कुकब्रिट फसलों के रोगों को कैसे नियंत्रित करें? | Read this article in Hindi to learn about how to control the diseases of cucurbit crops.

कलम विधि द्वारा तैयार किए गए पौधों के मुख्य लाभ अनेक प्रकार के पादप रोगों पर नियंत्रण पाना है, जैसे- फ्यूजेरियम विल्ट, फॉमाप्सिस स्केलराईड्स, मोनोस्प्रेस्कस केननबैलस इत्यादि प्रमुख हैं ।

1. कलम तकनीक द्वारा फ्यूजेरयम विल्ड पर नियंत्रण:

कलम तकनीक सामान्य तौर पर भूमध्य सागर के देश एवं दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में की जाती है, खासतौर से फ्यूजेरियम विल्ट पर नियंत्रण पाने के लिए यह प्रमुख देश हैं ।

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2. कलम तकनीक द्वारा मोनोस्पोरासकस पर नियंत्रण:

अभी हाल में तरबूज एवं खरबूज पर अचानक से पड़ने वाले विल्ट रोग पर कलम तकनीक का प्रयोग करके नियंत्रण पाया गया है । खरबूज एवं तरबूज में विल्ट रोग मोनोस्पोरास्कस केननबोलस द्वारा होता है ।

3. कलम तकनीक द्वारा मिलाइडोगाइनी स्पेसीज पर नियंत्रण:

मोरक्को में मृदा में उपस्थित सूत्रकृमि की जड़ में पायी जाने वाली स्पेसीज मिलाइडो गाइनी इन्कोगनिटा एवं मिलाइडोगाइनी जावानिका का प्रकोप कद्दूवर्गीय सब्जियों पर पड़ता है । दोनों स्पेसीज जड़ पर गाँठ का निर्माण कर देती हैं एवं गाठ के बहुत कम संख्या में मौजूद होने के कारण उत्पादन में कमी हो जाती है ।

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कद्‌दूवर्गीय सब्जियों में बचाव हेतु मिथाइल ब्रोमाइड का प्रयोग करते हैं एवं सूत्रकृमि नामक रोग से छुटकारा पा सकते हैं । इसके अलावा अन्य साधारण उपाय हैं- सभी उपलब्ध मूलवृन्त जो कि इन सूत्रकृमियों के प्रतिरोधक क्षमता से विद्यमान रहती हैं, का व्यावसायिक स्तर पर प्रयोग करने से मिलाइडोगाइक इन्कोगनिटा एवं मिलाइडोगाइनी जावानिका से पूर्ण रूप से छुटकारा मिल जाता है । कुछ अन्य मूलवृन्त भी पाये जाते हैं जिनमें मिलाइडोगाइनी हापला में प्रतिरोधक क्षमता होती है, परंतु यह अंतिम स्पेसीज भूमध्यसागर के देशों में नहीं पायी जाती है ।

4. गरूमी स्टेम बलाइट प्रतिरोधी:

इटो एट ऑल ने सन 2009 में शोध द्वारा निष्कर्ष निकाला । प्रतिरोधी क्षमता वाले कद्‌दूवर्गीय सब्जियों की 17 जननद्रव्य किस्मों को लेकर सफल प्रयोग किया जो कि डिडिमेला ब्रायनीय की प्रतिरोधक क्षमता से भरपूर थे ।

इनमें से तीन मूलवृन्त जो कि तरबूज चार्लस्टन ग्रे एवं गोल पीले खरबूज में इस पादप के प्रति सहन शक्ति विद्यमान थी । उत्पादन की दृष्टि से प्रतिरोधी क्षमता से भरपूर जनन ‘द्रव्य बोनस 2’ था । इनमें से बेनिनसिया हिस्पीड नामक मूलवृन्त ज्यादा प्रभावकारी सिद्ध हुआ था ।

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5. मूलवृन्त द्वारा ब्लैक रूट रॉट पर नियंत्रण:

कपेली एट आल ने सन 2004 द्वारा शोध करके यह निष्कर्ष निकाला गया कि ग्रीनहाउस में उगाये जाने वाले खीरे की फसल में ब्लैक रूट रॉट जो कि पोमीपसिस स्केलरीटाइण्स द्वारा फैलती है सामान्य रोग है । इस रोग का प्रकोप खीरे के अलावा तरबूज, खरबूज, कद्‌दू, कुम्हड़, लौकी इत्यादि पर भी पड़ता है ऐसा निष्कर्ष सन् 2006 में सिसिडो एट ऑल ने निकाला था । इसके पादप के कारक-मिट्‌टी, मिट्‌टी रहित मीडिया एवं यहाँ तक की प्लास्टिक के बर्तन पर भी रह जाते है जिन पर नियंत्रण पाना बहुत मुश्किल काम है । कलम विधि का उचित प्रयोग करके प्रभावशाली नियंत्रण पाया जा सकता है, विशेषतौर से ग्रीनहाउस में उगाये जाने वाले खीरे की फसल पर ।

6. कलम द्वारा निम्न तापमान को सहन करने की क्षमता का बढना:

निम्न तापमान के प्रभाव से सब्जियों में फूलों के खिलने, मधुमक्खी द्वारा परागण की क्रिया, फलों का आकार, फलों की गुणवत्ता एवं उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है । यदि कद्‌दूवर्गीय सब्जियों में कलम तकनीक का अधिक प्रयोग करें तो उपरोक्त समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है ।

हॉरवाथ ऐट आल ने सन 1983 में शोध द्वारा यह निष्कर्ष निकाला कि खीरे में ठंडे मौसम को बर्दाश्त करने में जो क्रियायें पौधों में होती है उसमें ताजे भार में कुल लीपिड प्रति ग्राम, अधिकतम असंतृप्त वसा, एसिड, वसा, अम्ल एवं कुल लीपिड का अनुपात का बढ़ना एवं एस्ट्राल का कुल लीपिड की तुलना में अनुपातिक संख्या का कम होना इत्यादि से निम्न तापमान के प्रति सहन करने की क्षमता में वृद्धि होती है ।

तरबूज में कलम विधि द्वारा तकनीक अपनाने के परिणामस्वरूप उसके पौधों में बिना कलम किए हुए पौधों की अपेक्षा निम्न तापक्रम पर उच्चतम एंटीआक्सीडट की मात्रा पायी जाती है एवं पत्तियों में एंटीऑक्सीडेंट एन्जाइम की प्रक्रिया तेज गति से होती है । यह निष्कर्ष लिन एट ऑल ने सन 2003 में अपने शोध कार्य द्वारा निकाला था ।

7. उपज में वृद्धि:

अनेक देशों में कलम विधि तकनीक द्वारा सब्जियों की उपज में आशातीत वृद्धि देखी गयी है । स्पेन में 90 प्रतिशत से ज्यादा तरबूज में कलम विधि तकनीक का प्रयोग किया जाता है । खासतौर से कद्‌दूवर्गीय सब्जियों की संकर प्रजातियों में (कु. मैक्सिमा × कू. मास्चाटा) के मूलवृन्त का प्रयोग करके ।

मोरक्कों में प्रयोग करके शोध प्रक्षेत्र में यह देखा जाता है कि कद्‌दूवर्गीय सब्जियों में कलम किए गए पौधे एवं बिना कलम किए गए पौधों की उत्पादन क्षमता का तुलनात्मक अध्ययन किया गया, खासतौर से मेलन एवं तरबूज में । कलम विधि द्वारा तैयार किए गए पौधों का औसत उत्पादन 60-80 गुना ज्यादा पाया गया, अपेक्षाकृत बिना कलम विधि द्वारा तैयार किए हुए पौधों के ।

मेलन में उपज 44 प्रतिशत एवं तरबूज में 84% की वृद्धि देखी गई । खीरे में कलम किए गए पौधों को कद्‌दू के मूलवृन्त पर स्थानान्तरित करके 27% की वृद्धि के साथ प्रति पौध फलों का उत्पादन कर सकते हैं जबकि बिना कलम किए गए पौधों में ऐसी वृद्धि नहीं देखी गई है ।

ऐसा निष्कर्ष सियांग एट ऑल ने सन 2003 में अपने शोध कार्य द्वारा निकाला था । सालाम ऐट ऑल ने सन 2002 में शोध करके दिखाया की उत्पादन क्षमता में 35 गुना की बढ़ोतरी हुई उत्पादन बढ़ने की वजह से फल के आकार में वृद्धि होना, प्रति पौध में फलो की संख्या में वृद्धि एवं पौधों का खेत में जीवित रहना इत्यादि प्रमुख कारण थे ।

8. बाढ़/सूखा/लवणीय प्रतिरोधक क्षममता:

यांग एट ऑल ने सन 2006 में दर्शाया की खीरे के कलम किए गए पौधों में प्रकाश संश्लेषण की दर अधिक होती है, क्योंकि इसमें स्टोमेटा ज्यादा सक्रिय रहता है, आंतरिक कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा NaCl की मात्रा अधिक होने के कारण अधिक होती है जबकि बिना कलम किए गए पौधे में उपरोक्त बातें नहीं होती हैं ।

लौकी के मूलवृन्त पर यदि करेले का कलम प्रयोग करें तो बाढ़ की प्रतिरोधक क्षमता में विस्तार होता है । (लीआओ एंड लीन, 1996) बिना कलम तकनीक के तरबूज के पौधों में कलम किए गए तरबूज के पौधों पर खेखसा का साकाकुर का प्रयोग करने से इनमें सूखे की प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है जबकि तरबूज पर लौकी की कलम करने से प्रभाव कम होता है ।

ऐसा निष्कर्ष सकाता एट ऑल ने 2007 में अपने शोध में पाया था । कद्‌दू की किस्म हिगाटा-2 ने जलपल्वित इलाकों में अच्छा प्रदर्शन किया । उपरोक्त से यह स्पष्ट होता है कि कलम किए हुए तरबूज के पौधों में लवणीय मृदा के प्रति सहनशीलता बढ़ जाती है क्योंकि पौधों में पैरोक्साइड प्रक्रिया बढ़ जाती है एवं सुपर आक्साइड की प्रक्रिया कम हो जाती है ।

9. फूलों के खिलने एवं तुड़ाई पर कलम तकनीक का प्रभाव:

लिंग का प्रभाव एवं फूलों के खिलने के क्रम पर पादप हॉरमोन का नियंत्रण होता है । मूलवृन्त के मिश्रण एवं संयोग के द्वारा पादप हॉरमोन में कमी हो जाती है तथा शेष हॉरमोन कलम द्वारा प्रवर्धित भाग की तरफ चले जाते हैं ।

ऐसा निष्कर्ष सतोह द्वारा सन 1996 में निकाला गया । कुराटा ने सन 1976 में यह पाया कि कलम किए गए तरबूज को यदि लौकी के पौधों पर प्रवर्धित किया जाए तो इनमें मादा पुष्प जल्दी आते हैं जबकि अन्य मूलवृन्त में ऐसा कम पाया जाता है । फलों को पूर्ण रूप से खिलने में सिलिकाऑक्साइड के प्रभाव के कारण जो कि ट्राइकोमस के योगदान के द्वारा संभव हो पाता है । मुख्य रूप से फूलों के ऊपरी भित्ति पर पाया जाता है जो कि फलो के छिलकों पर विद्यमान होते हैं ।

सतोह के अन्य परीक्षण द्वारा यह स्पष्ट है कि यदि खीरे की किस्मों को कलम करके स्ववॉश (पेठा) के विभिन्न अतःजातीय संकर किस्मों के मूलवृन्त पर लगाते है तो परिणामस्वरूप फूलों की संख्या में आशातीत बढ़ोतरी होती है । कुछ कद्‌दूवर्गीय सब्जियों में जडों के द्वारा फूलों के स्थानान्तरण पर प्रभाव पडता है खासतौर से डेन्सटरल प्रकार के कद्‌दू वाली सब्जियों पर खीरे के फलों को बनने में घटाव देखा गया है, ऐसे पौधे जिनको किस्म किटोरा (कुकुरबीटा मॉस्चाटा) पर कलम किया गया है ।

10. पोषक तत्वों को ग्रहण करने की क्षमता पर प्रभाव:

कलम किए गए पौधों में पोषक तत्वों जैसे फॉस्फोरस, नाइट्रोजन, मैग्नीशियम एवं कैल्सियम के ग्रहण करने एवं इनके स्थानान्तरण पर प्रभाव डालते हैं । ऐसा निष्कर्ष पूलगार एट ऑल ने सन 2000 में निकाला । कलम द्वारा पौधों की जडों का बड़े स्तर पर उपयोग कर सकते हैं ।

ह्यू एट ऑल ने सन 2006 में सुझाव दिया कि कलमित पौधों में पोषक तत्वों के ग्रहण करने की क्षमता में वृद्धि होती है परिणामस्वरूप पौधशाला में तैयार पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बढ जाती है ।