कीटनाशकों: अर्थ और वर्गीकरण | Read this article in Hindi to learn about:- 1. कीटनाशकों का अर्थ (Meaning of Insecticides) 2. कीटनाशकों के प्रारूप (Insecticidal Formulations) 3. वर्गीकरण (Classification).

कीटनाशकों का अर्थ (Meaning of Insecticides):

प्राचीन काल से कीटनाशी रसायनों के रूप में कुछ यौगिकों का प्रयोग होता रहा है । मूलरूप से कीटनाशी का तात्पर्य ऐसे रासायनिक यौगिकों से है जो अपनी क्रियाओं द्वारा कीटों के जीवन को कष्टमय बना देते है अथवा उनकी संततियों की वृद्धि में रूकावट डालते हैं या उन्हें नष्ट करते हैं ।

फसलों को हानि पहुँचाने वाले समस्त जीवों पर घातक प्रभाव डालने वाले रसायनों को पीड़कनाशी रसायन अथवा पेस्टीसाइड्‌स कहते हैं । हानिकारक जीवों को मारने के आधार पर इन्हें कई नामों से पुकारा जाता है, जैसे कीटनाशी, फफूंदनाशी, शाकनाशी, घोंघानाशी, अष्टपादनाशी, तंतुकृमिनाशी, अण्डनाशी इत्यादि ।

सन् 1939 तक प्रयोग किये जाने वाले कीटनाशी या तो अकार्बनिक प्रकृति के थे या फिर पौधों से प्राप्त हुए थे । लेकिन 1939 के बाद डी.डी.टी. ने चमत्कारिक परिणाम देने शुरू किये तो संश्लेषित कार्बनिक कीटनाशकी की बाद आ गयी । सन् 1941-43 में अंग्रेजी व फ्रांसीसी वैज्ञानिकों ने बी.एच.सी. का आविष्कार किया तो उसी समय जर्मन वैज्ञानिकों ने कार्बनिक फास्फेट कीटनाशकों का विकास किया ।

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आज बहुत से विभिन्न गुणों वाले रसायन विकसित हो चुके हैं और उनका कृषि में प्रयोग हेतु पंजीकरण भी हो चुका है । इस अवस्था में कीटनाशकों के विषय में विस्तृत जानकारी जरूरी है ।

कीटनाशकों के प्रारूप (Types of Insecticides):

कीटनाशक रसायनों के तीन रूप हैं:

1. शुद्ध रूप,

2. तकनीकी या व्यापारिक रूप, एवं

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3. फार्मुलेशन (नुस्खा) ।

1. शुद्ध रूप:

यह प्रयोगशाला में वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किया जाता है जो कि मुख्यतया विश्लेषण एवं विषय अध्ययन के काम आता है । यह 99 प्रतिशत शुद्ध होता है और इसकी कुछ ग्राम मात्रा ही विकसित हो जाती है ।

2. तकनीकी या व्यापारिक रूप:

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यह रूप 80 से 90 प्रतिशत तक शुम् होता है और व्यापारिक कम्पनियों द्वारा शुड रूप के प्रारूप को बडी मात्रा में बनाया जाता है । इसके बन जाने के बाद यह तीसरे रूप के लिये जाता है ।

3. फार्मूलेशन (नुस्खा):

यह प्रारूप तकनीकी रूप में विभिन्न प्रकार की मिलावट के उपरान्त तैयार होता है जो कि शुद्धता में काफी कम होता है । यह विभिन्न प्रायोगिक तरीकों जैसे धूल, दाने, पानी, विलयन, चूर्ण एवं तेल युक्त घुलनशील सान्द्रण के रूप में बाजार में उपलब्ध रहता है ।

कीटनाशकों का वर्गीकरण (Classification of Insecticides):

कीटनाशी रसायनों का वर्गीकरण विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है:

1. प्रवेश के आधार पर,

2. क्रिया के आधार पर, और

3. रासायनिक संगठन के आधार पर ।

1. प्रवेश के आधार पर:

कीटनाशक रसायन कीट के शरीर में कई स्थानों से प्रवेश कर सकते हैं, उसी आधार पर उनका वर्गीकरण किया जाता है ।

(अ) संस्पर्ण विष (Contact Poison):

ये रसायन छिड़काव, भुरकाव आदि से कीटों के सम्पर्क में आते हैं एवं इन्हें नष्ट करते हैं । ये कीटों के रास्ते में, पौधों पर, सीधे ही कीटों के शरीर में प्रवेश करते हैं ।

(ब) आमाशय बिष (Stomach Poison):

इस प्रकार के रसायन कीट के आमाशय के अन्दर जाकर ही अपना असर दिखाते हैं । यह मुख्यतया पत्ती काटने वाले कीटों के विरुद्ध कारगर होते हैं । इनका प्रयोग खाद्य विष/चुग्गा विष बनाने में भी किया जाता है ।

(स) सर्वांगी/दैहिक विष (Systemic Poison):

यह एक तरह का अमाशय विष है जो पौधों की जड़ों या पत्तियों में छिडकने के बाद पौधे के मुख्य रस धारा में अवशोषित कर लिये जाते हैं एवं वहाँ से पूरे पौधे में विषैली मात्रा में संवाहित हो जाते हैं । इस तरह के रसायनों का प्रयोग रस चूषक कीटों के विरुद्ध किया जाता है ।

(द) धूमक (Fumigant):

इस प्रकार के कीटनाशी कमरे के तापमान में गैस की अवस्था में बदल जाते हैं और कीट के श्वसन तन्त्र में प्रवेश कर उसे मार देते हैं । इनका प्रयोग मुख्यतः बन्द स्थानों पर किया जाता है ।

2. क्रिया के आधार पर:

कीटनाशकों का क्रिया के आधार पर वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जाता है:

(अ) भौतिक कीटनाशक (Physical Poison):

इस प्रकार के रसायन स्वयं विषैले नहीं होते हैं मगर यह रसायन कीटों के श्वसन छिद्रों में घुसकर उन्हें बंद कर देते हैं । जैसे- भारी खनिज तेल । साथ ही इस प्रकार के कुछ पदार्थ कीट की त्वचा को लड़कर नुकसान पहुँचाते हैं जिससे उनके शरीर में पानी की मात्रा कम हो जाती है जैसे सिलिका, एयरोजेल ।

(ब) जीवद्रव्य विष (Protoplasm Poison):

यह विष कीट के शरीर के जीवद्रव्य को एक जगह एकत्रित कर देते हैं या प्रोटीन की मात्रा कम अथवा विकृत हो जाती है । उदाहरण- भारी धातु, पारा, आर्सेनिक, फ्लोराइड्स आदि ।

 

(स) रासायनिक विष/श्वसन विष (Respiratory Poison):

यह दो तरह के होते हैं, उपापचय रोकने वाले एवं तंत्रिकातंत्र जहर ।

(द) आमाशय विष (Stomach Poison):

इस प्रकार के विष आँत की भीतरी त्वचा को नष्ट कर देते हैं जिससे कीटों में लकवा जैसी बीमारी हो जाती है ।

3. रसायनिक संगठन के आधार पर:

कीटनाशियों के उपयुक्त दोनों प्रकार के वर्गीकरण में एक मुख्य कमी यह है कि ये दोनों एक-दूसरे से मिलते हैं । जैसे कि आमाशय विष, संस्पर्शी विष भी हो सकता है । अथवा जीवद्रव्य विष, तंत्रिका विष के समान भी कार्य कर सकता है । इस प्रकार की कमी को दूर करने के लिये कीटनाशियों का रासायनिक संगठन के आधार पर वर्गीकरण किया गया है ।

कीटनाशी रसायन की प्रकृति के आधार पर कीटनाशकों को मुख्यतः निम्नलिखित दो भागों में विभक्त किया गया है:

(अ) अकार्बनिक रसायन, एवं

(ब) कार्बनिक रसायन ।

(अ) अकार्बनिक रसायन (Inorganic Chemicals):

इस प्रकार के कीटनाशक खनिज लवणों से बनते हैं और आर्सेनिक, सीसा, पारा एवं गंधक इत्यादि खनिज का मुख्यतः इस्तेमाल होता है । इन कीटनाशकों का आजकल प्रयोग नहीं किया जाता है । इसका कारण यह है कि ये स्तनधारियों के लिये अत्यन्त विषैले, इनके अवशेष लम्बे समय के लिये वातावरण में मौजूद रहते हैं एवं कार्बनिक रसायनों की अपेक्षा कीटों के लिये कम विषैले होते हैं ।

(ब) कार्बनिक रसायन (Organic Chemicals):

कार्बनिक कीटनाशक रसायनों को दो भागों में विभक्त करा जा सकता है- प्राकृतिक एवं संश्लेषित कीटनाशक । प्राकृतिक कीटनाशकों की श्रेणी में पेट्रोलियम, खनिज तेल से बने कीटनाशी व वानस्पतिक उत्पत्ति वाले कीटनाशी मुख्यतः पाये जाते हैं । संश्लेषित कीटनाशी रसायनों में ताँबा, हाइड्रोजन और एक या अधिक दूसरे तत्त्व जैसे क्लोरिन, फास्फोरस एवं नाइट्रोजन होते हैं ये मुख्यतः क्लोरीनयुक्त हाइड्रोकार्बन, कार्बनिक फास्फोरस, कार्बामेट रसायन होते हैं ।

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