कीटनाशकों के खिलाफ कीटों का प्रतिरोध |  Read this article in Hindi to learn about the resistance of pests against insecticides.

देश में कृषि उत्पादन में वृद्धि होने के लिये अनेकों कारण जिम्मेदार है इन्हीं में से एक कीटनाशी रसायनों का समायोचित प्रयोग भी अत्यंत महत्वपूर्ण है । जैसे-जैसे कीटनाशी रसायनों के प्रयोग में वृद्धि की गयी वैसे-वैसे ही कीटों में कीटनाशी रसायनों के विषाक्त प्रभाव को सहन करने की क्षमता का विकास हुआ ।

इसी के साथ ऐसे नए कीटों की जातियों का प्रादुर्भाव हुआ जो प्रयोग किए जा रहे रसायन की मात्रा के प्रति अधिक सीमा तक प्रतिरोधी थीं । कीटों में कीटनाशी रसायन के प्रति प्रतिरोधक क्षमता को निम्न रूप में परिभाषित करा जा सकता है ।

”कीटों में इस प्रकार की क्षमता का विकास हो जाना जिसके कारण वह पूर्व में प्रयोग किए जाने वाले कीटनाशी रसायन एवं उसकी निश्चित मात्रा पर भी जीवित रह सकता है ।” प्रायः यह क्षमता मात्र कुछ कीटों में ही विकसित हो पाती है वही कीट उस रसायन के प्रति प्रतिरोधी होते हैं ।

प्रतिरोध क्षमता का वर्गीकरण (Classification of Pest Resistance):

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1. प्रतिरोधी क्षमता की उत्पत्ति के आधार पर:

(अ) अनुवांशिक प्रतिरोध (Genotypic Resistance):

कीटनाशी रसायन की मात्रा कई पीढ़ियों में वरण के फलस्वरूप बढ़ती है और यह अनुवांशिक प्रतिरोध होता है ।

(ब) ओज प्रतिरोध (Vigour or Phenotypic Resistance):

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कीटों में बड़े हुए ओज, सहिष्णुता, खाद्य पदार्थों की उपलब्धता, तापमान एवं आर्द्रता जैसे कारकों के फलस्वरूप कीटानाशी रसायन की मात्रा बढ़ जाती है इसे ओज प्रतिरोध कहते हैं ।

2. प्रतिरोध क्रियाविधि की सकल स्थिति के आधार पर:

(अ) बाह्य प्रतिरोधी क्षमता

(ब) अतः प्रतिरोधी क्षमता

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3. प्रतिरोध की क्रियाविधि की प्रकृति के आधार पर:

(अ) व्यवहारपरक प्रतिरोध

(ब) जीवरसायनिक प्रतिरोध

(स) जीव-भौतिक प्रतिरोध

(द) शरीर क्रियामक प्रतिरोध

कीट प्रतिरोध क्षमता से निपटने की रणनीति (Strategies to Deal with Pest Resistance Capacity):

1. कीटनाशी रसायनों का न्यायसंगत उपयोग (Judicious Use of Insecticide):

कीटनाशकों के अविवेकपूर्ण उपयोग से सदैव बचना चाहिये । यदि कीटनाशकों का उपयोग जरूरत के समय ही करा जाये तो इस प्रकार की समस्या उत्पन्न ही नहीं होगी । साथ ही साथ कीटों की संख्या की समय समय पर निगरानी करते रहना चाहिये यदि कीटों की संख्या आर्थिक देहली को पार करे तभी कीटनाशी रसायनों का उपयोग करना चाहिये एवं सदैव चुनिन्दा कीटनाशी रसायनों का प्रयोग करें व उसकी निर्धारित मात्रा ही काम में लें ।

2. कीटनाशकों की अदला-बदली (Alteration of Insecticide):

कीटों में प्रतिरोध क्षमता से निपटने के लिये लगातार काम में लाये जा रहे कीटनाशी के स्थान पर दूसरे कीटनाशी समूह के रसायन को काम में लेना चाहिये । नये विकसित कीटनाशकों का उपयोग करना भी लाभप्रद रहता है ।

3. योगवाही का उपयोग (Use of Synergist):

योगवाही किसी भी कीटनाशी की विषाक्तता को बढ़ा देता है तथा इसके द्वारा विषाक्तता को कम करने की कीटों की आंतरिक प्रकृति में भी कमी आती है । ये कई कीटनाशकों के साथ मिश्रण के रूप में काम में लाये जाते हैं इनका अनुपात 10:1 होता है ।

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