कुकब्रिट फसलों का आर्थिक महत्व | Read this article in Hindi to learn about the economic importance of cucurbit crops.

मानव शरीर में पोषक तत्वों की कमी से अनेक रोग होते है । इन पोषक तत्वों की कमी विभिन्न सब्जियों फलो अथवा औषधियों के माध्यम से पूरा किया जा सकता है । कददूवर्गीय कुल की सब्जियों का एक बड़ा समूह है जिसका आर्थिक महत्व तो है ही साथ ही औषधीय महत्व भी कम नहीं है । विभिन्न कद्‌दूवर्गीय सब्जियों के औषधीय महत्व पर आगे प्रकाश डाला गया है ।

खरबूज के बीजों की गिरी में 40 से 44 प्रतिशत तेल पाया जाता है जिसका उपयोग बादाम व पिश्ते के प्रतिस्थायी के रूप में किया जाता है । फलों का गूदा व रस मूत्राशय के रोगी में लाभकारी होता है और तापहर का काम करता है । कुछ विशेषज्ञों ने इनके रस को चर्म रोगों में लाभकारी बताया है ।

रस में यदि जीरा व चीनी डालकर ग्रीष्म-काल में प्रयोग किया जाये तो वह शरीर को शीतल रखता है । इसकी जड़ें पीसकर व छानकर पीने पर दस्तावर व वमनकारी होती हैं । ग्रीष्मकाल में इसके फल खाने में प्यास कम लगती है और लू का प्रभाव नहीं होता है । बीजों को ठंडई में डाला जाता है जिससे शरीर में गर्मी का प्रभाव कम होता है ।

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तरबूज के रस को नमक व काली मिर्च डालकर पीने से ग्रीष्म काल में शरीर को ठंडक पहुँचाती है । यह शरीर में स्कूर्ति पहुँचाता है । इसका रस पीने में प्यास भी कम लगती है । इसके बीजों की गिरी में 30 से 40 प्रतिशत तेल होता है और उसका प्रयोग ठंडई व शर्बत बनाने में किया जाता है । मूत्राशय के रोगी में जीरे व चीनी के साथ रस का प्रयोग बहुत ही लाभकारी होता है ।

करेला एक बहुउपयोगी सब्जी है । इसके रस का मधुमेह में प्रयोग करते हैं । सिर की खाल में छाले हो जाने पर जलने पर घावों और फोडों पर इसका रस लगाया जाता है । रस में नमक मिलाकर बड़ी व छोटी माता रोग में दिया जाता है इसकी सब्जी एक टॉनिक का भी काम करती है तथा पेट को साफ करती है ।

फल पत्तियाँ और बीजों का उपयोग पेट के कीड़ों को नष्ट करने में किया जाता है । फलों के रस को चीनी में मिलाकर एफ्थी में लिया जाता है । पत्तियों के रस को निकालकर अन्य सब्जियों पर छिड़कते हैं जिससे कीटों का प्रभाव कम होता है ।

तोरई के बीजों से प्राप्त तेल का उपयोग चमड़ी के विभिन्न रोगों को ठीक करने में किया जाता है । जब खुजली होकर छोटे-छोटे फोड़े बनते हैं उस समय इसका तेल लगाने से तुरन्त फायदा होता है । इसकी जड़े दस्तावर होती है जिसका प्रयोग जलोदर रोग में किया जाता है ।

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स्थानीय रूप से प्लीहाशोथ बवासीर तथा कोढ के घावों में पत्तियों के रस या पत्तियों का प्रयोग किया जाता है । आँखें दुखने पर और पलकों में हल्के दाने हो जाने पर इसके रस को डालने से फायदा होता है तथा रात में आंखें चिपकती नहीं हैं ।

गर्म की हुई तोरई से निकाला गया रस मधुमेह वाले रोगियों के लिए उपयोगी होता है । चेहरे पर लगाने वाली क्रीम में इसके फलों के रस का प्रयोग किया जाता है । इसके फलो के प्रयोग से पेट विकार दूर होते हैं । लौकी भी एक बहुउपयोगी सब्जी है । यह तासीर में ठंडी होती है । इसलिए इसको सब्जी के रूप में ग्रीष्म काल में प्राथमिकता दी जाती है । यह कब्ज को रोकती है तथा दस्तावर व शीघ्र पाचक होती है । इसका प्रयोग रोगियों और स्वास्थ्य-लाभ करने वाले व्यक्तियों द्वारा किया जाता है ।

पीलिया रोग में पत्तियों के रस में चीनी मिलाकर देने से काफी  फायदा होता है । फलों के गूँदे से पुलटिस तैयार की जाती है जो घावों को शीघ्र ठीक करती है । इसकी सब्जी रोगी और फोड़ों इत्यादि के लिए उपयोगी होती है ।

कडुवे फलों की राख को शहद में मिलाकर रतौंधी वाले व्यक्तियों की आँखों पर लगाने से उन्हें बहुत फायदा होता है । इसके बीजों की गिरी से तेल निकाला जाता है जिसका प्रयोग सिरदर्द में किया जाता है । इससे तैयार मिठाई एवं हलुवा भी शरीर को ठंडक पहुँचाता है तथा पेट को साफ करता है ।

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कद्‌दू भी एक उपयोगी सब्जी है । इसकी तासीर ठंडी होती है, इसीलिए उत्तरी भारत में ग्रीष्मकाल में इसकी सब्जी बनाने की प्रथा है । इसके बीजों का प्रयोग चीनी के साथ खाने पर फीताकृमि पीड़ित व्यक्तियों को दिया जाता है । इसका गूदा भी पुलटिस के लिए प्रयोग किया जाता है । नियमित रूप से सब्जी खाने पर सूत्र विकारों में फायदा होता है । सब्जी दस्तावर एवं पाचक भी होती है ।

ककड़ी ग्रीष्मकाल में शरीर को ठंडक पहुँचाती है । नमक के साथ कच्चा खाने पर वह पेट के विकारों एवं मूत्र विकारों में लाभकारी होती है । बीजों को ठंडई एवं शर्बतों में प्रयोग किया जाता है । खीरा एक बहुउपयोगी फल है इसके खाने से मूत्र विकारों में लाभ होता है ।

यह पेट के कौड़ी को मारकर बाहर निकालने में हितकर है । फलों का रस मधुमेह जैसी बीमारियों के लिए लाभकारी हैं । परवल के फल ठंडक पहुँचाते हैं । इससे तैयार मिठाई दस्तावर एवं पेट के विकारों में लाभकारी हैं । यह पाचन क्रिया को बढ़ाकर शरीर में आज पैदा करता है ।

कुंदरु पाचनक्रिया को बढ़ाता है । यह पेट दर्द में तथा मूत्र विकारों में भी अधिक लाभकारी सिद्ध होता है । सेद-कचरी खाने से पेट विकारों में काफी लाभ होता है । इससे हड्‌डियों की गाँठो में होने वाला दर्द कम हो जाता है । कच्चे फल खाने से मलेरिया नहीं होता है । फूट का प्रयोग मूत्र विकारों में लाभकारी रहता है ।

चिचिंडा एक लाभकारी सब्जी है जिसके पके फलों के खाने से मूत्रविकारों में लाभ होता है । इससे गठिया के दर्द में भी फायदा होता है । इसके कच्चे फलों की सब्जी बहुत ही पाचक एवं दस्तावर होती है । इसीलिए रोगियों को खाने के लिए दी जाती है ।

इसकी पत्तियों का रस खुजली वाली चमड़ी पर लगाने से बहुत फायदा होता है । रस को सिर में डालने से रूसी समाप्त हो जाती है । कच्चे फलों से प्राप्त गूदे को पुलटिस के रूप में प्रयोग करने से घावों में फायदा होता है । लगातार फलों का प्रयोग शरीर के लिए शक्तिवर्द्धक होता है । चप्पन कद्‌दू के फलो की सब्जी भी शक्तिवर्द्धक है । यह पाचन क्रिया को बढ़ाती है तथा पेट विकारों को दूर करने में सहायक है ।