Read this article in Hindi to learn about:- 1. कीट के पंखों की आकृति (Shapes of Wings of Insects) 2. कीटों के पंख शिरा विन्यास (Wing Venatun of Insects) 3. कीट के  पंख युग्मक उपकरण (Coupling Apparatus) 4. उद्‌भव (Emergence).

कीट के पंखों की आकृति (Shapes of Wings of Insects):

पंखों का आकार त्रिभुजाकार होता है तथा तीन कोर स्पष्ट दिखाई देते हैं जो निम्नलिखित हैं:

1. कोस्टल मार्जिन (Coastal Margin):

पंखों का उपरी भाग ‘क’ से ‘ख’ तक कोस्टल मार्जिन कहलाता है ।

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2. एपिकल मार्जिन (Apical Margin):

पंखों के दोनों बाहरी किनारे ‘ख’ से ‘ग’ के मध्य का भाग एपिकल मार्जिन कहलाता है ।

3. एनल मार्जिन (Anal Margin):

पंखों के निचले भाग को ‘ग’ से ‘घ’ को एनल मार्जिन कहते हैं । इसी के साथ पंखों में तीन सुस्पष्ट कोण भी पाये जाते हैं से कोण निम्नलिखित हैं- ह्‌यूमरल कोण, एपेक्स कोण व एनल कोण ।

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4. पंख के क्षेत्र (Wing Margins):

सामान्यतः प्रारम्भिक पंख के चार क्षेत्र होते है । पंख के आधार वाला क्षेत्र जहाँ पर वह वक्ष से जुड़ा होता है ऑक्सीलरी क्षेत्र कहलाता है । पंख का अगला कड़ा वाला क्षेत्र जो कि मध्य मोड़ से ऊपर स्थित होता है रोमिजियम कहलाता है । जुगम व वेनल मोड के मध्य का क्षेत्र वेनस भाग तथा ऑक्सीलरी भाग का निचला भाग जुगम कहलाता है ।

कीटों के पंख शिरा विन्यास (Wing Venatun of Insects):

कीटों के पंखों में पाई जाने वाली शिराओं की व्यवस्था को शिरा-विन्यास कहते हैं । साधारण शिरा विन्यास कॉमस्टाक और नीथम नामक कीट वैज्ञानिकों द्वारा विश्लेषित किया गया है । प्रारम्भिक शिरा विन्यास दो श्वास नलिकाओं की शाखाओं पर आधारित है । इन श्वास नलिकाओं से आठ मुख्य शिराएं निकलती हैं तथा इनकी शाखाओं को उपशिरायें कहते हैं । उपशिरायें और मुख्य शिराओं को आपस में मिलाने वाली शिराओं को आड़ी शिरायें अथवा क्रास वेन कहते हैं ।

कीट के पंख में निम्नलिखित शिरायें उपशिरायें व आड़ी शिरायें होती हैं:

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छठी, सातवीं व आठवीं मुख्य शिरायें एनल शिरायें कहलाती हैं तथा शाखा विहीन होती हैं इनके संकेत क्रमशः A1, A2++, तथा A3+++ है ।

आड़ी शिरायें (Cross Veins):

मुख्य आड़ी शिरायें निम्नलिखित हैं:

(1) धूमरल – ये आड़ी शिरा कोस्टा तथा सब कोस्टा को मिलाती है ।

(2) रेडियल – रेडियस तथा रेडियस सेक्टर के मध्य स्थित रहती है ।

(3) रेडियो मिडियल – इससे रेडियस सेक्टर तथा मीडियस एंटीरियर की प्रथम उपशाखा जुड़ी रहती है ।

(4) मीडियो क्यूबिटल – ये मीडियस पोस्टीरीयर की चौथी उपशाखा MP4 को क्यूबिटस की प्रथम उपशाखा CUA1 से जोड़ती है ।

किसी भी कीट-में उक्त समस्त शिरा विन्यास पूर्ण रूप से नहीं पाया जाता है, कुछ न कुछ शिरायें प्रत्येक कीट में कम पायी जाती है ।

कीट के  पंख युग्मक उपकरण (Wing Coupling Apparatus of Insects):

उड़ते समय कीट को अपने शरीर का भार हवा के दबाव के विपरीत यानी ऊपर की ओर उठाने तथा आने की ओर धकेलने के लिये अपने पंखों से लगातार किया करनी होती है । यदि इस क्रिया के समय हवा काटते हुए दोनों पंखों के मध्य खाली स्थान रहे तो हवा निकलने से उड़ान सम्भव नहीं हो पायेगी ।

अतः सुचारु रूप से उड़ान भरने के लिये दोनों पंखों का आपस में सटा रहना तथा एक साथ चलना अत्यन्त आवश्यक है । इस क्रिया के सफल संचालन हेतु कीटों के पंख कुछ स्थानों पर विशिष्ट साधनों द्वारा आपस में जुड़े रहते हैं जिन्हें पंख संयोजी उपकरण कहते हैं ।

प्रमुख पंख-संयोजी उपकरण निम्नानुसार है:

(i) जुगल एवं हयूमरल लोब (Jugal and Humeral Lobes):

इस प्रकार के उपकरण गण लेपिडोप्टेरा व कोलियोप्टेरा में मिलते हैं । इनमें अग्र पंख के पिछले किनारों पर आधार के पास एक लोब निकला रहता है जिसे जुगल लोब कहते हैं । इसी प्रकार पश्च पंखों के अगले किनारों पर आधार के पास भी एक लोब होता है जिसे सूमरल लोब कहते हैं । उड़ान के समय उक्त दोनों लोब आपस में चिपके रहते हैं ।

(ii) फ्रेनुलम तथा रैटिनाकुलम (Frenulum and Retinaculum):

गण लेपिडोप्टेरा के कुछ कीटों में जुगम नहीं होता है तथा पश्च पंख में बालों

की उपस्थिती, जिन्हें फ्रेनुलम बाल कहते हैं, की सहायता से पंख संयोजन होता है । मादा कीटों में अग्र पंख की क्यूबिटस शिरा से सख्त बालों का एक समूह निकलता है जो कि उड़ान के समय फेंनुलम में फंसा रहता है ।

अग्र पंखों पर स्थित बालों को रैटिनाकुलम कहते हैं । नर कीटों में फ्रेनुलम एक बाल के रूप में होता है तथा रैटिनाकुलम हुक के समान होता है । फ्रेनुलम उड़ान के समय सब कोस्टा शिरा पर स्थित रैटिनाकुलम में फंस जाता है ।

(iii) एम्पलैक्सी फार्म (Amplexi Form):

पैपलियोनिडी कुल की तितलियों में अगले पंख का पिछला किनारा नीचे की ओर तथा पिछले पंख का अगला किनारा ऊपर की ओर घड़ी कमानी की भाँति मुड़कर उड़ान के समय एक-दूसरे को पकड़ लेते हैं । माहू (एफिड) में भी इसी प्रकार की स्थिति पायी जाती है ।

(iv) हैम्यूलाई (Hamulate):

हाइमेनोप्टिरा गण के कीटों में इस प्रकार के संयोजी उपकरण पाये जाते हैं । पश्च पंख के अगले किनारे की ऊपरी सतह पर छोटी तथा सख्त खूंटियों की कतार होती है । इन खूंटियों को हैम्यूलाई कहते हैं । इसके विपरीत अग्र पंख का पिछला किनारा मोटा और सख्त होता है जिसमें ये हैम्यूलाई फंस जाती है एवं दोनों ही पंख आपस में चिपके रहते है ।

(v) हुक एवं चैनल (Hooks and Channels):

गण हेमिप्टेरा के मत्कुण में इस प्रकार के पंख संयोजी उपकरण पाये जाते हैं । इनमें अग्र पंख के पिछले किनारे के मध्य में निचली सतह पर एक मुड़ा हुआ कांटा होता है । पश्च पंख के अगले किनारे की ऊपरी सतह पर एक खांचा होता है जिसमें यह कांटा फंस कर पंखों को जोड़ता है ।

कीटों में पंखों का उद्‌भव (Emergence of Wings in Insects):

कीटों में पंखों का उद्‌भव किस तरह हुआ है इस सम्बन्ध में दो प्रमुख सिद्धांत प्रचलित हैं:

(i) श्वास नली क्लोम सिद्धांत (Tracheal Gill Theory):

इस सिद्धांत के अनुसार कीटों में पंखों का उद्‌भव वक्षीय श्वास नली-क्लोमों से हुआ है । ये श्वास-नली क्लोम अपना मूल कार्य छोड्‌कर उड़ान के लिये रूपान्तरित हो गये हैं । श्वास नली-क्लोमों का स्थान बड़ा ही अस्थायी है और हो सकता है कि ये शरीर के किसी भाग पर उत्पन्न हो गये हों । यदि इस सिद्धांत को मानें तो इस धारणा को बहुत बल मिलता है पंखों वाले कीटों के पूर्वज अस्थायी रूप से जल में रहने लगे थे एवं श्वसन के लिये उनमें क्लोम उत्पन्न हो गये थे तथा जब ये कीट फिर से वायु द्वारा श्वसन करने लगे तो क्लोम पंखों में बदल गये ।

(ii) पेरानोटल सिद्धांत (Paranotal Theory):

इस सिद्धांत के अनुसार कीटों में पंखों की उत्पत्ति वक्ष की बाह्यत्वचा के फैलने से हुई है । प्रारम्भ में कीटों में वायवीय जीवन की कोई आवश्यकता नहीं होती थी मगर बाद में जब इसकी आवश्यकता हुई तो ये फैल कर एक छलाँग लगने वाले उपकरण में रूपान्तरित हो गये ।

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