वाणिज्यिक बैंकों के कार्य | Read this article in Hindi to learn about the five important functions of commercial banks. The functions are:- 1. जमाएँ अथवा निक्षेप स्वीकार करना (To Accept Deposits) 2. ऋण अथवा अग्रिम देना (To Advance Loans) 3. अभिकर्ता सम्बन्धी कार्य (Agency Functions) 4. विविध कार्य (Miscellaneous Functions) 5. साख निर्माण (Credit Creation).

व्यापारिक बैंकों के कार्यों का सुचारु अध्ययन के लिए इन्हें निम्न पाँच भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

1. जमा स्वीकार करना,

2. ऋण देना,

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3. अभिकर्ता सम्बन्धी कार्य,

4. विविध कार्य और

5. साख निर्माण सम्बन्धी कार्य ।

व्यापारिक बैंकों के इन कार्यों में से साख निर्माण सम्बन्धी कार्यों की विस्तृत व्याख्या की गई है ।

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व्यापारिक बैंकों के कार्यों का विस्तृत विवरण निम्न प्रकार है:

Function # 1. जमाएँ अथवा निक्षेप स्वीकार करना (To Accept Deposits):

वर्तमान समय में जनता से जमाएँ अथवा निक्षेप स्वीकार करना बैंक का सबसे महत्वपूर्ण एवं प्रारम्भिक कार्य है । बैंक विभिन्न प्रकार की जमा योजनाओं के माध्यम से सभी वर्गों की जमा राशि से आकर्षित करने में रुचि लेता है । बैंक में जब लोग रकम जमा करते हैं, तब उन्हें ब्याज मिलता है । अन्य शब्दों में, बैंक जनता से जमा के रूप में ऋण लेता है । कारण यह है कि जमा किये जाने पर धन ये ब्याज सहित लौटाने का उत्तरदायित्व बैंक का होता है ।

व्यापारिक बैंक निम्नलिखित खातों पर रकम जमा कराने की सुविधा देते हैं:

(a) चालू खाता (Current Account):

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चालू खाता वह खाता है जिसमें जमाकर्ता अपनी इच्छा के अनुसार राशि कभी भी जमा कर सकता है या निकल सकता है । इस खाते में चैक द्वारा राशि निकालने की सुविधा दी जाती है । अतः इसे चैक खाता भी कहते हैं । यह खाता व्यापारियों, उद्योगपतियों एवं पूजीपतियों के लिए लाभदायक एवं सुविधाजनक होता है ।

इस खाते की प्रमुख विशेषतायें निम्नलिखित हैं:

(i) खातेदार जमा राशि को कभी भी और कितनी बार भी निकाल सकता है ।

(ii) बैंक ही खातेदार का हिसाब रखता है ।

(iii) प्रत्येक भुगतान का प्रमाण बैंक में प्रस्तुत करना पड़ता है ।

(iv) सामान्यतः बैंक जमा रकम पर कोई ब्याज नहीं देती है ।

(v) कई बार अच्छे बैंक ग्राहकों से शुल्क वसूल करते हैं ।

(vi) कुछ बैंक ग्राहकों को सांकेतिक ब्याज देते हैं । भारत में चालू खाते पर कुछ बैंक 0.5 प्रतिशत ब्याज देते हैं ।

(b) बचत खाता (Savings Bank Account):

इस खाते में जमाकर्ता जितनी बार चाहे रकम जमा तो कर सकता है किन्तु वह सप्ताह में केवल एक या दो बार ही रकम निकल सकता है । इस प्रकार का खाता छोटी बचत करने वालों के लिए काफी उपयोगी होता है । जमाकर्ता को बैंक अपनी ओर से एक पास-बुक देता जिसमें जमा और आहरण की प्रविष्टियां की जाती है ।

ग्राहक एक निश्चित पर्ची पर निकली जाने वाली रकम भर कर निकल सकते हैं । एक निश्चित सीमा से अधिक राशि के बैंक के बचत खाते में जमा रखने पर ग्राहकों चैक बुक की सुविधा भी दी जाती है । इन खातों से रकम निकलते समय ग्राहकों को पास बुक प्रस्तुत करना होती है । इन खातों में जमा रकम पर ब्याज दिया जाता है । यह मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए अत्यधिक उपयोगी है ।

(c) ग्रह बचत खाता (Home Savings Account):

कुछ बैंक अपने ग्राहकों को घर पर ही रकम जमा करने के लिए ताला लगाकर एक तिजोरी या गुल्लक देती है और चाबी अपने पास रख लेती है । इस गुल्लक या तिजोरी में समय-समय पर ग्राहक स्वयं और परिवार के लोग रकम डालते रहते हैं । कुछ समय बाद ग्राहक इस गुल्लक को बैंक में ले जाकर खुलवा लेता है और रकम को बैंक उसके खाते में जमा कर देता है ।

कुछ स्थानों पर बैंक का एजेण्ट घर-घर जाकर महीने के प्रथम सप्ताह में गुल्लक की राशि जमा करते है । यह योजना छोटी बचतों को गतिशील बनाने की दृष्टि से उत्तम है । जर्मनी में ये गुरु के, बैंक की खिड़की के नीचे लगी होती है जिन पर ग्राहक का नाम लिखा होता है ।

ग्राहक इन गुल्लकों में पैसा डालते रहते है । बैंक कर्मचारी फुर्सत के समय में गुल्लक खोलकर रुपया जमा कर लेते हैं । इस व्यवस्था में बैंक कर्मचारियों पर बहुत अधिक विश्वास किया जाता है । बैंक में इस जमाराशि पर ब्याज दिया जाता है ।

(d) स्थायी जमा खाता (Fixed Deposit Account):

स्थायी जमा खाते में एक निश्चित अवधि (कम से कम 3 माह एवं अधिक से अधिक 21 वर्ष या अधिक) के लिये रकम जमा की जाती है । रकम जमा कराते समय बैंक ग्राहक को एक रसीद देता है जिस पर रकम जमा होने की तारीख, रकम निकालने की तिथि, रकम मात्रा व ब्याज दर लिखी जाती है । यह रसीद अहस्तांतरणीय होती है, अर्थात स्थायी जमा की रकम जमाकर्ता से ही मिलती है ।

यह राशि जमा अवधि समाप्त होने पर ही लौटाई जाती है, इससे पूर्व नहीं । जमाकर्ता जमा राशि गिरवी रखकर बैंक से ऋण ले सकता है । इस जमा राशि पत्र के विरुद्ध ऋण लेने पर स्थाई जमा पर मिलने वाले ब्याज से अधिक ब्याज देना पड़ता है ।

यदि जमाकर्ता समय से पूर्व रकम चाहता है तो उसे ब्याज कम मिलता है या नहीं मिलता । स्थायी जमा पर ब्याज दर ऊंची होती है । इसमें रकम जितने अधिक समय के लिए जमा की जाती है उतनी ही ऊँची ब्याज दर मिलती है ।

Function # 2. ऋण अथवा अग्रिम देना (To Advance Loans):

बैंकों यह महत्वपूर्ण कार्य है । वास्तव में जमा प्राप्त करना और ऋण प्रदान करना, इन दोनों कार्यों पर वर्तमान का सम्पूर्ण ढाँचा खड़ा हुआ है । व्यापारिक बैंक प्रायः उत्पादक कार्यों के साथ-साथ उपभोक्ता वस्तुओं के लिए ऋण देते हैं । इन ऋणों की ब्याज दर ऊंची होती है और इसी ब्याज से बैंक का खर्चा चलता है ।

ऋण देते समय सावधानियाँ:

ऋण देते समय बैंक दो प्रकार की सावधानी रखता है:

(a) तरलता (Liquidity):

बैंक में जितनी भी नकद मुद्राएँ जमा होती है । उसका एक निश्चित भाग बैंक को अपने पास रखना पड़ता है ताकि वह जमाकर्ताओं की माँग की पूर्ति कर सके । इस प्रकार की नकद मुद्रा बैंक की तरलता कहलाती है ।

तरलता की स्थित को सुदृढ़ बनाए रखने के लिए सभी व्यापारिक बैंकों को नियमानुसार केन्द्रीय बैंक के पास एक निश्चित अनुपात में धन राशि जिसे Cash Reserve Ratio कहा जाता है, रखना पड़ती है । इसके साथ ही व्यापारिक बैंकों में प्राप्त जमा राशि का कुछ भाग शासकीय प्रतिभूतियों एवं अन्य व्यापारिक बैंकों में भी रखना पड़ता है ।

(b) आय (Income):

बैंक अपने पास जमा राशि से अधिक से अधिक आय प्राप्त करने का प्रयास करता है । इसीलिए वह जमा रकम का अधिकांश भाग उधार देता है ।

बैंक निम्नलिखित दो शर्तों पर ऋण देता है:

(i) असुरक्षित साख (Unsecured Credit):

जब बैंकों को यह विश्वास हो जाए कि ऋणी निश्चित तिथि को ऋण का भुगतान कर देगा, तब बैंक व्यक्तिगत जमागत पर ऋण देता है । इसे असुरक्षित ऋण कहते है, क्योंकि इस ऋण के पीछे भौतिक सम्पत्ति की जमानत नहीं होती है । वर्तमान समय में इस प्रकार के असुरक्षित ऋण कम दिये जाते हैं । कारण यह है कि ऐसे कणों में जोखिम रहती है ।

(ii) सुरक्षित ऋण (Secured Credit):

जब व्यापारिक बैंक पर्याप्त मूल्य की सम्पत्ति की जमानत पर ऋण देती तो उसे सुरक्षित ऋण कहते हैं । सुरक्षित ऋण में बैंक जोखिम नहीं उठाता, क्योंकि ऋणी द्वारा ऋण का भुगतान न करने पर जमानत के रूप में रखी संपत्ति को बेचकर बैंक ऋण वसूल कर लेता है ।

ऋणों के प्रकार (Types of Loans):

बैंक निम्न प्रकार के ऋण देता है:

(a) नकद साख (Cash Credit):

जिन व्यापारियों अथवा लोगों के नियमित रूप से उधार धन की आवश्यकता होती है वे पहले से ही यह अनुमान लगा लेते हैं कि उन्हें कितनी रकम की आवश्यकता होगी । वे उतनी ही रकम बैंक से लेने का समझौता करते हैं । वे यह रकम एक बार में न निकालकर आवश्यकतानुसार निकलते हैं ।

ऐसी दशा में उन्हें कुल रकम पर ब्याज नहीं देना पड़ता, बल्कि केवल निकली गई रकम पर ब्याज देना पड़ता है । उदाहरण के लिये यदि हुकुमचंद मिल बैंक ऑफ इण्डिया से एक लाख रुपये उधार लेने का समझौता करती है और जनवरी में 5 हजार रुपये व फरवरी में 10 हजार रुपये निकलती है तो इस 15 हजार पर ही ब्याज देना पड़ेगा, न कि एक लाख रुपये पर । स्मरण रहे, कि नगद साख पर्याप्त संपत्ति की जमानत पर दी जाती है ।

(b) अधिविकर्ष (Overdraft):

जब बैंक ग्राहक को बैंक में उसके खाते में जमा राशि से अधिक रकम निकालने की सुविधा देता है तो इसे अधिविकर्ष कहते हैं । बैंक अपने सम्मानित तथा विश्वसनीय ग्राहकों को अधिविकर्ष (ओवरड्राफ्ट) की सुविधा देता है । ग्राहक के लिये यह आवश्यक नहीं कि वह अधिविकर्ष की सम्पूर्ण रकम एक ही बार में निकले, वह आवश्यकतानुसार अधिविकर्ष की राशि निकाल सकता है ।

उसे वास्तव में निकली गई राशि या रकम पर ही ब्याज देना पड़ता है । जब बैंक अधिविकर्ष की राशि देता है तो वह ग्राहक के खाते में उस राशि से जमा कर देता है और उसे निकलने के लिए चैक जारी करने की अनुमति दे देता है ।

अधिविकर्ष व नगद- साख में अंतर:

अधिविकर्ष:

1. यह ऋण सुविधा केवल चालू खाताधारी ग्राहकों को ही दी जाती है ।

2. यह ऋण प्रायः व्यक्तिगत जमानत पर दिया जाता है ।

3. यह ऋण अति अल्पकाल (3 माह) के लिए दिया जाता है ।

4. इस पर नकद साख की अपेक्षा ब्याज दर अधिक होती है ।

नकद साख:

1. यह ऋण किसी भी व्यक्ति को दिया जा सकता है ।

2. यह ऋण सदा पर्याप्त जमानत पर ही दिया जाता है ।

3. यह एक वर्ष या उससे अधिक समय के लिए दिया जाता है ।

4. इन पर ब्याज दर कम होती है ।

(c) अग्रिम साख (Advances):

बैंक नगद साख व अधिविकर्ष साख के अतिरिक्त अग्रिम साख भी देता है । यह साख किश्तों में न दी जाकर एक मुश्त दी जाती है । बैंक जैसे ही इस ऋण से ग्राहक के खाते में जमा करता है, सम्पूर्ण राशि पर ब्याज प्रारंभ ले जाता है । ये अग्रिम ऋण जमानत पर दिये जाते हैं ।

(d) विनिमय विपत्रों को भुनाना (Discounting of Trade Bills):

अपने ग्राहकों द्वारा दिये गये बिलों, हुण्डियों व प्रतिज्ञा पत्रों में कटौती लेकर परिपक्वता की अवधि के पूर्व धन देने की क्रिया को विनिमय विपत्र भुनाना कहते हैं । ये विपत्र अल्पकालीन व पर्याप्त जमानत के आधार पर भुनाये जाते हैं, क्योंकि इसमें क्रेता, विक्रेता व बैंक तीनों के लाभ होता है ।

Function # 3. अभिकर्ता सम्बन्धी कार्य (Agency Functions):

व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के लिए अभिकर्ता सम्बन्धी कार्य भी करता है ।

इन बैंकों में के अभिकर्ता सम्बन्धी कार्य निम्नलिखित हैं:

(i) भुगतान का संग्रहण:

बैंक द्वारा अपने ग्राहकों की ओर से लाभांश, ब्याज, कमीशन आदि की वसूली की जाती है । यह कार्य करने के लिए बैंक कमीशन वसूल करता है ।

(ii) धन का हस्तांतरण:

ग्राहकों द्वारा आदेश देने पर बैंक कम ब्याज पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर रकम भेजने की व्यवस्था करता है और इसके बदले में वे थोड़ा सा शुल्क लेता है ।

(iii) अंशों या प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय:

ग्राहकों के आदेश पर बैंक ग्राहकों के अंशों, ऋणपत्रों, सरकारी एवं गैर सरकारी प्रतिभूतियां आदि का क्रय-विक्रय करते हैं ।

(iv) ग्राहकों की और से भुगतान:

बैंक भुगतान सम्बन्ध ग्राहकों के आदेशों को भी पूरा करते हैं । उदाहरण के लिए- चंदे, बीमा की किश्त, कर, ब्याज, ऋण की किश्तें आदि का क्रय-विक्रय बैंक करते हैं ।

(v) चैक, विपत्रों, प्रतिज्ञा पत्रों आदि का संग्रहण:

बैंक ग्राहकों के खाते में जमा किये गये प्रतिज्ञा पत्रों, चैक एवं विपत्रों आदि का संग्रह कर उनके खाते में रकम जमा करते हैं ।

(vi) संरक्षक, प्रबन्धक आदि कार्य:

प्रबन्धक, संरक्षक, एक्जीक्यूटर्स, अटार्नी, वित्तीय सलाहकार, ट्रस्टी सलाहकार आदि के रूप में बैंक ग्राहक के लिये कार्य करते हैं ।

(vii) ग्राहकों के अंशों पर लाभांश वसूल करना:

बैंक अपने ग्राहकों के ऋण पत्रों पर लिये जाने वाले लाभांश एवं ब्याज आदि को वसूल करके उनके खाते में जमा करते हैं ।

(viii) ग्राहकों के प्रीमियम तथा अन्य दायित्वों का भुगतान:

अपने ग्राहकों की ओर से बैंक बीमा कम्पनियों को प्रीमियम तथा अन्य दायित्व का भुगतान करते हैं ।

(ix) संदर्भ पत्र:

देश और विदेश के व्यापारियों को बैंक अपने ग्राहकों की आर्थिक स्थिति के संदर्भ में पत्र जारी करते हैं ।

Function # 4. विविध कार्य (Miscellaneous Functions):

व्यापारिक बैंक विविध कार्य के अन्तर्गत निम्नलिखित कार्य प्रमुखता से करता है:

(i) आंतरिक तथा विदेश व्यापार के लिये वित्त प्रदान करना (Financing of Internal and External Trade):

व्यापारिक बैंक विनिमय विपत्रों को भुनाकर आंतरिक और विदेशी व्यापार के लिए वित्त भी उपलब्ध करता है । कभी-कभी बैंक हुंडियां और बिलों की जमानत पर अल्पकालीन ऋण भी दे देता है । विदेशी व्यापार के क्षेत्र में बैंक अपनी महत्वपूर्ण सेवायें प्रदान करता है ।

(ii) विदेशी विनिमय का क्रय-विक्रय (Purchase and Sale of Foreign Exchange):

व्यापारिक बैंक विदेशी मुद्राओं का क्रय-विक्रय भी करते हैं । साधारणतः विदेशी मुद्राओं का क्रय-विक्रय विदेशी बैंकों के द्वारा किया जाता है । किन्तु भारत में अनेक व्यापारिक बैंक भी इस कार्य को करते हैं । विदेशी मुद्राओं के क्रय-विक्रय के लिए ये बैंक बिलों को भुनाते हैं तथा विदेशी चैक, ड्राफ्ट आदि स्वीकार करते हैं ।

(iii) बैंकिंग शिक्षा व प्रशिक्षण (Banking Education and Training):

औद्योगिकरण के साथ-साथ बैंकिंग व्यवस्था भी जटिल होती जा रही है । अब इसके संचालन के लिए अधिक शिक्षित, प्रशिक्षित, कुशल और अनुभवी कर्मचारियों की आवश्यकता होती है । अनेक व्यापारिक बैंकों ने अपने कर्मचारियों के अधिक कार्य कुशल बनाने के लिए बैंकिंग शिक्षा एवं प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना की है ।

(iv) साख सम्बन्धी सूचनाएँ देना (Give Credit Report):

बैंक अपने ग्राहकों को साख सम्बन्धी सूचना, प्रदान करता है । वह अपने ग्राहकों की आर्थिक स्थिति से अच्छी तरह परिचित होता है । अतः वह उनकी साख सम्बन्धी योग्यता के बारे में विश्वसनीय सूचना दे सकता है ।

(v) मूल्यवान वस्तुओं की सुरक्षा (Custody of Valuables):

व्यावसायिक बैंक अपने ग्राहकों को लॉकर सम्बन्धी सुविधायें भी देते हैं । इन लॉकरों में ग्राहक गहने, आभूषण, बहुमूल्य प्रपत्र, कागज, कम्पनियों के अंशपत्र व ऋण पत्र रख सकते हैं । बैंक इस कार्य के लिए एक अलग विभाग रखते हैं । ‘सेफ डिपाजिट बाल्ट’ कहते हैं । इस कार्य के लिये बैंक विशेष कमीशन लेते हैं ।

(vi) आंकड़ों का संकलन एवं प्रकाशन (Collection and Publication of Statistics):

बैंक उद्योग, व्यापार, वाणिज्य आदि से सम्बन्धित अनेक प्रकार के आंकड़े व सूचनाएँ संकलित करते हैं और उन्हें वे अपने प्रकाशनों में प्रकाशित करते हैं । अनेक बैंक प्रति सप्ताह या मासिक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन करती है ।

(vii) सरकार तथा अन्य संस्थाओं के ऋण का अभिगोपन करना (Underwriting):

बैंक सरकार तथा अन्य संस्थाओं का ऋण का अभिगोपन सम्बन्धी कार्य भी करते हैं । इस सम्बन्ध में ग्राहकों को बैंकों पर पूर्ण विश्वास रहता है । अतः वे बिना किसी झिझक के ये ऋण पत्र खरीद लेते हैं ।

(viii) यात्री चैक (Travellers Cheques) तथा साख की सुविधा देना:

व्यापारिक बैंक यात्रियों के लिए यात्री चैक और गश्ती साख प्रमाण पत्र जारी करते हैं जिनसे यात्रियों को यात्रा के दौरान नकद रकम ले जाने की जोखिम से छुटकारा मिल जाता है । यात्री अपना चैक सम्बंधित बैंक की किसी भी शाखा से भुनवा सकता है ।

(ix) व्यक्तिगत साख की सुविधाएं (Facility of Personal Credit):

बैंक व्यक्तिगत साख की सुविधाएं भी प्रदान करते हैं और इसी के आधार पर अग्रिम ऋण भी देते हैं ।

(x) वित्तीय विषयों पर परामर्श:

बैंक देश की आर्थिक परिस्थितियों से अच्छी तरह से परिचित रहते हैं । अतः वे अपने ग्राहकों को धन विनियोग करने तथा और अन्य वित्तीय मामलों में परामर्श देते हैं ।

(xi) सूचनाएँ एवं सलाह (Information and Advice):

व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों को अनेक प्रकार की आवश्यक सूचनाएँ देता है । वह इन सूचनाओं के आधार पर ग्राहकों से विभिन्न कार्य करने के लिए सलाह भी देता है ।

(xii) विनिमय विपत्रों को स्वीकार करना (To Accept Exchange Bills):

व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों की ओर से विभिन्न विपत्रों को स्वीकार करते हैं ।

Function # 5. साख निर्माण (Credit Creation):

व्यापारिक बैंक का एक प्रमुख कार्य साख निर्माण है । व्यापारिक बैंक के उपयुक्त कार्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि ये बैंक अर्थ-व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं । वास्तविकता यह है कि संगठित बैंकिंग व्यवसाय के बिना उद्योग, कृषि, व्यापार आदि किसी भी क्षेत्र में विस्तार सम्भव नहीं है ।

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