भारत की नदी ड्रेनेज प्रणाली | River Drainage System of India.

भारत नदियों का देश है । भारत के आर्थिक विकास में नदियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । नदियाँ यहाँ आदि-काल से ही मानव के जीविकोपार्जन का साधन रही हैं । यहाँ 4,000 से भी अधिक छोटी-बड़ी नदियाँ मिलती हैं, जिन्हें 23 वृहद् एवं 200 लघु स्तरीय नदी बेसिनों में विभाजित किया जा सकता है ।

उत्पत्ति के आधार पर भारत की नदियों का वर्गीकरण मुख्य रूप से दो वर्गों में किया गया है- हिमालय की नदियाँ तथा प्रायद्वीपीय नदियाँ । इन दोनों नदी-तंत्रों के बीच अपवाह लक्षणों तथा जलीय विशेषताओं में महत्वपूर्ण अंतर पाए जाते हैं ।

हिमालय की नदियाँ (Himalayan Rivers):

हिमालय की उत्पत्ति के पूर्व तिब्बत के मानसरोवर झील के पास से निकलने वाली सिंधु, सतलज एवं ब्रह्मपुत्र नदी टेथिस भूसन्नति में गिरती थीं । हिमालय की नदियों के बेसिन बहुत बड़े हैं एवं उनके जलग्रहण क्षेत्र सैकड़ों-हजारों वर्ग किमी. पर विस्तृत हैं । उदाहरण के लिए, गंगा नदी का जलग्रहण क्षेत्र लगभग 9 लाख वर्ग किमी. है ।

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चूँकि हिमालय की नदियाँ ‘पूर्ववर्ती नदियों’ के उदाहरण हैं एवं हिमालय के उत्थान के क्रम में निरन्तर अपरदन कार्य करती है । अतः इनके द्वारा गॉर्ज महाखड्‌डों या गॉर्ज का निर्माण हुआ है ।

ये नदियाँ अभी भी युवा अवस्था में हैं और निरन्तर अपरदन कार्य में लगी हुई हैं । हिमालय की नदियाँ अपेक्षाकृत बड़ी हैं, जैसे- सिन्धु, ब्रह्मपु, गंगा, सतलज, यमुना आदि । हिमालय की नदियों में वर्षभर जल रहता है ।

चूँकि वर्षा जल के अतिरिक्त हिम के पिघलने से भी इन्हें जल की आपूर्ति होती है, अतः ये सदानीरा हैं । मैदानी क्षेत्र वर्षभर नौकायन के लिए उपयुक्त होते हैं । ये नदियाँ पर्याप्त मात्रा में उपजाऊ जलोढ़ अवसादों का निक्षेपण करती हैं । मैदानी भागों में ढाल की न्यूनता के कारण ये विसर्पों का निर्माण करती हैं एवं प्रायः अपना मार्ग भी बदल लेती हैं । इनमें सिंचाई की ज्यादा संभावनाएँ होती हैं ।

हिमालय की नदियों को तीन प्रमुख नदी-तंत्रों में विभाजित सा गया है । सिन्धु नदी-तंत्र, गंगा नदी-तंत्र तथा ब्रह्मपुत्र नदी-तंत्र । भूगर्भ वैज्ञानिकों का मानना है कि इन तीनों नदी-तंत्रों का विकास एक अन्यन्त विशाल नदी से हुआ है, जिसे ‘शिवालिक अथवा हिन्द-ब्रह्म नदी’ भी कहा जाता है ।

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यह नदी असम से पंजाब तक बहती थी । प्लीस्टोसीन काल में जब ‘पोटवार पठार का उत्थान’ हुआ था तो यह नदी छिन्न-भिन्न हो गई एवं वर्तमान तीनों नदी-तंत्रों में बँट गई । यद्यपि इस सम्बंध में मत-भिन्नता है ।

सिन्धु नदी-तंत्र (Indus River System):

इसके अन्तर्गत सिन्धु एवं उसकी सहायक नदियाँ जैसे झेलम, चेनाब, रावी, व्यास, सतलज (पंचनद) आदि सम्मिलित हैं । सिन्धु तिब्बत के मानसरोवर झील के निकट ‘चेमायुंगडुंग’ ग्लेशियर से निकलती है । कैलाश चोटी के दूसरी ओर से सिंगी खंबाव तथा दक्षिण की ओर से गरतंग चू नदियाँ आकर इसमें मिलती हैं ।

यह ब्रह्मपुत्र नदी से ठीक उल्टी ओर बहती है । यह 2,880 किमी. लम्बी है एवं संसार की बड़ी नदियों में से एक है । भारत में इसकी लंबाई 1,114 किमी. है तथा इसका संग्रहण क्षेत्र 11.65 लाख वर्ग किमी. (भारत में 3.21 लाख वर्ग किमी.) है ।

भारत-पाकिस्तान के बीच 1960 ई० में हुए ‘सिन्धु जल समझौते’ के अन्तर्गत भारत सिन्धु व उसकी सहायक नदियों में झेलम और चेनाब के केवल 20% जल का ही उपयोग कर सकता है, जबकि सतलज, रावी के 80% जल के उपयोग का अधिकार इस समझौते में भारत को दिया गया है ।

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सिन्धु नदी की बायीं ओर से मिलने वाली नदियों में पंजाब की पाँच नदियाँ सतल, व्यास, रावी, चेनाब और झेलम (पंचनद) सबसे प्रमुख हैं । ये पाँचों नदियाँ संयुक्त रूप से सिन्धु नदी की मुख्य धारा से ‘मीठनकोट’ के पास मिलती हैं । जास्कर, स्यांग, शिगार व गिलगिट बायीं ओर से मिलनेवाली अन्य प्रमुख नदियाँ हैं ।

दायीं ओर से मिलनेवाली नदियों में श्योक, काबुल, कुर्रम, गोमल आदि प्रमुख हैं । काबुल व उसकी सहायक नदियाँ सिन्धु में अटक के पास मिलती हैं । सिंधु नदी अटक के पास मैदानी भाग में प्रवेश करती है । दक्षिण-पश्चिम की ओर बहते हुए करांची के पूर्व में अरब सागर में गिरती है ।

1. झेलम (विस्तार):

यह पीरपंजाल पर्वत की पदस्थली में स्थित वेरीनाग झरने से निकलकर 212 किमी. उत्तर-पश्चिम दिशा में बहती हुई वूलर झील में मिलती है । श्रीनगर इसी नदी के किनारे बसा है । यह पुनः आगे बढ़कर मुजफ्फर्राबाद से मंगला तक भारत-पाक सीमा के लगभग समानांतर बहती है ।

कश्मीर की घाटी में अनंतनाग से बारामूला तक झेलम नदी नौकागम्य है । इससे कश्मीर में आवागमन एवं व्यापार में बड़ी सहायता मिलती है । श्रीनगर में इस पर ‘शिकारा’ या ‘बजरे’ अधिक चलाए जाते हैं तथा नावों में फल, सब्जियों और फूलों की खेती की जाती है ।

झेलम और रावी पाकिस्तान में झंग के निकट चिनाब नदी से मिल जाती है । इसकी सहायक नदी किशनगंगा है, जिसे पाकिस्तान में नीलम कहा जाता है । झेलम की संयुक्त धारा को पाकिस्तान में नीलम-झेलम के नाम से भी जाना जाता है ।

2. चिनाब (अस्किनी):

यह सिंधु की विशालतम सहायक नदी है, जो हिमाचल प्रदेश में चन्द्रभागा कहलाती है । यह नदी लाहुल में बड़ालाचा दर्रे के दोनों ओर से चन्द्र और भागा नामक दो नदियों के रूप में निकलती है । ये दोनों नदियाँ मिलकर चेनाब कहलाती है ।

ये नदियाँ हिमाच्छादित पर्वतों से निकलती है । अतः हिम पिघलकर इनमें निरंतर आती रहती हैं । भारत में इसकी लम्बाई 180 किमी. है तथा इसके अपवाह क्षेत्र का क्षेत्रफल 26,755 वर्ग किमी. है ।

3. रावी (परुष्णी व इरावती):

यह नदी पंजाब की पंच नदियों में से सबसे छोटी नदी है । इसका उद्‌गम स्थल कांगड़ा जिले में रोहतांग दर्रे के समीप है । इसी के निकट व्यासकुंड से व्यास नदी भी निकलती है । इसकी घाटी को ‘कुल्लू-घाटी’ कहते हैं । पाकिस्तान में सराय सिंधु के निकट चेनाब से मिलती है । इसकी लंबाई 725 किमी. है तथा इसके अपवाह तंत्र का क्षेत्रफल 25,957 वर्ग किमी. है ।

4. व्यास (विपाशा):

इसका उद्‌गम कुल्लू पहाड़ी में रोहतांग दर्रे का दक्षिणी किनारे से होता है । यह सतलज की सहायक नदी है । कपूरथला के निकट ‘हरिके’ नामक स्थान पर सिंधु से मिल जाती है । यह 470 किमी. लम्बी है तथा इसका अपवाह क्षेत्र 25,900 वर्ग किमी. में फैला है ।

5. सतलज (शतुद्री):

यह मानसरोवर झील के समीप स्थित राकस (राक्षस) ताल से निकलती है तथा शिपकीला दर्रे के पास भारत में प्रवेश करती है । स्पीति नदी इसकी मुख्य सहायक नदी है । यह एक मात्र पूर्ववर्ती नदी है, जो हिमालय के तीनों भागों को काटती है । भाखड़ा-नांगल बाँध सतलज नदी पर ही बनाया गया है । भारत-तिब्बत मार्ग सतलज घाटी से होकर गुजरता है ।

गंगा नदी-तंत्र (The Ganga River System):

वास्तव में, गंगा नदी भागीरथी और अलकनन्दा नदियों का सम्मिलित रूप है, जो ‘देवप्रयाग’ के निकट मिलकर गंगा कहलाती है । गंगा नदी का मुख्य स्रोत उत्तराखंड में स्थित ‘गंगोत्री’ हिमनंद है । यह हरिद्वार के निकट मैदानी भाग में प्रवेश करती है । इसमें दाहिनी ओर से यमुना नदी प्रयाग (इलाहाबाद) के निकट मिलती है । दक्षिणी पठार से आकर गंगा में मिलने वाली नदी सोन है ।

आगे दामोदर नदी छोटानागपुर पठार का जल लाती हुई इसमें आकर मिलती हैं । पुनपुन तथा टोंस जैसी छोटी नदियाँ भी दाहिनी ओर से इसमें मिलती हैं । ‘गंगा के बाएँ तट की मुख्य सहायक नदियाँ पश्चिम से पूर्व’ इस प्रकार हैं- रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी, बूढ़ी गंडक, बागमती तथा महानंदा । गंगा नदी की सबसे अधिक लम्बाई उत्तर प्रदेश में है ।

फरक्का के बाद गंगा नदी दक्षिण-पूर्व की ओर बहते हुए बांग्लादेश में प्रवेश करती है और पद्‌मा कहलाती है । यहाँ से गंगा कई धाराओं में बँटकर डेल्टाई मैदान में दक्षिण की ओर बहती हुई समुद्र में मिलती है । इस हिस्से में यह भागीरथी-हुगली नाम से जानी जाती है ।

पावना से पूर्व, गोलुंड़ों के पास ब्रह्मपुत्र (जो यहाँ जमुना के नाम से पहचानी जाती है) पद्‌मा से मिलती है तथा उनकी संयुक्त धारा पद्‌मा के नाम से आगे बढ़ती है । चाँदपुर के पास मेघना इससे आकर मिलती है और तत्पश्चात् यह मेघना नाम से ही अनेक जल-वितरिकाओं में बँटकर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है ।

‘गंगा-ब्रह्मपुत्र’ का डेल्टा विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा माना जाता है जिसका विस्तार हुगली और मेघना नदियों के बीच है । डेल्टा का समुद्री भाग घने वनों से ढका है । सुन्दरी वृक्ष की अधिकता से यह ‘सुन्दर वन’ कहलाता है । हुगली को विश्व की सबसे अधिक ‘विश्वासघाती नदी’ (Treacherous River) कहते हैं । इसी तट पर कोलकाता बंदरगाह है, जिसे ‘पूर्व का लंदन’ कहते हैं ।

1. रामगंगा नदी:

यह नदी गैरसेण के निकट गढ़वाल की पहाड़ियों से निकलने वाली अपेक्षाकृत छोटी नदी है । इस नदी का उद्‌गम एक हिमनद है इसलिए इस नदी में वर्षा ऋतु एवं शुष्क ऋतु में पानी की मात्रा का बहुत अधिक अंतर मिलता है ।

शिवालिक को पार करने के बाद यह अपना मार्ग दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर बनाती है और उत्तर प्रदेश में नजीबाबाद के निकट मैदान में प्रवेश करती है । अंत में कन्नौज के निकट यह गंगा नदी में मिल जाती है । यह नदी 600 किमी. लंबी है तथा इसका अपवाह क्षेत्र 32,800 वर्ग किमी. है ।

2. शारदा (सरयू) नदी:

यह नदी नेपाल हिमालय में मिलाम हिमानी से निकलती है । प्रारंभ में इसे गौरी गंगा कहते हैं । भारत-नेपाल सीमा पर इसे कोली नदी कहते हैं । उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में जब यह घाघरा से मिलती है, तो इसे चौक कहते हैं ।

3. गंडक नदी:

गंडक, धौलागिरि व एवरेस्ट पर्वत के मध्य नेपाल हिमालय से निकलती है । यह नेपाल के मध्य भाग का जल बहाकर लाती है । यह बिहार के चंपारन जिले में गंगा के मैदान में प्रवेश करती है तथा पटना के निकट सोनपुर में गंगा से मिल जाती है ।

यह नदी अपने मार्ग परिवर्तन के लिए प्रसिद्ध है । इसकी कुल लंबाई 425 किमी. लंबी है तथा इसका अपवाह क्षेत्र 45,800 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला है, जिसमें भारत में केवल 9,540 वर्ग किमी. ही है ।

4. कोसी नदी:

यह गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी में से है । कोसी एक पूर्ववर्ती नदी है । इसकी मुख्य धारा अरूण, एवरेस्ट पर्वत के उत्तर में तिब्बत से निकलती है । नेपाल में मध्य हिमालय को पार करते ही पश्चिम की ओर से इसमें सुनकोसी तथा पूर्व की ओर से तमूर कोसी आकर मिल जाती है ।

अरूण से मिलने के बाद यह सुप्त कोसी बन जाती है । यह नदी 730 किमी. लंबी है तथा इसका अपवाह क्षेत्र 46,900 वर्ग किमी. है, इसमें से 21,500 वर्ग किमी. भारत में है । प्रायः मार्ग बदलने की प्रवृत्ति के कारण इसे ‘बिहार का शोक’ कहा जाता है ।

5. महानंदा नदी:

यह नदी दार्जिलिंग की पहाड़ियों से निकलती है तथा गंगा में मिल जाती है । भारत में यह गंगा के बाएँ तट की अंतिम सहायक नदी है । इससे ब्रह्मदेव के निकट प्रसिद्ध नहर निकाली गई है ।

6. केन नदी:

इसका पौराणिक नाम कर्णवती है । मध्य प्रदेश क समना जिले में स्थित कैमूर की पहाड़ियों से निकलती है । बाँदा के निकट यह यमुना से मिल जाती है । सोनार व बीवर इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं । इस नदी के तट पर चित्रकूट स्थित है ।

7. सोन नदी:

यह नदी अमरकंटक की पहाड़ियों में नर्मदा के उद्‌गम स्थान के निकट से निकलती है । गंगा के दाहिने तट पर मिलने वाली एक प्रमुख सहायक नदी

है । इसके रेत में सोने के कण पाए जाते हैं इसलिए इसे स्वर्ण नदी भी कहा जाता है ।

यह मध्य प्रदेश स्थित अमरकंटक की पहाड़ियों से निकलती है तथा पटना से पश्चिम गंगा में मिल जाती है । यह 780 किमी. लंबी है इसके अपवाह तंत्र का क्षेत्रफल 17,900 वर्ग किमी. है । इसकी मुख्य सहायक नदी कनहर, रिंहद व उत्तरी कोयल हैं ।

8. दामोदर नदी:

दामोदर नदी पश्चिम बंगाल तथा झारखंड में बहने वाली एक नदी है । दामोदर नदी झारखण्ड के छोटा नागपुर क्षेत्र से निकलकर पश्चिमी बंगाल में पहुँचती है । हुगली नदी के समुद्र में गिरने के पूर्व यह उससे मिलती है । इसकी कुल लंबाई 368 मील है । इस नदी का बहाव क्षेत्र 2,500 वर्ग मील है ।

पहले नदी में एकाएक बाढ़ आ जाती थी जिसके कारण इसे ‘बंगाल का अभिशाप’ कहा जाता था । भारत के प्रमुख कोयला एवं अभ्रक क्षेत्र इसी घाटी में स्थित हैं । कुनर तथा बराकर इसकी सहायक नदियाँ हैं ।

9. यमुना नदी:

यह गंगा नदी-तंत्र की सबसे प्रमुख सहायक नदी है, जो यमुनोत्री हिमनद (टिहरी-गढ़वाल जिला) से निकलती है । हिमालय पर्वत में उत्तर की ओर इसमें टोंस नदी आकर मिलती है इसके बाद यह लघु हिमालय की पहाड़ियों को काटकर आगे बढ़ती है, जहाँ पश्चिम की ओर से इसमें गिरि और पूर्व की ओर आसन नदियाँ आकर मिल जाती हैं ।

इसमें चंबल, सिन्ध, बेतवा तथा केन नदियाँ आकर मिलती हैं । ये सभी मालवा के पठार से बहती हैं । यमुना की लंबाई 1,370 किमी. है । इसके अपवाह क्षेत्र का क्षेत्रफल 3,59,000 वर्ग किमी. है ।

10. चंबल नदी:

मध्य प्रदेश के मालवा पठार में स्थित महू के निकट से निकलती है । यह पहले उत्तर दिशा में राजस्थान के कोटा तक एक गॉर्ज से होकर बहती है फिर बूंदी, सवाईमाधोपुर और धौलपुर से होती हुई अंत में यमुना से मिल जाती है यह अपनी उत्खात भूमि के लिए प्रसिद्ध है ।

उत्खात भूमि को यहाँ बीहड़ कहा जाता है । इसकी सम्पूर्ण लंबाई 965 किमी. है । राजस्थान की यह एकमात्र सदानीरा नदी है । इसका पौराणिक नाम चर्मावती (चर्मण्वती) था । बनास, मेज, पार्वती, काली-सिंध व क्षिप्रा इसकी सहायक नदियाँ हैं ।

ब्रह्मपुत्र नदी-तंत्र (Brahmaputra River System):

ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र (2,900 किमी.) विश्व की सबसे लम्बी नदियों में से एक है तथा जल विसर्जन के कुल आयतन की दृष्टि से यह संसार की चार बड़ी नदियों में शामिल है । इसका अपवाह तंत्र तीन देशों- तिब्बत (चीन), भारत व बांग्लादेश में विस्तृत है ।

इसका अपवाह क्षेत्र 5,80,080 वर्ग किमी. में फैला हुआ है, जिसमें से भारत में यह 1,346 किमी. बहती है तथा इसका अपवाह क्षेत्र 3,40,000 वर्ग किमी. है ।

यह कैलाश श्रेणी के दक्षिण मानसरोवर झील के निकट महान हिमनद (आंग्सी ग्लेशियर) से निकलती है । इस नदी का बेसिन मानसरोवर झील से मरियन ला दर्रे द्वारा पृथक होता है । ब्रह्मपुत्र का अधिकतर मार्ग तिब्बत में है जहाँ इसका स्थानीय नाम सांगपो (यारलुंग) है, जिसका अर्थ होता है-शुद्ध करनेवाला ।

यहाँ समुद्रतल से 4,000 मी. की ऊँचाई पर भी नावें चलती हैं, जो विश्व के सबसे आश्चर्यजनक नौकागम्य जलमार्गों में से एक है । नामचा बरवा पर्वत के पूर्वी किनारे के सहारे यह एक तीखा मोड़ लेते हुए दक्षिण-पश्चिम दिशा में मुड़ जाती है और 5,500 मी. गहरा कैनियन (Canyon) बनाती है । अरूणाचल प्रदेश में यह दिहांग कहलाती है ।

पासीघाट के निकट (सादिया के पास) दो सहायक नदियाँ दिबांग और लोहित के मिलने के बाद इसका नाम ब्रह्मपुत्र पड़ा है । इसके बाद यह असम घाटी में प्रवेश करती है जहाँ कई सहायक नदियाँ ब्रह्मपुत्र से मिलती हैं ।

इनमें सुबानसिरी, जिया भरेली, धनश्री, पुथीमारी, पगलादिया और मानस प्रमुख हैं । असोम घाटी में ब्रह्मपुत्र नदी गुंफित जलमार्ग बनाती है जिसमें कुछ बड़े नदी द्वीप भी मिलते हैं ।

इनमें विश्व का सबसे बड़ा नदीय द्वीप माजूली शामिल है यह द्वीप संकटग्रस्त स्थिति में है तथा इसे संरक्षित करने व विश्व विरासत में शामिल करने के प्रयास किए जा रहे हैं । यह धुबंरी शहर तक पश्चिम की ओर बहती है और तत्पश्चात गारो पहाड़ी से मुड़कर दक्षिण की ओर मुड़कर गोलपारा के पास बांग्लादेश में प्रवेश करती है । बांग्लादेश में इसका नाम जमुना है ।

यहाँ ब्रह्मपुत्र में तिस्ता आदि नदियाँ मिलकर अंत में पद्‌मा (गंगा) में मिल जाती हैं । मेघना की मुख्यधारा बराक नदी का उद्‌भव मणिपुर की पहाड़ियों से होता है ।

इसकी मुख्य सहायक नदियाँ माकू, तरंग, तुईवई, जिरी, सोनाई, रुकनी, काटाखल, धलेश्वरी, लांगचिन्नी, मदुवा और जटिंगा हैं । बराक नदी बांग्लादेश में तब तक बहती रहती है, जब तक भैरव बाजार के निकट गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी में इसका विलय नहीं हो जाता ।

प्रायद्वीपीय नदियाँ (Peninsular Rivers of India):

प्रायद्वीपीय नदियाँ चौड़ी, लगभग संतुलित एवं उथली घाटियों से होकर बहती हैं । बड़े मैदानों की अपेक्षा यहाँ की नदियाँ छोटी और कम संख्या में हैं, क्योंकि यहाँ वर्षा कम होती है । इसलिए इन नदियों में ग्रीष्म ऋतु में जल की मात्रा कम रहती है । ये नदियाँ हिमालय की तुलना में अधिक पुरानी हैं एवं प्रायः प्रौढ़ावस्था को प्राप्त कर चुकी हैं ।

इसीलिए इन नदियों की ढाल प्रवणता (Slope-Gradiant) अत्यन्त मंद है । सिर्फ वही हिस्से इसके अपवाद हैं, जहाँ नया भ्रंशन हुआ है । प्रायद्वीपीय क्षेत्र की अधिकांश नदियाँ पूर्व की ओर बहती हैं, क्योंकि इनका मुख्य जल विभाजक (Water Divide) पश्चिमी घाट है ।

सिर्फ नर्मदा व ताप्ती ही सामान्य बहाव की दिशा के विपरीत पूर्व से पश्चिम की ओर उन भ्रंश-द्रोणियों में होकर बहती हैं, जो उनके द्वारा निर्मित नहीं हैं । इसलिए इन दोनों नदियों की घाटी में जलोढ़ एवं डेल्टाई निक्षेपों की कमी मिलती है । केवल वर्षा-जल पर निर्भर होने के कारण प्रायद्वीपीय नदियाँ मौसमी हैं ।

गर्मियों के लंबे शुष्क ऋतु में ये प्रायः सूख जाती हैं । इसीलिए इन नदियों का सिंचाई स्रोत के रूप में महत्व कम है । ठोस पठारी भाग में प्रवाहित होने के कारण इन नदियों का मार्ग सीधा तथा सामान्यतः रैखिक होता है । चूँकि जलोढ़ निक्षेपों की इनमें सामान्यतः कमी पाई जाती है, अतः विसर्पण (Meandering) की क्रिया इनमें प्रभावी नहीं है ।

ये नदियाँ दो भागों में विभक्त होती हैं:

1. बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियाँ ।

2. अरब सागर में गिरने वाली नदियाँ ।

1. बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियाँ (Rivers Draining into Bay of Bengal):

i. स्वर्णरेखा नदी:

यह नदी राँची के दक्षिण-पश्चिम पठार से निकलती है । पूर्वी दिशा में बहते हुए जमशेदपुर होकर गुजरती है । बालासोर के निकट बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है ।

ii. ब्राह्मणी नदी:

ब्राह्मणी नदी छोटानागपुर पठार पर राँची के दक्षिण-पश्चिम से निकलती है । यह नदी कोयल व शंख नदियों से मिलकर बनी है, जो 420 किमी लम्बी है ।

iii. महानदी:

यह नदी कोयल व संख नदियों के संगम से मिलकर छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में सिंहावा से निकलकर पूर्व व दक्षिण-पूर्व की ओर बहती हुई कटक के निकट बड़ा डेल्टा बनाती है । यह बंगाल की खाड़ी में गिरती है । शिवनाथ, हंसदेव, मंड व डूब नदियाँ उत्तर की ओर से इसमें आकर मिलती हैं, जबकि जोंक व तेल दक्षिण की ओर से आकर मिलती है ।

महानदी का जल उपजाऊ निचली घाटी में सिंचाई के कार्य में आता है । इसका अपवाह क्षेत्र 132 हजार वर्ग किमी. है । हीराकुण्ड, टिकरपारा बाँध इस नदी पर प्रमुख बहुउद्देशीय परियोजनाएँ हैं ।

iv. गोदावरी नदी:

प्रायद्वीप भारत की यह सबसे लम्बी नदी है । यह 1,465 किमी. लम्बी है । इसका जल प्रवाह क्षेत्र 3,13,812 वर्ग किमी. है । इसका 44% भाग महाराष्ट्र मेंल, 23% आन्ध्र प्रदेश में तथा 20% मध्य प्रदेश में पड़ता है । पश्चिमी घाट की नासिक की पहाड़ियों में त्र्यंबक इसका उद्‌गम स्थान है ।

उत्तर में इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ प्रणाहिता, पूर्णा, पेनगंगा, वर्धा, वेनगंगा, इन्द्रावती और मंजिरा हैं । दक्षिण में मंजिरा नदी प्रमुख है, जो हैदराबाद के गोदावरी नदी में मिलती है । गोदावरी के निचले भाग में बाढ़ आती रहती हैं । इस नदी पर अनेक जल-विद्युत योजनाओं का निर्माण किया गया है ।

v. कृष्णा नदी:

यह प्रायद्वीपीय भारत की दूसरी सबसे बड़ी नदी है । महाबलेश्वर के निकट से निकलकर दक्षिण-पूर्व दिशा में 1,400 किमी. की लम्बाई में बहती है । इसका अपवाह क्षेत्र 2,59,000 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला है, जिसका 27% महाराष्ट्र, 44% कर्नाटक तथा 29% आन्ध्र प्रदेश में पड़ता है ।

कोयना, यरला, वर्णा, पंचगंगा, दूधगंगा, घाटप्रभा, मालप्रभा, भीमा, तुंगभद्रा और मूसी इसकी प्रमुख नदियाँ हैं । तुंगभद्रा की सहायक नदी हगरी है । हगरी को ‘वेदावती’ नाम से भी जाना जाता है । जल-विद्युत योजनाओं की दृष्टि से इस नदी का महत्व है ।

vi. कावेरी नदी:

यह कर्नाटक के कुर्ग जिले में ब्रह्मगिरि के निकट से निकलती है । इसके कुल अपवाह क्षेत्र का 3% केरल में, 41% कर्नाटक में तथा 56% तमिलनाडु में पड़ता है । इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ उत्तर में हेमावती, लोकापावनी, शिमसा व अर्कवती, दक्षिण में लक्ष्मणतीर्थ, कबीनी, सुवर्णवती, भवानी और अमरावती है । यह शिवसमुद्रम नामक प्रसिद्ध जलप्रपात बनाती है ।

यह दो धाराओं उत्तर में कोलेरु व दक्षिण में कावेरी में बँट जाती है । कावेरी नदी को ‘दक्षिण की गंगा’ की उपमा प्रदान की गई है । इसके प्रवाह क्षेत्र को ‘राइस बाउल ऑफ साउथ इंडिया’ कहा जाता है । प्रायद्वीपीय नदियों में कावेरी ही एक ऐसी नदी है, जिसमें वर्षभर जल प्रवाह बना रहता है ।

मैसूर से 20 किमी. दूर इस नदी पर कृष्णासागर जलाशय बनाया गया है । यह नदी श्रीरंगपट्‌टनम व शिवसमुद्रम द्वीप से होकर बहती है । इसी नदी पर होगेनकल जलप्रपात अवस्थित है ।

vii. पेन्नार नदी:

यह कर्नाटक के कोलार जिले के नंदीदुर्ग पहाड़ी से निकलती है तथा इसका अपवाह क्षेत्र कृष्णा तथा कावेरी के मध्य 55,213 वर्ग किमी. है । इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ जयंमगली, कुन्देरु, सागीलेरु, चित्रावली, पापाशनी व चेरु है ।

viii. पलार नदी:

इसका उद्‌गम कर्नाटक राज्य के कोलार जिला से होता है । यह आंध्र प्रदेश के चित्तूर व तमिलनाडु से अर्काट जिले से प्रवाहित होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है ।

ix. वैगई नदी:

यह नदी तमिलनाडु राज्य के मदुरै जिले के वरशानद पहाड़ी से निकलकर मदुरै, रामनाथपुरम आदि जिलों से प्रवाहित होते हुए मंडपम के पास पाक की खाड़ी में गिरती है । मदुरै इसी नदी के तट पर स्थित है ।

x. ताम्रपणी नदी:

यह तमिलनाडु राज्य के तिरुनेलवली जनपद की प्रमुख नदी है, जिसका उद्‌गम दक्षिणी सह्याद्रि के अगस्त्यमलाई पहाड़ी के ढालों से होता है । यह मन्नार की खाड़ी में गिरती है ।

उपर्युक्त नदियों के अलावा चंबल, बेतवा, सिंध, काली-सिंध, केन, सोन, दामोदर इत्यादि नदियाँ भी प्रायद्वीपीय उत्पत्ति रखती हैं, परंतु ये गंगा नदी तंत्र का हिस्सा बनकर बंगाल की खाड़ी में अपना जल गिराती हैं ।

2. अरब सागर में गिरने वाली नदियाँ (Rivers Draining into Arabian Sea):

i. नर्मदा नदी:

नर्मदा नदी का उद्‌गम मैकाल पर्वत की अमरकंटक चोटी से होता है । यह 1,312 किमी. लम्बी है । इसका अपवाह क्षेत्र 98,795 वर्ग किमी. है, जिसका 87% भाग मध्य प्रदेश में, 11.5% गुजरात में तथा 1.5% महाराष्ट्र में पड़ता है ।

अरब सागर में गिरने वाली प्रायद्वीपीय भारत की यह सबसे बड़ी नदी है । इसके उत्तर में विंध्याचल और दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत है । इनके बीच यह भ्रंश घाटी में बहती है ।

जबलपुर के नीचे भेड़ाघाट की संगमरमर की चट्‌टानों में एक भव्य कन्दरा और कपिलधारा (धुआँधार) प्रपात का निर्माण करती है, जहाँ 23 मीटर की ऊँचाई से जल गिरता है । नर्मदा का निचला भाग नाव चलाने योग्य है । यह भड़ौंच के निकट ज्वारनदमुख द्वारा खम्भात की खाड़ी में गिरती है । तवा, बरनेर, बैड़यार, दूधी, हिरन, बरना, कोनार, माचक आदि नर्मदा की सहायक नदियाँ हैं ।

ii. तापी (ताप्ती) नदी:

यह मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के मुल्लाई नामक स्थान के पास सतपुड़ा श्रेणी से निकलती है । यह 724 किमी. लम्बी है । इसके बेसिन का 79% भाग महाराष्ट्र में, 15% मध्य प्रदेश में तथा 6% गुजरात में पड़ता है । यह सतपुड़ा तथा अजंता पर्वतों के बीच भ्रंश घाटी में प्रवाहित होती है ।

इसकी प्रमुख सहायक पूरणा नदी है । यह नदी नर्मदा के समानांतर सतपुड़ा के दक्षिण से बहकर खम्भात की खाड़ी में गिरती है । इसके मुहाने पर सूरत नगर स्थित है । काकरापार तथा उकाई परियोजनाओं द्वारा इसके जल का उपयोग होता है ।

iii. साबरमती नदी:

यह 320 किमी. लम्बी है । राजस्थान में मेवाड़ पहाड़ियों से निकलकर खम्भात की खाड़ी में गिरती है । अहमदाबाद इस नदी के किनारे स्थित सबसे बड़ा नगर है । पश्चिम में प्रवाहित होने वाली नदियों में से तीसरी सबसे बड़ी नदी है ।

iv. माही नदी:

इसका उद्‌गम मध्य प्रदेश के धार जिले में विन्ध्याचल पर्वत से होता है । यह नदी 553 किमी. की दूरी तय करने के बाद खम्भात की खाड़ी मे जाकर मिलती है । इसका अपवाह क्षेत्र 34,842 वर्ग किमी. है, जो मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात राज्यों में फैला हुआ है । सोम व जाखम इसकी मुख्य सहायक नदियाँ हैं ।

v. लूनी नदी:

राजस्थान में अजमेर के दक्षिण-पश्चिम में अरावली श्रेणी के नाग पर्वत से निकलकर 320 किमी. प्रवाहित होने के बाद कच्छ रन के दलदल में विलुप्त हो जाती है । सरसुती, जवाई, सूखड़ी, लीलड़ी, मीठड़ी नदियाँ लूनी की सहायक नदियाँ हैं । इनमें सरसुती का उद्‌गम पुष्कर झील से होता है ।

vi. घग्घर नदी:

यह हिमालय पर्वत की शिवालिक पहाड़ियों से शिमला के पास से निकलती है । इसकी कुल लम्बाई 465 किमी. है । यह अम्बाला, पटियाला व हिसार जिलों से बहती हुई राजस्थान के गंगानगर जिले में प्रवेश करती है तथा अंततः हनुमानगढ़ के समीप भटनेर के मरुस्थल में विलीन हो जाती है ।