सिंचाई प्रणाली भारत में अपनाई गई | Read this article in Hindi to learn about the irrigation systems adopted in India.

फसलों को कृत्रिम ढंग से पानी पहुंचाने को सिंचाई कहते हैं । भारत की अधिकतर कृषि भूमि बादलों पर निर्भर है । लगभग तिहाई कृषि भूमि को सिंचाई आवश्यकता होती है । सिंचाई की सहायता भारत के कुछ भागों के किसान एक वर्ष में दो या तीन फसल लेने में सफल होते हैं । भारत की सिंचाई संभावना 102 मिलियन हेक्टेयर है । भारत में प्राचीनकाल से ही खेती की जा रही है । सिंचाई का प्रभावशालीपन मिट्‌टी तथा ढलान पर निर्भर करता है ।

भारत के विभिन्न भागों में सिंचाई के प्रमुख निम्न साधन हैं:

(i) नहरें,

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(ii) नलकूप तथा कुएँ,

(iii) पोखर तथा झील तथा

(iv) अन्य साधन ।

सिंचाई के उपरोक्त साधनों के अतिरिक्त सिंचाई के अन्य साधन भी हैं- जिनमें टपकन सिंचाई, कुल, ढेंकली, बोका इत्यादि प्रमुख है । इस प्रकार के साधनों से थोड़े क्षेत्रफल की सिंचाई की जा सकती है । प्रत्येक विधि के अपने गुण तथा अवगुण है ।

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टपकन सिंचाई में जल का अनुकूलतम सदुपयोग होता है । इसमें बूँद-बूँद करके जल, पौधों को मिलता है । फले के बगीचों में यह विधि अधिक कारगर एवं सफल सिद्ध हो रही है । केला, अंगूर, पपीते, संतरे, नींबू तथा गन्ने की फसलों को इस प्रकार की सिंचाई से विशेष लाभ पहुँचता है और उनके उत्पादन में भारी वृद्धि होती है ।

भारत के सिंचित क्षेत्रफल का लगभग 29% नहरों द्वारा तथा 62% नलकूपों के द्वारा सींचा जाता है, जबकि लगभग 4% पोखर-तालाबों की भागीदारी है । बढती हुई जनसंख्या की खाद्य तथा अन्य आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए कृषि की सघनता को बढाना जरूरी है, जो सिंचाई के क्षेत्रफल को बढाने से संभव हो सकता है । इस ओर भी अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है ।

1. नहरी सिंचाई (Canal Irrigation):

नहरी सिंचाई के लाभ (Merits of Canal Irrigation):

भारत में वर्षा का वितरण बहुत असमान है । लगभग 80 प्रतिशत वर्षा दक्षिण-पश्चिमी मानसून से होती है । प्राचीनकाल से ही भारत में नहरों के द्वारा सिंचाई की जाती रही है, परंतु स्वतंत्रता के पश्चात् प्रथम पंचवर्षीय योजना से ही सिंचाई पर बल दिया जाता रहा है । हरित क्रांति (1964-65) से पहले नहरें सिंचाई का प्रधान साधन थी । नहरों की सिंचाई, समतल मैदानों में अधिक पाई जाती हैं । उत्तरी भारत के मैदान तथा तटीय क्षेत्रों में नहरों के जाल बिछे हुए हैं ।

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भारत की मुख्य नहरों में अपर गंगा नहर, लोवर गंगा नहर, शारदा नहर, पूर्वी यमुना नहर पश्चिमी यमुना नहर, आगरा नहर, बेतवा नहर, अपर बारी दोआब नहर, सरहिंद नहर, भाखड़ा नहर, बिष्ट-दोआब नहर, कृष्णा डेल्टा नहर, सोन नहर, कोसी नहर, गंडक नहर, मयुराक्षी नहर, मिदनापुर नहर, चंबल नहर, मैटूर नहर तथा इंद्र नहर सम्मिलित हैं ।

नहरों द्वारा सिंचाई के मुख्य लाभ निम्न प्रकार हैं:

i. नहरों में पानी बारहमासी रहता है इसलिए सिंचाई का एक विश्वसनीय साधन है । फसलों को आवश्यकतानुसार साल भर सींचा जा सकता है ।

ii. नहरों के जल में बहुत-से अवसाद मिले होते हैं जिससे सिंचित खेतों की उर्वरकता निरंतर बढ़ती रहती है ।

iii. नहरी सिंचाई तुलनात्मक रूप से सस्ती है ।

iv. फसलों की सघनता बढती है किसान संपन्न होते हैं ।

नहरी सिंचाई के अवगुण (Demerits of Canal Irrigation):

i. नहरें खोदने में भारी धन की आवश्यकता होती है ।

ii. नहरें खोदने में लंबा समय लगता है ।

iii. नहरों से पानी रिसाव से नहर के दोनों ओर की भूमि जलमग्न हो जाती है ।

iv. जलमग्न भूमि में भारी संख्या में मच्छर उत्पन्न होते हैं जिनसे मलेरिया, डेंगू तथा चिकनगुनिया बुखार की बीमारी एवं महामारी फैलती रहती है ।

v. नहरों के जल का प्रायः दुरुपयोग होता रहता है ।

vi. नहरों की सिंचाई केवल मैदानी भागों तक ही सीमित रहती है ।

2. नलकूप सिंचाई (Tube Well Irrigation):

नलकूप तथा कुओं के द्वारा सिंचाई (Merits of Well and Tube Well Irrigation):

भूमिगत जल का उपयोग फसलों को सींचने के लिए पुराने समय से की जाती रही है ।

नलकूप सिंचाई के प्रमुख लाभ को संक्षिप्त रूप से निम्न में दिया गया है:

i. नलकूप सिंचाई का एक स्वतंत्र साधन है ।

ii. सूखा पड़ने पर नलकूप को दो-चार दिन में तैयार किया जा सकता है । इसमें अधिक धन की आवश्यकता नहीं होती ।

iii. नलकूप की देखभाल, किसान बेहतर तरीके से कर सकता है ।

iv. नलकूप के जल का दुरुपयोग नहीं होता ।

नलकूप सिंचाई के अवगुण (Demerits of Tube Well Irrigation):

i. नलकूप से थोड़े क्षेत्रफल की ही सिंचाई की जा सकती है ।

ii. मानसून के विफल होने तथा सूखा पड़ने पर भूमिगत जल-स्तर नीचा हो जाता है जिससे नलकूप को फिर से नीचा करना पड़ता है ।

iii. नलकूप केवल ऐसे क्षेत्रों में लगाए जा सकते हैं जहाँ भूमिगत जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो ।

iv. यह सिंचाई का महँगा साधन है जिसमें बिजली खर्च करने के आधार पर किसान को भुगतान करना पडता है ।

v. छोटे और सीमांत किसान अपना नलकूप लगाने में असमर्थ रहते हैं । उनको बड़े किसानों के नलकूपों पर सिंचाई के निर्भर रहना पडता है, जो प्रायः उनका शोषण करते हैं ।

3. पोखर, तालाब एवं झीलों द्वारा सिंचाई (Tank Irrigation):

देश के कुछ भागों पोखर, तालाबों तथा झीलों के जल से भी सिंचाई की जाती है । पोखर तथा झील विभिन्न आकार की होती है । भारत में पाँच लाख से अधिक तालाब तथा झील हैं जिनके जल का उपयोग सिंचाई के काम में लिया जाता है ।

पोखर तथा तालाबों से सिंचाई मुख्यतः आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बुंदेलखंड (उत्तर प्रदेश), बघेलखंड (मध्य प्रदेश) तथा महाराष्ट्र के कुछ भागो में की जाती है ।

पोखर तथा तालाब एवं झील प्राकृतिक ढंग से बने होते है उनके खोदने पर कुछ खर्चा करना नहीं पड़ता पोखर एवं झीलों में मछली पालन भी किया जा सकता है । इस प्रकार की सिंचाई के दाम नहीं देने पड़ते ।

पोखर तथा तालाब की सिंचाई से बहुत थोड़े क्षेत्रफल की फसलों को ही सींचा जा सकता । वर्षा न होने पर पोखर इत्यादि का जल सुख जाता है और सूखे से फसलों को बचाया नहीं जा सकता । तालाबों में खरपतवार की समस्या निरंतर बढती जा रही है ।

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