Biography of Edward Jenner in Hindi | एडवर्ड जेनर की जीवनी!

1. प्रस्तावना ।

2. जन्म परिचय एवं उपलब्धियां ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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चेचक जैसे भयंकर रोग से आज जो सारा संसार मुक्ति पा चुका है, इस मुक्ति से जगत को उपकृत करने वाले महान् वैज्ञानिक एडवर्ड जेनर ही थे । चेचक की बीमारी को एक टीके से ठीक करने में सफलता प्राप्त करने के बाद एडवर्ड जेनर ने अपनी इस खोज को संसार के लिए समर्पित कर दिया ।

2. जन्म परिचय एवं उपलब्धियां:

यह बात करीब 150 वर्ष पहले की है, जब कल्पनाजीवी जेनर विद्यार्थी जीवन में ही गांव के वातावरण में रहकर लोगों की चिकित्सा व सेवा किया करते थे । इस काम में उन्हें बहुत आनन्द आता था । एक दिन सुबह-सुबह गांव की एक लड़की उनके पास अपने कुछ रोग के उपचार के लिए आयी हुई थी ।

बातों ही बातों में एडवर्ड ने उससे पूछा कि क्या तुम पहले भी कभी बीमार रही हो लड़की ने उत्तर दिया कि मुझे पहले काउपॉक्स लगे वेवके हो चुकी है । अब मुझे पुन: यह चेचक नहीं होगी । लड़की के ये शब्द एडवर्ड के कानों में ऐसे घुलने लगे कि उन्होंने इस बीमारी का अनुसन्धान करने का पक्का मन बना लिया ।

इस कार्य की शुरुआत करने के लिए उन्होंने इस अन्धविश्वास पर भी ध्यान दिया कि एक बार गो चेचक होने वाले लोगों को दुबारा यह चेचक नहीं होती । उन्हें तो इसकी पुष्टि हेतु शोध करना था । संयोगवश गांव की एक सारानेल्री नाम की बालिका और 8 वर्षीय जेम्स के हाथों में गो चेचक का फोड़ा दिखाई पड़ा । सारा के दाहिने हाथ में और 2 छोटे दाने कलाई गे फूटे थे ।

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उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि उस बच्चे पर इसका अवश्य प्रभाव पड़ना चाहिए, जिसको न तो चेचक या गो चेचक हुई हो । 4 मई, 1876 को उन्होंने जेम्स के बांह में 2 हल्के चीरे लगाये और सारा के हाथों के दानों का कुछ द्रव्य उसमें प्रवेश कराया ।

पहले तो कुछ असर नहीं दिखा, लेकिन धीरे-धीरे दाने लाल हो गये । फोड़े बढ़ गये और चीरे के चिह गायब हो गये । एक फोड़ा और बढ़ने लगा । जेम्स 7 दिन ठीक रहा । वें दिन बुखार आने के बाद अपने आप ठीक हो गया ।

इस प्रयोग से वे प्रसन्न तो हुए, लेकिन उनका शोध पूरा नहीं हुआ था । जुलाई में उन्होंने चेचक के दाने से कुछ द्रव लेकर सीधा उसका टीका लगा दिया । जो टीका उन्होंने लगाया था, वे इसके परिणाम के लिए बहुत बेचैन थे । कुछ ही दिनों में टीके के चिह मिटने के साथ जेम्स भी इस संक्रमण से पूर्णत: मुक्त नजर आया ।

अपनी इस खोज से उनकी खुशियों का पारावार नहीं रहा । अब उन्होंने इस दिशा में अध्ययन और अनुसन्धान जारी रखा । 1798 में उनकी प्रकाशित पुरूाक का कुछ लोग मजाक बनाने लगे । पादरियों के साथ जनता भी उनके विरोध में आकर यह कहने लगी कि अरे ! यह तो ईश्वर विरुद्ध कार्य कर रहा है । अपनी इस आलोचना से विचलित हुए बिना वे कार्य करते रहे ।

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आयुर्विज्ञान के पीर्यसन और बुडबिले के समर्थन ने उन्हें प्रोत्साहित किया । रूस की तत्कालीन साम्राज्ञी एलीक्ज्येवना तथा अलैक्जेण्डर की प्रथम पत्नी ने जेनर को हीरे की अंगूठी उपहार में दी । अब उन्होंने सामूहिक टीका अभियान चलाया ।

कुछ लोगों ने उन्हें उनके टीके लगाने के तरीके को बेहूदा और धन बटोरने वाला कहा । कुछ स्थानों पर भीषण दंगे व प्रदर्शन भी हुए । न्यूयार्क, पेरिस तथा वाल्टीमोर, फिलाडेल्फिया की जनता ने तो टीके लगवाने से साफ इनकार कर दिया, किन्तु नेपल्स के लोगों ने उनका रचागत किया ।

रेडइण्डियन लोगों ने इस बीमारी से बचने के बाद उन्हें कीमती उपहार दिये, तो स्पेन, मैक्सिको, द॰अफ्रीका, चीन, फिलीपाइन उघदि देशों ने इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की । फ्रांस के नेपोलियन बोनापार्ट ने तो सभी सैनिकों के लिए टीका लगवाना अनिवार्य कर दिया । जेनर के प्रति नेपोलियन में बहुत अधिक सम्मान का भाव था । उनके कहने रार उसने एक ब्रिटिश सैनिक को रिहा कर दिया था ।

3. उपसंहार:

चेचक के रोग से मानव को सदा-सदा के लिए मुक्ति दिलाने वाले इस मसीहा का यह संसार हमेशा एहसानमन्द रहेगा । आज का व्यक्ति इस रोग से मुक्ति पाकर बड़ा ही निर्णय है । नेत्र की ज्योति तक को हमेशा के लिए समाप्त कर देने वाले, चेहरे के स्वरूप को विकृत कर देने वाले इस भयंकर रोग का उपचार एक टीके मात्र से करके एडवर्ड जेनर ने ससार पर सचमुच ही एक महान् उपकार किया है ।

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