कीटनाशकों का उपयोग कर कीटों को कैसे नियंत्रित करें? | Read this article in Hindi to learn about how to control pests using insecticides.

आज सम्पूर्ण विश्व रासायनिक कीटनाशकों के दुष्परिणामों से भली- भांति परिचित है अतः कीटनाशकों के कुछ ऐसे समूह भी उपलब्ध हैं जिनका प्रयोग कर रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग पूर्ण रूप से समाप्त किया जा सकता है अथवा उन्हें विकल्प के तौर पर काम में लाकर रासायनिक कीटनाशकों पर हमारी इस निर्भरता को कुछ हद तक कम किया जा सकता है ।

इस प्रकार के कुछ कीटनाशी निम्नलिखित है:

1. वानस्पतिक कीटनाशी,

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2. सेमीयोकेमीकल्स,

3. कीट वृद्धि नियंत्रक,

4. आकर्षक और

5. प्रतिकर्षक आदि ।

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इनके बारे में संक्षेप में जानकारी निम्नलिखित रूप से दी जा रही है:

1. वानस्पतिक कीटनाशक (Botanical Insecticides):

निकोटीन, पाइरिथ्रम, रोटेनोन, वानस्पतिकों तथा उनके व्यूत्यन्नों का अच्छा उदाहरण है । इनका उपयोग सम्पर्क कीटनाशियों के रूप में किया जाता है । इन कीटनाशियों में आजकल केवल पायरिथ्रम को ही घरेलू औद्योगिक एवं भंडारण के कीटों के नियंत्रण में काम में लिया जाता है ।

पायरिथ्रम को क्राइसेन्थेमम सिनेरेरीफोयिम पादप से प्राप्त किया जाता है । वर्तमान में नीम का उपयोग काफी मात्रा में किया जा रहा है । इसमें अजाडिरेक्टीन नामक सक्रिय तत्व पाया जाता है जो मुख्यतः बीजों से प्राप्त होता है । ये भरणनिरोधक, शारीरिक वृद्धि व विकास में बाधा पहुंचाने वाले होते हैं ।

नीम निम्नलिखित गुणों के कारण कीट नियंत्रण हेतु महत्वपूर्ण है:

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(क) ये अंडे, लार्वा व प्यूपा के परिवर्धन में व्यवधान उत्पन्न करता है ।

(ख) लार्वा व निम्फ के निर्मोचन में रुकावट उत्पन्न करता है ।

(ग) वयस्कों में बन्धीकरण करता है ।

(घ) ये प्रतिकर्षक का काम करता है ।

(च) मादा में अण्डनिक्षेपण में रुकावट उत्पन्न करता है ।

(छ) आंत की गतिविधियों में विघ्न उत्पन्न करता है ।

अब तक नीम तथा इसके उत्पाद 300 कीट जातियों के विरुद्ध प्रभावी पाये गये हैं । नीम के अतिरिक्त अन्य पादपों से भी कीटनाशी प्राप्त होते हैं ये निम्नलिखित हैं- महुआ (मधुका जाति), कंरज (पोंगेमिया ग्लेवरा), धतूरा (धतूरा जाति), एकोरस (एकोरस केलेमस), सीताफल (एनोना एस्क्वामोसा), कनेर (थिवेटीया जाति) आदि । इन पादपों ने भी अपने गुणों से प्रभावित कर कीट नियंत्रण हेतु काफी संभावनायें दिखायी हैं ।

2. सेमीयोकेमीक्ल्स (Semiochemical):

सेमीयोकेमीकल्स वे रसायन होते हैं जो कीटों के व्यवहार में परिवर्तन करते हैं । ये रसायन माइक्रोग्राम/नैनोग्राम मात्रा पर ही कीटों के व्यवहार को परिवर्तित कर देते हैं । इन रसायनों में फेरोमीन, हार्मोन, एलोमोन, कैरामोन आदि शामिल किये जाते हैं ।

फेरोमोन (Pheromone):

कीटों या अन्य प्राणियों द्वारा उत्पन्न एक रसायन विशेष जो उसी जाति के कीटों और प्राणियों के व्यवहार को प्रभावित करता है, फेरोमोन कहलाता है ।

फेरोमोन को उनकी क्रिया के अनुसार दो भागों में बाँटा गया है:

i.  मोचक फेरोमोन (Release Pheromone):

इस प्रकार के फेरोमोन कीट प्राण संवेदिका द्वारा प्राप्त करते हैं । इनके प्रभाव से कीटों का व्यवहार नियंत्रित होता है । इन्हें प्राप्त करने वाले कीटों के व्यवहार में तुरंत उत्क्रमणीय परिवर्तन उत्पन्न होना आवश्यक हो जाता है ।

ii. प्रारम्भिक फेरोमोन (Primer Pheromone):

ये फेरोमोन प्रारम्भिक प्रभाव उत्पन्न करते हैं । इस फेरोमीन की गन्ध को प्रभावित होने वाला कीट स्वाद तंत्रिका द्वारा ग्रहण करते हैं जिसके फलस्वरूप फेरोमोन प्राप्त करने वाले कीट में शारीरिक क्रियायें प्रारंभ हो जाती हैं । ये फेरोमोन सामाजिक कीटों यथा मधुमक्खियों, दीमक आदि में जाति निर्धारण तथा जनन को नियंत्रित करते हैं । इनके द्वारा उत्पन्न व्यावहारिक अनुक्रिया धीमी होती है ।

व्यवहार में परिवर्तन करने वाले फेरोमोन गन्ध के रूप में कीटों की तंत्रिका तन्त्र द्वारा प्राप्त होते हैं ये फेरामोन कई श्रेणियों में विभक्त करे गये हैं, इनमें सेक्स फेरोमीन का उपयोग सर्वाधिक रूप में होता है ।

iii. सेक्स फेरोमोन (Sex Pheromone):

ये फेरोमोन कीट जाति के एक लिंग द्वारा उत्सर्जित करा जाता है एवं इसके प्रभाव से उसी जाति के दूसरे लिंग में व्यवहारिक परिवर्तन उत्पन्न होते हैं जो संगम को सुगम बना देते हैं । ये मादा व नर सेक्स फेरोमीन की श्रेणियों में विभक्त किया गया है ।

सेक्स फेरोमोन का कीट नियंत्रण कार्यक्रम में उपयोग निम्नलिखित विधि से किया जाता है:

(क) सर्वेक्षण हेतु (Monitoring):

फेरोमोन के उपयोग से कीटों की उपस्थिति को ज्ञात करा जाता है इसे मानीटर की भांति प्रयोग में किया जाता है । सर्वेक्षण हेतु फेरोमोन ट्रेप का प्रयोग किया जाता है । इन ट्रेप में पकड़े गये कीटों की संख्या के आधार पर छिड़काव के समय का निर्धारण किया जा सकता है जिससे कीटनाशी रसायनों का सही व कम मात्रा में प्रभावी उपयोग हो सके ।

(ख) बड़े पैमाने पर पकड़ना (Mass Trapping):

फेरोमोन का उपयोग कीटों को बड़े पैमाने पर पकड़ने या फंसाने में किया जाता है । खेतों में ट्रेप लगाकर कीटों को आकर्षित कर उन्हें फंसा कर नष्ट कर देने से उनकी संख्या में कमी आ जाती है ।

 

(ग) संगम में रुकावट (Matting Disruption):

इस विधि में खेत में ट्रेप लगाकर नरों को आकर्षित कर उन्हें ट्रेप में फंसा लिया जाता है तथा इसके उपरान्त उन्हें नष्ट कर दिया जाता है जिससे क्षेत्र विशेष में नरों की संख्या में कमी आ जाती है फलस्वरूप मादा कीट संगम नहीं कर पाती हैं तथा वे अगर्भित अण्डे देती है जिससे सूँडियाँ नहीं निकलती हैं ।

कुल प्रमुख फेरोमोन:

गोसीप्लूर (पिंक बाल वार्म), बाम्बीकोल (रेशम कीट), डिस्पारलूर (जिप्सी माथ) इत्यादि ।

3. कीट वृद्धि नियंत्रक (Insect Growth Regulators):

कीटों में वृद्धि को नियंत्रित करने वाले रसायनों को, चाहे वे प्राकृतिक हो अथवा संश्लेषित कीट वृद्धि नियंत्रक कहा जाता है । ये तृतीय पीढ़ी के कीटनाशी के नाम से भी जाने जाते है । कीटों में वृद्धि और विकास तीन मुख्य हारमोनों द्वारा संचालित होते हैं ये तीन हारमोन मस्तिष्क हारमोन, किशोर हारमोन, और निर्मोचन हारमोन होते हैं ।

(i) मस्तिष्क हारमोन (Brain Hormone):

ये हारमोन तंत्रिकास्रावी कोशिकाओं से सावित होते है तथा कार्पोरा कार्डिएका द्वारा हीमोग्लीम्फ में निकाले जाते है । ये हारमोन प्रोथोरेसीक ग्रन्थयों को उत्तेजित करता है जिसके स्त्रवण से विकास प्रारंभ होता है ।

(ii) किशोर हारमोन (Juvenile Hormone):

यह हारमोन कार्पोरा एलेटा द्वारा स्रावित होता है तथा कायान्तरण में विघ्न उत्पन्न करता है और अण्डाशयों के विकास में शीघ्रता लाता है ।

(iii) निर्मोचन हारमोन (Moulting Hormone):

इसे एक्टाइसोन भी कहते हैं । ये मस्तिष्क हारमोन के प्रभाव द्वारा अग्र वक्षीय ग्रन्थियों द्वारा उत्पन्न होता है । ये कीटों में निर्मोचन को सुचारु बनाता है । कीटों के कायान्तरण में महत्वपूर्ण होता है । प्रायः कीटों के नियंत्रण हेतु काइटीन संश्लेषण निरोधक का उपयोग अधिक होता है ये कीटों के अध्यावरण में काइटीन संश्लेषण में बाधा उत्पन्न करता है । इन यौगिकों में डाइफ्लूबेनजुरोन, जिसे डिमलिन भी कहा जाता है, अत्यन्त महत्वपूर्ण कीट वृद्धि नियंत्रक है ।

इनका जब लारवा भरण करते हैं तो उनके निर्मोचन में विघ्न उत्पन्न होता है । इसके फलस्वरूप नवीन निरूपों में विकृत अध्यावरण बनता है जोकि आंतरिक दबावों को सहन करने में असक्षम होता है । यह पेशियों को पूर्ण आधार भी प्रदान नहीं कर पाता है ।

साथ ही प्रभावित लारवा अपने पुराने अध्यावरण का मोचन न कर पाने एवं नवीन अध्यावरण न बना पाने के कारण मर जाते हैं । ये रसायन अत्यधिक चयनात्मक होते हैं जिससे ये परभक्षी व परजीव्याभों के लिये सुरक्षित होते हैं ।

4. आकर्षक (Attractants):

ये वे रासायनिक पदार्थ हैं जो कीटों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं । उदाहरण- यूजीनाल ।

5. प्रतिकर्षक:

यह ऐसे पदार्थ हैं जिनकी दुर्गन्ध या दुस्वाद से कीट इनसे दूर चले जाते हैं ये दो प्रकार के होते हैं ।

(क) दुर्गन्ध युक्त:

ये अपनी दुर्गन्ध से कीटों को दूर भगाते हैं । उदाहरण – डाइमिथाइल थैलेट ईन्डोलेस पाइनटार तेल चीड़ का तेल आदि ।

(ख) दुस्वाद वाले:

ये ऐसे पदार्थ है जिनकी वजह से कीट दूर नहीं भागते हैं एवं भोजन पदार्थ पर ही रहते हैं परन्तु इनके प्रभाव से वे अपनी भोजन ढूँढने तथा स्वाद ग्रन्थियों की क्रियाशीलता को खो बैठते हैं फलस्वरूप वे भोजन पर रहकर भी उसे खा नहीं पाते व भूखे मर जाते हैं । उदाहरण – नीला थोथा, आदि ।

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