कीटनाशकों का वर्गीकरण | Classification of Insecticides in Hindi.

(1) प्रवेश विधि पर आधारित वर्गीकरण (Classification Based on Mode of Entry):

कीटों के शरीर एवं अंगों में कीट विषों या कीटनाशक पदार्थों के प्रविष्ट होने की विधि के अनुसार यह निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:

(a) आमाशयिक विष (Stomach Poison):

यह कीटनाशक आहार के साथ मिलाकर उपयोग किया जाता है जिसके अन्तग्रहण (Ingestion) करने पर कीट, पेस्ट की मृत्यु हो जाती है । यह पाचक तन्त्र के द्वार शोषित कर लिए जाते हैं, जो कि शोषण के पश्चात रक्त में पहुँचते हैं एवं रक्त के द्वारा शरीर के सभी अंगों में पहुँच जाते हैं ।

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आमाशयिक विष का उपयोग सामान्यतया उन कीट पेस्ट के लिए उपयोग किया जाता है जिनमें चबाने वाले (Chewing Type) मुख उपांग पाये जाते हैं । यह विष उन कीट पेस्ट के लिए भी उपयोग होता है जिनमें स्पन्जिंग प्रकार (Sponging Type), साइफन प्रकार (Siphon Type) एवं लैपिंग प्रकार (Lapping Type) के मुख उपांग होते है ।

इन विषों का उपयोग उच्च श्रेणी के प्राणियों के लिए भी किया जाता है । इस प्रकार के विष तब प्रभावी होते हैं जब कीट विष पका भोजन करता है, या विष में लिप्त/सनी टाँगें, श्रृंगिकाएँ (Antennaes), मुख से साफ करता है या आमाशयिक विषयुक्त पौधों के रस को चूसता है । उदाहरणार्थ- आर्सेनिक लवण, मैटासिस्टोक्स (Arsenic Salt, Metasytox), पेरिसग्रीन आदि ।

आमाशयिक विषों के लक्षण (Qualities of Stomach Poison):

(i) स्थिर, सस्ते तथा आसानी से मिल सकते हैं ।

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(ii) स्वादहीन नही हों जिससे कि पेस्ट प्रतिर्कर्षित हो ।

(iii) पानी में घुलनशील नहीं हों ।

(iv) अवशिष्ट प्रभाव नहीं रखते हों ।

(v) शक्तिशाली हों और शीघ्रता से कीट, पेस्ट को मार सकें ।

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(vi) विष की सान्द्रता ऐसी हो जो कि पौधों को हानि नहीं पहुँचाये ।

(vii) विष के कण समान हों जो कि एकसमान, एक रूप में फैले और पौधों की सतह पर चिपकने का गुण हो ।

(b) स्पर्श विष (Contact Poison):

रासायनिक विष जो केवल स्पर्श या सम्पर्क में आने पर कीट पेस्ट को मार देते हैं स्पर्श विष (Contact Poison) कहलाते हैं । यह रासायनिक विष कीट एवं पेस्ट के अंगों में अनेक मर्मस्थानों/कोमल स्थानों में होकर प्रवेश कर जाते हैं, जैसे कि झिल्लियों (Membranes), जोड़ों (Joints), रोमाधारों एवं कुछ अन्य भागों में होकर प्रवेश करते हैं तथा कीट एवं पेस्ट को मार डालते हैं ।

यह विष इन अंगों के द्वार रक्त में प्रवेश कर लेते हैं और सामान्य या तन्त्रिका विष के रूप में क्रिया करते हैं । स्पर्श विष लिपोफिलिक (Lipophilic) होने के कारण इपिक्यूटिकल (Epicuticle) में पाये जाने वाले द्रव के द्वारा शोषित कर लिए जाते हैं ।

स्पर्श विष स्प्रे/छिड़काव या डस्ट के रूप में या तो सीधे कीट के शरीर पर या उन स्थानों पर जहाँ कीट, पेस्ट बार-बार आते हैं, उपयोग किये जाते हैं । स्पर्ष विष, कीटनाशक की विभिन्न श्रेणियों के रूप में उपलब्ध होते है ।

अकार्बनिक यौगिक (Inorganic Compounds) के रूप में सोडियम फ्ल्यूराइड (Sodium Fluoride), आर्सेनिकल्स (Arsenicals), गन्धक, खनिज तेल, डीजल तेल, क्रूट तेल, प्राणी वसा (Animal Fat), मछली का तेल, मछली के तेल से तैयार किया गया साबुन, कार्बनिक यौगिक (Organic Compounds) सल्फेट रूप में निकोटिन, पायरेथ्रम (Pyrethrum), नीम सत (Neem Extract), रोटेनोन (Rotenone) आदि । सिन्थेटिक कार्बनिक यौगिक क्लोरीनेटेड हाइड्रोकार्बन्स (Chlorinated Hydrocarbons), कार्बामेटस् (Carbamates) आदि ।

(c) दैहिक विष (Systemic Poison):

इस प्रकार के विष स्पर्श एवं आमाशयिक विष दोनों के रूप में कार्य करते हैं । जब दैहिक विष को पौधों की जडों, तनों, पत्तियों या बीजों में उपयोग किया जाता है, यह विष शोषित कर लिया जाता है और पौधों के विभिन्न भागों में पहुँच जाता है ।

जब इन पौधों क कीट या पेस्ट चूषण विधि (Sucking Mechanism) के द्वारा अन्तर्ग्रहण करते हैं तब आहारनली में विष पहुँच जाता है । इस विष के द्वारा उन कीटों को मार जाता है जिनमें भेदने एवं चूसने वाले मुख उपांग होते हैं ।

(d) घूम्रण (Fumigation):

इस प्रकार के विष गैस के रूप में उपयोग किये जाते हैं । यह विष कीट, पेस्ट के श्वसन तन्त्र में होकर शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और तन्त्रिका तन्त्र (Nervous System) को प्रभावित कर देते हैं, इससे कीट बेहोश होकर मर जाता है ।

इस प्रकार के विष भण्डार गृह, मालगोदाम (Ware House), म्यूजियम, मनुष्य के आवासों, मिट्टी को संक्रमित करने वाले लार्वा/ग्रब, बेधक आदि कीटों पर उपयोग किये जाते हैं ।

सभी प्रकार के धूम्रण अत्यधिक घातक होते हैं, इस करण उपयोग करते समय बहुत सावधानी बरतना चाहिए । सामान्य धूम्रण विष-हाइड्रोजन सायनाइड (HCN), SO2, कार्बन बाइसल्फाइड (Carbon Bi-Sulphide), इथिलीन डाइक्लोराइड (Ethylene Dichloride), फॉस्फीन (Phosphine), मिथाइल ब्रोमाइड (Methyl Bromide) आदि होते है ।

(2) कार्यविधि पर आधारित वर्गीकरण (Classification Based on Mode of Action):

कीटनाशक कीटों, पेस्ट के किस तन्त्र पर प्रभाव डालते हैं, जिससे कीट की मृत्यु हो जाती है, इस आधार पर कीटनाशकों का वर्गीकरण किया जाता है ।

जो कि निम्नलिखित प्रकार से है:

(i) भौतिक विष (Physical Poison):

वास्तव में यह कीटनाशक विष नहीं होते । यह कीटों, पेस्ट को दम घोटकर या उनको जलरहित/जलाविहीन कर मार डालते हैं ।

यह दो प्रकार के होते हैं:

(a) प्रतिघर्षक (Abrasives):

यह कीटनाशक अघुलनशील ठोस पदार्थ, सूक्ष्म कण, कठोर होते है । इन कीटनाशकों को यदि आहार पदार्थों में मिला दिया जाये तो उनमें रहने वाले हानिप्रद कीटों, पेस्ट की टाँगों की सन्धि या जोडों में लग जाते हैं और यह कीट गति करते हैं तब उनकी पतली झिल्ली (Membrance) क्युटिकुला (Cuticula) फट जाती है और जब इस भाग से शरीर का पानी बाहर निकलने एवं वाष्पीकृत होने लगता है जिससे कीट, पेस्ट निर्जलीकरण (Dehydration) के कारण मर जाता है ।

प्रयोग में लाए जाने वाले प्रमुख प्रतिकर्षक विष हैं- सिलिका जेल (Sillica Gel), रॉक फास्फेट (Rock Phosphate), एल्युमिनियम आक्साइड (Aluminium Oxide), मैग्नीशियम ऑक्साइड (Magnesium Oxide) आदि ।

(b) श्वास अवरोधी (Asphyxiants):

यह कीटनाशक कीट, पेस्ट के श्वसन तन्त्र को ऑक्सीजन से वंचित कर देते है । श्वास छिद्र (Spiracles) बन्द कर देते है । इससे कीट दम घुटकर मर जाते हैं ।

उदाहरणार्थ- ठोस (Solid)- मोम (Wax), साबुन (Soap) एवं इनके इमल्शन आदि ।

द्रव (Liquid)- तारपीन का तेल, मिट्टी का तेल एवं इनके इमल्शन ।

गैस (Gas)- कार्बन डाइ-ऑकसाइड, सल्फर डाइ-ऑक्साइड, नाइट्रोजन आदि ।

(ii) प्रोटोप्लाज्मिक विष (Protoplasmic Poison):

यह कीटनाशक कीटों, पेस्ट की आहार नलिका (Alimentary Canal), में पचे हुए भोजन के साथ अवशोषित (Absorbed) हो जाते हैं, कोशिकाओं (Cells) में प्रवेश करके प्रोटोप्लाज्य में पाये जाने वाले प्रोटीन्स को अवक्षेप (Precipitate) कर देते हैं, जिससे कोशिकाएं मर जाती हैं साथ ही साथ कीट भी मर जाता हैं ।

उदाहरण- आर्सेनिक एवं फ्लोरीन यौगिक (Arsenic and Fluorine Compounds), बोरेट्स (Borates), एल्कैलायड्‌स (Alkaloids) नाइट्रोफीनोल्स (Nitrophenols), फार्मेल्डिहाइड्स (Formaldehydes), खनिज अम्ल (Mineral Acids), इथिलीन ऑक्साइड (Ethyline Oxide) आदि ।

 

(iii) श्वसन विष (Respiratory Poison):

इस प्रकार के कीटनाशक कीट के श्वसन तन्त्र (Respiratory System) में प्रवेश करते हैं और फिर रक्त में पहुँचकर कीट, पेस्ट के श्वसन (Respiration) में बाधा डालते है, जिससे कीट मर जाते हैं । यह विष कोशिकीय श्वसन (Cellular Respiration) को पूर्णरूप से प्रभावित करते है ।

उदाहरणार्थ- हाइड्रोसायनिक एसिड गैस, फॉस्फीन (Phosphine) कार्बन मोनो- ऑक्साइड (Carbon Monooxide), हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S) आदि ।

(iv) तन्त्रिका विष (Nerve Poison):

तन्त्रिका कीटनाशक एसिटिल कोलिनएस्टीरेस (Acetyl Cholinesterase) एन्जाइम के अवरोध से सम्बन्धित होता है । सामान्य अवस्था में सभी प्राणियों के तन्त्रिका तन्त्र में एसिटिलकोलीन (Acetyl Choline) नामक रासायनिक पदार्थ बनता है जो कि संवेदनाओं/प्रेरणाओं को तन्त्रिका (Nerve) से ग्रन्थियों एवं मांसपेशियों में पहुँचता है ।

इसके पश्चात् यह ऐसिटिलकोलिनिस्ट्रेस (Acetyl Cholinesterase) नामक एनजाइम द्वार हाईड्रोलाइज होकर कोलीन (Choline) में परिवर्तित हो जाता है ।

यदि ऐसिटिलकोलिनिस्ट्रेस एन्जाइम का निर्माण नहीं होने दिया जाये या समाप्त कर दिया जाये, जैसा कि तन्त्रिका विष करते हैं, तब ऐसटिलकोलीन हाइड्रोलाइज होकर कोलीन (Choline) में परिवर्तित नहीं हो पाता है, इस कारण अनेक प्रकार की अनियमितताएँ उत्पन्न हो जाती हैं जिससे प्राणी को चक्कर, कम्पन आते हैं और माँसपेशियों (Muscles) शिथिल हो जाती हैं और अन्त में मृत्यु हो जाती है ।

इस प्रकार के विष (Nerve Poison) तन्त्रिका विष कहलाते हैं, उदाहरण- पौधों से प्राप्त कीट विष, पायरेथ्रम, निकोटिन, आर्गेनोक्लोरीन (Organochlorine), लिण्डेन (Lindane), कार्बन टेट्राक्लोराइड (Carbon Tetrachloride), D.D.T. पैराथियोन (Parathion) आदि ।

(C) रासायनिक स्वभाव पर आधारित वर्गीकरण (Classification Based on Chemical Nature):

अकार्बनिक कीटनाशक (Inorganic Insecticides):

अकार्बनिक कीटनाशक ऐण्टिमनी, आर्सेनिक, बेरियम, बोरॉन, कॉपर/ताँबा, फ्ल्यूरीन, पारा, थैलियम एवं जस्ते/जिंग के यौगिक होते हैं । यह खनिज उत्पत्ति वाले होते है । इसमें फॉस्फोरस एवं गन्धक तत्व होता है ।

आर्सेनिक यौगिक (Arsenic Compounds):

आर्सेनिक के सभी यौगिक कीटों एवं अन्य पेस्ट तथा स्तनी प्राणियों के लिए अधिक विषैले आन्तरिक विष होते हैं । इन कीटनाशकों के द्वारा अवक्षेपी प्रभाव छोड़ा जाता है जो कि मनुष्य एवं प्राणियों के लिए हानिकारक होता है । यह पानी में अघुलनशील होते हैं ।

अन्य प्रभाव (Others Effects):

अन्य प्रभाव में रोग या Injuries जो लम्बे समय तक चलती है अर्थात् कई वर्षों तक (Cronic) प्रभाव में Tumors (Oncogenic) तथा Malignancy या Cancer (Carcinogenic प्रभाव) तथा Genes में Changes होना या Chromosomes में Change होना (Mutagenic प्रभाव) है ।

Allergic प्रभाव एक हानिकारक प्रभाव है । Allergic प्रभाव के लिए कीटनाशक उत्तरदायी होते है । Allergic में Sensitization जिससे Skin Rash होती है । System Effects Asthma होना Skin Irritation, Eyes और Nose Irritation, Itching आदि आते हैं जो कीटनाशक के द्वारा प्रभाव डालते हैं ।

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