“त्याग” पर एडवर्ड आठ का भाषण | Speech of Edward VIII on “Abdication” in Hindi Language!

जब मेरे लिए अपनी इच्छा से कुछ कहना सम्भव होता, तो मैं कुछ भी छिपाना नहीं चाहता । लेकिन अब तक मेरे लिए इस प्रकार बोलना संवैधानिक रूप से सम्भव नहीं था ।

मैंने कुछ घण्टों पहले सम्राट और राजा के तौर पर अपना आखिरी कर्तव्य पूर्ण किया और अब जबकि मेरे भाई ड्‌यूक ऑफ यार्क ने उत्तराधिकारी के तौर पर मेरा स्थान ग्रहण कर लिया है, तो मैं सबसे पहले उनके प्रति राजनिष्ठा व्यक्त करता हूं । मैं ऐसा अपने दिल से करता हूं ।

आप सब उन कारणों को जानते है, जिन्होंने मुझे सिंहासन छोड़ने के लिए मजबूर किया । लेकिन मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि मैं यह फैसला लेते समय न तो अपने देश को भूला न ही उस साम्राज्य को जिसकी सेवा मैंने युवराज के तौर पर और बाद में राजा के तौर पर पिछले पचीस सालों तक करने की कोशिश की ।

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लेकिन आप मेरा विश्वास करें कि इस जिम्मेदारी के भारी बोझ और राजा के तौर पर अपने कर्तव्य-पालन को निभाना मेरे लिए उस स्त्री की मदद व समर्थन के बिना नामुमकिन-सा लगता है, जिससे मैं प्यार करता हूं ।

मैं आपको यह भी बताना चाहता हूं कि यह फैसला पूर्णरूप से मेरा अपना है । मुझे इसका फैसला केवल अपने लिए लेना था । इससे सम्बद्ध अन्य व्यक्ति ने आखिर तक मुझे दूसरा रास्ता अपनाने के लिए राजी करने की कोशिश की । मैंने यह लिया, अपने जीवन का सबसे गम्भीर निर्णय । इम एक विचार के आधार पर कि अन्तत: सबकी भलाई किसमें है ।

इस निश्चित जानकारी ने मेरे फैसले की मुश्किलों को कुछ कम कर दिया कि देश के सार्वजनिक मामलों के उनके दीर्घ प्रशिक्षण और अपने सद्‌गुणों के कारण मेरे भाई मेरी जगह लेने में सर्वथा सक्षम होंगे और साम्राज्य के जीवन एवं प्रगति को इससे कोई रुकावट या नुकसान नहीं होगा ।

उन्हें एक और अतुलनीय वरदान प्राप्त है, जो आप में से भी कई लोगों को मिला है, पर मुझे नहीं -पत्नी और बच्चों सहित एक सुखी परिवार । इस मुश्किल वक्त में मेरी मां राजमाता और मेरे परिवार ने मुझे धीरज बँधाया । राज्य के मन्त्रियों विशेषरूप से प्रधानमन्त्री श्री बाल्दविन ने हमेशा मेरे साथ उचित व्यवहार किया ।

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उनके और मेरे बीच या मेरे और संसद के मध्य कभी कोई संवैधानिक मनमुटाव नहीं हुआ । मेरे पिता ने मुझे संवैधानिक परम्पराओं की शिक्षा दी है, इसलिए मैं कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं होने देता । जब मैं युवराज था और बाद में जब मैं सिंहासन पर बैठा सभी वर्गों के लोगों ने मेरे साथ बहुत अच्छा बर्ताव किया है ।

चाहे वह साम्राज्य में यात्रा के दौरान हो या सामान्य दिनचर्या । मैं उसके लिए अत्यन्त आभारी हूं । हालांकि मैं अब सार्वजनिक बोझ से आजाद हो रहा हू और कुछ वक्त बाद अपने मूल निवास को वापस चला जाऊंगा लेकिन हमेशा अंग्रेज नस्ल और साम्राज्य का पूरी दिलचस्पी से हित-चिन्तन करता रहेगा ।

यदि कभी महाराजा को मेरी सेवाओं की जरूरत हुई तो हमेशा तैयार रहूगा । अब हमारे एक नये राजा हैं । मैं पूरे दिल से उनकी व उनके प्रजाजन आप सबकी सुख-सम्पन्नता की कामना करता हूं । भगवान् आप सबका भला करें । भगवान् राजा की सदैव रक्षा करें ।

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