मशरूम: महत्व और औषधीय मूल्य | Read this article in Hindi to learn about:- 1. खुंभी की पोषणमान एवं संगठन (Organization of Mushroom) 2. खुंभीयों का औषधीय मान (Medicinal Value of Mushroom) 3. पहचान (Identification) and Other Details.

Contents:

  1. खुंभी की पोषणमान एवं संगठन (Organization of Mushroom)
  2. खुंभीयों का औषधीय मान (Medicinal Value of Mushroom)
  3. खुंभी की पहचान (Identification of Mushroom)
  4. जहरीली खुंभी (Poisonous Mushroom)
  5. खाद्य खुंभियों का वर्गिकरण (Classification of Eatable Mushroom)

1. खुंभी की पोषणमान एवं संगठन (Organization of Mushroom):

i. प्रोटीन:

खाद्यान्न आधारित भारतीय भोजन में कैलोरी की कमी तो नहीं रहती परंतु इसमें प्रोटीन की कमी पायी जाती है और इसी कारण से नवजात शिशु, बच्चे, गर्भवती महिलाएं और दुग्धपान कराने वाली महिलाओं में प्रोटीन कुपोषण सबसे बड़ी समस्या है ।

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खुंभी में प्रोटीन की गुणवत्ता शाकाहारी प्रोटीन (खाद्यान्न, दाल, सब्जी) से अधिक और माँसाहारी प्रोटीन (दूध, अण्डा, मछली, माँस) से कम होती है । अत: शाकाहारी खाने में खुंभी प्रोटीन को साथ-साथ लेने से प्रोटीन की कमी दूर हो सकती है । खुंभी की विभिन्न प्रजातियों में वर्णित प्रोटीन की मात्रा अलग-अलग होती है ।

साथ ही साथ यह विभिन्नता एक ही प्रजाति के विभिन्न लाइन्स या स्ट्रेन्स से उनकी कोशिकाओं की रचना, बढवार की अवस्था, माध्यम और उगाने की अवस्था पर निर्भर करता है ।

खुंभी के प्रोटीन की गुणवत्ता खुंभी की मात्रा से ज्यादा महत्वपूर्ण है । खुंभी में युवा व्यक्ति के लिए सभी आवश्यक अमीनो एसीड्‌स हैं । सिस्टीन और मीथियोनाइन की अपेक्षा ट्रिप्टोफेन और लाइसिन अमीनों अम्ल की मात्रा अधिक पाया गयी है । हम अपने भोजन में जो अनाज लेते हैं उनमें इन अमीनों अम्ल की मात्रा कम पायी जाती है । खुंभी की प्रोटीन शरीर के द्वारा आसानी से अवशोषित कर ली जाती है ।

सफेद बटन खुंभी (अगेरिकस बाइस्पोरस) का संग्रहण करने से प्रोटीन में कमी आती है क्योंकि संग्रहण से प्रोटीएज एन्जाइम की मात्रा बढ जाती है । जैसे-जैसे संग्रहण अवधि व तापक्रम बढता है वैसे-वैसे क्षरण भी बढता जाता है । खुंभी में अधिक प्रोटीन के साथ-साथ स्वतंत्र अमीनो अम्ल भी अधिक मात्रा में रहते हैं ।

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सामान्यतः खेती योग्य खुंभी में सभी 9 आवश्यक अमीनो एसिड उपलब्ध रहते हैं । लाइसिन सबसे अधिक मात्रा में एवं ट्रिप्टोफेन और मिथियोनाइन सबसे कम मात्रा में पाया जाने वाला आवश्यक अमीनो अम्ल है ।

ii. विटामिन:

खुंभी में कई विटामिन-बी, जैसे थायमीन (बी-1), राइबोफ्लेविन (बी-2), निकोटिनिक अम्ल और पेन्टाथिनिक अम्ल मुख्य रूप से पाये जाते हैं । ये विटामिन खुंभी को गर्म करने या कैनिंग करने के कारण नष्ट नहीं होते हैं ।

इनमें विटामिन सी (4-8 मि.ग्रा./100ग्राम) भी प्रचुर मात्रा में मिलता है । खुंभी की वसा में घुलनशील विटामिन ए, डी. के और ई की कमी होती है । फोलिक एसिड और विटामिन बी-12, जो सब्जीयों में नहीं होते, खुंभी में पाये जाते हैं और बहुत कम मात्रा में होते हैं । विटामिन्स, डिबा बन्दी, सुखाने और शीतलीकरण के दौरान अप्रभावित रहते हैं ।

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iii. खनिज पदार्थ:

साग-सब्जी की तरह खुंभी में भी खनिज पदार्थ बहुतायत में पाये जाते हैं । पोटेशियम सबसे अधिक मात्रा में (कुल राख की मात्रा का 45 प्रतिशत) और फॉस्फोरस, सोडियम, मैग्नेशियम और कैल्शियम मिलकर राख के कुल मार का से 70 प्रतिशत तक होते हैं ।

ताजी खुंभी की तुलना में परिरक्षित खुंभी में खनिज पदार्थ ज्यादा होते हैं और नमक के घोल के कारण सोडियम और पोटेशियम की मात्रा अधिक होती है । लेन्टीन्यूला इडोड्‌स के अलावा अन्य खुंभीयों में कैल्शियम कम रहता है ।

प्लूरोटस प्रजाति की राख में मुख्य रूप से पोटेशियम और फॉस्फोरस रहते हैं । आयरन भी अधिक मात्रा में उपस्थित रहता है । आयस्टर खुंभी में कुल आयरन का एक तिहाई भाग उपलब्ध मात्रा के रूप में रहता है ।

फलनकाय में उपस्थित खनिज की मात्रा माध्यम में उपस्थित खनिज की मात्रा से प्रभावित होती है । राख में पोटेशियम, सोडियम, फॉस्फोरस, मेग्नीशियम, कैल्शियम, कॉपर, जिंक, आयरन, मैंग्नीज और केडमियम भी उपस्थित रहते हैं ।

iv. कार्बोहाइड्रेट्स:

खुंभी में पानी के अतिरिक्त कार्बोहाइड्रेट्‌स मुख्य रूप से पाये जाते हैं । खुंभी की अलग-अलग प्रजातियों में 3.28 प्रतिशत तक (ताजे वजन के अनुसार) कार्बोहाइड्रेट्‌स पाये जाते हैं । ये कार्बोहाइड्रेट्‌स कई मिश्रणों जैसे काइटिन, हेमीसेल्यूलीज, एमीनोशर्करा, शर्कर एल्कोहल, शर्करा एसिड्‌स और ग्लाइकोजन के रूप में पाए जाते है ।

स्टार्च अनुपस्थित होता है । मैककोनेल और इसेलेन (1947) के अनुसार ताजी खुंभी में 0.95 प्रतिशत मैनीटाल, 0.28 प्रतिशत रिड्‌यूसिंग शर्करा, 0.59 प्रतिशत ग्लाइकोजन और 0.91 प्रतिशत हेमीसेल्यूलोज होता है ।

डोमर (1964) के अनुसार एगरिकस बाइस्पोरस में ताजे भार के अनुसार कार्बनिक यौगिक की मात्रा 3.84 से 4.88 प्रतिशत होती है । खुंभी में फूफा लिनोलिक एसिड अधिकता में होता है । यह सब आवश्यक फैटी एसिड हे । पीली जातियों में सफेद जातियों की तुलना में वसा ज्यादा होती है ।

कैलोरी की दृष्टि से खुंभी में उपस्थित कार्बोहाइड्रेट्‌स पोषण के लिए महत्वपूर्ण नहीं हैं । काइटिन एन एसिटाइल ग्लूकोसामाइन का एक पॉलीमर है । यह कोशिका की दीवार का मुख्य तत्व है और खुंभी में उपस्थित रेशों का अधिकांश भाग इसी के द्वारा बनता है । दूसरा मुख्य पॉलीमर कार्बोहाइड्रेट ग्लाइकोजन है ।

प्लूरोटस फ्लोबिलेट्स में ग्लाइकोजन 89 प्रतिशत तक पाया जाता है । इसकी पिन हेड अवस्था में पूर्ण घुलनशील शर्करा, रिड्यूसिंग शर्करा और नानरिड्‌यूसिंग शर्करा (ताजे भार के अनुसार) सबसे अधिक पायी जाती है जो कि खुंभी के बढते समय कम होती जाती है । अगेरिकस बाइस्पोरस में उपस्थित कार्बोहाइड्रेट में ट्रेहलोज, पेन्टोस, मिथाइल पेन्टोस, हेक्सोज, डाइसेकेराइड, अमीनो शर्करा और शर्करा अल्कोहल उपस्थित रहते हैं ।

ली और चेंग (1982) के अनुसार वोल्वेरियैला वोल्वेसिया में कार्बोहाइड्रेट्‌स की मात्रा खुंभी के सूखे भार के अनुसार 40 ओर 50 प्रतिशत के बीच रहती है । यह मात्रा बटन अवस्था, अण्ड अवस्था और खुंभी के बढने की अवस्था तक बनी रहती है परंतु परिपक्व होने पर एकदम कम हो जाती है ।

बानो और राजरथनाम (1982) के अनुसार सूखे प्लूरोटस की विभिन्न प्रजातियों में 46.6 से 81.8 प्रतिशत तक कार्बोहाइड्रेट्‌स पाया जाता है । जबकि अगेरिकस बाइस्पोरस में 60 प्रतिशत और लेन्टीनुला इडोडस में 67.5 प्रतिशत पाया जाता है ।

v. रेशा:

सभी खुंभीयों में रेशेदार तत्व बहुलता में होते हैं । अगेरिकस बाइस्पोरस में रेशेदार तत्व 10.4 प्रतिशत और जूरीटस स्पीशीज में 7.5 से 27.6 प्रतिशत तक पाया जाता है ।

vi. बसा:

खुंभी में बहुत कम वसा होती है । सूखे भार के अनुसार इसकी मात्रा 2 से 8 प्रतिशत तक होती है । जबकि ताजे भार के अनुसार प्लूरोटस स्पीशीज में वसा की मात्रा 0.10 से 0.19 प्रतिशत तक पायी गयी है ।

वोल्वेरीयेला वोल्वेसिया के परिपक्व फलनकाय में सूखे भार के अनुसार अपरिष्कृत वसा 5 प्रतिशत तक रहती है । अपरिष्कृत वसा में फास्फोलिपिड, ग्लिसराइड, फेटी एसिड्‌स, स्टीराल्स और स्टीराल इस्टरस पाये जाते है ।

अगेरिकस बाइस्पोरस में मुख्यतः पामिटिक, स्टीयरिक, ओलिक और लेनोलिक अम्ल पाया जाता है । पोषण की दृष्टि से लिनोलिक अम्ल सबसे महत्वपूर्ण बहु असंतृप्त फेटी एसिड है ।

इसमे वसा अम्ल का 70 प्रतिशत उदासीन लिपिड भाग के रूप में और 90 प्रतिशत पोलर लिपिड भाग के रूप में उपस्थित रहता है । जिसकी तुलना करडी में उपस्थित तेल से की जा सकती है । यह तेल एथोरोस्कीरोसिस को रोकने में बहुत उपयोगी है । हुआंग एवं अन्य (1985) ने व्यावसायिक खुंभी में वसा अम्ल एवं स्टीरोल का अध्ययन किया ।


2. खुंभीयों का औषधीय मान (Medicinal Value of Mushroom):

बहुत वर्षों पहले खुंभी को विलक्षण सुगंध एवं स्वाद के कारण धनी लोगों का स्वादिष्ट व्यंजन समझा जाता था । आजकल खुंभी की लोकप्रियता इसके पकाने के गुणों के कारण नहीं बल्कि सर्वाधिक पौष्टिक पदार्थों के कारण है । वह उन विकासशील देशों में जहाँ मांसाहारी भोजन महंगा एवं कम प्राप्य है, विशेष तौर पर उपयोगी है ।

खुंभी जिस रूप में पायी जाती है उसी रूप में या पकाकर खायी जाती है जबकि सोयाबीन एवं ईस्ट की प्रोटीन को विधिपूर्वक परिवर्तित करके खाने योग्य बनाना पडता है । अब यह स्थापित हो गया है कि अधिक पोषणमान होने के साथ-साथ कुछ खुंभीयों में औषधीय गुण भी होते है अत: इन्हें न्क्राक्यूटिकल्स कहते हैं ।

खुंभी में अधिक मात्रा और अच्छी गुणवत्ता वाला प्रोटीन होने के कारण विश्व खाद्य संगठन के अनुसार यह धान्य पर निर्भर देशों के लिए प्रोटीन का अच्छा स्त्रोत है । खुंभी में और दूसरी सब्जियों की तरह 90 प्रतिशत नमी होती है और मुख्यतः यह कम कैलोरी वाला खाद्य (प्रति 100 ग्राम खुंभी में 30 कैलोरी ऊर्जा) है ।

आज के युग में कम कैलारी, कम संतृप्त वसा एवं कम कोलेस्ट्रॉल वाला स्वस्थ आहार को ध्यान में रखते हुए खुंभी ने लोगों का ध्यान खींचा है । लंबे समय से खुंभी के औषधीय गुण ज्ञात थे । वैज्ञानिकों ने इसकी स्वाद व सुगंध के बजाय इसके औषधीय गुणों के कारण खुंभी को अनुशंसित किया ।

परंतु इस विषय पर पर्याप्त अनुसंधान नहीं किये गये । अनूठे रासायनिक संरचना के कारण यह बीमारियों से ग्रसित विशिष्ट समूहों के लिए संपूर्ण आहार है । बिना स्टार्च एवं शर्करा वाली तथा कम कैलोरी और अधिक प्रोटीन होने के कारण खुंभी मधुमेह मरीजों के लिये आदर्श आहार है ।

अधिक पोटेशियम, सोडियम अनुपात, कम कैलोरी और कम वसा (कोलेस्ट्रॉल अनुपस्थिति, अधिक लिनोलिक अम्ल) होने के कारण मोटापा, उच्च रक्तचाप एवं हृदय रोगियों के लिए आहार परामर्शदाता द्वारा खुंभी अनुशंसित है । खुंभी क्षारीय राख और अधिक रेशे के कारण अति अम्लीयता व अजीर्ण रोगियों के लिए सबसे उपयुक्त आहार है ।

अधिक पोटेशियम, सोडियम अनुपात, कम कैलोरी और कम वसा (कोलेस्ट्रॉल अनुपस्थिति, अधिक लिनोलिक अम्ल) होने के कारण मोटापा, उच्च रक्तचाप एवं हृदय रोगियों के लिए आहार परामर्शदाता द्वारा खुंभी अनुशसित है । खुंभी क्षारीय राख और अधिक रेशे के कारण अति अम्लीयता व अजीर्ण रोगियों के लिए सबसे उपयुक्त आहार है ।

एगेरिकस बाइस्पोरस लेनटाइन्स ड़डोड्‌स और प्लूरोटस स्पीशीज आदि खाद्य खुंभीयों में रेटीन की मात्रा बहुत अधिक पायी जाती है जो कि कुछ परिस्थितियों में विभिन्न ट्‌यूमर के प्रति विरोधी प्रभाव दर्शाते हैं । टोक्यों के नेशनल कैंसर संस्थान के शोध में यह पाया कि ऑरीकुलेरिया, ऑरीकुला, फ्लेमूलिना वेलूटाइप, लेनटाइनस इडोमस, फोलियोटा नेमिको, प्लूरोटस ऑस्ट्रियेटस, पी. स्पीशीज और ट्राइकोलोमा मिटसुटेक के जलीय सार का इंट्रापेरीटोनियल इंजेक्शन देने से ट्यूमर की वृद्धि में 43.92 प्रतिशत की कमी पायी गयी ।

आजकल मैटाके खुंभी (ग्रिफोला फ़्रोन्डोसा) के उपयोग से ट्यूमर (86 प्रतिशत) व एच.आई.वी विषाणु में कमी पायी गयी साथ ही साथ खून की शर्करा, रक्तचाप और कब्ज में भी कमी पायी ।

कुछ खुंभी के सत इन्टरफेरीन बनने को प्रेरित करते हैं जो कि कुछ विषाणु जनित बीमारियों में प्रतिरक्षा साधन का काम करता है और यह हाइपो कोलेस्ट्रॉल क्रिया दर्शाता है या कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करने की क्षमता रखता है ।

खुंभी विभिन्न रूपों जैसे गोलियां, केप्सूल तथा पाउडर के रूप में उपयोग आती है । कोरियोलस वर्सीकलर से पी.एस.के. नामक कैंसर रोधी दवा बनायी जाती है, जिसका जापान में प्रतिवर्ष 398 लाख डालर का विक्रय है ।

यह जापान में कैंसर की बिकने वाली दवाओं का 25.5 प्रतिशत है । इसी तरह अनेक औषधीय गुणों की उपस्थिति के कारण ग्रिफोला, लेन्टीन्यूला, हिप्सीजाइगस खुंभी का उत्पादन बढ गया है और इनका प्रयोग चीन, कोरिया व जापान में दवाइयों व टॉनिक दोनों के रूपों में हो रहा है ।

अन्य औषधीयुक्त गुणों वाले अनेकों खुंभीयां जिनका उपयोग दवाई बनाने में हो रहा है, गेनोडरमा ल्यूसडिय (रिशी खुंभी), लेन्टाइन्स इडोड्‌स (शिटाके खुंभी), ग्रिफोला फ़्रोन्डोसा (मेटाके खुंभी), कोरियोलस वर्सीकलर, हेरिसिकम इरीनेसियस, ट्रिमेला फ्यूजीफार्मिस व प्लूरोटस आस्ट्रिएटस है ।

चीन में गेनोडरमा ल्युसिडम सबसे उपयोगी औषधीय खुंभी है जो कि स्वास्थ को बनाये रखने एवं अनेक रोगों को नियंत्रित करने में सहायक है । इस खुंभी में अनेकों प्रकार के औषधीय तत्व जैसे पॉलीसेकेरॉइड, ट्राइटरपीन्स, लींग जी-8, एडिनोसिन, कार्बनिक जरमेनियम, पॉली ग्लाइकन्स, अम्ल ग्लूकन्स, प्रोटीन बाइंड हेट्रोग्लूकन्स, इरेविनिन. बेसीलोग्लूकन्स और पेप्टीडोग्कन्स बहुत महत्वपूर्ण हैं ।

खुंभी में इन तत्वों के कारण यह शरीर में उत्पन्न विभिन्न रोगों के रोगाणुओं से लडने में सहायता करता है । इसके कारण ये रोगाणु निष्क्रिय हो जाते हैं और यह इनको विकसित नहीं होने देता । अतः जापान में इस खुंभी को दीर्घजीवी खुंभी और कोरिया में लंबी अमरता की खुंभी कहा जाता है ।

सन 1992 में अमरिका के लोनेस्टार उत्पादक एवं उसकी विक्रय इकाई आर्गेनोटेक ने 15000 पौंड रिशी खुंभी उगायी और उसकी गोलियां बनाकर मुख्यतः जापान में बेची ।

जापान के मोरी अनुसंधान संस्थान के डॉ. एम. नन्बा एवं सहयोगी का नवीन कार्य यह दर्शाता है शिटाके एवं रिशि खुंभी की तुलना में मैटाके में कैंसर प्रतिरोधी प्रभाव बहुत अधिक होता है ।

काकरेन (1978) एवं चेंग और माइल्स (1989) ने खुंभी की प्रतिजैविक गतिविधियों (प्रतिविषाणुक, प्रतिजीवाणुक, प्रति कवक) प्रति ट्‌यूमर और हाइपोलिपिडिमिक प्रभावों के साहित्य का पुनरावलोकन किया परंतु वर्तमान में इसके सबसे महत्वपूर्ण और प्रमाणित औषधीय गुणों जैसे प्रति ट्‌यूमर, हाइपाकोलेस्टेरालेमिक, हाइपोलिपिडेमिक, प्रति अति तनाव और हाइपोग्लाइसीमिक प्रभाव ने वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित किया है ।

कुछ अन्य खुंभीयों जैसे ले. इडोड्‌स में प्रमाणित हाइपोलिपिडिमिक और हाइपोकोलेस्ट्रॉलेमिक प्रभावों को दर्ज किया है जो कि मनुष्यों एवं जानवरों में प्लाज्मा कोलेस्ट्रॉल स्तर घटाता है ।

यह प्रभाव कोलेस्ट्रॉल उपापचय और कोलेस्ट्रॉल उत्सर्जन के बढने के कारण हैं । प्लूरोट्‌स, सेजोर काजू का जलीय सार तत्व काम न करने वाले रोगियों में लाभकारी प्रभाव दर्शाता है । आरिकुलेरिया पॉली ट्राइका में प्रति प्लेटलेट पुंजन गतिविधियों पायी गयी ।

खुंभी न्यूट्रीस्यूटिकल्स:

खुंभी से बनने वाले औषधीय पदार्थों के लिए चेंग और बेसवेल (1996) ने खुंभी न्यूट्रीस्यूटिकल्स शब्द पहली बार उपयोग में लाया । न्यूट्रीस्यूटिकल्स ऐसे प्रकार्यात्मक समृद्ध बनाये या परिवर्तित खाद्य है जिसे साधारण भोजन की तरह खाते हैं । स्वास्थ्य संबंधी लाभ देते हैं ।

न्यूट्रीस्यूटिकल्स ऐसे शोधित/अर्द्धशोधित सार है जिसे खाद्य संपूरक के रूप में केपस्यूल या गोलियों के रूप में खाया जाता है जिसमें चिकित्सीय अनुप्रयोग क्षमता होती है और यह रोग प्रतिरोधकता बढाती है जिसके कारण रोग की अवस्था में कमी आती है ।

खुंभी की दवाईयाँ (Medicine Made from Mushroom):

आस्ट्रेलिया की एक कम्पनी अंतर्राष्ट्रीय ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड ने गेनोडर्मा खुंभी से कौनकार्ड, सुंचिहा और केनार्ड दवा बनाई । इन दवाओं में उपस्थित पॉलीसेकेरॉइड्, जरमेनियम, ट्राइटरपीन्स, एडिनोसिन एवं खनिज प्रतिरोधक क्षमता बढाते हैं तथा शरीर को तनाव रहित रखते हैं ।

इसके 1 या 3 केप्सुल दिन में दो बार लेने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है तथा 3 केप्सुल 3 बार लेने से बीमारियों के नियंत्रण में सहायता मिलती है । चेंग (1994) के अनुसार प्रतिदिन 0.5 से 1.0 ग्राम लेने से शरीर स्वस्थ रहता है और 5-10 ग्राम प्रतिदिन लेने से कैंसर एवं एड्‌स जैसी बिमारियाँ नियंत्रित होती है । हृदय रोगियों के लिए 500 मिली. ग्राम का 1 केप्सुल दिन में 2 बार 5 दिनों तक लेने से बीमारी नियंत्रित होती है ।

कैंसर के लिए 6 केप्सुल दिन में 3 बार लेने की सिफारिश की जाती है । मधुमेह रोगियों के लिए 3-4 केप्सुल दिन में 3 बार, गठिया के लिए 3 केप्सुल 4 बार, माइग्रेन व सिरदर्द के लिए 3 केप्सुल 3 बार दिन में लेने की सिफारिश कि जाती है ।

इसी प्रकार मैटाके प्रोडक्ट, न्यूजर्सी, अमेरिका द्वारा मैटाके खुंभी का द्रवीय पाउडर बनाया जाता है । इसी खुंभी में बीटा 1-6 ग्लूकेन ज्यादा रहता है जिसके ये रिशि व शिटाके खुंभी की तुलना में शरीर में अधिक प्रतिरोधी क्षमता उत्पन्न करता है ।

यह 500 मि.ग्राम की गोलियों में उपलब्ध है । इसकी 5-6 बूंद दिन में 3 बार, 1 किलो वजन वाले शरीर के लिए 0.5-1 मि.ग्रा या 11-12 बूंद दिन में 3 बार रोगियों को दी जाती है ।


3. खुंभी की पहचान (Identification of Mushroom):

खुंभी को टोडस्टूल, पफबाल्स, क्षत्रक भूमि आदि नामों से भी जाना जाता है । परंतु यह सभी नाम भ्रांतिकारक है । खुंभी कुछ कवकों की खाद्य, बीजाणु बनाने वाली रचनाएँ है । इसके विपरीत न खाए जाने वाली विषैली खुंभी टोडस्टूल कहलाती है । खुंभी परपोषित जीव है ।

हरे पौधों की तरह ये अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते । ये हरे पौधों द्वारा निर्मित भोज्य पदार्थों से अपना भोजन लेते हैं । प्रकृति में खुंभी ऐसे स्थानों पर पायी जाती है जहाँ सड़े-गले कार्बनिक पदार्थ रहते हैं ।

अतः ये किसी भी जगह जैसे रेत के टीले, बगीचा, खुले खेतों, दलदली जगहों, संग्रहित भूसे के टीले के ऊपर, खाद के ढेर के ऊपर (वाल्वेरियेला स्पी.) कोनीफेरस एवं पतझडी वनों में और जीवित या मृत लकडी के ऊपर पाये जाते हैं ।

जंगली खुंभीयों की वास्तविक पहचान के लिए खुंभी की आकारिकी एवं किस रूप में रहती है, जानना आवश्यक है । किसी खुंभी की पहचानने के लिए यह जरूरी है कि उसके फलनकाय को अत्यंत ध्यानपूर्वक देखा जायें ।

संरक्षित या सूखा खुंभी के बजाय ताजे फलनकाय को पहचानना ज्यादा आसान है । इसके लिए भिन्न जातियों के चित्रों वाली पुस्तक सबसे ज्यादा आवश्यक है । संदर्भित पुस्तिका में एक कुंजी दी जाती है । जिससे खुंभियों की पहचान सरल हो जाती है । जिस खुंभी की पहचान करनी है उसके विशिष्ट गुण जानना आवश्यक है ।

ये विशिष्ट गुण निम्न है:

1. टोपी और डंठल का आकार, रंग ओर स्थिरता ।

2. डंठल से गिल के जोड़ का तरीका ।

3. समूह में बीजाणु का रंग ।

4. रासायनिक परीक्षण और प्रतिक्रिया ।

बीजाणुओं का वास्तविक रंग ज्ञात करने के लिए बीजाणु छाप बनायी जाती है । खुंभी की जाति की पहचान गिल के मुख्य डंठल से जोड के प्रकार को सावधानीपूर्वक देखकर की जानी चाहिए । जोड़ का प्रकार देखने के लिए खुंभी की टोपी को मध्यम से लंबाई में काटना चाहिए । जिससे गिल का डंठल से जोड आसानी से देखा जा सके ।

खुंभी का वास्तविक वास स्थान भी देखना चाहिए । यह देखना आवश्यक है कि खुंभी सीधे जमीन पर, सडी हुई लकडी पर, जिंदा पौधे के तने या खाद पर उग रही है । खुंभी पौधे की किस जाति पर उगती हुई पायी गयी है ।

इससे भी अनभिज्ञ नहीं रहना चाहिए या जहाँ से खुंभी प्राप्त की गई है, वहाँ किस प्रकार की घास या काई है, उसका भी अध्ययन करना चाहिए । एक भी ऐसा संदर्भ ग्रंथ नहीं हैं जिमसें सभी खुंभीयों का उल्लेख या व्याख्या की गई हो ।

खाद्य खुंभी की पहचान के समय अनचाहे अनुभव से बचने के लिए विशेषज्ञ का सुझाव जरूरी है । कई जंगली प्रजातियाँ जहरीली होती हैं । इन्हें खाने से पेट सबंधी (उल्टी), आंत (दस्त), रूधिरलयी और पेशी विकार संबंधी रोग हो जाते हैं । विषैला तत्व एल्केलॉयड प्रकृति का रहता है ।


4. जहरीली खुंभी (Poisonous Mushroom):

यद्यपि खुंभी स्वादिष्ट होती है फिर भी कुछ खुंभीयों के बहुत जहरीली होने के कारण लोग इसमें रूचि नहीं लेते क्योंकि इसके कारण मृत्यु तक हो जाती है । संसार की विभिन्न भागों में पायी जाने वाली कुछ जातियों में रिवाज के तौर पर इसे खाना अपवित्र माना जाता है ।

साधारत: भारत में दक्षिण के ब्राह्मण एवं मुस्लिम भी इसी वर्ग से संबंध रखते हैं । ऐसा कोई साधारण नियम या परीक्षण नहीं है जिनके आधार पर खुंभी के खाद्य या जहरीली होने के बारे में निर्णय लिया जा सके ।

साधारणतः किसी प्रजाति की खुंभी की खाद्य या आखाद्य होने की पहचान का निर्णय उस प्रजाति की वास्तविक पहचान के द्वारा ही संभव है । इस तरह की पहचान के लिए संबंधित साहित्य का अध्ययन, विशेषत: चित्रों या विषय के विशेषज्ञ द्वारा ही संभव है ।

जाति के स्तर पर खुंभी की पहचान अधूरी है, क्योंकि एक जाति के अंदर पायी जाने वाली कुछ प्रजातियाँ खाद्य योग्य है, जबकि कुछ बहुत जहरीली हैं जैसे लेपियोटा । जहरीली खुंभीयां वाइयोटोरिन नामक एक विषैला पदार्थ उत्पन्न करती है । जिसे खाने से आदमी मर जाता है ।

खुंभी का विषैला होना माइसीलिसमस कहलाता है । इन खुंभीयों में एक प्राणघातक पदार्थ होता है जो लिवर के ऊतकों को नष्ट करता है और स्नायुतंत्र को उत्तेजित करता है ।

अमेनिटा की कई प्रजातियों जैसे ए. फेलॉंइडस, ए. विरोसा, ए. वरना और ए. मस्केरिया बहुत जहरीली होते है परंतु खाने के 8-24 घण्टे के बाद विशिष्ट लक्षण उत्पन्न होते है । ए. फेलॉइड्‌स में विषैला पदार्थ X और B अमेनिटिस और फेलॉइडिन होते हैं जो कि सल्फर युक्त जटिल चक्रीय पॉलीपेप्टॉइड होते हैं । यह उबालने और पकाने पर भी नष्ट नहीं होता है । कुछ कम जहरीली खुंभी के खाने के 30-60 मिनट के बाद जी मिचलाता है या पेट खराब हो जाता है । उल्टी के द्वारा खून के बहाव में विष को जाने से रोका जा सकता है ।

हेल्यूसिनोजिनिक खुंभी भी जहरीली होती है । ये ऐसे विषैले पदार्थ उत्पन्न करती है जो कि स्नायु तंत्र को प्रभावित करती है । इस प्रकार के विषैले लक्षण दृष्टि, असामान्य चेतना, दृष्टि दोष आदि है और अधिक मात्रा में खाने पर प्राणघातक होता है । एट्रोपिन, थायोक्टिक अम्ल और डेक्सट्रोज ऐसे एन्टीजन है जो कि लिवर और किडनी को अपूरणीय क्षति पहुँचाने से रोकती है ।

खुंभी के विषैलेपन से बचने के लिए निम्न सावधानियाँ अपनानी चाहिए:

i. प्रकृति में विषैला खुंभी जहाँ निकलती है वहीं नष्ट हो जाती है । इनको कीडे, चिटियाँ, गिलहरी, खरगोश आदि नहीं खाते ।

ii. आकर्षक और सुगंधित खुंभी नहीं खानी चाहिए । अमेनिटा, मस्केरिया खुंभी बहुत ही सुंदर होती है पर अत्यधिक विषैली भी ।

iii. जंगली बटन खुंभी को एकत्रित करने से बचे क्योंकि इस अवस्था में यह संभव नहीं होता कि इसकी जाति की पहचान कर लें ।

iv. ज्यादा पकी, कीडों द्वारा ग्रसित या झुलसी हुई खुंभी को पकाकर नहीं खायें ।

v. जब तक आप पूर्णतः आश्वस्त न हो बिना पकायी खुंभी को न खायें ।

vi. उस खुंभी को जो काटने पर दूधिया रस उत्पन्न करती है, न खायें ।

vii. खुंभी की एक जाति को पहली बार खाते समय कम मात्रा में खाये, भले ही वह खाने वाली खुंभी हो ।

viii. खाने वाली खुंभी को खाने की अपेक्षा विषैली खुंभी को न खाना ज्यादा अच्छा है ।

ix. अगर शक हो तो खुंभी फेंक दें ।


5. खाद्य खुंभियों का वर्गिकरण (Classification of Consumable Mushroom):

प्रायः बरसात के मौसम में जून से सितम्बर के मध्य खुंभियाँ निकलती हैं । कुछ खुंभियां जैसे मोर्चीला प्रजातियां एवं राइजोपोगान प्रजातियाँ ठंड के समय बर्फ के पिघलने पर निकलती है ।

प्रकृति में खुंभी का विकास इपिजियस (धरती के ऊपर) होता है जिसमें

बीजाणु हवा द्वारा वितरित होते हैं । एगेरिकस प्रजाति, प्लूरोटस प्रजाति, वाल्वेरियेला प्रजाति, पेजाइजा प्रजाति, मॉरेल्स और मोर्चीला प्रजाति आदि इपिजियस कवक के उदाहरण है ।

कुछ जातियाँ पूरी तरह होइपोजियन (धरती के नीचे) रहती है जो कि जमीन के नीचे ही विकसित होती है और अंदर ही रहती है । ऐसे फलनकाय बंद रहते है और इनके बीजाणु अंदर बंद ही रहते हैं, जब तक कुछ जानवर ट्रफल को खाने के लिए खोदकर नहीं निकालते । ये जानवर खाते समय एस्कोबीजाणु को बिखेर देते हैं । सभी मासल खाद्य खुंभीयां फाइलम एस्कोमाइकोटा और बेसिडियोमाइकोटा के अन्तर्गत आती है ।

a. फाइलम एस्टोमाइकोटा:

फाइलम एस्कोमाइकोटा का मुख्य विशिष्ट गुण थैले के समान एस्कस का बनना है जिसमें एस्को बीजाणु (लैंगिक बीजाणु) बनते हैं । एस्कोमाइकोटा की खाद्य कवक क्लास डिस्कोमाइसिटीज के अन्तर्गत आती हैं । एस्कस कप के समान खुले एस्कोकॉर्प में बनते हैं जिसे एपोथियम कहते हैं । इसमें एसाई हाईमीनियम में बनते हैं ।

गण पेजाइलीज में मोर्चीला प्रजाति, ट्यूबर प्रजाति बनी प्रजाति एवं टरफेजिया प्रजाति आती है, जहाँ एसाई अग्रस्थ छिद्र या टोपी और ढक्कन द्वारा खुलता है । जबकि दूसरी डिस्कोमाइसिटीज में हाइमीनियम भूमिगत फलन रचनाओं में बंद रहता है । इस वर्ग में ट्‌यूबर प्रजाति आती है ।

b. फाइलम बेसीडियोमाइकोटा:

खाद्य कवकों की अधिकतर जातियाँ इसी वर्ग में आती हैं । इसमें बेसिडियम के के ऊपर बाह्य रूप से बेसिडियो बीजाणु लगते हैं एवं अनेकों प्रकार के बेसीडियोकॉर्प बनते हैं ।

बेसीडियोमाइकोटा का प्रतिनिधित्व खुंभी एवं पफ बाल्स करते हैं जो कि वर्ग गेस्ट्रोमाइसिटीज एवं हाइमीनोमाइसिटीज में आते हैं । गेस्ट्रोमाइसिटीज में पूर्ण परिभाषित हाइमीनियम मे बेसीडिया बनते हैं जो कि बद रहता है और बीजाणु के पूर्ण विकसित होने के बाद टूटते है । गेस्ट्रोमाइसीटीज के कुछ जातियों में बीजाणु बेसीडियोकार्प के अंदर बंद रहते है और ये बीजाणु बेसीडियोकार्प के टूटने या नष्ट होने के बाद ही स्वतंत्र होते हैं ।

इस वर्ग के खाद्य सदस्य बोविस्टा, प्ल्मबीया, केल्वेरिया, सायेथीफार्मिस, के. यूट्रीफार्मिस, डिक्टियोफोरा, डुप्लीकेटा, हेरिसियम हेरीनेसियास, लाइकोपरडान इकाइनेटम, एल. इरीसीटोरम, एल. मॉली, मिलेनोगेस्टर, बेरीगेटम, एम. एम्बीगस, एल. ड्यूरीमम, पिसोलिथस एरिहिजस पोडोक्सिस पिस्टीलेरिस, फ़ेलोरिना इनक्वीनन्स, पी. स्ट्रोबिलिना, राइजोपोगान ल्यूटियोलस, आर. रूबिसेन्स आदि । हाइमीनोमाईसिटीज में बेसीडिया पूर्ण विकसित हाइमीनियम में बनते हैं जो कि बेसीडियोबीजाणु के पूर्ण विकसित होने के पहले ही खुल जाते हैं ।

गण ट्रिमीलेलीज एवं ऑरीकुलेरियेलीज के अन्तर्गत आने वाली खाद्य खुंभियों में बेसीडियोकार्प जिलेटिनयुक्त, और मोमयुक्त रहते हैं और मेटाबेसीडियम पूर्ण या अपूर्ण रूप से प्राथमिक पट द्वारा बंटा रहता है ।

इन दो जातियों की अनेकों प्रजातिया खाद्य योग्य हैं जैसे ऑरीकुलेरिया ऑरीकुलर, ए. पोलीट्राइका, ट्रिमेला फ्यूजीफार्मिस, ट्री. मिसेन्टिका आदि ।

गण एफाइलोपोरलीज नली के समान हाइमीनोफोर पर बीजाणु उत्पन्न करते हैं ।

पॉलीपोराइड कवक की आकारिकी अनेकों प्रकार की है । फलनकाय एक वर्षीय या बहुवर्षीय, गुदीले, कोरियेसिस, कवक के समान या काष्ठीय, छिद्र वाले या लेमीलेट हाइमीनोफोर वाले होते हैं । खाद्य प्रजाति हेरीसियम इरीनेसीयम इसी गण में आते हैं ।

गण एगेरीकेलीज के बेसीडियोकार्प गूदेदार या आंशिक गूदेदार, चमडे के समान. झिल्लीदार या भंगुर होते हैं । बेसीडिया 2, 4 या 8 बीजाणु और एक कोशिका वाले होते हैं ।

विकसित बीजाणु बल के साथ स्ट्रिगमेटा से अलग होते हैं । इस गण में 17 फेमीलीज आती हैं जिनमें से केवल रूसुलेसी, ट्राइकोलोमेटेसी, वोलीटेसी, एमेनीटेसी, एगेरिकेसी, कोप्रॉइनेसी, एन्टोलोमेटेसी, प्लूटेसी, कार्टीनेरियेसी, स्ट्रोफेरियेसी में खाद्य कवक आती है ।


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