कीड़े का शरीर संरचना | Body Wall of Insects in Hindi.

1. क्यूटिकल (Cuticle):

यह देहभित्ति की सबसे बाहरी परत होती है । यह एक जटिल व अकोशिकीय संरचना है जोकि एपीडर्मिस द्वारा अनेकों एन्जाइमों से उत्पन्न स्रावों से निर्मित होती है ।

क्यूटिकल दो विभिन्न परतों:

(i) एपीक्यूटिकल

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(ii) प्रोक्यूटिकल से मिल कर बनती है ।

(i) एपीक्यूटिकल (Epicuticle):

क्यूटिकल का यह बाहरी स्तर 1 से 4µ या इससे कम मोटा होता है । ये 4 स्तरों से मिलकर बनता है ।

(अ) सीमेन्ट स्तर (Cement Layer) – एपीक्यूटिकल का बाहरी स्तर सीमेन्ट स्तर कहलाता है तथा गुणों में लाइपोप्रोटीन के समान होता है ।

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(ब) मोम स्तर (Wax Layer) – यह स्तर अंशतः मोम के व्यवस्थित का स्तर है और पानी के लिए अपार्यगम्यता पैदा करता है ।

(स) पोलीफिनोल स्तर (Polyphenolic Layer) – यह फिनोलयुक्त स्तर कीटों में रंग पैदा करता है ।

(द) क्यूटिकुलाइन स्तर (Cuticuline Layer) – यह रंजकों द्वारा उत्पन्न विभिन्न प्रकार के लाइपोप्रोटीन से बनता है । ये लाइपोप्रोटीन एपीडर्मिस कोशिकाओं से यहाँ पर आता है ।

क्यूटिकल परत का मोटा व सख्त होना स्कलैरीटाइजेशन कहलाता है । इस क्रिया द्वारा क्यूटिकल मोटी और मजबूत प्लेटों का रूप धारण कर लेती है । इन प्लूटों को स्कलैराइट्‌स कहा जाता है । यह प्रक्रिया स्कलोरोटिन नामक पदार्थ तथा रक्त में उपस्थित टायरोसिन नामक पदार्थों के परस्पर जुड़ने से होती है ।

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(ii) प्रोक्यूटिकल (Pro-Cuticle):

प्रोक्यूटिकल की रचना काइटिन, प्रोटीन और दूसरे यौगिक से मिलकर होती है एवं ये एक लचीली जैली के समान होती है । इसमें बहुपटलकीय संरचना होती है जो 0.2 से 10 माइक्रान तक मोटे स्तरों से बनती है ।

प्रोक्यूटिकल निम्नलिखित दो भागों में विभक्त होती हैं:

a. एक्सोक्यूटिकल (Exocuticle),

b. एण्डोक्यूटिकल (Endocuticle) ।

a. एक्सोक्यूटिकल (Exocuticele):

एक्सोक्यूटिकल का बाह्य भाग कठोर होकर कठोर बाह्य क्यूटिकल का रूप लेता है । ये क्यूटिकुलिन और रंग प्रदान करने वाले पदार्थ जिनमें कैरोटिन और मैलेनिन प्रमुख हैं, से युक्त होते हैं ।

b. एन्डोक्यूटिकल (Endocuticle):

क्यूटिकल का भीतरी भाग, जो मुलायम और पारदर्शक झिल्ली के समान बना रहता है तथा अपरिवर्तित रहता है, अन्त: क्यूटिकल कहलाता है । कीट की क्यूटिकल के दो मुख्य तत्त्व काइटिन तथा प्रोटीन हैं । काइटिन विभिन्न क्यूटिकलों के शुष्क भार का लगभग 25 से 60 भाग होता है । काइटिन और प्रोटीन का संयोजन किस प्रकार से होता है इस बारे में अभी जानकारी उपलब्ध नहीं है ।

काइटिन के जल-अपघटन से ऐसिटिक अम्ल एवं ग्लूकोसेमाइन बनते है । ग्लूकोसेमाइन नाइट्रोजनी पालीसेकेराइड है । क्यूटिकल के प्रोटीन तत्त्व में विशेष महत्व का आथ्रोपोडिन नामक जल घुलनशील तत्त्व उपस्थित होता है । काइटिन का जल, क्षारों, तनु अम्लों और कार्बनिक विलायकों में विलयन नहीं बनता है मगर यह सोडियम हाइपोक्लोराइट व सान्द्र खनिज अम्लों में अपघटित होकर विलेय हो जाता है ।

क्यूटिकल के कार्य:

इसके प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:

(i) कीट के शरीर को वास्तविक रूप में बनाए रखना ।

(ii) शरीर के आंतरिक अंगों की सुरक्षा करना ।

(iii) चलने, दौड़ने तथा उड़ने में शरीर को आवश्यक लचीलापन प्रदान करना ।

(iv) कीट के शरीर से पानी के वाष्पोत्सर्जन को रोकना ।

(v) आहार नाल का अगला भाग बनाकर भोजन संचित रखने व पोषणी में उसे पीसकर पाचन में सहायता करना ।

2. एपीडर्मिस (Epidermis):

देहभित्ति की द्वितीय परत एपीडर्मिस कहलाती है यह एक काशिकीय स्तर की बनी होती है । यह परत एण्डोक्यूटिकल के नीचे स्थित रहती है । एपीडर्मिस स्तर की कुछ कोशिकाएँ विभिन्न प्रकार की ग्रंथी कोशिकाओं में परिवर्तित होकर उपयोगी पदार्थों का स्रवण करती हैं ।

एपीडर्मिस का प्रमुख कार्य क्यूटिकल का निर्माण करना, आवश्यकतानुसार ग्रन्थियों जैसे लार, लाख, उत्सर्जन, इत्र, प्रतिकर्षक ग्रन्थियों का रूप ले लेना एवं कुछ अंग जैसे सीटी या बालों का निर्माण करना है । ऐसी एपीडर्मिस कोशिकाएँ बाल या ब्रिसल्स का निर्माण करती हैं, ट्राइकोजिन कोशिकाएँ कहलाती है ।

3. आधार कला (Basement Membrane):

देहभित्ति की सबसे निचली परत आधार कला कहलाती है । यह अत्यन्त पतली लगभग 0.5 माइक्रान मोटाई की पारदर्शक कोशिका रहित झिल्ली होती है । एपीडर्मिस की समस्त कोशिकाएँ आधारकला से जुड़ी रहती हैं । यह झिल्ली देहभित्ति को आधार प्रदान करती है ।

देहभित्ति के अवयव:

 

क्यूटिकल का बाहरी स्तर विभिन्न प्रकार की संरचनाओं से युक्त होने के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की बहुवृद्धियाँ लिये होता है जो कि निम्नलिखित दो प्रकार की होती हैं:

i. पहले प्रकार की बहुवृद्धियां वे होती हैं जो क्यूटिकल की कलाओं के जोड़ द्वारा जुड़ी होती हैं । इनमें शूक व स्पूर्स शामिल हैं ।

ii. दूसरे प्रकार की बहुवृद्धियां वे होती हैं जो क्यूटिकल से दृढतापूर्वक जुड़ी होती है ।

शूक (Setae):

 

ये प्रायः रोम के नाम से भी जाने जाते हैं । प्रत्येक शूक अपने आधार पर सन्धिकला के एक वलय द्वारा लगा रहता है । सन्धिकला की संरचना हाइपोडर्मल कोशिका टार्मोजन से होती है । प्रत्येक शूक, शूकजन से उत्पन्न खोखली संरचना होती है । यह बाह्य क्यूटिकल के प्रसारों के रूप में विकसित होती है । शूक की मदद से कीटों के वर्गीकरण में काफी मदद मिलती है ।

शूक मुख्यतः निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:

(अ) आवरक शूक (Clothing Hairs):

ये कीट के शरीर या उसके उपांगों की सामान्य सतहों को ढके रहते हैं । यदि इनमें धागे के समान संरचना होती है तो इन्हें प्लूमोस हेयर कहते हैं । यदि ये मजबूत और दृढ़ होते हैं तो ब्रिसल कहलाते हैं ।

(ब) शल्क (Scale):

ये रूपान्तरित आवरक रोम होते हैं तथा अनेकों कोलेम्बोला और लेपिडोप्टेरा में प्रमुखतः पाये जाते हैं ।

(स) ग्रन्थिल शूक (Glandular Setae):

ये शूक एपिडर्मिस ग्रन्थियों के स्राव के निकास-द्वार के रूप में काम करते हैं । यदि ये पक्के व दृढ़ हो तो इन्हें ग्रन्थिल ब्रिसल कहते हैं ।

(द) संवेदी शूक (Sensory Setae):

कीटों के शरीर के कुछ-कुछ भागों विशेषकर उपांगों के शूक रूपान्तरित होकर संवेदी कार्य करने लगते हैं । क्यूटिकल के बहिवृद्धियाँ जो इससे दृढतापूर्वक जुड़ी होती है क्यूटीकली प्रवर्ध कहलाती हैं ।

 

क्यूटिकल प्रवर्ध निम्नलिखित प्रकार के होते हैं:

(i) अकोशिकीय प्रवर्ध (Non Cellular Processes):

ये अकोशिकीय प्रवर्ध देह-भित्ति की बाह्य सतह से निकली बहिवृद्धियाँ है और पूर्ण रूप से क्यूटिकल संरचनाएँ हैं इनमें छोटे उभार ग्रन्थिकाएँ, कण्टिकाएँ, छोटे शूल, रोम इत्यादि प्रमुख है ।

(ii) बहुकोशिकीय प्रवर्ध (Multicellular Processes):

ये क्यूटिकली संरचनाएँ हैं और पूरी देह भित्ति पर खोखली बहिवृद्धियों के रूप में उपस्थित होती हैं । ये अविभेदित एपीडर्मिस कोशिकाओं से उत्पन्न होती हैं । ये प्रायः दो प्रकार की होती है- प्रथम, अचल शूल होते हैं तथा दूसरे, गतिशील शूल होते हैं ।

(iii) एककोशिकीय प्रवर्ध (Unicellular Processes):

यह देह आवरण से निकली हुई एककोशिकीय बहिवृद्धियाँ हैं तथा इनमें शूल की तरह शूक, पंखदार पिच्छकी रोम तथा शल्क प्रमुख हैं । ये शंकु के आकार के हुक्स, चम्मच के समान गांठदार रोम का रूप लेते हैं ।

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