भारत में गरीबी पे भाषण | Speech on Poverty in India!

गरीबी की स्थिति भी कम भयानक नहीं है क्योंकि हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि देश में लोगों को इतना गरीब नहीं होने देना चाहिए कि उनसे लोग नफरत करने लग जाये, और वे समाज के अमीर लोगों को अपनी गरीबी के लिए जिम्मेदार मानने लगे, जब इस तरह कि स्थिति देश में निर्मित होने लगती है तो यह देश की व्यवस्था के लिये खतरा बन जाती है ।

और देश की अर्थव्यवस्था बीमार होने लगती है यह एक प्रकार से ऐसे रोगी की तरह हो जाती है कि वह एक बीमारी की दवा कराता है तो दूसरी पैदा हो जाती है और वह ऐसा करते-करते एक दिन स्वयं को ही खत्म कर देता है, लेकिन वह स्वस्थ्य नहीं हो पाता है ।

इस तरह की व्यवस्था से केवल वही व्यक्ति परेशान नहीं होता बल्कि वे सब व्यक्ति भी परेशान होते है जो उसके साथ में रहते है इस तरह समाज का एक बड़ा हिस्सा जो गरीब है वह उन सब लोगों के लिये भी परेशानी खड़ी करता है जो गरीब नहीं है ।

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तब यहाँ एक प्रश्न यह पैदा होता है कि क्या हम अपनी अर्थव्यवस्था में गरीबी रेखा का निर्धारण इसलिये करते है कि जिससे गरीब लोगों को अलग रख कर अमीर लोगों को बेहतर रखा जाये जिससे उनके हिस्से की सुख-सुविधायें अमीरों को ठीक से उपलब्ध करवाई जा सकें ।

इस बात में कोई सदेह नहीं कि गरीबों की दरिद्रता अमीरों की खुशहाली पर प्रभाव जरूर छोड़ती है जिसकी वजह से हम गरीबों पर कम अमीरों पर बेहतरी के इल्जाम जरूर करते है । इसलिये हमारा पूरा ध्यान गरीबों को, गरीबों की दरिद्रता के प्रभाव से बचाने में लग जाता है इनके दो प्रभाव पैदा होते है एक ओर अमीर तो अधिक अमीर होता चरना जाता है ओर गरीब अपनी दुर्दशा में वृद्धि करता जाता है इससे देश में गरीबी का दर्द और भी भयानक हो जाता है ।

यहाँ यह बात का भी ध्यान रखना होगा कि हम कई बार गरीबों की स्थिति का आकलन गरीबों की दुर्दशा से नहीं करते, बल्कि समस्त देश की सापेक्ष समृद्धि से जोड़ कर करते है । जो देश के सभी नागरिकों से जुड़ा होता है वह गरीबी को ठीक से परिभाषित नहीं होने देता है । गरीबी का आशय एक अर्थ में एक परिवार की आय जो शारीरिक क्षमता को बनाये रखने के लिये बेहद जरूरी है उसको सुलभ नहीं करा पाती है ।

जिससे गरीबी की सबसे बड़ी विभिषिका भुखमरी का उदय होता है और वह गरीब कहलाता है । लेकिन यहाँ पर प्रश्न पैदा होता है कि हम इसका निर्धारण कैसे करें कि किस व्यक्ति को उचित मात्रा में आहार मिल रहा है कि नहीं । देखा गया है कि बहुत से लोग बहुत कम पोषक तत्वों को लेकर भी जीवित रहते है लेकिन जैसे-जैसे उनके आहार में सुधार होना है, उनके जीवन की आशा में भी संवृद्धि हो जाती है ।

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भोजन-आहार में सुधार और-वृद्धि के फलस्वरूप अमेरिकी यूरोपीय एवं जापानी लोगों की देहपष्टि और आकार में काफी सुधार हुये है । अत: हम न्यूनतम पोषण आवश्यकताओं की विभाजन रेखा को तर्कसंगत कम, मनमानीपूर्ण अधिक मानते है ।

एक महत्व की बात यह है कि पोषण जरूरतों का विचार ही अपने आप में पूर्ण नहीं है तो फिर उस पर आधारित गरीबी का विचार कहीं से सही बैठ सकता है । इस प्रकार यह बात कह सकते है कि व्यक्ति का कुपोषण गरीबी की समस्या का केवल एक पहलू है लेकिन कहीं विकासशील देशों के लिये कुपोषण ही अपने आप में सबसे महत्वपूर्ण पहलू बना हुआ है । अत: गरीबी की संकल्पना में कुपोषण का महत्व अधिक होना स्वाभाविक है इसके महत्व की प्रतिष्ठा एवं उसके स्वरूप का सही स्थान मिलना अभी भी बाकी है ।

गरीबी को मापने के लिये गिनी गुणांक की गणना की जाती है इसके द्वारा आय के वितरण को विषमता की माप की जाती है यह बहुत ही प्रचलित विधि है जो आय के प्रत्येक युग्म के बीच आय अन्तर की माप करती है । यह वास्तविक लारेज वक्र तथा निरपेक्ष समता रेखा के बीच का क्षेत्रफल तथा निरपेक्ष समता रेखा के नीचे के सम्पूर्ण क्षेत्र के बीच अनुपात प्रदर्शित करता है ।

यदि है G = 0 तो प्रत्येक व्यक्ति को एक ही आय मिल रही है । यदि G = 1 है तो एक ही व्यक्ति पूरी आय प्राप्त कर रहा है । इसलिए गिनी गुणांक का अधिकतम मूल्य 1 के बराबर होगा तथा न्यूनतम मूल्य शून्य के बराबर होगा । जब गिनी गुणांक का मूल्य 1 होगा तो निरपेक्ष विषमता होगी इसी प्रकार इसका मूल्य शून्य होगा तो निरपेक्ष समता की स्थिति होगी ।

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इसी आधार पर भारत में आयंगर तथा ब्रम्हानंद ने पाया कि पहली पंचवर्षीय योजना तक ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों की विषमता की दर ज्यों की त्यों ही रही है । गिनी गुणांक के मूल्य में यदि हम 100 का गुणा कर दे तो हमें गिनी सूचकांक प्राप्त हो जाता है ।

इस आधार पर है कि भारत की स्थिति में धीरे-धीरे सुधार होता जा रहा है लेकिन कोई सन्तोषजनक हल नहीं मिल रहा है अत: हमें गरीबी के लिये व्यवहारिक प्रयास करने पडेंगें । भारत के कुपोषण की स्थिति पर दृष्टिपात करें तो पता चलता है कि आज भी हमारी कुल आबादी की 20 प्रतिशत आबादी इसकी पकड़ में है जो भारत की अर्थव्यवस्था के लिये बहुत बड़ा अभिशाप है ।

भारत में भ्रष्टाचार गरीबी का बहुत बड़ा कारण है जो देश की व्यवस्था को असमानताओं की स्थिति में बनाये रखता है आज हमारी व्यवस्था का प्रत्येक क्षेत्र भ्रष्टाचार में कण्ट तक डूबा हुआ है । जब तक हम इस बुराई से बाहर नहीं निकलेगें तब तक गरीबी की बुराई को भी खत्म नहीं कर पायेंगें । अत: हमें हमारे देश की भ्रष्टाचार में विश्व रैंकिंग को देखे तो पता चलता है कि हम बहुत ही पिछड़े हुये है ।

हमारे देश की शिक्षा में स्थिति अच्छी नहीं है । जहाँ आज विश्व के विकसित देश साक्षरता में 100 प्रतिशत की स्थिति को प्रान्त करने की स्थिति में है, वहीं आज हम केवल आकड़ों में 75 प्रतिशत की स्थिति पर ही खुश हो रहे है ।

यह स्थिति भी हमारी असमानता भरी है आज कई क्षेत्र ऐसे है, जहाँ 90 प्रतिशत से अधिक साक्षरता है, जैसे केरल तथा वही दूसरी ओर कुछ प्रदेश ऐसे है जिनकी साक्षरता 50 प्रतिशत से भी कम है अतः हम इन सब के पीछे सरकारी खर्च को या सरकारी योजनाओं को भी जिम्मेदार मान सकते है जिसकी वजह से अन्तिम छोर पर रहने वाले व्यक्ति पर शिक्षा की रोशनी नहीं पहुँच रही है ।

निष्कर्ष:

उपरोक्त अध्ययन के बाद यह कहा जा सकता है कि भारत प्रत्येक दृष्टिकोण से गरीबों को बढ़ाने के लिए ही अधिक प्रयासरत रहा है क्योंकि आज भी हम गरीबी को सही मायने में समझने में सफल नहीं हो पाये है । यही कारण है कि हमारी विश्व पटल पर छवि सहीं नहीं है ।

हम हर मापदंड पर पिछड़े ही नजर आते है । अतः हमें भारत की गरीबी का जमीनी स्तर पर अध्ययन कर उसके ठोस उपाय ढूंढने होंगे और उन उपायों का ईमानदारी से पालन करना होगा तभी हम निकट भविष्य में गरीबी जैसी गंभीर बीमारी का हमेशा-हमेशा के लिए इलाज कर दूर कर सकते हैं ।

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