेकर शी तेनजिंग में इन सभी गुणों का इस प्रकार रामावेश था कि वे माउण्ट एवरेस्ट की सर्वाधिक ऊंची चोटी पर चढ़ने में सफल रहे ।

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